नई दिल्ली September 28, 2010
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तांबे की इनवेंट्री घटने और यूरो में आई मजबूती का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह तांबे की कीमतों में 400 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो चुकी है। धातु विश्लेषकों के अनुसार चीन में तांबे का आयात बढऩे और अमेरिका से भी मांग में सुधार के चलते इसकी कीमतों में तेजी का रुख है।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में इस माह तांबे के दाम करीब 400 डॉलर बढ़कर 7940 डॉलर प्रति टन हो गए। हालांकि मंगलवार को मुनाफावसूली के चलते तांबे की कीमतों में हल्की गिरावट जरूर दर्ज की गई। इस दौरान घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में तांबा नवंबर वायदा के दाम 348.85 रुपये से बढ़कर 358.95 रुपये प्रति किलो हो गए।ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि तांबे की औद्योगिक मांग सुधरने लगी है। उनका कहना है चीन और अमेरिका की ओर से तांबे की खरीद बढऩे से इसकी मांग में इजाफा हुआ है। अगस्त महीने में चीन के तांबा आयात में 10.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। अगस्त में करीब 3.79 लाख टन तांबे का आयात हुआ। गुप्ता ने कहा कि अमेरिका की ओर से भी तांबे की मांग पहले से सुधरी है। इस वजह से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे की इनवेंट्री में गिरावट दर्ज की गई है। इस माह तांबे की इनवेंट्री 3,98,775 टन से घटकर 3,78,125 टन रह गई है। यही कारण है कि तांबे की कीमतों में तेजी आई है। धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा इस बारे में बताते है कि डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होने के कारण तांबे की कीमतें तेज हुई हैं। उनका कहना है कि धातु कंपनियां हर साल अंतिम तिमाही में धातुओं की अधिक खरीद करती है। इस वजह से भी तांबे की मांग अधिक है।आने वाले दिनों में तांबे की कीमतों के बारे में गुप्ता का कहना है कि आगे निर्माण क्षेत्र और बिजली क्षेत्र की ओर से मांग और बढऩे की उम्मीद है। इस वजह से तांबे की कीमतें तेज रहने की संभावना है, लेकिन अल्प अवधि के लिए मुनाफावसूली के चलते इसकी कीमतों में गिरावट जरूर आ सकती है। भारत में तांबे की मांग के बारे में दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता कहते है कि बारिश खत्म होने के बाद निर्माण क्षेत्र में काम जोर पकडऩे से इसकी मांग बढ़ सकती है। ऐसे में तांबे की कीमतों में गिरावट की संभावना नहीं है।गौरतलब है कि तांबे की सबसे अधिक खपत 42 फीसदी इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक में होती है। इसके अलावा करीब 28 निर्माण क्षेत्र, 12 फीसदी ट्रांसर्पोटेशन और 9-9 फीसदी खपत कंज्यूमर और औद्योगिक मशीनरी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन 43 फीसदी एशिया में होता है। (BS Hindi)
30 सितंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें