मुंबई September 17, 2010
मॉनसूनी बारिश की अवधि सरकार के अनुमानों को पार कर गई है। ज्यादा समय तक बारिश होने से गुजरात में तिल और मूंगफली की फसल पर बुरा असर पड़ा है। कारोबार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि गुजरात से सटे आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी इन फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। देश में मूंगफली और तिल का सबसे ज्यादा उत्पादन गुजरात में होता है।हालांकि इस नुकसान का औपचारिक आकलन किया जाना अभी बाकी है, लेकिन व्यापार सूत्रों का मानना है कि एक-तिहाई तिल और लगभग 15-20 फीसदी मूंगफली की फसल सितंबर के पहले सप्ताह तक हुई अत्यधिक वर्षा की वजह से प्रभावित हो चुकी है। संकर तिल की 60 दिन वाली खरीफ फसल जून में बोई जाती है और सितंबर के पहले सप्ताह में इसकी कटाई हुई है। इस किस्म की फसल का आकार बेहद कम है। यह 7,000-8,000 टन के बीच है। तिलहन एवं तेल कारोबार करने वाली मुंबई स्थित एम लखमसी ऐंड कंपनी के पार्टनर संजीव सावला ने कहा कि यह फसल बड़े पैमाने पर नष्टï हुई है। फसल का आकार छोटा होने की वजह से यह संकर तिल देश के कुल उत्पादन में बहुत ज्यादा असर नहीं डालता। उन्होंने कहा कि लेकिन निश्चित रूप से यह बाजार धारणा पर असर डालता है। भारत में सफेद किस्म के कुल तिल बीज में लगभग 90,000 टन का योगदान अकेले गुजरात का है। पिछले साल तिल का उत्पादन 275,000 टन था। इस साल फसल को नुकसान पहुंचने की वजह से किसानों और विश्लेषकों ने गुजरात में इस अनुमान को घटा कर लगभग 50,000 टन कर दिया है। गुजरात के एक जाने-माने तिलहन विशेषज्ञ ने कहा, 'इस बार फसल को पहुंचे नुकसान को देखते हुए अगर गुजरात में तिल का उत्पादन 50,000 टन के आंकड़े पर पहुंचने में सफल रहता है तो हमें बेहद खुशी होगी।Ó4 सितंबर, 2010 तक गुजरात में मॉनूसन की 100 फीसदी वर्षा दर्ज की गई है। कच्छ में यह वर्षा 193.3 फीसदी से अधिक की रही है और सौराष्टï्र में यह आंकड़ा 138.5 फीसदी और उत्तरी गुजरात में 101 फीसदी रहा। हालांकि दक्षिण और मध्य-पूर्वी गुजरात 71.93 और 83.23 फीसदी की मॉनसूनी वर्षा के साथ पीछे बने हुए हैं। प्रमुख तिलहन कारोबारी और प्रमुख व्यापार संस्था इंडियन ऑयलसीड्ïस ऐंड प्रोड्ïयूस एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (आईओपीईपीसी) के पूर्व चेयरमैन संजय शाह ने कहा कि तिलहन के बढ़ते क्षेत्र में समृद्घ होने के नाते सौराष्टï्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।मूंगफली किसान भी अत्यधिक वर्षा की वजह से फसल को पहुंचे नुकसान का वास्तविक आकलन नहीं कर सके हैं, क्योंकि खेतों में अभी भी पानी और कीचड़ भरा हुआ है। इस पानी को सूखने में कई दिन का समय लग सकता है। लेकिन रुक रुक कर होने वाली बारिश मंगलवार को भी जारी रही। चूंकि मूंगफली को भूमि के अंदर बोया जाता है, इसलिए कीचड़ या जल भराव की लंबी अवधि से इसे नुकसान पहुंच सकता है। पिछले साल गुजरात में खरीफ सत्र में 13.5 लाख टन मूंगफली का उत्पादन हुआ था। सितंबर के पहले सप्ताह तक अनुकूल मॉनसून को देखते हुए इस बार इसके बढ़ कर 14.5 लाख टन हो जाने का अनुमान है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा कि इस साल हुई अत्यधिक वर्षा इस सत्र के उत्पादन को कम कर सकती है। फसल को हुए नुकसान की वजह से मूंगफली बोल्ड (60/90) की कीमतें लगभग 3 फीसदी तक बढ़ कर 5650 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं जो लगभग एक महीने पहले 5500 रुपये प्रति क्विंटल पर थीं। इसी तरह मूंगफली जावा (80/90) की कीमत पिछले एक महीने में 5750 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ कर 5950 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। सफेद किस्म के तिलहन की कीमत 5900 से मामूली रूप से बढ़ कर 5950 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। देश में मूंगफली का रकबा 4 सितंबर को 49 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया जो पिछले साल की समान तारीख के 41.9 लाख हेक्टेयर की तुलना में अधिक है। कृषि मंत्रालय द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार तिलहन का रकबा 2010 के खरीफ सत्र के दौरान मामूली रूप से बढ़ कर 66 लाख हेक्टेयर रहा जो पूर्ववर्ती वर्ष में 64 लाख हेक्टेयर था। (BS Hindi)
20 सितंबर 2010
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