नई दिल्ली. योजना आयोग ने अगले साल के शुरूआत में महंगाई से खाने की थाली के और खाली होने की आशंका जताई है। आयोग ने 2 सितंबर को होने वाली अपनी संपूर्ण आयोग बैठक के लिए तैयार किए गए आतंरिक परिपत्र में कहा है कि अगर रबी की फसल भी सूखे की चपेट में आई तो मार्च 2010 में खाद्य पदार्थो की कीमत में 10-15 प्रतिशत तक इजाफा हो सकता है। यानी ऐसा हुआ तो आप नहीं महंगाई चट कर जाएगी थाली।
आयोग ने खासकर दाल-दलहन की कीमतें बढ़ने की आशंका को बलवती करार दिया है। आयोग ने संबंधित अधिकारियों-मंत्रालयों को बांटे इस परिपत्र में कहा है कि सूखे का असर आर्थिक विकास दर पर भी पड़ेगा। आयोग के अनुसार 2007-08 से शुरू हुई 11 वीं पंचवर्षीय योजना काल के लिए लक्षित 9 प्रतिशत विकास दर शायद ही हासिल हो पाए। आयोग ने कहा है कि यह दर 7.8 प्रतिशत तक रुक सकती है। जबकि इस वित्त वर्ष में यह दर 6.3 से 5.5 प्रतिशत रह सकती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को होने वाली संपूर्ण योजना आयोग की बैठक के लिए बांटे गए परिपत्र में आयोग ने कहा है कि इस वित्त वर्ष में विकास दर 7 प्रतिशत तक लक्षित किया गया था लेकिन यह दर सूखा व आर्थिक मंदी की वजह से अब 6.3 या उससे नीचे रह सकती है। आयोग के एक सदस्य के अनुसार ‘अगर कृषि का सकल घरेलू उत्पाद 6 प्रतिशत तक घटता है तो फिर विकास दर 5.5 तक रुक सकती है। आयोग ने उम्मीद जताई है कि 2001-02 की स्थिति से बचा जा सकता है अगर अगस्त-सितंबर में पर्याप्त बारिश हो और रबी फसल को बचाया जा सके।
आयोग के एक सदस्य ने कहा ‘इस साल भले ही सबसे कम बारिश करीब 24.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की जा रही है लेकिन महंगाई के असर से काफी हद तक बचाव हो सकता है। वजह यह है कि 2001-02 के 40 प्रतिशत की तुलना में देश में अब 46 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचाई व्यवस्था की पहुंच में है। ’
हालांकि यह सदस्य साथ ही यह भी कहते हैं कि ‘बावजूद इसके बारिश कम होने से महंगाई का कुछ असर थाली पर दिखेगा। खाद्यान कम होने की स्थिति मे 10-15 प्रतिशत तक मूल्य वृद्धि हो सकती है। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे जमाखोरों के खिलाफ अभियान तेज करें और बाजार में सभी वस्तुओं की सुनिश्चितता तय करें।’ आयोग के अनुसार दाल-दलहन जो 60-90 रुपए प्रति किलों के बीच है, के दाम में इजाफा हो सकता है क्योंकि इनका उत्पादन 16 मिलियन टन तक घटन की आशंका है।
इसके लिए मांग-आपूर्ति के बीच कड़ी निगाह बनाए रखने की जरूरत है। आयोग के परिपत्र के मुताबिक सूखे की अप्रत्याशित स्थिति का असर स्वास्थ्य, शिक्षा समेत कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है। सरकार ने इन क्षेत्रों को 11वीं योजना में जो राशि देने की वकालत की थी, संभव है उसमें कटौती हो। आयोग के एक सदस्य के मुताबिक, वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत है जिसे 4 प्रतिशत पर लाना होगा। विभिन्न क्षेत्रों को चाहिए कि वे निजी सार्वजनिक भागीदारी पीपीपी के माध्यम से अपने संसाधन बढ़ाएं।
घट सकता है कृषि उत्पादन
आयोग का आकलन है कि कृषि उत्पादन 14 प्रतिशत (करीब 16 मीट्रिक टन) तक घट सकता है। यह 101 मीट्रिक टन खाद्यान होगा। जबकि पिछले साल यह 117 मीट्रिक टन था। भारत में खाद्यान उत्पादन कमी की बात करें तो यह 2001-02 में सबसे अधिक 38 मीट्रिक टन था। जबकि यह आंकड़ा 1979-80 में 22।2 मिटि़क टन था। (दैनिक भास्कर)
31 अगस्त 2009
नवरात्रि के दौरान ड्राईफ्रूट की मांग बढ़ने के आसार
रमजान और गणोश चतुर्थी के बावजूद ड्राईफ्रूट व्यापारियों को ग्राहकों का इंतजार है। त्यौहारी सीजन में कमजोर ग्राहकी को लेकर ड्राईफ्रूट कारोबारियों का कहना है कि अनाज और दालों के बढ़ते भाव से मध्ययमवर्गीय परिवारों द्वारा ड्राईफ्रूट के उपयोग में कमी आई है। हालांकि व्यापारियों को नवरात्रि पर ड्राईफ्रूट में बड़ी मांग निकलने की उम्मीद है।भोपाल के जुमेराती स्थित श्री कलश ट्रेडर्स के अशोक जैन बताते हैं कि आमतौर पर रमजान के महीने में ड्राईफ्रूट की मांग में इजाफा होता था लेकिन इस बार बाजार पूरी तरह ठंडा बना हुआ है। हालांकि सावन के दौरान मांग में तेजी आई थी जिसके चलते काजू, बादाम सहित अन्य ड्राईफ्रूट के दाम भी बढ़े थे। फिलहाल कमजोर मांग के कारण भाव स्थिर बने हुए हैं। जैन कहते हैं कि रमजान, गणोश चतुर्थी जैसे त्यौहारों में मांग निकलने की वजह दाल सहित अन्य जरूरी चीजों के बढ़े दाम माने जा रहे हैं। आवश्यक खाद्य वस्तुएं महगी होने से मध्यम वर्गीय परिवार पहले की दिनों की तुलना में इस समय ड्राईफ्रूट्स का इस्तेमाल कम कर रहे हैं। चिरौंजी के कारोबार से जुड़े छिंदवाड़ा के मोनू भाई बताते हैं कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से पिछली साल तक रमजान के लिए करीब 1000 बोरी चिरौंजी देश के विभिन्न हिस्सों में भेजी जाती थी। लेकिन इस बार बहुत कम माल भेजा गया है।रायपुर की आरबी ट्रेडिंग कंपनी के शिवकुमार अग्रवाल सूखे को ड्राईफ्रूट्स की कमजोर ग्राहकी का कारण मानते हैं। छत्तीसगढ़ में धान की बुवाई न हो पाने के कारण भी त्यौहारों का मजा फीका है जिसके कारण बाजार में सुस्ती चल रही है। अग्रवाल कहते हैं कि रमजान के आखिर तक मांग निकलने के आसार हैं। वहीं पितृपक्ष के बाद मांग में और तेजी आने की उम्मीद की जा रही है। उन्होंने कहा कि 15 सितंबर से बादाम, अंजीर की नई फसल की आवक के बाद दाम घटने से ड्राईफ्रूट्स की ग्राहकी मंे तेजी आ सकती है। इसी तरह इंदौर में ड्राईफ्रूट्स के कारोबारी अशोक जैन कहते हैं कि फिलहाल बाजार ठंडे चल रहे हैं। लेकिन नवरात्र से मांग में वृद्धि का अनुमान है। उन्होंने बताया कि इस समय भाव में स्थिरता बनी हुई है। बादाम 340 से 355, काजू 280 से 350 रुपये प्रति किलो के बीच चल रहे हैं। (ब्सिनेस भास्कर)
विदेशों में भाव तेज होने से नई कपास का निर्यात बढ़ेगा
राजस्थान और पंजाब में नई फसल की आवक शुरू होने से कपास के भावों पर दबाव बनने लगा है। यह देखते हुए कपास की कीमतों में अब और नरमी आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। पिछले सप्ताह वायदा और हाजिर में कपास की कीमतों में गिरावट की धारण मजबूत हुई है। इस बीच राजस्थान में नई कपास के भाव भी पिछले वर्ष के मुकाबले नीचे खुले हैं। दरअसल, कपास की कीमतों में नरमी का रुख बनने का मुख्य कारण इस साल कपास की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले करीब पांच फीसदी बढ़ने और निर्यात कम होना भी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस साल देश में करीब 99 लाख हैक्टेयर में कपास की बुवाई का अनुमान है जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले पांच फीसदी ज्यादा होगी। कॉटन कारपोरशन ऑफ इंडिया ने भी अक्टूबर से शुरू होने वाले नए सीजन में कपास उत्पादन करीब 310 लाख गांठ (170 किलो) होने का अनुमान लगाया है, जबकि पिछले सीजन में 290 लाख गांठ की पैदावार हुई थी। हालांकि व्यापारिक अनुमान इससे मेल नहीं खा रहे हैं। व्यापारिक समुदाय का मानना है कि इस साल कपास का रकबा जरूर बढ़ा है, लेकिन कमजोर मानसून के चलते उत्पादन पिछले वर्ष के आसपास ही बैठेगा। गौरतलब है कि पिछले वर्ष देश में प्रति हैक्टेयर 526 किलो कपास की पैदावार हुई थी जो एक साल पहले के मुकाबले कम थी। इस साल भी उत्पादकता में कमी की आशंका है। अगर व्यापारिक अनुमान सही बैठते हैं तो इस साल कपास की पैदावार 290 से 300 लाख गांठ के बीच होगी। वहीं करीब साठ लाख गांठ कपास का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक बचेगा। इस लिहाज से नए सीजन में देश में 350 से 360 लाख गांठ कपास की उपलब्ध होने का अनुमान है। अगले सीजन में भी निर्यात में सुधार की संभावना कम है क्योंकि पिछले साल एमएसपी में चालीस फीसदी बढ़ोतरी से भारतीय कपास अंतरराष्ट्रीय भावों की तुलना में 12 से 15 फीसदी महंगी है। इस कारण कपास निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद करना बेमानी है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कपास की मांग में सुधार देखने को मिल सकता है। लेकिन भाव पहले से ही ऊंचे होने के कारण कीमतों में सुधार की गुंजाइश कम है। उल्लेखनीय है कि एमएसपी में बढ़ोतरी से इस साल किसानों का रुझान कपास की पैदावार में बढ़ा है। दूसरी तरफ आर्थिक सुस्ती और भारतीय कपास महंगी पड़ने के कारण निर्यात करीब 40 फीसदी घटने की आशंका है। इन सब कारणों के साथ नई फसल की आवक से पिछले सप्ताह हाजिर बाजार में कॉटन (रुई) के भाव लगभग 325 रुपये घटकर महाराष्ट्र में 23600 रुपये कैंडी (273 किलो) तक उतर गए हैं। वहीं एनसीडीईएक्स में भी फरवरी वायदा में भी कपास के भाव करीब तीन फीसदी की गिरावट से 2662 रुपये क्विंटल रह गए हैं। (बिज़नस भास्कर)
चीनी के भाव में छह फीसदी गिरावट
सरकार की सख्ती और सितंबर महीने का कोटा ज्यादा आने की संभावना से चीनी की कीमतों में पिछले दो दिनों में करीब 6.3 फीसदी की गिरावट आई है। दिल्ली थोक बाजार में एम ग्रेड चीनी के भाव शनिवार को घटकर 2900 से 2950 रुपये और उत्तर प्रदेश में एक्स-फैक्ट्री भाव 2800 से 2850 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक त्यौहारी सीजन के कारण सितंबर महीने के लिए चीनी का कोटा 20 लाख टन जारी होने की संभावना है। जुलाई में सरकार ने 16.5 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार सरकार चीनी की कीमतों पर लगातार नजर रखे हुए है। त्यौहारी सीजन में चीनी की मांग बढ़ जाती है इसलिए सिंतबर महीने का कोटा बढ़ाकर 20 लाख टन जारी करने की संभावना है। पिछले दो महीने से लगातार कोटे में बढ़ोतरी की जा रही है। अगस्त में 16.5 और जुलाई में सरकार ने 14.9 लाख टन का कोटा जारी किया था। उद्योग सूत्रों के अनुसार सरकार द्वारा बड़ी उपभोक्ता कंपनियों पर स्टॉक लिमिट लगा देने से चीनी की मांग पहले की तुलना में काफी घट गई है। साथ ही राज्य सरकारों द्वारा सख्ती करने और आयातकों को पोर्ट पर आयातित चीनी का भंडार 30 दिन से ज्यादा नहीं रखने के निर्देश से भी गिरावट को बल मिला है। दिल्ली थोक बाजार में पिछले दो दिनों में चीनी की कीमतों में 200 रुपये की गिरावट आकर भाव 2900 से 2950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मांग घटने के कारण उत्तर प्रदेश में एक्स-फैक्ट्री चीनी के दाम घटकर 2800 से 2850 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मुंबई में चीनी के भाव घटकर 2950-3000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि फुटकर बाजार में अभी भी चीनी के दाम 32 रुपये प्रति किलो से ऊपर ही बने हुए हैं। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अध्यक्ष समीर एस. सोम्मैया के अनुसार अभी तक 40 लाख टन रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) के आयात सौदे किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में हुई वर्षा से गन्ने की फसल को फायदा हुआ है। अक्टूबर महीने से शुरू होने वाले नए सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 160 लाख टन होने की संभावना है। नए सीजन पर चीनी का बकाया स्टॉक मात्र 20-25 लाख टन ही बचने की संभावना है जबकि पिछले साल नए सीजन पर 100 लाख टन का बकाया स्टॉक था। भारत की मांग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक महीने में चीनी की कीमतें करीब 23 फीसदी बढ़ चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रॉ शुगर के भाव बढ़कर 23.52 सेंट प्रति पाउंड हो गए हैं जबकि 29 जुलाई को इसके भाव 19.09 सेंट प्रति पाउंड थे। रॉ शुगर के भाव भारतीय बंदरगाह पर पहुंच करीब 2500 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर बैठ रहे हैं इसमें रिफाइनिंग और ट्रांसपोर्ट का खर्च जोड़ने के बाद इसके भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा बैठ रहे हैं। (बिज़नस भास्कर....र स रना)
उर्वरक सब्सिडी नीति पर मंत्रिसमूह
नई दिल्ली। उर्वरक सब्सिडी नीति में व्यापक बदलाव के इरादे से सरकार ने एक जीओएम का गठन किया है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी इसकी अध्यक्षता करेंगे। इसमें सीधे किसानों को सब्सिडी मुहैया कराने के उपाय तलाशे जाएंगे। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार जीओएम पोषण क्षमता (न्यूट्रिएंट) के आधार पर उर्वरक सब्सिडी के बारे में फैसला करेगा। जीओएम जल्दी ही इन मसलों पर बैठक कर सकता है। अभी सरकार उर्वरक की कीमतों पर सब्सिडी देती है और कंपनियों को धन उपलब्ध कराती है। बजट 2009-10 में सरकार ने घोषणा की थी कि वह ऐसी व्यवस्था की ओर जा रही है, जहां सब्सिडी उर्वरक की पोषण क्षमता के आधार पर दी जाएगी। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बजट में कहा था कि यूरिया के ज्यादा इस्तेमाल से उत्पादकता घट रही है और यह चिंता का विषय है। भारत की उर्वरक सब्सिडी पिछले वित्त वर्ष में 1,17,000 करोड़ रुपये थी जो इससे पिछले साल 45,659 करोड़ थी। (बिज़नस भास्कर)
मॉनसून से कृषि पर मार का असर पड़ेगा सोने के कारोबार पर
मुंबई August 30, 2009
मॉनसून का प्रभाव सोने की बिक्री पर भी पड़ने जा रहा है।
बारिश न होने की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में होने वाले बदलाव से दुनिया के सबसे ज्यादा सोने की खपत वाले देश भारत में इस कीमती धातु की खपत में गिरावट की उम्मीद की जा रही है।
ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि उपज कैसी है। इस साल बारिश कम होने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि पैदावार में बहुत कमी आएगी। इसका असर सोने की खरीद पर व्यापक रूप से पड़ने की उम्मीद है।
देश में कुल सोने की मांग में ग्रामीण क्षेत्र की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत है, जिस पर कृषि क्षेत्र में हुए नुकसान का व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। अब ग्रामीण इलाकों में सोने की मांग इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले दिनों में मॉनसून किस करवट बैठता है और कृषि का उत्पादन कैसा रहता है।
