नई दिल्ली September 23, 2010
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में उम्मीद जताई थी कि वर्ष 2010-11 के दौरान देश में फसल उत्पादन की स्थिति शानदार रहेगी। लेकिन एक तरफ उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी की उम्मीद है और दूसरी तरफ गोदामों की भारी कमी है। मौजूदा गोदाम अनाज से अटे पड़े हैं और सरकार के पास नई फसल के भंडारण की कोई ठोस योजना नहीं है, जबकि सरकारी खरीदारी तो होनी ही है।वर्ष 2010 के दौरान केेंद्रीय पूल में सरकारी स्टॉक के मामले में तकरीबन 120 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 4.77 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचा। वर्ष 2005 में यह स्टॉक 2.502 करोड़ टन था। सरकार की भंडारण क्षमता फिलहाल तकरीबन 5.69 करोड़ टन है, जिसमें खुली जगह और तमाम राज्यों की एजेंसियों की स्वामित्व वाली भंडारण क्षमता एवं किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं शामिल हैं।कृषि मंत्रालय के शुरुआती अनुमान के मुताबिक वर्ष 2010-11 के दौरान तकरीबन 8.041 करोड़ टन चावल का उत्पादन होगा। यह पिछले साल हुए कुल चावल उत्पादन से 6 फीसदी अधिक है। यदि सरकार इसमें से 20 फीसदी भी खरीदारी करती है, तो भंडारण की तगड़ी किल्लत हो सकती है।वर्ष 2010-11 में रबी सीजन के दौरान सरकारी एजेंसियों ने 2.25 करोड़ टन गेहूं की खरीदारी की थी। यह कुल आवक का तकरीबन 87 फीसदी है। तकरीबन ये तमाम स्टॉक फिलहाल पड़े हैं। अब मॉनसून की विदाई में देरी की वजह से रवि फसलों से बेहतर उत्पादन के आसार बढ़े हैं और यदि सरकार तगड़ी खरीदारी की रणनीति पर कायम रहती है, तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।पिछले 5 वर्षों के भंडारण आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस क्षेत्र में उचित योजना और सही दृष्टिïकोण का नितांत अभाव रहा है। यह स्थिति तब है, जब देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं चल रही हैं और पिछले 3-4 वर्षों से सरकार ने खाद्यान्न खरीदारी के मामले में सक्रिया बढ़ाई है।गौरतलब है कि मार्च 2007 से लेकर मार्च 2010 की अवधि में किराए पर ली गई भंडारण सुविधाएं समेत सरकार की कुल भंडारण क्षमता में तकरीबन 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस 10 फीसदी बढ़ोतरी में ज्यादातर योगदान किराए पर ली गई सुविधाओं की है। नए भंडारण सुविधाओं की निर्माण गति काफी धीमी रही है।देश में तीन ऐसी सरकारी एजेंसियां हैं जो बड़े स्तर पर भंडारण क्षमता और गोदामों का निर्माण करती हैं- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य स्तरीय 17 भंडारण निगम। एफसीआई के गोदामों का इस्तेमाल खाद्यान्न भंडारण के लिए किया जाता है, जबकि सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी के गोदामों में खाद्यान्न एवं अन्य अधिसूचित कमोडिटी रखे जाते हैं।वर्ष 2007-08 से लेकर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र की इन तीन एजेंसियों ने 7.7 लाख टन भंडारण क्षमता का निर्माण किया है और सीडब्ल्यूसी ने मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 2 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता निर्माण की योजना बनाई है। एफसीआई फिलहाल नए गोदामों का निर्माण नहीं कर रही है, लेकिन इसने निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत क्षमता विस्तार के लिए 10 साल की गारंटी स्कीम बनाई है।एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में लगभग 1.49 करोड़ टन क्षमता वाले गोदामों के निर्माण की योजना को मंजूरी दी है। लेकिन फिलहाल इसके लिए निविदा की शुरुआती प्रक्रिया ही चल रही है। नए गोदामों के निर्माण में कम-से-कम 2-3 वर्ष लगेंगे। पहचान गुप्त रखने की गुजारिश के साथ एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। पिछले 5 वर्षों के दौरान जो क्षमता विस्तार के आंकड़े आ रहे हैं, वे केवल किराए पर लिए गए गोदामों की वजह हैं। विभिन्न एजेंसियों ने गोदामों का निर्माण नहीं किया है। यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। (BS Hindi)
24 सितंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें