बेंगलुरु September 29, 2010
अनुकूल बारिश ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मक्के की बंपर फसल की उम्मीद मजबूत कर दी है। इन दो दक्षिणी राज्यों का देश के कुल मक्का उत्पादन में लगभग 30 फीसदी का योगदान है। मौजूदा खरीफ फसल के लिए ये राज्य 46 लाख टन मक्के के उत्पादन में 25 फीसदी की शानदार वृद्घि की उम्मीद कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार मक्का की खेती का एरिया पिछले खरीफ सत्र की तुलना में 17.5 फीसदी घट कर 438,000 हेक्टेयर रह गया था। मक्के के लिए रकबे में आई गिरावट का मुख्य कारण फसल पैटर्न में बदलाव था। अधिकारियों के अनुसार राज्य के किसानों ने इस साल अच्छी बारिश की वजह से बड़े पैमाने पर धान और कपास की खेती पर ध्यान दिया। उत्पादकता में वृद्घि की वजह से हालांकि यह उत्पादन 44 फीसदी की वृद्घि के साथ 14.2 लाख टन रहने की संभावना है। अधिकारियों के अनुसार किसानों को समय पर बुआई और अच्छी बारिश कीटों के हमलों से बचाव आदि की वजह से मक्के की अच्छी फसल उपजाने में मदद मिली है। चालू सत्र के लिए फसल की कटाई अक्टूबर के मध्य तक शुरू हो जाने की संभावना है और यह नई फसल अक्टूबर के अंत तक बाजार में आ जाएगी। आंध्र प्रदेश की तुलना में कर्नाटक में स्थिति ज्यादा अच्छी है। कर्नाटक में मक्के की बुआई 11.5 लाख हेक्टेयर में की गई जबकि पिछले साल यह रकबा 11.6 लाख हेक्टेयर था। इस बार मक्के का उत्पादन 18-19 फीसदी की वृद्घि के साथ लगभग 32 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि राज्य में मॉनसून के विलंब की वजह से बुआई में भी विलंब हुआ था, लेकिन सभी इलाकों में अनुकूल बारिश की वजह से उत्पादन पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छा रहने की संभावना है। राज्य के दावणगेरे जिले में 173,000 हेक्टेयर में मक्के की बुआई की गई थी और यहां उत्पादन लगभग 800,000 टन रहने का अनुमान है। कर्नाटक में इस फसल की कटाई नवंबर के अंत तक शुरू होने की संभावना है। कर्नाटक में कृषि विभाग ने इस नई खरीफ फसल के लिए 925 रुपये प्रति क्विंटल की सिफारिश की है जो केंद्र द्वारा घोषित 880 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में 5.1 फीसदी अधिक है। दूसरी तरफ दावणगेरे में किसान सरकार से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत घोषित किए जाने की मांग कर रहे हैं। इन किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार 2 अक्टूबर से पहले उनकी यह मांग नहीं मानती है तो वे आंदोलन करेंगे। पुराने मक्के का भाव फिलहाल 11,000 रुपये प्रति टन पर हैं। हालांकि नई फसल के लिए कीमतें इस स्तर पर नहीं रहेंगी। व्यापारी शुरू में लगभग 9500 रुपये प्रति टन भाव की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन बाद में यह 9,000 रुपये प्रति टन पर आ सकता है, जो 5.2 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। (BS Hindi)
30 सितंबर 2010
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