कृषि विभाग के आकलन के मुताबिक खरीफ की फसलों के उत्पादन में 5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि करीब 28,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जिसमें चावल, मूंगफली, गन्ने और संभवतया दाल के उत्पादन पर असर पड़ेगा।
लेकिन अन्य जानकारों का मानना है कि खरीफ के चावल उत्पादन में 10 प्रतिशत की गिरावट का मतलब हुआ कि उत्पादन में 80-90 लाख टन की गिरावट होगी, जिसकी कीमत 10,000 करोड़ रुपये होगी।
चालू कैलेंडर साल में सोने की खपत में गिरावट को ध्यान में रखते हुए सोने का प्रचार-प्रसार करने वाली वैश्विक संस्था वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) ने एक महीने लंबी प्रदर्शनी का आयोजन देश के 5 शहरों में करने का फैसला किया है। उद्देश्य यह है कि पीली धातुओं का प्रचार-प्रसार खास शहरों में किया जा सके।
द ग्रेट इंडियन गोल्ड रश नाम से ट्रेड शो का आयोजन 19 सितंबर को मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता और गुजराज में स्थानीय जौहरियों के सहयोग से किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक काउंसिल ने यह भी फैसला किया है कि नियमित ग्राहकों को पुरस्कृ त किया जाए। इसमें पुरस्कार राशि 2.2 करोड़ रुपये रखी गई है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के भारतीय उपमहाद्वीप के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा ने कहा, 'शहरी इलाकों में करीब 35 प्रतिशत सोने की खपत होती है, यहां पर प्रोत्साहन के लिए डब्ल्यूजीसी और अन्य संगठन जिसमें जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी), जेम्स ऐंड ज्वेलरी फेडरेशन (जीजेएफ) शामिल हैं, मिलकर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे। बहरहाल ग्रामीण इलाकों में अगर मांग में कमी आती है तो उस घाटे की भरपाई शहरी इलाकों से नहीं की जा सकती है।'
बहरहाल सोने की कीमतें लगातार 14,500 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर बनी हुई हैं। इसके चलते पिछले तीन महीने से उपभोक्ताओं में उत्साह की कमी नजर आ रही है। (बीएस हिन्दी)
मॉनसून का प्रभाव सोने की बिक्री पर भी पड़ने जा रहा है।
बारिश न होने की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में होने वाले बदलाव से दुनिया के सबसे ज्यादा सोने की खपत वाले देश भारत में इस कीमती धातु की खपत में गिरावट की उम्मीद की जा रही है।
ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि उपज कैसी है। इस साल बारिश कम होने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि पैदावार में बहुत कमी आएगी। इसका असर सोने की खरीद पर व्यापक रूप से पड़ने की उम्मीद है।
देश में कुल सोने की मांग में ग्रामीण क्षेत्र की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत है, जिस पर कृषि क्षेत्र में हुए नुकसान का व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। अब ग्रामीण इलाकों में सोने की मांग इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले दिनों में मॉनसून किस करवट बैठता है और कृषि का उत्पादन कैसा रहता है।
कृषि विभाग के आकलन के मुताबिक खरीफ की फसलों के उत्पादन में 5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि करीब 28,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जिसमें चावल, मूंगफली, गन्ने और संभवतया दाल के उत्पादन पर असर पड़ेगा।
लेकिन अन्य जानकारों का मानना है कि खरीफ के चावल उत्पादन में 10 प्रतिशत की गिरावट का मतलब हुआ कि उत्पादन में 80-90 लाख टन की गिरावट होगी, जिसकी कीमत 10,000 करोड़ रुपये होगी।
चालू कैलेंडर साल में सोने की खपत में गिरावट को ध्यान में रखते हुए सोने का प्रचार-प्रसार करने वाली वैश्विक संस्था वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) ने एक महीने लंबी प्रदर्शनी का आयोजन देश के 5 शहरों में करने का फैसला किया है। उद्देश्य यह है कि पीली धातुओं का प्रचार-प्रसार खास शहरों में किया जा सके।
द ग्रेट इंडियन गोल्ड रश नाम से ट्रेड शो का आयोजन 19 सितंबर को मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता और गुजराज में स्थानीय जौहरियों के सहयोग से किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक काउंसिल ने यह भी फैसला किया है कि नियमित ग्राहकों को पुरस्कृ त किया जाए। इसमें पुरस्कार राशि 2.2 करोड़ रुपये रखी गई है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के भारतीय उपमहाद्वीप के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा ने कहा, 'शहरी इलाकों में करीब 35 प्रतिशत सोने की खपत होती है, यहां पर प्रोत्साहन के लिए डब्ल्यूजीसी और अन्य संगठन जिसमें जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी), जेम्स ऐंड ज्वेलरी फेडरेशन (जीजेएफ) शामिल हैं, मिलकर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे। बहरहाल ग्रामीण इलाकों में अगर मांग में कमी आती है तो उस घाटे की भरपाई शहरी इलाकों से नहीं की जा सकती है।'
बहरहाल सोने की कीमतें लगातार 14,500 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर बनी हुई हैं। इसके चलते पिछले तीन महीने से उपभोक्ताओं में उत्साह की कमी नजर आ रही है। (बीएस हिन्दी)
अवैध चीनी आयात रोकने हेतु सरकार के नए दिशा निर्देश
चेन्नई August 30, 2009
भारतीय बंदरगाहों पर अवैध चीनी और दालें जमा करने को रोकने के लिए बड़े बंदरगाहों के कर प्राधिकरण (टीएएमपी) ने नए दिशा निर्देश बनाए हैं।
इसके मुताबिक इन आवश्यक जिंसों को बंदरगाह पर रखने का समय 3 दिन रखा गया है। यह आदेश शिपिंग मंत्रालय के दिशानिर्देश के तहत जारी किया गया है। बंदरगाह के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जहाजरानी मंत्रालय ने 21 अगस्त को टीएएमपी को एक दिशानिर्देश जारी किया था।
इसमें कहा गया था कि चीनी और दारों को बंदरगाह क्षेत्र में रखने के लिए लाइसेंस शुल्क तथा माल को अधिक समय तक रोकने के लिए हर्जाने के प्रावधान में संशोधन किया जाना चाहिए।
टीएएमपी के आदेशों के मुताबिक, जिसकी प्रति बिजनेस स्टैंडर्ड के पास मौजूद है, सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की कीमतो में बढ़ोतरी को देखते हुए चीनी और दालों को बंदरगाह पर रोके रखने के बारे में नए दिशा निर्देश जारी करने का फैसला किया है, जिससे इन जिंसों को बंदरगाहों पर ज्यादा दिन तक रखे जाने से रोका जा सके।
उसके बाद सरकार ने बंदरगाह पर ज्यादा समय तक माल रोकने पर जुर्माना या लाइसेंस शुल्क में बदलाव किया गया, जो चीनी और दालों पर लागू होगी। पुनरीक्षित दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है, जिसकी अवधि 31 मार्च 2010 तक होगी।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक देश में 20 लाख टन कच्ची चीनी के आयात की जरूरत है। इसके साथ ही 10 लाख टन सफेद चीनी के आयात की भी जरूरत होगी। 2009-10 में 25 लाख टन चीनी आयात की संभावना है। (बीएस हिन्दी)
भारतीय बंदरगाहों पर अवैध चीनी और दालें जमा करने को रोकने के लिए बड़े बंदरगाहों के कर प्राधिकरण (टीएएमपी) ने नए दिशा निर्देश बनाए हैं।
इसके मुताबिक इन आवश्यक जिंसों को बंदरगाह पर रखने का समय 3 दिन रखा गया है। यह आदेश शिपिंग मंत्रालय के दिशानिर्देश के तहत जारी किया गया है। बंदरगाह के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जहाजरानी मंत्रालय ने 21 अगस्त को टीएएमपी को एक दिशानिर्देश जारी किया था।
इसमें कहा गया था कि चीनी और दारों को बंदरगाह क्षेत्र में रखने के लिए लाइसेंस शुल्क तथा माल को अधिक समय तक रोकने के लिए हर्जाने के प्रावधान में संशोधन किया जाना चाहिए।
टीएएमपी के आदेशों के मुताबिक, जिसकी प्रति बिजनेस स्टैंडर्ड के पास मौजूद है, सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की कीमतो में बढ़ोतरी को देखते हुए चीनी और दालों को बंदरगाह पर रोके रखने के बारे में नए दिशा निर्देश जारी करने का फैसला किया है, जिससे इन जिंसों को बंदरगाहों पर ज्यादा दिन तक रखे जाने से रोका जा सके।
उसके बाद सरकार ने बंदरगाह पर ज्यादा समय तक माल रोकने पर जुर्माना या लाइसेंस शुल्क में बदलाव किया गया, जो चीनी और दालों पर लागू होगी। पुनरीक्षित दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है, जिसकी अवधि 31 मार्च 2010 तक होगी।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक देश में 20 लाख टन कच्ची चीनी के आयात की जरूरत है। इसके साथ ही 10 लाख टन सफेद चीनी के आयात की भी जरूरत होगी। 2009-10 में 25 लाख टन चीनी आयात की संभावना है। (बीएस हिन्दी)
धान से पिटे किसान कमा रहे हैं आलू से मुनाफा
कानपुर August 30, 2009
भारतीय किसान कृषि की तुलना अक्सर जुए से करते हैं।
यह पुरानी कहावत इस साल सटीक बैठती है, क्योंकि पिछले साल जहां आलू की पैदावार कमजोर रहने से करीब आधा दर्जन किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पडा था, वहीं इस साल आलू किसानों के जख्म पर मरहम लगाता दिखाई दे रहा है।
मॉनसून के इस साल कमजोर रहने से हजारों हेक्टेयर धान की फसलों को नुकसान पहुंचा है, जिससे किसान बड़े मायूस नजर आ रहे हैं। लेकिन, इधर हाल के दिनों में आलू की कीमतों में आई बढ़ोतरी कई किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
पिछले एक सप्ताह के दौरान हुई बारिश से आलू की कीमतें प्रति क्विंटल 1200-1500 रुपये पहुंच गई हैं। ऐसे कि सान जो अपने आलू के अतिरिक्त उत्पादन का शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) करते हैं, कीमतें बढ़ने से उनकी चांदी हो गई है। कम बारिश की वजह से हुए अपने नुकसान की भरपाई वे कोल्ड स्टोरेज में पड़े आलू को बेचकर कर रहे हैं।
आलू की कीमतों में आई उछाल को देखते हुए ऐसे किसान जिनकी फसल को कमजोर मॉनूसन की वजह से नुकसान पहुंचा है, वे पिछले सप्ताह हुई बारिश का फायदा उठाकर आलू की खेती करने में जुट गए हैं।
भारतीय किसान यूनियन के क्षेत्रीय सचिव राज कुमार सिंह का कहते हैं 'चूंकि, धान की बुआई का समय समाप्त हो चुका है, हम अभी भी परिपक्वता अवधि से पहले तैयार होने वाले आलू की खेती कर सकते हैं।'
केंद्रीय आलू शोध संस्थान (सीपीआरआई) के निदेशक एके पांडेय का कहना है कि घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि किसानों के आलू की खेती की तरफ रुख करने से कुल उत्पादन के रकबे में काफी बढ़ोतरी हुई है।
पांडेय ने कहा कि आलू कीआपूर्ति कम होने से कीमतों में और ज्यादा तेजी आ सकती है। इस समय आलू की बाजार में मौजूदा कीमत 1200-1500 रुपये प्रति क्विंटल है। इधर नैशनल हॉर्टीकल्चर ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) ने कहा कि इस साल आलू के रकबे में 8 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। आगरा के एक आलू किसान ने कहा कि अगले दो से तीन महीनों में आलू की कीमत में और ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना है।
मुनाफे का तरीका
जो किसान अपने आलू कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं, कीमतों में बढ़ोतरी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं।पिछले दिनों हुई बारिश का फायदा उठाते हुए किसानों ने आलू की खेती की तैयारी भी शुरू कर दी है।किसानों के रुझान बता रहे हैं कि बढ़ेगी आलू की उपज। (बीएस हिन्दी)
भारतीय किसान कृषि की तुलना अक्सर जुए से करते हैं।
यह पुरानी कहावत इस साल सटीक बैठती है, क्योंकि पिछले साल जहां आलू की पैदावार कमजोर रहने से करीब आधा दर्जन किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पडा था, वहीं इस साल आलू किसानों के जख्म पर मरहम लगाता दिखाई दे रहा है।
मॉनसून के इस साल कमजोर रहने से हजारों हेक्टेयर धान की फसलों को नुकसान पहुंचा है, जिससे किसान बड़े मायूस नजर आ रहे हैं। लेकिन, इधर हाल के दिनों में आलू की कीमतों में आई बढ़ोतरी कई किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
पिछले एक सप्ताह के दौरान हुई बारिश से आलू की कीमतें प्रति क्विंटल 1200-1500 रुपये पहुंच गई हैं। ऐसे कि सान जो अपने आलू के अतिरिक्त उत्पादन का शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) करते हैं, कीमतें बढ़ने से उनकी चांदी हो गई है। कम बारिश की वजह से हुए अपने नुकसान की भरपाई वे कोल्ड स्टोरेज में पड़े आलू को बेचकर कर रहे हैं।
आलू की कीमतों में आई उछाल को देखते हुए ऐसे किसान जिनकी फसल को कमजोर मॉनूसन की वजह से नुकसान पहुंचा है, वे पिछले सप्ताह हुई बारिश का फायदा उठाकर आलू की खेती करने में जुट गए हैं।
भारतीय किसान यूनियन के क्षेत्रीय सचिव राज कुमार सिंह का कहते हैं 'चूंकि, धान की बुआई का समय समाप्त हो चुका है, हम अभी भी परिपक्वता अवधि से पहले तैयार होने वाले आलू की खेती कर सकते हैं।'
केंद्रीय आलू शोध संस्थान (सीपीआरआई) के निदेशक एके पांडेय का कहना है कि घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि किसानों के आलू की खेती की तरफ रुख करने से कुल उत्पादन के रकबे में काफी बढ़ोतरी हुई है।
पांडेय ने कहा कि आलू कीआपूर्ति कम होने से कीमतों में और ज्यादा तेजी आ सकती है। इस समय आलू की बाजार में मौजूदा कीमत 1200-1500 रुपये प्रति क्विंटल है। इधर नैशनल हॉर्टीकल्चर ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) ने कहा कि इस साल आलू के रकबे में 8 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। आगरा के एक आलू किसान ने कहा कि अगले दो से तीन महीनों में आलू की कीमत में और ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना है।
मुनाफे का तरीका
जो किसान अपने आलू कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं, कीमतों में बढ़ोतरी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं।पिछले दिनों हुई बारिश का फायदा उठाते हुए किसानों ने आलू की खेती की तैयारी भी शुरू कर दी है।किसानों के रुझान बता रहे हैं कि बढ़ेगी आलू की उपज। (बीएस हिन्दी)
क्या तेजी की राह पर बरकरार रहेंगी ये कमोडिटीज?
