नई दिल्ली September 01, 2010
खाद्य एवं कृषि मामलों की संसदीय समिति ने चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के खिलाफ राय दी है। समिति का तर्क है कि ऐसा करना गन्ना किसानों एवं चीनी उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ होगा। संसदीय समिति की यह राय एक रिपोर्ट में दर्ज है, जिसे मंगलवार को संसद के पटल पर रखा गया जिसे मानना या न मानना सरकार की मर्जी पर निर्भर करेगा।कांग्रेस पार्टी के सांसद विलास मुत्तेमवार की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'समिति का मानना है कि यदि चीनी उत्पादन और इसके वितरण पर से तमाम नियंत्रण हटा लिए गए तो इसका सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर प्रतिकूल असर होगा क्योंकि ऐसी स्थिति में चीनी मिलें केंद्र सरकार की ओर से तय भाव लेवी चीनी की आपूर्ति के लिए बाध्य नहीं रह जाएंगी।'समिति ने यह आशंका भी जताई है कि चीनी मिलें सरकारी नियंत्रण से मुक्ति का नाजाज फायदा उठा सकती हैं। वे अपने गोदामों में अधिक-से-अधिक चीनी का भंडार जमा कर भाव में कृत्रिम बढ़ोतरी लाने का प्रयास कर सकती हैं, खासकर तब, जब चीनी उत्पादन में गिरावट वाली स्थिति हो।समिति का मानना है कि देश में पहले से ही कम चीनी उत्पादन की समस्या है और इस पर से सरकारी नियंत्रण हटा लेने से परिस्थितियां और खराब ही होंगी। यही वजह है कि समिति ने सिफारिश की है कि सरकार को चीनी को नियंत्रण एवं विनियमन मुक्त करने की अवधारण नहीं मानना चाहिए। ऐसा करना किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हित में भी नहीं होगा।उल्लेखनीय है कि चीनी भारत में सबसे ज्यादा सरकारी नियंत्रण वाला उद्योग है। वर्ष 1971-72 एवं 19-79 में इस पर नियंत्रण हटाने के प्रयास हुए, लेकिन इससे पिछे हटना ही पड़ा।पिछले कई वर्षों के दौरान सरकार ने इस्पात एवं सीमेंट जैसे कई बड़े उद्योगों पर अपना नियंत्रण धीरे-धीरे ढीला किया है। चीनी पर सरकारी नियंत्रण की व्यवस्था लेवी चीनी की उपलब्धता और मिलों पर इसका दायित्व सुनिश्चित करने के लिए है।गौरतलब है कि इस वर्ष जून में सरकार ने पेट्रोल की कीमत पर से अपना नियंत्रण हटा लिया था और डीजल के मामले में भी ऐसा ही करने की मंशा जाहिर की थी। अब केंद्रीय खाद्य मंत्रालय चीनी को भी नियंत्रण मुक्त करने के लिए इस उद्योग के संगठनों के साथ पिछले 2 महीनों से विचार-विमर्श कर रहा है।मौजूदा व्यवस्था के तहत चीनी मिलें खुले बाजार में चीनी की बिक्री केवल कोटा प्रणाली के आधार पर ही कर सकती हैं। केंद्र सरकार का चीनी महानिदेशालय हर महीने रिलीज ऑर्डर जारी करता है और प्रत्येक मिल को चीनी बिक्री का कोटा देता है। चीनी मिलें कोटे से ज्यादा बिक्री नहीं कर सकतीं। यदि वे संबंधित महीने के दौरान कोटा भर चीनी की बिक्री नहीं कर पाते, तो उन्हें जुर्माना भरना पड़ता है।बाजार में चीनी की उपलब्धता कम होने की स्थिति में सरकार इस प्रणाली में ढील देती है। मसलन इस वर्ष सरकार ने कोटा प्रणाली को साप्ताहिक एवं अद्र्घ मासिक कर दिया था। लेवी दायित्व के तहत चीनी मिलों को अपनी उत्पादन का एक निश्चित हिस्सा (फिलहाल 20 फीसदी) बाजार भाव से कम दाम पर सरकार को बेचना पड़ता है। इसकी आपूर्ति सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को की जाती है। (BS Hindi)
03 सितंबर 2010
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