17 दिसंबर 2009
प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी से किसानों को होगा लाभ : थॉमस
कृषि उपजों की मार्केटिंग में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी किसानों को बेहतर लाभ दिलाने में मददगार साबित हो सकती है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की भूमिका बढ़ाई जानी चाहिए। कृषि उत्पादों की बेहतर मार्केटिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं और कृषि कारोबार में सभी चरणों और स्तरों से जोड़ने पर ही समावेशी विकास संभव हो पाएगा। दिल्ली में कृषि मंत्रालय, सीआईआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल मार्केटिंग (एनआईएएम) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय एग्री मार्केटिंग शिखर सम्मेलन 2009 में कृषि राज्य मंत्री के। वी. थॉमस ने यह विचार रखे। उनका कहना है कि समावेशी विकास के लिए पीपीपी मॉडल को अपनाया जाना चाहिए। थॉमस के मुताबिक किसानों को सही लाभ मिलना आवश्यक है और इसके लिए खरीद से लेकर बिक्री तक में पूरी पारदर्शिता अपनाने की जरूरत है। इस मौके पर कृषि सचिव टी. नंद कुमार ने किसानों तक लाभ का हिस्सा पहुंचाने में कंपनियों को आगे आने को कहा। उनका कहना है कि कृषि क्षेत्र में सिर्फ खेती ही नहीं होती, बल्कि मूल्यवर्धन और विपणन श्रंखला से भी किसानों को जोड़ा जाना चाहिए। तभी किसान अपनी मेहनत का सही लाभ कमाने में कामयाब हो पाएगा। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के एशिया प्रशांत क्षेत्र के निदेशक डॉ. अशोक गुलाटी ने कहा कि सभी खाद्य वस्तुएं के दाम बढ़ गए हैं, परंतु किसानों को फिर भी कम दाम मिल रहे हैं। उनका कहना है कि देश में कृषि उत्पादों में रिटेल श्रंखला को बढ़ावा देना होगा क्योंकि ये कंपनियां ही किसानों तक सही दाम पहुंचाने में सक्षम होंगी। उन्होंने कहा कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक है कि अन्न और अन्य खाद्य पदार्थो पर लगने वाले सभी शुल्क आदि माफ किए जाने चाहिए।राज्यसभा सदस्य शरद जोशी ने कहा कि नरेगा के कारण श्रमिक मिलने में कमी हो रही है। उनका कहना है कि दलहन का उत्पाद इसी कारण कम हो रहा है क्योंकि इसमें काफी मेहनत और श्रमिकों की जरूरत होती है। जोशी के मुताबिक राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण ही किसानों का हाल खराब है। उनका कहना है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से किसानों को लाभ होगा परंतु इसके लिए कानून और मसलों को सुलझाने की जरूरत है। (बिज़नस भास्कर)
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