बीते छह हफ्तों में
bold">अभूतपूर्व तेजी के बाद प्रमुख कमोडिटी के दाम तेजी का रुख बरकरार रखने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं ... क्या वे अवरोधों से पार पाने में कामयाब रहेंगे ? जिंक ( जस्ता ) रिफाइंड जिंक की मांग - आपूर्ति से जुड़े आंकडे़ जाहिर करते हैं कि 2007 में सतह पर आई जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की खाई और गहरी होती चली गई। 2008 में 1,84,000 टन से 48 फीसदी बढ़कर 2009 के शुरुआती छह महीने में इसकी आपूर्ति 2,73,000 टन तक पहुंच गई। 2007 के अंत से जिंक की कीमतें गिरनी शुरू हो गई थीं , जबकि दूसरे बेस मेटल के दामों में 2008 के मध्य में कमजोरी देखने को मिली। उम्मीद की जा रही थी कि मार्च 2009 में इसके दामों में मजबूती लौटना शुरू हो जाएगी। 2009 के लिए इस्तेमाल में 4।9 फीसदी की अनुमानित गिरावट के बदले रिफाइंड उत्पादन में 4 फीसदी की कमी की आशंका है , जिसकी प्रमुख कारण बीते छह महीने के दौरान खर्च में कटौती और इकाइयों के दरवाजे पर ताले लटकना है। 2008 में चीनी की मांग में 12 फीसदी का उछाल आया था , जिससे विकसित मुल्कों में मांग लुढ़कने का प्रभाव कुछ कम रहा। यह चलन इस साल भी जारी रहने का अनुमान है , जिससे दामों को मजबूती मिलेगी। तकनीकी नजरिया जिंक में फिलहाल 1,850 डॉलर प्रति टन पर कारोबार हो रहा है और बीते कई दिनों में इसने 1,920 डॉलर का स्तर छूने की कोशिश की है। 1,920-1,960 डॉलर की रेंज मजबूत रेसिस्टेंस है , क्योंकि इसने न केवल नवंबर 2006 के ऊंचे स्तर को छुआ है , बल्कि फरवरी 2006 में बनाए गए निचले स्तरों को भी देखा है। दूसरी ओर गिरावट को 1,750 डॉलर को मजबूत समर्थन मिला है। अगर सपोर्ट का यह स्तर टूटता है , तो इसके 1,600 डॉलर से नीचे जाने की संभावना नहीं दिखती , क्योंकि कीमत का यह स्तर 100 डीएमए ( डेली मूविंग एवरेज ) और फरवरी 2009 में रिकवरी के बाद बनी ट्रेंडलाइन के करीब है। जिंक की कीमतें इक्विटी बाजारों और तांबे के कीमतों में बदलाव से भी जुड़ी हैं। अगर इक्विटी बाजार नई ऊंचाई छूते हैं या तांबे की कीमत बढ़ती है तो जिंक के दाम 2,150 डॉलर तक पहुंच सकते हैं। (इत हिन्दी)
bold">अभूतपूर्व तेजी के बाद प्रमुख कमोडिटी के दाम तेजी का रुख बरकरार रखने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं ... क्या वे अवरोधों से पार पाने में कामयाब रहेंगे ? जिंक ( जस्ता ) रिफाइंड जिंक की मांग - आपूर्ति से जुड़े आंकडे़ जाहिर करते हैं कि 2007 में सतह पर आई जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की खाई और गहरी होती चली गई। 2008 में 1,84,000 टन से 48 फीसदी बढ़कर 2009 के शुरुआती छह महीने में इसकी आपूर्ति 2,73,000 टन तक पहुंच गई। 2007 के अंत से जिंक की कीमतें गिरनी शुरू हो गई थीं , जबकि दूसरे बेस मेटल के दामों में 2008 के मध्य में कमजोरी देखने को मिली। उम्मीद की जा रही थी कि मार्च 2009 में इसके दामों में मजबूती लौटना शुरू हो जाएगी। 2009 के लिए इस्तेमाल में 4।9 फीसदी की अनुमानित गिरावट के बदले रिफाइंड उत्पादन में 4 फीसदी की कमी की आशंका है , जिसकी प्रमुख कारण बीते छह महीने के दौरान खर्च में कटौती और इकाइयों के दरवाजे पर ताले लटकना है। 2008 में चीनी की मांग में 12 फीसदी का उछाल आया था , जिससे विकसित मुल्कों में मांग लुढ़कने का प्रभाव कुछ कम रहा। यह चलन इस साल भी जारी रहने का अनुमान है , जिससे दामों को मजबूती मिलेगी। तकनीकी नजरिया जिंक में फिलहाल 1,850 डॉलर प्रति टन पर कारोबार हो रहा है और बीते कई दिनों में इसने 1,920 डॉलर का स्तर छूने की कोशिश की है। 1,920-1,960 डॉलर की रेंज मजबूत रेसिस्टेंस है , क्योंकि इसने न केवल नवंबर 2006 के ऊंचे स्तर को छुआ है , बल्कि फरवरी 2006 में बनाए गए निचले स्तरों को भी देखा है। दूसरी ओर गिरावट को 1,750 डॉलर को मजबूत समर्थन मिला है। अगर सपोर्ट का यह स्तर टूटता है , तो इसके 1,600 डॉलर से नीचे जाने की संभावना नहीं दिखती , क्योंकि कीमत का यह स्तर 100 डीएमए ( डेली मूविंग एवरेज ) और फरवरी 2009 में रिकवरी के बाद बनी ट्रेंडलाइन के करीब है। जिंक की कीमतें इक्विटी बाजारों और तांबे के कीमतों में बदलाव से भी जुड़ी हैं। अगर इक्विटी बाजार नई ऊंचाई छूते हैं या तांबे की कीमत बढ़ती है तो जिंक के दाम 2,150 डॉलर तक पहुंच सकते हैं। (इत हिन्दी)
कमोडिटी की कीमतों का क्या ट्रेंड रहेगा?
कमोडिटी की
Western">कीमतों के उतार - चढ़ाव ने बीते साल पूरी दुनिया के निवेशकों और ट्रेडरों का परेशान कर दिया था। ब्याज दरों के पिछले कई सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने और वित्तीय बाजारों में जरूरत से ज्यादा तरलता के बीच कमोडिटी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी जुलाई तक तो ठीक लग रही थी। लेकिन अब बाजार में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कमोडिटी की कीमतें बुलबुले का रूप तो धारण नहीं कर रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे वक्त जब दुनिया की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं , उस समय कमोडिटी की बढ़ती कीमतें आर्थिक सुधार की रफ्तार को सुस्त कर सकती हैं। इन सभी हालातों के मद्देनजर कमोडिटी की बढ़ती कीमतों के कारणों को समझना जरूरी हो जाता है। यह भी जानना जरूरी है कि कीमतों में बढ़ोतरी का यह रुख कब तक जारी रहेगा। साल 2009 के मार्च की शुरुआत से जुलाई तक कुछ प्रमुख औद्योगिक कमोडिटी जैसे कच्चा तेल और तांबा के दाम में करीब 45 फीसदी का इजाफा देखा गया। इस दौरान जिंक और एल्युमिनियम के दाम करीब 15 से 30 फीसदी के बीच बढ़े। जुलाई के आखिर में इन कमोडिटी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई। ज्यादातर कमोडिटी की कीमतें फरवरी के उनके न्यूनतम स्तर से लगभग दोगुने स्तर पर पहुंच गए। असल में फरवरी और मार्च में एशिया और यूरोप के देशों का औद्योगिक उत्पादन कुछ हद तक सुधरा था , जिसके चलते कमोडिटी की कीमतें भी बढ़ीं। चूंकि वैश्विक वित्तीय बाजारों में धीरे - धीरे सुधार आ रहा है तो कच्चे तेल और तांबे की कीमतों का तेजी से बढ़ना स्वाभाविक नहीं लगता। उधर , चीन भी जरूरी औद्योगिक कमोडिटी का अपना स्टॉक बढ़ाने लगा जिससे कि दाम और बढ़ने लगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में चीन सबसे बड़ा भागीदार देश है। अमेरिकी डॉलर का दूसरी मुद्राओं के मुकाबले कमजोर पड़ना भी कमोडिटी के लिए फायदेमंद रहा। जबकि 2007 से दूसरी प्रमुख मुद्राओं और कमोडिटी की कीमतों में नकारात्मक सह - संबंध रहा है। इस बीच पूरी दुनिया में कमोडिटी की ट्रेडिंग भी बढ़ने लगी , जिससे कमोडिटी महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में उभरने लगे। इसका सीधा असर दामों पर पड़ा और वे बढ़ने लगे। दी गई तालिका बताती है कि अमेरिकी डॉलर 2009 के मार्च से यूरो और स्टर्लिंग के सामने कमजोर पड़ने लगा। कमजोर डॉलर ने कमोडिटी की बढ़ती कीमतों का समर्थन किया। कमोडिटी बाजार के बेंचमार्क सूचकांक ' गोल्डमैन सैक्स कमोडिटी इंडेक्स ' में कमोडिटी की कीमतें बढ़ने लगी। साल 2008 के मध्य में अमेरिकी डॉलर का सूचकांक ढाई सालों के गिरावट के साथ बंद हुआ। वैश्विक वित्तीय बाजार में छाए अनिश्चितता के मौहाल के चलते ऐसा हुआ। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में स्थिर सुधार की उम्मीदों के चलते बाजार की मनोदशा में भी सुधार देखने को मिला। दुनिया के कई पीएमआई ( परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स ) सूचकांकों में उछाल आया। अमेरिका के शिकागो पीएमआई और आईएसएम सूचकांक , चाइना पीएमआई और जर्मनी जेडईडब्ल्यू सूचकांक में इस साल मार्च महीने में मजबूत सुधार देखने को मिला। सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) के तिमाही आंकड़ें भी सकारात्मक मनोदशा के संकेत पर मुहर लगाते हैं। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं और एशिया के कुछ देशों में जून तिमाही के नतीजे बेहतर रहे। (इत हिन्दी)
Western">कीमतों के उतार - चढ़ाव ने बीते साल पूरी दुनिया के निवेशकों और ट्रेडरों का परेशान कर दिया था। ब्याज दरों के पिछले कई सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने और वित्तीय बाजारों में जरूरत से ज्यादा तरलता के बीच कमोडिटी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी जुलाई तक तो ठीक लग रही थी। लेकिन अब बाजार में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कमोडिटी की कीमतें बुलबुले का रूप तो धारण नहीं कर रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे वक्त जब दुनिया की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं , उस समय कमोडिटी की बढ़ती कीमतें आर्थिक सुधार की रफ्तार को सुस्त कर सकती हैं। इन सभी हालातों के मद्देनजर कमोडिटी की बढ़ती कीमतों के कारणों को समझना जरूरी हो जाता है। यह भी जानना जरूरी है कि कीमतों में बढ़ोतरी का यह रुख कब तक जारी रहेगा। साल 2009 के मार्च की शुरुआत से जुलाई तक कुछ प्रमुख औद्योगिक कमोडिटी जैसे कच्चा तेल और तांबा के दाम में करीब 45 फीसदी का इजाफा देखा गया। इस दौरान जिंक और एल्युमिनियम के दाम करीब 15 से 30 फीसदी के बीच बढ़े। जुलाई के आखिर में इन कमोडिटी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई। ज्यादातर कमोडिटी की कीमतें फरवरी के उनके न्यूनतम स्तर से लगभग दोगुने स्तर पर पहुंच गए। असल में फरवरी और मार्च में एशिया और यूरोप के देशों का औद्योगिक उत्पादन कुछ हद तक सुधरा था , जिसके चलते कमोडिटी की कीमतें भी बढ़ीं। चूंकि वैश्विक वित्तीय बाजारों में धीरे - धीरे सुधार आ रहा है तो कच्चे तेल और तांबे की कीमतों का तेजी से बढ़ना स्वाभाविक नहीं लगता। उधर , चीन भी जरूरी औद्योगिक कमोडिटी का अपना स्टॉक बढ़ाने लगा जिससे कि दाम और बढ़ने लगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में चीन सबसे बड़ा भागीदार देश है। अमेरिकी डॉलर का दूसरी मुद्राओं के मुकाबले कमजोर पड़ना भी कमोडिटी के लिए फायदेमंद रहा। जबकि 2007 से दूसरी प्रमुख मुद्राओं और कमोडिटी की कीमतों में नकारात्मक सह - संबंध रहा है। इस बीच पूरी दुनिया में कमोडिटी की ट्रेडिंग भी बढ़ने लगी , जिससे कमोडिटी महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में उभरने लगे। इसका सीधा असर दामों पर पड़ा और वे बढ़ने लगे। दी गई तालिका बताती है कि अमेरिकी डॉलर 2009 के मार्च से यूरो और स्टर्लिंग के सामने कमजोर पड़ने लगा। कमजोर डॉलर ने कमोडिटी की बढ़ती कीमतों का समर्थन किया। कमोडिटी बाजार के बेंचमार्क सूचकांक ' गोल्डमैन सैक्स कमोडिटी इंडेक्स ' में कमोडिटी की कीमतें बढ़ने लगी। साल 2008 के मध्य में अमेरिकी डॉलर का सूचकांक ढाई सालों के गिरावट के साथ बंद हुआ। वैश्विक वित्तीय बाजार में छाए अनिश्चितता के मौहाल के चलते ऐसा हुआ। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में स्थिर सुधार की उम्मीदों के चलते बाजार की मनोदशा में भी सुधार देखने को मिला। दुनिया के कई पीएमआई ( परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स ) सूचकांकों में उछाल आया। अमेरिका के शिकागो पीएमआई और आईएसएम सूचकांक , चाइना पीएमआई और जर्मनी जेडईडब्ल्यू सूचकांक में इस साल मार्च महीने में मजबूत सुधार देखने को मिला। सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) के तिमाही आंकड़ें भी सकारात्मक मनोदशा के संकेत पर मुहर लगाते हैं। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं और एशिया के कुछ देशों में जून तिमाही के नतीजे बेहतर रहे। (इत हिन्दी)
29 अगस्त 2009
एपीलएल-बीपीएल उपभोक्ताओं को चीनी सप्लाई करने के फेर में फंसी सरकार
नई दिल्ली : गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) उपभोक्ताओं के लिए अगले दो महीने और त्योहारी सीजन में पीडीएस में चीनी की सप्लाई दोगुनी करने के लिए खाद्य मंत्रालय जद्दोजहद कर रहा है। पीडीएस में चीनी सप्लाई बढ़ाने के लिए खाद्य मंत्रालय 50,000 करोड़ रुपए की शुगर इंडस्ट्री के साथ समझौता करने की कोशिश कर रहा है। अगर सरकार ऐसा करने में नाकाम रहती है तो उसे एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट लागू करने पर मजबूर होना पड़ेगा जिससे इंडस्ट्री को कम से कम बीपीएल उपभोक्ताओं के लिए चीनी की सप्लाई करने के लिए मजबूर किया जा सके। खाद्य मंत्री शरद पावर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा लिखे पत्र के कारण इस बात का दबाव और बढ़ा है। कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में लिखा है कि पीडीएस में जरूरतमंद उपभोक्ताओं के लिए चीनी की सप्लाई सुनिश्चित की जाए।
इसके अलावा खुले बाजार में भी चीनी की खुदरा कीमतों को कम करने के प्रयास किए जाएं। आदर्श तौर पर सरकार चाहती है कि राशन की दुकानों पर चीनी की अधिक सप्लाई कर पीडीएस में गरीबी रेखा से ऊपर और बीपीएल परिवारों दोनों को राहत दी जाए। हालांकि चीनी की मौजूदा सप्लाई को देखते हुए एपीएल और बीपीएल दोनों उपभोक्ताओं के लिए चीनी की सप्लाई दोगुनी करना मुश्किल जान पड़ता है। एक तो 2008-09 में चीनी का उत्पादन कम हुआ है तो दूसरी तरफ अक्टूबर सीजन में शुरू होने वाले पेराई सीजन में स्थितियों में कोई सुधार आने की संभावना नहीं है। इस सप्ताह मंगलवार को सरकार और उद्योग की बैठक में 'आमराय' नहीं बन पाई। शुगर इंडस्ट्री ने पीडीएस में एपीएल उपभोक्ताओं को कम से कम दो किलो चीनी सप्लाई करने के सभी प्रस्तावों को स्पष्ट तौर पर नकार दिया। यह लगातार चौथी बैठक थी जिसमें कोई हल नहीं निकला। हालांकि वह शर्तों के साथ बीपीएल उपभोक्ताओं के लिए चीनी सप्लाई करने पर सहमत हुई है। (इत हिन्दी)
इसके अलावा खुले बाजार में भी चीनी की खुदरा कीमतों को कम करने के प्रयास किए जाएं। आदर्श तौर पर सरकार चाहती है कि राशन की दुकानों पर चीनी की अधिक सप्लाई कर पीडीएस में गरीबी रेखा से ऊपर और बीपीएल परिवारों दोनों को राहत दी जाए। हालांकि चीनी की मौजूदा सप्लाई को देखते हुए एपीएल और बीपीएल दोनों उपभोक्ताओं के लिए चीनी की सप्लाई दोगुनी करना मुश्किल जान पड़ता है। एक तो 2008-09 में चीनी का उत्पादन कम हुआ है तो दूसरी तरफ अक्टूबर सीजन में शुरू होने वाले पेराई सीजन में स्थितियों में कोई सुधार आने की संभावना नहीं है। इस सप्ताह मंगलवार को सरकार और उद्योग की बैठक में 'आमराय' नहीं बन पाई। शुगर इंडस्ट्री ने पीडीएस में एपीएल उपभोक्ताओं को कम से कम दो किलो चीनी सप्लाई करने के सभी प्रस्तावों को स्पष्ट तौर पर नकार दिया। यह लगातार चौथी बैठक थी जिसमें कोई हल नहीं निकला। हालांकि वह शर्तों के साथ बीपीएल उपभोक्ताओं के लिए चीनी सप्लाई करने पर सहमत हुई है। (इत हिन्दी)
त्योहारी मौसम करीब तो ज्वैलरी कारोबार में लौटी बहार
