नई दिल्ली September 11, 2010
केंद्र सरकार ने गोदामों की भंडारण क्षमता बढ़ाकर 149 लाख टन किए जाने के लिए गोदाम बनाने को स्वीकृति दे दी है। इसके पहले भंडारण क्षमता 127.65 लाख टन की थी। ये गोदाम आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में बनेंगे। केंद्र सरकार को इस समय भंडारण क्षमता कम होने की वजह से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने यह भी फैसला किया है कि करीब 25 लाख टन भंडारण क्षमता का स्थानांतरण राजस्थान और गुजरात में किया जाए, जहां गोदाम बनाने के लिए जमीन उपलब्ध है। इसके पहले भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने पंजाब और हरियाणा में क्रमश: 71 लाख टन और 41 लाख टन क्षमता के गोदाम बनाए जाने के लिए निविदा जारी की थी। हालांकि इस निविदा पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई, क्योंकि यहां पर रियल एस्टेट की कीमतें ज्यादा हैं, साथ ही सरकार के मानक भी कड़े हैं। मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, 'हाल ही में अतिरिक्त क्षमता विस्तार को स्वीकृति दी गई है। हमने फैसला किया है कि 20-25 लाख टन भंडारण क्षमता पंजाब और हरियाणा से अन्य राज्यों में हस्तांतरित की जाए। ऐसा यह ध्यान में रखते हुए किया गया है कि वर्तमान भंडारण क्षमता में विभिन्न राज्यों के बीच खाईं को कम किया जा सके और साथ ही निवेशकों को आकर्षित किया जा सके। हमने इसे स्वीकृति दे दी है और कुछ राज्यों में इस पर काम शुरू हो गया है।Óएफसीआई की एक उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में 21.35 लाख टन भंडारण क्षमता के अतिरिक्त गोदाम बनाए जाने की स्वीकृति दी है। इसका निर्माण 10 साल की गारंटी योजना के तहत निजी क्षेत्र के सहयोग से किया जाना है। इसके पहले उच्च स्तरीय समिति ने 7 साल की गारंटी योजना के तहत 127.65 लाख टन भंडारण क्षमता की स्वीकृति दी थी। नए दिशा निर्देशों के मुताबिक गोदाम बनाए जाने के लिए न्यूनतम जमीन की जरूरत को 3 एकड़ से घटाकर 2 एकड़ कर दिया है, जो पहले 5000 टन के लिए होगा। उसके बाद अतिरिक्त 5000 टन भंडारण क्षमता के लिए 2 एकड़ की जमीन की जरूरत के मानक को कम कर 1.7 एकड़ कर दिया गया है। एफसीआई को उम्मीद है कि नए दिशा निर्देश के बाद अब निजी क्षेत्र की ओर से अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी। गारंटी योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के भंडारण निगम के जरिए एफसीआई, निजी क्षेत्र से इन गोदामों को 10 साल के लिए किराए पर लेगी। सरकार ने यह भी योजना बनाई है कि राज्यों के भंडारण के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए, जिससे विकेंद्रीकृत खरीद नीति (डीसीपी) अपनाई जा सके। इस योजना का उद्देश्य खरीद नीति और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राज्यों की सीधी भागीदारी बढ़ाना है। डीसीपी योजना के तहर राज्य सरकारें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की खरीद की जिम्मेदारी लेंगी तथा इसके वैज्ञानिक तरीके से भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत इसके वितरण की जिम्मेदारी संभालेंगी। इसका वास्तविक मकसद है कि राज्य सरकारें एफसीआई के सहयोग से डीसीपी योजना के तहत जरूरत पडऩे पर खुद के संसाधनों का इस्तेमाल कर सकेंगी। सैद्धांतिक और कार्यरूप में माना जा रहा है कि डीसीपी संचालन केंद्रीय व्यवस्था की तुलना में ज्यादा प्रभावी होगा। इसका कारण है कि इससे राज्यों की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होगी और इससे मालभाड़े की बचत की जा सकेगी। इस समय डीसीपी योजना गेहंू के मामले में 7 राज्य और चावल खरीद के मामले में 11 राज्यों ने लागू किया है। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र 2 प्रमुख राज्य हैं जिन्होंने विकेंद्रीकृत खरीद योजना लागू की है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, 'यह बहुत जरूरी कदम है और कोशिश की जा रही है कि राज्यों में विकेंद्रीकृत व्यवस्था के तहत खरीदारी सुनिश्चित की जाए और राज्यों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जाए। इसलिए हम खासकर उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे सिर्फ पंजाब और हरियाणा पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अन्य राज्यों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके।Ó (BS Hindi)
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