नई दिल्ली : त्योहारों और शादियों का उत्साह सोने की ऊंची कीमतों पर भारी पड़ने लगा है। दीवाली और शादियों के सीजन के नजदीक आने के साथ ही सोने की ज्वैलरी की मांग में 30 फीसदी की तेजी आ रही है। लोगों ने एडवांस ऑर्डर बुक कराना शुरू कर दिया है। साथ ही ज्वैलर्स भी मांग को पूरा करने के लिए अपने पास स्टॉक बढ़ाने में जुट गए हैं। दिल्ली के सर्राफा कारोबारी बता रहे हैं कि मौजूदा साल का अभी तक का कारोबार बेहद हल्का रहा है लेकिन अब मांग में बढ़ोतरी को देखते हुए वे काफी उत्साहित हैं। करोल बाग के कैलाश ज्वैलर्स के मालिक कीमती लाल जैन के मुताबिक, 'लोगों में सोने के लिए रुझान फिर से पैदा होने लगा है। लोगों ने अपने ऑर्डर बुक कराना शुरू कर दिया है। हमारे यहां रोज 250-300 ग्राम सोना बिक रहा है। इसके अलावा रोजाना करीब 5-7 लाख के हीरा जड़ित जेवर भी बिक रहे हैं।
पिछले साल के 12,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर से उछलकर इस साल सोना 1,5000 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया है। सोने के लगातार 14,000-15,000 रुपए के स्तर पर बने रहने की वजह से लोग इसकी खरीदारी से दूर बने हुए हैं। इसी वजह से हर साल करीब 700 टन सोने का आयात करने वाले भारत में इस साल यह आयात 150 टन के आसपास रहने का अनुमान है। लेकिन अब सर्राफा कारोबारियों को उम्मीद है कि सोने की मांग में तेज इजाफा होगा। दरीबा बाजार के रतनचंद ज्वालानाथ ज्वैलर्स के तरुण गुप्ता के मुताबिक, 'लोगों में अब यह धारणा पैदा होने लगी है कि सोना इस स्तर से नीचे नहीं आएगा। ऐसे में त्योहारों के नजदीक आने के साथ ही लोग अब ऑर्डर देना शुरू कर रहे हैं। मांग में इस दौरान 30 फीसदी के करीब तेजी आई है। इस वजह से हम भी स्टॉक बढ़ाने में जुट गए हैं।' चांदनी चौक के कूचा महाजनी के बुलियन मर्चेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट श्रीकिशन गोयल हालांकि कहते हैं कि मांग में जैसी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी वैसी नहीं थी। गोयल के मुताबिक, 'पहले के सालों में त्योहारों पर सोना खरीदना एक परंपरा के तौर पर कायम था। अब लेकिन इतने ऊंचे भाव पर सोना खरीदना हर आदमी के बस की बात नहीं रही है।' (इत हिन्दी)
पिछले साल के 12,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर से उछलकर इस साल सोना 1,5000 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया है। सोने के लगातार 14,000-15,000 रुपए के स्तर पर बने रहने की वजह से लोग इसकी खरीदारी से दूर बने हुए हैं। इसी वजह से हर साल करीब 700 टन सोने का आयात करने वाले भारत में इस साल यह आयात 150 टन के आसपास रहने का अनुमान है। लेकिन अब सर्राफा कारोबारियों को उम्मीद है कि सोने की मांग में तेज इजाफा होगा। दरीबा बाजार के रतनचंद ज्वालानाथ ज्वैलर्स के तरुण गुप्ता के मुताबिक, 'लोगों में अब यह धारणा पैदा होने लगी है कि सोना इस स्तर से नीचे नहीं आएगा। ऐसे में त्योहारों के नजदीक आने के साथ ही लोग अब ऑर्डर देना शुरू कर रहे हैं। मांग में इस दौरान 30 फीसदी के करीब तेजी आई है। इस वजह से हम भी स्टॉक बढ़ाने में जुट गए हैं।' चांदनी चौक के कूचा महाजनी के बुलियन मर्चेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट श्रीकिशन गोयल हालांकि कहते हैं कि मांग में जैसी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी वैसी नहीं थी। गोयल के मुताबिक, 'पहले के सालों में त्योहारों पर सोना खरीदना एक परंपरा के तौर पर कायम था। अब लेकिन इतने ऊंचे भाव पर सोना खरीदना हर आदमी के बस की बात नहीं रही है।' (इत हिन्दी)
सरकार जल्द दे सकती है चीनी आयात की इजाजत
नई दिल्ली : आम आदमी की जेब में ही नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ यूपीए के साझेदार दलों के बीच भी कड़वाहट घोलने पर आमादा दिख रही चीनी की बड़ी मात्रा जल्दी ही आयात की जा सकती है। लेवी कोटे के लिए चीनी की मात्रा बढ़ाने पर चीनी उद्योग के साथ सरकार की बातचीत के कई दौर बेनतीजा होने और कांग्रेस के कुछ नेताओं के बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार को चिट्ठी भेजने से चीनी को लेकर सियासी बेचैनी बढ़ती दिख रही है। इसके चलते सरकार और मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) अगले चार महीनों में करीब 50 लाख टन चीनी आयात करने को हरी झंडी दिखा सकती है।
पवार ने भी मान लिया है कि गन्ने की पेराई के 2009-10 सत्र में आपूर्ति के मोर्चे पर करीब 90 लाख टन चीनी की तंगी का सामना करना पड़ सकता है। चीनी उत्पादन के दिग्गज राज्य महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं ने मनमोहन सिंह सरकार से गुहार लगाई है कि चीनी की बेकाबू होती कीमतों और राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए ईजीओएम इस साल कम से कम 25 लाख टन और 2009-10 के लिए भी 25 लाख टन चीनी आयात का निर्णय तत्काल कर ले क्योंकि बाद में अंतरराष्ट्रीय भाव और चढ़ सकते हैं। बताया जाता है कि माल की कमी का सामना कर रहे भारतीय कारोबारियों ने न्यूयॉर्क फ्यूचर में गिरावट का फायदा उठाने के लिए पिछले 10 दिनों में करीब 5 लाख टन कच्ची ब्राजीलियाई चीनी का सौदा कर लिया है। न्यूयॉर्क के अक्टूबर कॉन्ट्रैक्ट के तहत ब्राजीलियाई चीनी 100 बेसिस प्वाइंट डिस्काउंट पर उपलब्ध थी। एक समाचार एजेंसी के अनुसार सिंगापुर के एक डीलर ने कहा, 'भारत से अधिकांश खरीदारी ब्राजीलियाई चीनी की हो रही है। संभवत: इससे ही बाजार को सहारा मिल रहा है क्योंकि जब भी गिरावट आती है, भारत की ओर से खरीदारी शुरू हो जाती है।' अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्ची चीनी के वायदा भाव भारत से भारी मांग के संकेतों के कारण 28 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। सफेद चीनी ने भी इसका अनुसरण किया। दिलचस्प है कि इस महीने चौथी बार पवार से मिले चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों ने भी मंगलवार को सुझाव दिया कि आपूर्ति के मोर्चे पर दिक्कत सुलझाने के लिए सरकार को तत्काल चीनी आयात करना चाहिए। करीब 40 लाख टन चीनी (कच्ची और सफेद, दोनों) के आयात का सौदा फिलहाल किया जा चुका है जिसमें से 23 लाख टन माल भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुका है। इसकी वजह से चीनी क्षेत्र पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का अनुमान है कि 2009-10 के चीनी वर्ष में लगभग 40 लाख टन चीनी जाएगी। बहरहाल इसके बावजूद 2009-10 में महज 145-160 लाख टन ही उत्पादन होने के अनुमान को देखते हुए आपूर्ति में बहुत अधिक कमी की आशंका है। (इत हिन्दी)
पवार ने भी मान लिया है कि गन्ने की पेराई के 2009-10 सत्र में आपूर्ति के मोर्चे पर करीब 90 लाख टन चीनी की तंगी का सामना करना पड़ सकता है। चीनी उत्पादन के दिग्गज राज्य महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं ने मनमोहन सिंह सरकार से गुहार लगाई है कि चीनी की बेकाबू होती कीमतों और राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए ईजीओएम इस साल कम से कम 25 लाख टन और 2009-10 के लिए भी 25 लाख टन चीनी आयात का निर्णय तत्काल कर ले क्योंकि बाद में अंतरराष्ट्रीय भाव और चढ़ सकते हैं। बताया जाता है कि माल की कमी का सामना कर रहे भारतीय कारोबारियों ने न्यूयॉर्क फ्यूचर में गिरावट का फायदा उठाने के लिए पिछले 10 दिनों में करीब 5 लाख टन कच्ची ब्राजीलियाई चीनी का सौदा कर लिया है। न्यूयॉर्क के अक्टूबर कॉन्ट्रैक्ट के तहत ब्राजीलियाई चीनी 100 बेसिस प्वाइंट डिस्काउंट पर उपलब्ध थी। एक समाचार एजेंसी के अनुसार सिंगापुर के एक डीलर ने कहा, 'भारत से अधिकांश खरीदारी ब्राजीलियाई चीनी की हो रही है। संभवत: इससे ही बाजार को सहारा मिल रहा है क्योंकि जब भी गिरावट आती है, भारत की ओर से खरीदारी शुरू हो जाती है।' अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्ची चीनी के वायदा भाव भारत से भारी मांग के संकेतों के कारण 28 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। सफेद चीनी ने भी इसका अनुसरण किया। दिलचस्प है कि इस महीने चौथी बार पवार से मिले चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों ने भी मंगलवार को सुझाव दिया कि आपूर्ति के मोर्चे पर दिक्कत सुलझाने के लिए सरकार को तत्काल चीनी आयात करना चाहिए। करीब 40 लाख टन चीनी (कच्ची और सफेद, दोनों) के आयात का सौदा फिलहाल किया जा चुका है जिसमें से 23 लाख टन माल भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुका है। इसकी वजह से चीनी क्षेत्र पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का अनुमान है कि 2009-10 के चीनी वर्ष में लगभग 40 लाख टन चीनी जाएगी। बहरहाल इसके बावजूद 2009-10 में महज 145-160 लाख टन ही उत्पादन होने के अनुमान को देखते हुए आपूर्ति में बहुत अधिक कमी की आशंका है। (इत हिन्दी)
छह विदेशी फंड खरीदेंगे एमसीएक्स-एसएक्स की 30% स्टेक
मुंबई : छह विदेशी फंड एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज (एमसीएक्स-एसएक्स) में 5-5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की तैयारी कर रहे हैं। इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने ईटी को बताया कि इनमें निजी इक्विटी फंड जनरल अटलांटिक एवं फिडेलिटी, हेज फंड टीपीजी-एक्सॉन, सीएमई, अबूधाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी (एडीआईए) और सिंगापुर के सॉवरेनल वेल्थ फंड टेमासेक की ग्रुप कंपनी शामिल है। डोएचे बैंक, नोमुरा फाइनेंशियल एडवाइजरी और एंटीक कैपिटल मार्केट एमसीएक्स-एसएक्स को विनिवेश की सलाह दे रहे हैं। हालांकि, एमसीएक्स के प्रवक्ता ने इसके बारे में कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है। एमसीएक्स-एसएक्स के प्रमोटर फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज और कमोडिटी एक्सचेंज एसीएक्स हैं। इसको पिछले साल अक्टूबर में सेबी से करेंसी फ्यूचर में कारोबार के लिए इजाजत मिली है।
एक्सचेंज को फ्यूचर कारोबार का लाइसेंस इसी शर्त पर दिया गया है कि एक साल के भीतर इसके प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी घटाएंगे। एमसीएक्स-एसएक्स ने इक्विटी कारोबार शुरू करने के लिए भी इजाजत मांगी है जो अभी लंबित है। विनिवेश के बारे में चल रही बातचीत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीएमई ग्रुप ने एमसीएक्स-एसएक्स के अलावा कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स में भी हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव रखा है। एमसीएक्स समूह भी इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। एमसीएक्स देश का सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज है और इसमें औसत दैनिक कारोबार 20,000 करोड़ रुपए का होता है। इस एक्सचेंज पर बहुमूल्य धातुओं एवं बेस मेटल और ऊर्जा का कारोबार होता है। एसीएक्स-एसएक्स के प्रमोटर ने अपनी 30 फीसदी तक की हिस्सेदारी कई सार्वजनिक एवं निजी बैंकों और कुछ संस्थाओं को बेची है, लेकिन दोनों प्रमोटरों को अपनी हिस्सेदारी पूरी तरह घटाते हुए सिर्फ 15 फीसदी तक लानी है क्योंकि नियम के मुताबिक किसी स्टॉक एक्सचेंज में प्रमोटर की हिस्सेदारी 15 फीसदी तक ही रह सकती है। बातचीत की प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया, 'एक बार विनिवेश प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो एमसीएक्स-एसएक्स के लिए इक्विटी फ्यूचर एवं ऑप्शन (एफएंडओ) और अन्य सभी सेगमेंट में उतरना आसान हो जाएगा।' आईडीएफसी-एसएसकेआई की हाल की एक रिपोर्ट में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का वैल्यूएशन 250 करोड़ डॉलर और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का वैल्यूएशन 80 करोड़ डॉलर किया गया है। फिलहाल के नियमों के अनुसार कोई एक व्यक्ति आम सहमति वाले अन्य लोगों के साथ किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में अधिकतम 5 फीसदी हिस्सेदारी रख सकता है। लेकिन एक्सचेंजों में प्रतिस्पर्धा कायम रखने के लिए सेबी ने अक्टूबर, 2008 में तय किया कि छह श्रेणी के शेयरधारकों के लिए किसी एक्सचेंज में अधिकतम निवेश सीमा बढ़ाकर 15 फीसदी तक कर दी जाए। इन छह श्रेणियों में सार्वजनिक वित्तीय संस्थान, स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉजिटर, क्लियरिंग कॉरपोरेशन, बैंक और बीमा कंपनियां शामिल हैं। (इत हिन्दी)
एक्सचेंज को फ्यूचर कारोबार का लाइसेंस इसी शर्त पर दिया गया है कि एक साल के भीतर इसके प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी घटाएंगे। एमसीएक्स-एसएक्स ने इक्विटी कारोबार शुरू करने के लिए भी इजाजत मांगी है जो अभी लंबित है। विनिवेश के बारे में चल रही बातचीत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीएमई ग्रुप ने एमसीएक्स-एसएक्स के अलावा कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स में भी हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव रखा है। एमसीएक्स समूह भी इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। एमसीएक्स देश का सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज है और इसमें औसत दैनिक कारोबार 20,000 करोड़ रुपए का होता है। इस एक्सचेंज पर बहुमूल्य धातुओं एवं बेस मेटल और ऊर्जा का कारोबार होता है। एसीएक्स-एसएक्स के प्रमोटर ने अपनी 30 फीसदी तक की हिस्सेदारी कई सार्वजनिक एवं निजी बैंकों और कुछ संस्थाओं को बेची है, लेकिन दोनों प्रमोटरों को अपनी हिस्सेदारी पूरी तरह घटाते हुए सिर्फ 15 फीसदी तक लानी है क्योंकि नियम के मुताबिक किसी स्टॉक एक्सचेंज में प्रमोटर की हिस्सेदारी 15 फीसदी तक ही रह सकती है। बातचीत की प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया, 'एक बार विनिवेश प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो एमसीएक्स-एसएक्स के लिए इक्विटी फ्यूचर एवं ऑप्शन (एफएंडओ) और अन्य सभी सेगमेंट में उतरना आसान हो जाएगा।' आईडीएफसी-एसएसकेआई की हाल की एक रिपोर्ट में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का वैल्यूएशन 250 करोड़ डॉलर और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का वैल्यूएशन 80 करोड़ डॉलर किया गया है। फिलहाल के नियमों के अनुसार कोई एक व्यक्ति आम सहमति वाले अन्य लोगों के साथ किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में अधिकतम 5 फीसदी हिस्सेदारी रख सकता है। लेकिन एक्सचेंजों में प्रतिस्पर्धा कायम रखने के लिए सेबी ने अक्टूबर, 2008 में तय किया कि छह श्रेणी के शेयरधारकों के लिए किसी एक्सचेंज में अधिकतम निवेश सीमा बढ़ाकर 15 फीसदी तक कर दी जाए। इन छह श्रेणियों में सार्वजनिक वित्तीय संस्थान, स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉजिटर, क्लियरिंग कॉरपोरेशन, बैंक और बीमा कंपनियां शामिल हैं। (इत हिन्दी)
मॉनसून की वापसी से स्थिति में सुधार
पुणे August 28, 2009
पिछले 2 सप्ताह के दौरान देश भर में मॉनसून की मजबूत वापसी के बाद 12 मॉनसून मंडलों में जून-अगस्त के दौरान बारिश की सामान्य मात्रा का लक्ष्य हासिल हो गया है।
देश के केवल 3 इलाकों, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत से कम बारिश हुई है और कमी 50 प्रतिशत से ज्यादा है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, उड़ीसा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, रॉयलसीमा (आंध्र प्रदेश), लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अब बारिश की सीमा सामान्य को पार कर चुकी है।
हालांकि 22 मॉनसून मंडलों में अभी भी सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाके शामिल हैं। हरियाणा एक मात्र ऐसा मंडल है, जहां बारिश बहुत कम (64 प्रतिशत कम) और गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ इलाके में भारी बारिश (29 प्रतिशत ज्यादा) हुई है।
ये आंकड़े 26 अगस्त तक के हैं, जो भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट से पता चलता है। शेष भारत में 514.3 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो औसत सालाना सामान्य बारिश से 25 प्रतिशत कम है। आईएमडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 26 अगस्त तक सामान्यतया 682 मिलीमीटर औसत बारिश होनी चाहिए।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए आईएमडी के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि अभी इस बात की संभावना है कि कुछ और मंडलों में बारिश सामान्य स्तर पर पहुंच जाए। ऐसा सितंबर के दूसरे सप्ताह तक हो सकता है। अधिकारी ने कहा, 'हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थिति वाकई बहुत गंभीर है। (बीएस हिन्दी)
पिछले 2 सप्ताह के दौरान देश भर में मॉनसून की मजबूत वापसी के बाद 12 मॉनसून मंडलों में जून-अगस्त के दौरान बारिश की सामान्य मात्रा का लक्ष्य हासिल हो गया है।
देश के केवल 3 इलाकों, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत से कम बारिश हुई है और कमी 50 प्रतिशत से ज्यादा है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, उड़ीसा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, रॉयलसीमा (आंध्र प्रदेश), लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अब बारिश की सीमा सामान्य को पार कर चुकी है।
हालांकि 22 मॉनसून मंडलों में अभी भी सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाके शामिल हैं। हरियाणा एक मात्र ऐसा मंडल है, जहां बारिश बहुत कम (64 प्रतिशत कम) और गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ इलाके में भारी बारिश (29 प्रतिशत ज्यादा) हुई है।
ये आंकड़े 26 अगस्त तक के हैं, जो भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट से पता चलता है। शेष भारत में 514.3 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो औसत सालाना सामान्य बारिश से 25 प्रतिशत कम है। आईएमडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 26 अगस्त तक सामान्यतया 682 मिलीमीटर औसत बारिश होनी चाहिए।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए आईएमडी के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि अभी इस बात की संभावना है कि कुछ और मंडलों में बारिश सामान्य स्तर पर पहुंच जाए। ऐसा सितंबर के दूसरे सप्ताह तक हो सकता है। अधिकारी ने कहा, 'हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थिति वाकई बहुत गंभीर है। (बीएस हिन्दी)
परिचालन शुल्क में सुधार से ही बनेगी बात
मुंबई August 28, 2009
रत्न और आभूषण उद्योग ने देश में अंतरराष्ट्रीय डायमंड एक्सचेंज की शुरुआत करने और इसमें विदेशी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए परिचालन शुल्क में सुधार की मांग की है।
वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा की भारत में डायमंड ट्रेडिंग एक्सचेंज की शुरुआत करने की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डायमंड लिमिटेड के अध्यक्ष प्रवीण शंकर पंडया ने कहा 'मेरे ख्याल से विश्व स्तर का डायमंड एक्सचेंज स्थापित करने से ही केवल बात नहीं बनेगी, क्योंकि जब तक परिचालन कर में सुधार नहीं किया जाता तब तक विदेशी कारोबारी भारत में कच्चे हीरे की बिक्री के लिए नहीं आएंगे।'
रत्न आभूषण जगत की मांग इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उंचे शुल्क की वजह से रियो टिंटो और डी बीयर्स सहित विश्व की कोई भी बडी ख़नन कंपनी भारत में कच्चे हीरे की खरीदारी नही करेगी। इसके बदले ये कंपनियां उन देशों की ओर रुख करना पसंद करेगी, जहां परिचालन शुल्क शून्य है।
इस समय भारत में हीरे का प्रसंसकरण करने वाले दुबई में कच्चे हीरे की नीलामी में हिस्सा लेते हैं, जिससे भारत से नौकरियां धीरे-धीरे कम होकर दुबई की ओर रुख कर रही है। हीरे को तराशने और पॉलिश करने वाला भारत विश्व का सबसे बडा देश है।
मौजूदा नियमों के अनुसार परिचालन शुल्क की सीमा 2-3 फीसदी है, जबकि वैश्विक डायमंड ट्रेडिंग बाजार बेल्जियम और इस्त्राइल में इसके मुकाबले 0.25 फीसदी का शुल्क लगता है। यहीं नहीं, महाराष्ट्र सरकार ने हीरे की बिक्र्री पर 1 फीसदी का मूल्य संवर्धित कर (वैट) भी लगा दिया है।
रत्न और आभूषण क्षेत्र ने सरकार से परिचालन शुल्क को एक फीसदी के स्तर पर लाने का सुझाव दिया है, जिसके बाद पांडया को लगता है कि विदशी भागीदारी में निश्चित तौर पर इजाफा होगा। पांडया कहते हैं 'हमने भारत को एक अंतरराष्ट्रीय डायमंड कारोबार केंद्र बनाने के लिए सरकार से विशेष कदम उठाने की अपील की है। सरकार ने देश में डायमंड एक्सचेंज खोलने की हमारी मांग पर पहल की है। लेकिन सही मायने में इसे सफल बनाने के लिए वाकई और कदम उठाने की आवश्यकता है।'
मालूम हो कि नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा करते हुए सरकार ने भारत में अंतरराष्ट्रीय डायमंड स्थापित करने की मंशा जाहिर की है। मुंबई में इसी तरह के एक एक्सचेंज की घोषणा भी की जा चुकी है जो अब लगभग पूरा होने की स्थिति में हैं।
मुंबई में कारोबार की सफलतापूर्वक शुरुआत होने के बाद सरकार की अन्य केंद्रों जैसे अहमदाबाद, सूरत, कोलकाता और हैदराबाद में इसी तरह के एक्सचेंज स्थापित करने की योजना है। (बीएस हिन्दी)
रत्न और आभूषण उद्योग ने देश में अंतरराष्ट्रीय डायमंड एक्सचेंज की शुरुआत करने और इसमें विदेशी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए परिचालन शुल्क में सुधार की मांग की है।
वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा की भारत में डायमंड ट्रेडिंग एक्सचेंज की शुरुआत करने की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डायमंड लिमिटेड के अध्यक्ष प्रवीण शंकर पंडया ने कहा 'मेरे ख्याल से विश्व स्तर का डायमंड एक्सचेंज स्थापित करने से ही केवल बात नहीं बनेगी, क्योंकि जब तक परिचालन कर में सुधार नहीं किया जाता तब तक विदेशी कारोबारी भारत में कच्चे हीरे की बिक्री के लिए नहीं आएंगे।'
रत्न आभूषण जगत की मांग इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उंचे शुल्क की वजह से रियो टिंटो और डी बीयर्स सहित विश्व की कोई भी बडी ख़नन कंपनी भारत में कच्चे हीरे की खरीदारी नही करेगी। इसके बदले ये कंपनियां उन देशों की ओर रुख करना पसंद करेगी, जहां परिचालन शुल्क शून्य है।
इस समय भारत में हीरे का प्रसंसकरण करने वाले दुबई में कच्चे हीरे की नीलामी में हिस्सा लेते हैं, जिससे भारत से नौकरियां धीरे-धीरे कम होकर दुबई की ओर रुख कर रही है। हीरे को तराशने और पॉलिश करने वाला भारत विश्व का सबसे बडा देश है।
मौजूदा नियमों के अनुसार परिचालन शुल्क की सीमा 2-3 फीसदी है, जबकि वैश्विक डायमंड ट्रेडिंग बाजार बेल्जियम और इस्त्राइल में इसके मुकाबले 0.25 फीसदी का शुल्क लगता है। यहीं नहीं, महाराष्ट्र सरकार ने हीरे की बिक्र्री पर 1 फीसदी का मूल्य संवर्धित कर (वैट) भी लगा दिया है।
रत्न और आभूषण क्षेत्र ने सरकार से परिचालन शुल्क को एक फीसदी के स्तर पर लाने का सुझाव दिया है, जिसके बाद पांडया को लगता है कि विदशी भागीदारी में निश्चित तौर पर इजाफा होगा। पांडया कहते हैं 'हमने भारत को एक अंतरराष्ट्रीय डायमंड कारोबार केंद्र बनाने के लिए सरकार से विशेष कदम उठाने की अपील की है। सरकार ने देश में डायमंड एक्सचेंज खोलने की हमारी मांग पर पहल की है। लेकिन सही मायने में इसे सफल बनाने के लिए वाकई और कदम उठाने की आवश्यकता है।'
मालूम हो कि नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा करते हुए सरकार ने भारत में अंतरराष्ट्रीय डायमंड स्थापित करने की मंशा जाहिर की है। मुंबई में इसी तरह के एक एक्सचेंज की घोषणा भी की जा चुकी है जो अब लगभग पूरा होने की स्थिति में हैं।
मुंबई में कारोबार की सफलतापूर्वक शुरुआत होने के बाद सरकार की अन्य केंद्रों जैसे अहमदाबाद, सूरत, कोलकाता और हैदराबाद में इसी तरह के एक्सचेंज स्थापित करने की योजना है। (बीएस हिन्दी)
कम पैदावार में भी बढ़ेगा निर्यात!
नई दिल्ली August 28, 2009
कमजोर मॉनसून और इस साल खरीफ फसलों की पैदावार कम रहने के अनुमानों के बावजूद कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं के निर्यात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की इकाई कृषि और प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के अनुसार प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद इन वस्तुओं के निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना है।
हालांकि, इस समय दाल, गेहूं और गैस-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगी हुई है, लेकिन इसके बावजूद बासमती चावल, ताजा फल और सब्जियों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और मांस का निर्यात में बढ़ोतरी में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
पिछले साल निर्यात में इन वस्तुओं का काफी योगदान रहा था। मिसाल के तौर पर वर्ष 2008-09 में ताजे फल और सब्जियों के निर्यात में 128 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 5,569 करोड रुपये रहा था। इसी साल प्रसंस्कृत फल का निर्यात 25 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 9,119 करोड रुपये दर्ज किया गया था। मांस के निर्यात में भी पिछले साल 44.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। गैर-बासमती चावल का निर्यात 11,162 करोड रुपये के साथ रिकॉर्ड स्तर पर रहा था।
एपीईडीए के अध्यक्ष त्रिपाठी ने कहा 'मेरे हिसाब से यह कठिन साल रहा है। उत्पादन काफी कम रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी भी वांछित सुधार नहीं हुआ है। हालांकि, अपर्याप्त बारिश की वजह से खरीफ फसलों का उत्पादन प्रभावित होने के बावजूद भी निर्यात में कम से कम 25 फीसदी की बढ़ोरती होनी चाहिए।' देश के कुल मर्चेंडाइज निर्यात में कृषि आधारित वस्तुओं की हिस्सेदारी 10 फीसदी होती है। (बीएस हिन्दी)
कमजोर मॉनसून और इस साल खरीफ फसलों की पैदावार कम रहने के अनुमानों के बावजूद कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं के निर्यात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की इकाई कृषि और प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के अनुसार प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद इन वस्तुओं के निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना है।
हालांकि, इस समय दाल, गेहूं और गैस-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगी हुई है, लेकिन इसके बावजूद बासमती चावल, ताजा फल और सब्जियों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और मांस का निर्यात में बढ़ोतरी में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
पिछले साल निर्यात में इन वस्तुओं का काफी योगदान रहा था। मिसाल के तौर पर वर्ष 2008-09 में ताजे फल और सब्जियों के निर्यात में 128 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 5,569 करोड रुपये रहा था। इसी साल प्रसंस्कृत फल का निर्यात 25 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 9,119 करोड रुपये दर्ज किया गया था। मांस के निर्यात में भी पिछले साल 44.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। गैर-बासमती चावल का निर्यात 11,162 करोड रुपये के साथ रिकॉर्ड स्तर पर रहा था।
एपीईडीए के अध्यक्ष त्रिपाठी ने कहा 'मेरे हिसाब से यह कठिन साल रहा है। उत्पादन काफी कम रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी भी वांछित सुधार नहीं हुआ है। हालांकि, अपर्याप्त बारिश की वजह से खरीफ फसलों का उत्पादन प्रभावित होने के बावजूद भी निर्यात में कम से कम 25 फीसदी की बढ़ोरती होनी चाहिए।' देश के कुल मर्चेंडाइज निर्यात में कृषि आधारित वस्तुओं की हिस्सेदारी 10 फीसदी होती है। (बीएस हिन्दी)
उन्नत किस्म के गेहूं बीज तैयार
नई दिल्ली August 28, 2009
कम पानी में गेहूं की अधिक पैदावार से लिए अभी से तैयारी शुरू हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस दिशा में एक्वाफर्टिसीड्रिल नामक एक मशीन का आविष्कार किया है।
साथ ही रोग रहित एवं उन्नत किस्म के गेहूं बीज भी तैयार किए गए हैं। इस बात का खुलासा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में शुक्रवार को आयोजित अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ सम्मेलन में किया गया।
सम्मेलन में गेहूं पर अनुसंधान एवं शोध में जुटे देश भर के 250 से अधिक वैज्ञानिकों ने शिरकत की। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक्वाफर्टिसीड्रिल से बुआई करने के दौरान पानी की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि उस मशीन में ही पानी का टैंक लगा होता है।
उसी तरह लेजर प्लांटर से बुआई करने पर 20-25 फीसदी पानी की बचत होती है। करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान केंद्र के परियोजना अधिकारी एसएस सिंह ने बताया कि गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के रोग रहित बीज विकसित किए गए हैं। इनमें पीबीडब्ल्यू 500, डीडब्ल्यू 17, एचडी 2932, एचडी 2851 एवं एचडी 2824 नामक बीज शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि उत्तर पूर्व भारत में एचडी 2733, एचडी 2643 जैसे बीज अधिक कारगार साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने धान की फसल कटने के बाद बगैर खेत तैयार किए गेहूं की बुआई करने की भी सलाह दी।
उनका मानना है कि इससे लागत एवं समय दोनों की बचत होगी। और जल्दी बुआई करने से पैदावार में भी इजाफा होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक नमकयुक्त मिट्टी में गेहूं की तुलना में जौ की खेती ज्यादा उपयुक्त होगी।
इस साल जौ के उत्पादन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। आईसीएआर के महानिदेशक मंगला राय ने इस मौके पर कहा कि खरीफ के दौरान पैदावार में होने वाली कमी की भरपाई रोग रहित गेहूं की बुआई से की जा सकती है।
गेहूं की फसल में मुख्य रूप से पारला एवं पूरा रतवा व यूजी-99 नामक कीड़े लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि फसल को लगने वाले रोग में बदलाव आता रहता हैे इसलिए खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए रोगरोधी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है। (बीएस हिन्दी)
कम पानी में गेहूं की अधिक पैदावार से लिए अभी से तैयारी शुरू हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस दिशा में एक्वाफर्टिसीड्रिल नामक एक मशीन का आविष्कार किया है।
साथ ही रोग रहित एवं उन्नत किस्म के गेहूं बीज भी तैयार किए गए हैं। इस बात का खुलासा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में शुक्रवार को आयोजित अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ सम्मेलन में किया गया।
सम्मेलन में गेहूं पर अनुसंधान एवं शोध में जुटे देश भर के 250 से अधिक वैज्ञानिकों ने शिरकत की। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक्वाफर्टिसीड्रिल से बुआई करने के दौरान पानी की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि उस मशीन में ही पानी का टैंक लगा होता है।
उसी तरह लेजर प्लांटर से बुआई करने पर 20-25 फीसदी पानी की बचत होती है। करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान केंद्र के परियोजना अधिकारी एसएस सिंह ने बताया कि गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के रोग रहित बीज विकसित किए गए हैं। इनमें पीबीडब्ल्यू 500, डीडब्ल्यू 17, एचडी 2932, एचडी 2851 एवं एचडी 2824 नामक बीज शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि उत्तर पूर्व भारत में एचडी 2733, एचडी 2643 जैसे बीज अधिक कारगार साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने धान की फसल कटने के बाद बगैर खेत तैयार किए गेहूं की बुआई करने की भी सलाह दी।
उनका मानना है कि इससे लागत एवं समय दोनों की बचत होगी। और जल्दी बुआई करने से पैदावार में भी इजाफा होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक नमकयुक्त मिट्टी में गेहूं की तुलना में जौ की खेती ज्यादा उपयुक्त होगी।
इस साल जौ के उत्पादन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। आईसीएआर के महानिदेशक मंगला राय ने इस मौके पर कहा कि खरीफ के दौरान पैदावार में होने वाली कमी की भरपाई रोग रहित गेहूं की बुआई से की जा सकती है।
गेहूं की फसल में मुख्य रूप से पारला एवं पूरा रतवा व यूजी-99 नामक कीड़े लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि फसल को लगने वाले रोग में बदलाव आता रहता हैे इसलिए खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए रोगरोधी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है। (बीएस हिन्दी)
एलएमई में तेजी के बाद चीन में भी बेसमेटल्स सुधरे
यूरो के मुकाबले डॉलर के कमजोर होने के कारण शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में शुक्रवार को बेस मेटल्स के भाव तेजी पर रहे। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती संबंधी आंकड़ों के कारण लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में भी मजबूती दिखाई दी। इसका असर एशियाई बाजारों पर भी देखा गया। विश्लेषकों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के अनुमान से शंघाई कॉपर के दाम आने वाले समय में और बढ़ सकते हैं। शंघाई सिफ्को फ्यूचर्स के वरिष्ठ विश्लेषक वांग झुयी ने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आंकड़े जारी होने से बाजार के रुझान में बदलाव आया है। निशेवकों में इसको लेकर विश्वास बढ़ेगा कि विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार से मांग बढ़ेगी। ऐसे में आने वाले समय में कॉपर के भाव में तेजी देखी जा सकती है। हालांकि शुक्रवार को कॉपर के वायदा भावों में जो बढ़त देखी गई, वह दोपहर बाद के सत्र में गायब हो गई क्योंकि चीन के शेयर बाजार में गिरावट से बेसमेटल्स में तेजी दिखाई दी। दूसरी छमाही में कर्ज की मांग में गिरावट की आशंका से चीन के शेयरों के भावों में गिरावट रही। नई आपूर्ति की बाजार में खपत को लेकर आशंकित कंपनियां फंड उगाही को लेकर सतर्क हो गई हैं। हालांकि डॉलर में गिरावट, सकारात्मक अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों और अमेरिकी शेयर बाजार में बढ़ोतरी से मिले समर्थन के चलते रेड मेटल में बढ़त रही। शांगजियांग नॉनफेरस मेटल्स ट्रेडिंग मार्केट में कॉपर के भाव 50,400 युआन से 50,650 युआन प्रति टन रहे। वहीं, एलएमई में कॉपर 2.4 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 6,420 डॉलर प्रति टन पर रहा। (बिज़नस भास्कर)
गेहूं, जौ की उपयुक्त किस्में सुझरइ
मानसून की बेरुखी से देश के अधिकांश हिस्से में सूखे जैसे हालात बनने से खरीफ पैदावार में भारी गिरावट आने के आसार हैं। सरकार इसकी भरपाई रबी फसलों से करना चाहती है। करनाल के गेहूं अनुसंधान निदेशालय ने उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्यों के लिए उपयुक्त गेहूं और जौ की किस्मों की सिफारिश की है। शुक्रवार को 48वें अखिल भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान कार्यकर्ता सम्मेलन में वैज्ञानिकों के बीच इन किस्मों पर गहन विचार विमर्श किया गया। सम्मेलन के उद्घाटन के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. मंगला राय ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि गेहूं और जौ का उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रति हैक्टेयर ज्यादा पैदावार और नई किस्में विकसित कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को अनुसंधान के लिए धन की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी। पहले भी वैज्ञानिकों ने अनेक किस्में विकसित की हैं, लेकिन बदलती जलवायु और पानी की कमी के कारण और नई किस्मों की जरूरत है। गेहूं अनुसंधान निदेशालय के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. एस. एस. सिंह ने बताया कि नई किस्में और नई तकनीक के माध्यम से मानसून में कमी के बावजूद किसान बेहतर उत्पादन ले सकते हैं। उत्तर-पश्चिम भारत के विभिन्न राज्यों के मुताबिक निदेशालय ने गेहूं और जौ की उन्नत किस्में लगाने की सलाह दी है। सम्मेलन में आए वैज्ञानिक अपने-अपने क्षेत्र में गेहूं व जौ की उपयुक्त की सिफारिश करेंगे और किसानों को जानकारी सुलभ कराएंगे। निदेशालय की सिफारिश केअनुसार पंजाब के किसान अगर समय पर गेहूं की बुवाई करते हैं तो सिंचित क्षेत्र में डीबीडब्ल्यू 17, पीबीडब्ल्यू 550, पीबीडब्ल्यू 343 और पीबीडब्ल्यू 502 की बुवाई करें तथा जो किसान जौ की बुवाई करना चाहते हैं उन्हें सिंचित क्षेत्र में आरडी 2552 किस्म की बुवाई करनी चाहिए। (बिज़नस भास्कर)
विदेश और घरेलू बाजार में नेचुरल रबर समान भाव पर
वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से विदेशी बाजार में पिछले एक महीने में नेचुरल रबर के दाम 13 फीसदी बढ़ चुके हैं। सिंगापुर के सीकॉम एक्सचेंज में नेचुरल रबर के भाव गुरुवार को बढ़कर 103-102 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए। विदेश में तेजी आने से नेचुरल रबर के भाव भारत के घरेलू दाम के बराबर हो गए हैं। इसलिए भारत में नेचुरल रबर का आयात घटने की संभावना है। घरेलू बाजार में भी इसके भाव 102-104 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। अभी तक भारी आयात होने से घरेलू नेचुरल रबर के दामों पर दबाव बना हुआ था। अब आयात घटने पर घरेलू बाजार में नेचुरल रबर के दाम 10 से 15 फीसदी बढ़ने की संभावना बन गई है। कोच्चि स्थित मैसर्स हरि संस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बिजनेस भास्कर को बताया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आए सुधार के कारण ऑटो इंडस्ट्री की मांग बढ़ी है। इसीलिए विदेशी बाजार में नेचुरल रबर के दाम लगभग 13 फीसदी बढ़ चुके हैं। सीकॉम में आरएसएस-3 रबर के भाव 103 रुपये और आरएसएस-4 के भाव 102 रुपये प्रति किलो हो गए। इस समय कोट्टायम में आरएसएस-4 104 रुपये और आरएसएस-5 रबर 102 रुपये प्रति किलो बिक रही है। पिछले दिनों भारत के मुकाबले विदेशी बाजार में नेचुरल रबर के भाव 18 से 20 रुपये प्रति किलो कम थे जिसके कारण भारत में आयात बढ़ रहा था। जुलाई महीने में देश में नेचुरल रबर का आयात बढ़कर 20,412 टन का हुआ है जो जबकि पिछले साल जुलाई के मुकाबले करीब आठ गुना ज्यादा है। पिछले साल जुलाई में 2,589 टन का ही आयात हुआ था। इस दौरान कच्चे तेल की कीमतों में आए सुधार से भी नेचुरल रबर की तेजी को बल मिला है। कच्चे तेल की कीमतें बढ़कर 71 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चल रही हैं।रबर बोर्ड के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जुलाई तक देश में नेचुरल रबर के उत्पादन में 13 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान उत्पादन घटकर 2,09,825 टन का ही हुआ है। रबर मर्चेट एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना का अनुमान है कि विदेश में भाव बढ़ने से आगामी महीनों में देश में रबर का आयात गिरेगा। इसलिए घरेलू बाजार से मांग बढ़ जाएगी। प्रतिकूल मौसम के कारण अप्रैल से जुलाई में तो उत्पादन कम रहा है लेकिन सितंबर से दिसंबर तक उत्पादन का प्रमुख सीजन होता है। ऐसे में आगामी महीनों में उत्पादन भी बढ़ेगा। लेकिन मांग में इजाफा होने से नेचुरल रबर की मौजूदा कीमतों में 10 से 15 फीसदी की तेजी आ सकती है। (बिज़नस भास्कर)
गेहूं, जौ की उपयुक्त किस्में सुझरइ
देशभर में चीनी की कीमतों पर सरकार की कड़ी नजर है और वह मूल्यों को नियंत्रित करने से पीछे नहीं हटेगी। यह बात वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कही। उन्होंने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक विकास दर छह फीसदी से ज्यादा रहने की उम्मीद है। एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के साथ बैठक में वित्त मंत्री ने कहा कि गन्ने के उत्पादन में कमी से सरकार चिंतित है। लेकिन चीनी की बढ़ती कीमतों पर सरकार नजर रखे हुए है। दरअसल, रिटेल बाजार में चीनी की कीमत 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। चीनी का उत्पादन चालू सीजन में 150 लाख टन रहने की संभावना है जबकि देश में सालाना खपत 225 लाख टन है।बीते साल भी चीनी का उत्पादन 150 लाख टन से कम रहा था। इस कारण से चीनी की उपलब्धता कम हो गई। इसको लेकर सरकार चिंतित है। अब सरकार चीनी की कीमतों पर नजर रखे हुए है जबकि हाल ही में चीनी पर स्टॉक लिमिट लगाई गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी छह फीसदी से ज्यादा रह सकती है। (बिज़नस भास्कर)
सूखे और ऊंची कीमत से सोने की खरीद में भारी कमी
दुनिया में सोने के सबसे बड़े खरीदार भारत का सोना आयात चालू वर्ष में 37 फीसदी घट सकता है। सात साल में पहली बार इतना बड़ा सूखा देश में पड़ा है और इससे ग्रामीण भारत की आय गिरेगी और यह सोने की खपत घटने का प्रमुख कारण होगा। इसके अलावा सोने की ऊंची कीमतों के कारण भी सोने की खरीद घटने की संभावना है। बांबे बुलियन एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट हरमेश अरोड़ा ने बताया कि 2008 में देशभर में 396 टन सोने की खरीद हुई थी, लेकिन सूखे की स्थिति और सोने की कीमतों में तेजी को देखते हुए इस वर्ष सोने की खरीद घटकर 250 टन ही रह सकती है। अगस्त में सोने का आयात गिरकर 14 टन रह सकता है, जबकि गत वर्ष इस दौरान 98 टन सोना आयात किया गया था। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक आर्थिक संकट के कारण सोने की वैश्विक मांग भी दूसरी तिमाही में गत वर्ष के मुकाबले 6 फीसदी घटकर 719.5 टन रह गई है। देश के 626 जिलों में से 40 फीसदी सूखे से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इससे गांवों में रहने वाले 74.20 करोड़ लोगों की आय प्रभावित हुई है। अरोड़ा ने कहा कि सूखे की आहट और कृषि आय में गिरावट के कारण लोग गहनों पर खर्च को लेकर सावधान हो गए हैं। खुदरा खरीदार बहुत जरूरी होने पर ही सोने की खरीद कर रहे हैं। दूसरी तिमाही में भारत में सोने की मांग 38त्न घटकर 109 टन रह गई है, चीन में इस दौरान यह 11त्न बढ़कर 89.6 टन हो गई। चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का खरीदार है। 31 जुलाई तक 7 महीनों में देश में सोने की खरीद में 56 फीसदी की भारी गिरावट आई है। इस दौरान केवल 71.6 टन सोने की खरीद हुई है। (बिज़नस भास्कर)
कनाडा में बकाया स्टॉक और नई फसल आने से मटर 10 प्रतिशत नरम
कनाडा में मटर के बकाया स्टॉक और नई फसल आने से कीमतों में गिरावट आनी शुरू हो गई है। पिछले आठ-दस दिनों में मुंबई में मटर की कीमतों में करीब 10।4 फीसदी की नरमी आकर भाव 310 डॉलर प्रति टन रह गए। कनाडा में नई फसल का करीब 31 लाख टन का उत्पादन होने की संभावना है जबकि पांच लाख टन का पिछला स्टॉक बचा है। हाल ही में एक सरकारी कपंनी ने एक लाख टन मटर आयात की निविदा को ऊंचे भाव की वजह से रद्द कर दिया, जिससे गिरावट को बल मिला है।दुबई स्थित मैसर्स हाकन एग्रो कमोडिटी ट्रेडिंग कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सुधाकर तोमर ने बताया कि कनाडा में 2009 में मटर का उत्पादन घटकर 31.16 लाख टन होने की संभावना है जोकि वर्ष 2008 के मुकाबले करीब 12.75 फीसदी कम होगी। वर्ष 2008 में इसका उत्पादन 35.71 लाख टन हुआ था। उत्पादन में तो कमी आई है लेकिन बकाया स्टॉक करीब पांच लाख टन का बचा हुआ है। इसलिए कुल उपलब्धता 36.16 लाख टन की बैठेगी। कनाडा में मटर के कुल उत्पादन का करीब 50-55 फीसदी हिस्सा भारत आयात कर लेता है। मुंबई स्थित मैसर्स एम. एम. ऐग्रीकेम प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील सांवला ने बताया कि हाल ही में एक सरकारी कंपनी ने एक लाख टन मटर आयात के लिए निविदा मांगी थी। लेकिन भाव ऊंचे मिलने के कारण कंपनी ने निविदा रद्द कर दी।जिसके कारण निर्यातकों को भाव घटाने पड़े। पिछले आठ-दस दिनों में इसके भाव 340-345 डॉलर प्रति टन से घटकर 310 डॉलर प्रति टन रह गये। इस दौरान यूक्रेन से आयातित मटर के दाम घटकर 305 डॉलर और अमेरिकी मटर के भाव घटकर 325 डॉलर प्रति टन रह गए। अगर भारतीय कंपनियों ने खरीद में जल्दबाजी नहीं दिखाई तो मौजूदा कीमतों में और भी 15-20 डॉलर प्रति टन की गिरावट आने की संभावना है। हालांकि आयातित मटर के भाव पिछले की समान अवधि के मुकाबले काफी कम है। पिछले साल इस समय भाव 450-500 डॉलर प्रति टन थे। भारत दलहन के कुल आयात में सबसे ज्यादा आयात मटर का करता है। सरकारी सूत्रों के अनुसार वर्ष 2008-09 में सरकारी कंपनियों एमएमटीसी, एसटीसी, पीईसी और नेफेड ने करीब 7.15 लाख टन मटर का आयात किया था। चालू वर्ष में भी सरकारी कंपनियों द्वारा सात लाख टन से ज्यादा मटर का आयात करने की संभावना है।मटर व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में मटर के भाव घटने के साथ ही घरेलू बाजार में चने की कीमतों में आई गिरावट का असर इसकी कीमतों पर भी पड़ रहा है। मुंबई में कनाडाई मटर के दाम घटकर 1425 रुपये और अमेरिकी मटर के भाव 1475 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। उधर कानपुर में देसी मटर के भाव घटकर 1770 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। (बिज़नस भास्कर)
27 अगस्त 2009
चार माह में कॉयर उत्पादों का निर्यात पांच फीसदी बढ़ा
चालू वित्त वर्ष के पहले चार माह के दौरान कॉयर उत्पादों के निर्यात में मूल्य और मात्रा के लिहाज से करीब पांच फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान 215 करोड़ रुपये के 69,198 टन कॉयर उत्पादों को निर्यात किया गया। वहीं जुलाई माह के दौरान इसके निर्यात में मात्रा के लिहाज से करीब दो फीसदी का इजाफा हुआ। भारतीय कॉयर बोर्ड के एक अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आर्थिक हालात सुधरने से कॉयर उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है। यही कारण है कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार माह के दौरान कॉयर उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है। कॉयर उत्पादों का निर्यात मुख्य रूप से चीन, अमेरिका और यूरोप के देशों को किया जाता हैं। लेकिन बोर्ड इन उत्पादों के निर्यात के लिए मध्य-पूर्व के देशों में भी बाजार तलाश रहा हैं। चालू वित्त वर्ष 2009-10 के चार माह अप्रैल से जुलाई के दौरान कॉयर फाइबर का निर्यात मात्रा की दृष्टि से 216 फीसदी बढ़कर 7,934 टन हो गया जबकि मूल्य के लिहाज से इसमें 207 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके निर्यात में बढ़ोतरी की वजह चीन से मांग अधिक रहना है। आडिथी एक्सपोर्ट के डी.एल. मारन ने बताया कि चीन की अधिक मांग से इस दौरान कॉयर फाइबर का निर्यात काफी बढ़ा है। जुलाई माह के दौरान भी 1.76 करोड़ रुपये के 1,607 टन कॉयर फाइबर का निर्यात किया गया जो पिछली समान अवधि के मुकाबले मात्रा के लिहाज से 80 फीसदी और मूल्य के लिहाज से 50 फीसदी अधिक है। वही कॉयर कल्र्ड के निर्यात में मूल्य के लिहाज से 207 फीसदी और मात्रा के लिहाज से 83 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान करीब 9 करोड़ रुपये के 411 टन कॉयर कल्र्ड का निर्यात हुआ। (बिज़नस भास्कर)
खाद्यान्न पैदावार बढ़ाने की योजनाएं लागू करने में सुस्ती
राज्यों में जिला स्तर पर खाद्यान्न फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जिला स्तर की मशीनरी के मकड़जाल में फंसकर बेकार साबित हो रही हैं। राज्य राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के जरिये पैदावार बढ़ाने में विफल हो रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह वृहत जिला कृषि योजना (सी-डीएपी) में व्याप्त खामियां हैं।ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. एस. राजकुट्टी का कहना है कि सी-डीएपी को अपनी योजनाएं जिला योजना समिति (डीपीसी) को सौंपनी होती है जो इसे स्वीकृति प्रदान करती है। परंतु देश के कई राज्यों में अब तक डीपीसी का गठन ही नहीं किया गया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 10 राज्यों में डीपीसी नहीं है और छह राज्यों में डीपीसी सभी जिलों में मौजूद नहीं हैं। देश के सिर्फ आठ राज्यों में डीपीसी सभी जिलों में मौजूद है। केंद्र शासित राज्यों में चंडीगढ़ और पुडूचेरी में अभी तक डीपीसी का गठन नहीं हुआ है। ऐसी सूरत में आरकेवीवाई बेकार साबित हो रही है। डॉ. राजकुट्टी का कहना है कि आरकेवीवाई द्वारा दो स्ट्रीम में फंडिंग की जाती है। स्ट्रीम-1 के तहत 75 फीसदी फंड राज्यों को दिए जाते हैं और स्ट्रीम-2 के अंतर्गत बाकी की 25 फीसदी राशि दी जाती है। डॉ. राजकुट्टी ने बताया कि आंकड़ों के मुताबिक स्ट्रीम-1 की राशि का चार राज्यों में कोई उपयोग नहीं किया गया। तीन राज्यों में करीब 25 फीसदी तक, दो राज्यों में 26 से 50 फीसदी तक, चार राज्यों में 50 से 75 फीसदी तक उपयोग किया गया। सिर्फ हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल ने 75 फीसदी से अधिक स्ट्रीम-1 के पैसे का उपयोग किया है। हालांकि मौजूदा मानसून के विफल होने के कारण कई राज्यों ने आरकेवीवाई के तहत अतिरिक्त राशि की मांग की है। कर्नाटक को केंद्र ने आरकेवीवाई के तहत 410 करोड़ रुपये दिए हैं। उड़ीसा ने 45 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की मांग की है। असम ने 630.61 करोड़ रुपये की मांग की है। कमोबेश यही हाल 17 राज्यों में चलाए जा रहे। देश के 17 राज्यों के लिए वित्त वर्ष 2009-10 में धान, गेहूं, दालों और प्रचार-प्रसार के लिए 14.43 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इनमें से आठ राज्यों ने रबी मौसम की प्रमुख फसल गेहूं के लिए मिशन के तहत अभी तक कोई राशि प्राप्त नहीं की है। खरीफ की पैदावार में कमी आने की आशंका के मद्देनजर रबी की पैदावार बढ़ाने के लिए आरकेवीवाई और एनएफएसएम बेहद महत्वपूर्ण है और इनकी सफलता के लिए राज्य सरकारों का सकारात्मक रुख आवश्यक है। (बिज़नस भास्कर)
दूसरे देशों की पैदावार पर निर्भर होंगे बासमती के दाम
खरीफ सीजन के दौरान बासमती धान के रकबे में बढ़ोतरी होने की संभावना है। लेकिन सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमईपी) घटाए जाने से इसका निर्यात बढ़ सकता है। ऐसे में बासमती चावल की नई फसल आने पर मूल्य दूसरे देशों की पैदावार के अनुरूप तय होगा। बीते एक सप्ताह के दौरान घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय राजधानी की खारी बावली स्थित ग्रेन बाजार में बासमती चावल के दाम 7500-9000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। बीते एक सप्ताह के दौरान इनकी कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक का इजाफा हो चुका हैं।दिल्ली ग्रेन मर्चेट एसोसिएशन के सचिव और चावल कारोबारी सुरेंद्र कुमार गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बासमती धान के रकबे में बढ़ोतरी होने से आगामी सीजन में बासमती चावल के दाम कम रहने के आसार हैं। कीमतों में कितनी गिरावट आएगी, इस बारे में फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगा। दरअसल बासमती चावल के धान का दाम अधिक मिलने के कारण किसानों ने इस बार इसकी बुवाई अधिक की है। अगले सीजन में बासमती चावल के मूल्यों के बारे में दिल्ली व्यापार महासंघ के चैयरमेन ओमप्रकाश जैन का कहना है कि बासमती चावल के मूल्यों की दिशा काफी हद अन्य दूसरे उत्पादक देशों की फसल पर भी निर्भर करेगी। अगर दूसरे देशों में भी अच्छा उत्पादन हुआ तो इसके दाम पिछले साल नई सप्लाई के समय के भाव 6000-6500 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर से भी नीचे जा सकते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार धान के कुल रकबे में पिछले साल के मुकाबले करीब 60 लाख हैक्टेयर की कमी आई हैं। ताजा बुवाई आंकड़ों के अनुसार 20 अगस्त तक 271।83 लाख हैक्टेयर में धान की बुवाई हो चुकी है। पिछली समान अवधि में यह आंकड़ा 341.44 लाख हैक्टेयर था। गर्ग का कहना है कि धान के कुल रकबे में गिरावट आई है लेकिन बासमती धान की बुवाई में इजाफा हुआ है।उधर सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल के महंगा होने के निर्यात को मिल रही कड़ी टक्कर को देखते हुए एमईपी में 300 डॉलर प्रति टन की कटौती करके इसे 800 डॉलर प्रति टन कर दिया है। इससे बासमती चावल का निर्यात अधिक होने की संभावना है। ओमप्रकाश जैन के अनुसार सरकार द्वारा एमईपी घटाने से अगले सीजन में भारतीय बासमती चावल के निर्यात में और इजाफा होने की उम्मीद है। सरकारी आंकड़ा़े के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान 15 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ था। जानकारों के अनुसार अगले सीजन में इसके 18-20 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। गौरतलब है कि बीते महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल के महंगा होने से इसकी निर्यात मांग में कमी आई थी। दरअसल पाकिस्तान का बासमती चावल सस्ता होने के कारण घरेलू बासमती चावल के बाजार को हथिया लिया था। (बिज़नस भास्कर)
निर्यात और घरेलू मांग घटने से हल्दी में 8 प्रतिशत की गिरावट
ऊंचे भाव पर निर्यातकों के साथ घरेलू मांग कमजोर होने से हल्दी में करीब आठ फीसदी की गिरावट आ चुकी है। निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव घटकर 8,000 रुपये और इरोड़ में 8,400 रुपये प्रति क्विंटल (बिल्टी कट) रह गए। हाल ही में हल्दी के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई है जिससे गिरावट को बल मिला है। हल्दी की बुवाई में करीब 20 से 25 फीसदी का इजाफा हुआ है। ऐसे में अगर आगामी दिनों में मौसम अनुकूल रहा तो पैदावार पिछले साल की तुलना में लगभग 25 फीसदी बढ़ने की संभावना है। हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि भाव ऊंचे होने के कारण निर्यातकों के साथ-साथ घरेलू मांग पहले की तुलना में घटी है। रमजान से पहले खाड़ी देशों के आयातकों की अच्छी मांग बनी हुई थी लेकिन रमजान शुरू होने के बाद इनकी मांग में भी कमी आई है। जिससे निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव 8700 रुपये से घटकर 8000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इरोड मंडी में इस दौरान भाव 9200 रुपये से घटकर 8400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उत्पादक मंडियों में इस समय हल्दी का मात्र 10 से 10।5 लाख बोरी (एक बोरी 70 किलो) का ही स्टॉक बचा है जो कि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले कम है। नई फसल की आवक फरवरी महीने में बनेगी। नई फसल आने में करीब पांच से साढ़े पांच माह का समय शेष है। अत: औसतन हर महीने घरेलू खपत और निर्यात मांग को मिलाकर दो लाख बोरी की जरूरत होती है। ऐसे में नई फसल की आवक के समय हल्दी का बकाया स्टॉक बहुत कम बचेगा। मैसर्स ज्योति ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर सुभाष गुप्ता ने बताया कि हल्दी के बुवाई क्षेत्रफल में पिछले साल के मुकाबले करीब 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। तथा हाल ही में प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में हुई बारिश से आने वाली फसल को काफी फायदा हुआ है। अगर जनवरी-फरवरी तक मौसम अनुकूल रहा तो हल्दी का उत्पादन बढ़कर 50 से 55 लाख बोरी होने की संभावना है। पिछले साल किसानों ने हल्दी के बजाय कॉटन की बुवाई ज्यादा की गई थी। जिससे उत्पादन मात्र 43 लाख बोरी का ही हुआ था। नई फसल की पैदावार में तो बढ़ोतरी की संभावना है लेकिन हाजिर स्टॉक कम होने के कारण मौजूदा भावों में भारी गिरावट की संभावना भी नहीं है।भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हल्दी के निर्यात में दो फीसदी की कमी आई है। इस दौरान देश से हल्दी का 15,500 टन का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 15,825 टन का निर्यात हुआ था। (बिज़नस भास्कर)
राजस्थान के 26 जिले सूखाग्रस्त घोषित किए गए
जयपुर। राजस्थान सरकार ने गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर राज्य के 33 में से 26 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। इन गांवों में खरीफ फसल 50 फीसदी से ज्यादा खराब हो गई है। राज्य ने सूखाग्रस्त जिलों के लिए राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि (एनसीसीएफ) के तहत केंद्र सरकार से 12690.99 करोड़ रुपये की अतिरिक्त वित्तीय सहायता मांगी है।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बुधवार को सम्पन्न बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बताया कि गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर राज्य के 26 जिलों के 32,833 गांवों को सूखाग्रस्त पाया गया है। मानसून कमजोर रहने से इन गांवों की 424.64 लाख आबादी प्रभावित हुई है।
राज्य सरकार की ओर से सूखाग्रस्त घोषित जिलों में अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, चूरू, दौसा, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जयपुर, जैसलमेर, जालोर, झुंझुनु, जोधपुर, नागौर, पाली, राजसमंद, सवाई माधोपुर, सीकर, सिरोही, टोंक और उदयपुर शामिल है। (बिज़नस भास्कर)
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बुधवार को सम्पन्न बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बताया कि गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर राज्य के 26 जिलों के 32,833 गांवों को सूखाग्रस्त पाया गया है। मानसून कमजोर रहने से इन गांवों की 424.64 लाख आबादी प्रभावित हुई है।
राज्य सरकार की ओर से सूखाग्रस्त घोषित जिलों में अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, चूरू, दौसा, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जयपुर, जैसलमेर, जालोर, झुंझुनु, जोधपुर, नागौर, पाली, राजसमंद, सवाई माधोपुर, सीकर, सिरोही, टोंक और उदयपुर शामिल है। (बिज़नस भास्कर)
लेवी चीनी नहीं दी तो होगी मिलों पर कार्रवाई
लखनऊ August 26, 2009
चीनी और गुड़ के लगातार बढ़ते दामों से परेशान उत्तर प्रदेश सरकार ने इन जिंसों पर भी स्टॉक सीमा तय करने की ठान ली है।
सूबे की मुख्यमंत्री मायावती ने लेवी चीनी देने में आनाकानी करने वाली चीनी मिलों पर कार्रवाई करने की चेतावनी दे दी है। राज्य सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को एक आदेश जारी कर कहा है कि जो भी चीनी मिलें लेवी की चीनी देने में आनाकानी करती हैं उन पर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 37 के तहत कार्रवाई की जाए।
सरकार ने आदेश दिए हैं कि ऐसी चीनी मिलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और हो सके तो गिरफ्तारी भी की जाए। गौरतलब है कि लेवी चीनी जारी न होने से इस महीने और तमाम जिलों में बीपीएल और अंत्योदय राशन कार्ड धारकों को कोटे की चीनी नहीं मिल सकी थी। सरकार का मानना है कि अगर बीपीएल कोटे की चीनी बंट जाती है तो कम से कम 30 फीसदी संकट से निपटा जा सकता है।
इस समय उत्तर प्रदेश सरकार चीनी की बढ़ती कीमतों की हर सप्ताह समीक्षा कर रही है। बीते सप्ताह की समीक्षा बैठक में पाया गया था कि जमाखोरी से मुनाफा बढ़ रहा है। सरकार का मानना है कि खाद्य तेलों पर जिस तरह से स्टॉक सीमा लागू कर कीमतों पर काबू पाया गया था, वैसा चीनी के मामले में भी हो सकता है।
इस समय उत्तर प्रदेश में खुले बाजार में चीनी के दाम 34 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं जबकि गुड़ लड्डू 40 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। (बीएस हिन्दी)
चीनी और गुड़ के लगातार बढ़ते दामों से परेशान उत्तर प्रदेश सरकार ने इन जिंसों पर भी स्टॉक सीमा तय करने की ठान ली है।
सूबे की मुख्यमंत्री मायावती ने लेवी चीनी देने में आनाकानी करने वाली चीनी मिलों पर कार्रवाई करने की चेतावनी दे दी है। राज्य सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को एक आदेश जारी कर कहा है कि जो भी चीनी मिलें लेवी की चीनी देने में आनाकानी करती हैं उन पर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 37 के तहत कार्रवाई की जाए।
सरकार ने आदेश दिए हैं कि ऐसी चीनी मिलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और हो सके तो गिरफ्तारी भी की जाए। गौरतलब है कि लेवी चीनी जारी न होने से इस महीने और तमाम जिलों में बीपीएल और अंत्योदय राशन कार्ड धारकों को कोटे की चीनी नहीं मिल सकी थी। सरकार का मानना है कि अगर बीपीएल कोटे की चीनी बंट जाती है तो कम से कम 30 फीसदी संकट से निपटा जा सकता है।
इस समय उत्तर प्रदेश सरकार चीनी की बढ़ती कीमतों की हर सप्ताह समीक्षा कर रही है। बीते सप्ताह की समीक्षा बैठक में पाया गया था कि जमाखोरी से मुनाफा बढ़ रहा है। सरकार का मानना है कि खाद्य तेलों पर जिस तरह से स्टॉक सीमा लागू कर कीमतों पर काबू पाया गया था, वैसा चीनी के मामले में भी हो सकता है।
इस समय उत्तर प्रदेश में खुले बाजार में चीनी के दाम 34 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं जबकि गुड़ लड्डू 40 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। (बीएस हिन्दी)
अभी बनी रहेगी सोने में चमक
मुंबई August 26, 2009
चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान सोने की कीमतों में स्थिरता बनी रहने का अनुमान है। सेंट्रल बैंक गोल्ड एग्रीमेंट (सीबीजीए) पर हस्ताक्षर करने वाले कम बिक्री जारी रखेंगे, जिसकी वजह से आपूर्ति प्रभावित होगी।
केंद्रीय बैंक ने 2009 की पहली छमाही के दौरान कुल 38.5 टन सोना बेचा है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में बैंक ने 145.8 टन सोने की बिक्री की थी। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में बिक्री पिछले 12 साल में सबसे नीचे रही।
केंद्रीय बैंक के मानकों से संकेत मिलते हैं कि सीबीजीए अब ज्यादा सोना रोक रखने पर ध्यान दे रहा है, जिससे भविष्य में क्षमता बनी रहे। इस माह की शुरुआत में सीबीजीए के नए समझौते में सदस्यों ने नई सीलिंग 400 टन की रखी है, जबकि इसके पहले 500 टन थी।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सोने की वैश्विक मांग पिछले 2 साल (2008 और 2007) के दौरान 3804 टन और 3552 टन रही है जबकि इसके बदले आपूर्ति क्रमश: 3512 टन और 3476 टन रही।
चालू कैलेंडर साल के पहली छमाही के दौरान कुल मांग 1765 टन रही जबकि आपूर्ति 2124 टन रही। चीन ने गोल्ड रिजर्व में 75 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है, जिसके चलते कुल मांग दूसरी छमाही में भी बरकरार रहने की उम्मीद है, जैसा कि पिछले साल भी देखने को मिला था।
वर्तमान सेंट्रल बैंक गोल्ड एग्रीमेंट के मुताबिक बिक्री हाल के महीनों में बहुत धीमी रही। डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि आपूर्ति की इस स्थिति में बदलाव आने की संभावना कम है। 2008 में चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोने का बाजार बनकर उभरा।
उम्मीद है कि यह स्थिति आने वाले दिनों में भी जारी रहेगी। चीन में गहनों की मांग में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हो रही है। प्रति व्यक्ति खरीद पिछले 5 साल के दौरान 0.2 ग्राम रही है, जबकि भारत में 0.45 ग्राम और अमेरिका में 0.98 ग्राम है।
भारत और चीन दोनों में ही पिछले 5 साल में कारोबार बेहतर रहा है। इसी अवधि के दौरान, नए निवेश की क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई है, जो बार और सिक्कों के माध्यम से हुई। जबकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में नकारात्मक बढ़ोतरी देखने को मिली।
इस साल के दौरान मुंबई के झावेरी बाजार में सोने की कीमतों में 10।43 प्रतिशत की बढ़ोतरी ुहई और यह 15030 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। लंदन में भी सोने की कीमतों में 8.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 950.5 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। एक विश्लेषक ने कहा कि मुनाफावसूली के बाद अब खरीदार कीमतें कम होने का इंतजार कर रहे हैं। (बीएस हिन्दी)
चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान सोने की कीमतों में स्थिरता बनी रहने का अनुमान है। सेंट्रल बैंक गोल्ड एग्रीमेंट (सीबीजीए) पर हस्ताक्षर करने वाले कम बिक्री जारी रखेंगे, जिसकी वजह से आपूर्ति प्रभावित होगी।
केंद्रीय बैंक ने 2009 की पहली छमाही के दौरान कुल 38.5 टन सोना बेचा है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में बैंक ने 145.8 टन सोने की बिक्री की थी। चालू कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में बिक्री पिछले 12 साल में सबसे नीचे रही।
केंद्रीय बैंक के मानकों से संकेत मिलते हैं कि सीबीजीए अब ज्यादा सोना रोक रखने पर ध्यान दे रहा है, जिससे भविष्य में क्षमता बनी रहे। इस माह की शुरुआत में सीबीजीए के नए समझौते में सदस्यों ने नई सीलिंग 400 टन की रखी है, जबकि इसके पहले 500 टन थी।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सोने की वैश्विक मांग पिछले 2 साल (2008 और 2007) के दौरान 3804 टन और 3552 टन रही है जबकि इसके बदले आपूर्ति क्रमश: 3512 टन और 3476 टन रही।
चालू कैलेंडर साल के पहली छमाही के दौरान कुल मांग 1765 टन रही जबकि आपूर्ति 2124 टन रही। चीन ने गोल्ड रिजर्व में 75 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है, जिसके चलते कुल मांग दूसरी छमाही में भी बरकरार रहने की उम्मीद है, जैसा कि पिछले साल भी देखने को मिला था।
वर्तमान सेंट्रल बैंक गोल्ड एग्रीमेंट के मुताबिक बिक्री हाल के महीनों में बहुत धीमी रही। डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि आपूर्ति की इस स्थिति में बदलाव आने की संभावना कम है। 2008 में चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोने का बाजार बनकर उभरा।
उम्मीद है कि यह स्थिति आने वाले दिनों में भी जारी रहेगी। चीन में गहनों की मांग में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हो रही है। प्रति व्यक्ति खरीद पिछले 5 साल के दौरान 0.2 ग्राम रही है, जबकि भारत में 0.45 ग्राम और अमेरिका में 0.98 ग्राम है।
भारत और चीन दोनों में ही पिछले 5 साल में कारोबार बेहतर रहा है। इसी अवधि के दौरान, नए निवेश की क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई है, जो बार और सिक्कों के माध्यम से हुई। जबकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में नकारात्मक बढ़ोतरी देखने को मिली।
इस साल के दौरान मुंबई के झावेरी बाजार में सोने की कीमतों में 10।43 प्रतिशत की बढ़ोतरी ुहई और यह 15030 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। लंदन में भी सोने की कीमतों में 8.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 950.5 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। एक विश्लेषक ने कहा कि मुनाफावसूली के बाद अब खरीदार कीमतें कम होने का इंतजार कर रहे हैं। (बीएस हिन्दी)
बीटी के कवच में लग गया कीड़ा
नई दिल्ली August 26, 2009
ढोल नगाड़े के साथ बाजार में उतारे गए जीन संवर्द्धित बीटी कपास की हवा भी निकलती जा रही है।
कपास की आम किस्मों की तरह बीटी कपास भी अब बॉलवर्म यानी कपास के कीड़े का शिकार हो रहा है। इसे बॉलवर्म से मुक्त कहकर बाजार में पेश किया गया था, लेकिन मुंबई के माटुंगा में केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल बीटी कपास के 10 से 11.5 फीसदी फूल बॉलवर्म चट कर गए।
इसे देखकर परेशान विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि बॉलवर्म इसी रफ्तार से बढ़े तो जल्द ही बीटी कपास की 20 से 30 फीसदी फसल इसकी चपेट में आ जाएगी। ऐसे में उसमें और सामान्य कपास में फर्क नहीं रह जाएगा।
लेकिन बीटी कपास के बीज मुहैया कराने वाली बड़ी कंपनी मॉनसेंटो इंडिया के उप प्रबंध निदेशक क्रिस्टोफर सैमुअल ने मुंबई से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'इस साल कपास की बीटी-1 किस्म का ज्यादा इस्तेमाल हुआ और अब भारतीय बाजार में बीटी-2 कपास उतार दिया गया है, जो बॉलवर्म से बचाव में ज्यादा कारगर है।'
वह कहते हैं कि बॉलवर्म काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है और जरूरी नहीं कि अगले साल भी यह कीड़ा फसल पर ज्यादा हमला करे। मॉनसेंटो का दावा कुछ भी हो, लेकिन बीटी कपास में बॉलवर्म बढ़ने लगे हैं। इस साल राजस्थान और हरियाणा में कपास की 11 फीसदी फसल इस कीटे की चपेट में थी, दक्षिण के राज्यों में यह आंकड़ा 10 फीसदी था।
क्या है बॉलवर्म और बीटी
बॉलवर्म ऐसा कीड़ा है, जो कपास के फूलों को चूस जाता है। इससे बचने के लिए 5-6 साल पहले बीटी कपास का इस्तेमाल शुरू हुआ। बीटी कपास खुद ही कीटनाशक पैदा कर लेता है, जिसकी वजह से बॉलवर्म और दूसरे कीड़े नहीं लगते।
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक चित्रनायक कहते हैं, 'तीन-चार साल पहले तक महज 3-4 फीसदी बीटी कपास में बॉलवर्म लगते थे। लेकिन अब बॉलवर्म की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गयी है और इसके हमले हर साल बढ़ते जा रहे हैं।'
फसल पर कितना असर
बीटी कपास के रकबे में पिछले वित्त वर्ष के दौरान इजाफा तो हुआ, लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक कीड़ों के हमलों की वजह से उत्पादकता में 34 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई।
2007-08 के दौरान 75 लाख हेक्टेयर पर बीटी कपास उगाया गया था। पिछले वित्त वर्ष में बीटी कपास का रकबा पहले की तरह रहा, लेकिन उत्पादकता 560 किलोग्राम से घटकर 526 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह गई।
कवच में छेद
हर साल बढ़ रहे है बीटी कॉटन में बॉलवर्म इस साल 10 से 12 फीसदी फूलों पर हमला मॉनसेंटो का दावा, बाजार में उतारी नई किस्म करेगी इस कीड़े को बेअसर (बीएस हिन्दी)
ढोल नगाड़े के साथ बाजार में उतारे गए जीन संवर्द्धित बीटी कपास की हवा भी निकलती जा रही है।
कपास की आम किस्मों की तरह बीटी कपास भी अब बॉलवर्म यानी कपास के कीड़े का शिकार हो रहा है। इसे बॉलवर्म से मुक्त कहकर बाजार में पेश किया गया था, लेकिन मुंबई के माटुंगा में केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल बीटी कपास के 10 से 11.5 फीसदी फूल बॉलवर्म चट कर गए।
इसे देखकर परेशान विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि बॉलवर्म इसी रफ्तार से बढ़े तो जल्द ही बीटी कपास की 20 से 30 फीसदी फसल इसकी चपेट में आ जाएगी। ऐसे में उसमें और सामान्य कपास में फर्क नहीं रह जाएगा।
लेकिन बीटी कपास के बीज मुहैया कराने वाली बड़ी कंपनी मॉनसेंटो इंडिया के उप प्रबंध निदेशक क्रिस्टोफर सैमुअल ने मुंबई से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'इस साल कपास की बीटी-1 किस्म का ज्यादा इस्तेमाल हुआ और अब भारतीय बाजार में बीटी-2 कपास उतार दिया गया है, जो बॉलवर्म से बचाव में ज्यादा कारगर है।'
वह कहते हैं कि बॉलवर्म काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है और जरूरी नहीं कि अगले साल भी यह कीड़ा फसल पर ज्यादा हमला करे। मॉनसेंटो का दावा कुछ भी हो, लेकिन बीटी कपास में बॉलवर्म बढ़ने लगे हैं। इस साल राजस्थान और हरियाणा में कपास की 11 फीसदी फसल इस कीटे की चपेट में थी, दक्षिण के राज्यों में यह आंकड़ा 10 फीसदी था।
क्या है बॉलवर्म और बीटी
बॉलवर्म ऐसा कीड़ा है, जो कपास के फूलों को चूस जाता है। इससे बचने के लिए 5-6 साल पहले बीटी कपास का इस्तेमाल शुरू हुआ। बीटी कपास खुद ही कीटनाशक पैदा कर लेता है, जिसकी वजह से बॉलवर्म और दूसरे कीड़े नहीं लगते।
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक चित्रनायक कहते हैं, 'तीन-चार साल पहले तक महज 3-4 फीसदी बीटी कपास में बॉलवर्म लगते थे। लेकिन अब बॉलवर्म की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गयी है और इसके हमले हर साल बढ़ते जा रहे हैं।'
फसल पर कितना असर
बीटी कपास के रकबे में पिछले वित्त वर्ष के दौरान इजाफा तो हुआ, लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक कीड़ों के हमलों की वजह से उत्पादकता में 34 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई।
2007-08 के दौरान 75 लाख हेक्टेयर पर बीटी कपास उगाया गया था। पिछले वित्त वर्ष में बीटी कपास का रकबा पहले की तरह रहा, लेकिन उत्पादकता 560 किलोग्राम से घटकर 526 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह गई।
कवच में छेद
हर साल बढ़ रहे है बीटी कॉटन में बॉलवर्म इस साल 10 से 12 फीसदी फूलों पर हमला मॉनसेंटो का दावा, बाजार में उतारी नई किस्म करेगी इस कीड़े को बेअसर (बीएस हिन्दी)
सरसों उगाने का सुनहरा मौका
नई दिल्ली August 26, 2009
बरसात के अभाव में धान की खेती से चूक गए किसान पिछले 10-15 दिनों में हुई बारिश का लाभ उठाते हुए अपने खेतों में सरसों की बुआई कर सकते हैं।
इस खेती से उन्हें सरसों के साथ-साथ गेहूं बोने का भी मौका मिल जाएगा। दिसंबर तक तैयार होने वाली सरसों की फसल से उन्हें कीमत भी अच्छी मिलेगी। क्योंकि खरीफ में इस साल तिलहन की बुआई में पिछले साल के मुकाबले 7 फीसदी की गिरावट है।
हरियाणा एवं पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में किसानों में सरसों की बुआई भी शुरू कर दी है। सरसों मुख्य रूप से रबी की फसल होती है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, एवं दिल्ली के आसपास के इलाकों में बारिश की कमी से किसानों ने धान की रोपाई ही नहीं की। या फिर पानी पटाने का आर्थिक भार नहीं सहने के कारण 40 फीसदी तक धान की खेती को नष्ट कर दिया।
पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई देश भर में 18 फीसदी से अधिक कम हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों के मुताबिक ये किसान हाल-फिलहाल हुई बारिश से बनी नमी का फायदा उठाते हुए सरसों की बुआई कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अलग किस्म के सरसों बीज तैयार किए हैं, जिनकी फसल महज 110 दिनों में पक जाती हैं। इन्हें पूसा अग्रणी, पूसा जेके-6 एवं पूसा महक के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती आसानी से खरीफ के मौसम में की जा सकती है। सिर्फ बालूयुक्त मिट्टी में इसकी खेती इस मौसम में नहीं हो सकती।
आईसीएआर के अधिकारी डॉ. जेपीएस डबास के मुताबिक सरसों की इस खेती के लिए दिसंबर मध्य तक सिर्फ दो बार पानी की जरूरत होगी। और 15 दिसंबर तक यह फसल पक जाएगी। ऐसे में किसान 15 जनवरी तक गेहूं की बुआई भी कर सकते हैं।
गेहूं की दो किस्मों की बीज पूसा डब्ल्यू आर 544 एवं पूसा गोल्ड की बुआई 15 जनवरी तक आसानी से की जा सकती है। इस प्रकार से सरसों की खेती करने वाले किसान आसानी से धान के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। किसानों के लिए राहत की बात यह है कि सरसों की बुआई में उनकी लागत प्रति एकड़ 100-150 रुपये तक आएगी और उपज प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल होगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को सिर्फ संतुलित मात्रा में खाद डालने की जरूरत होगी। सल्फर एवं पोटाश खेतों को सूख से लड़ने की क्षमता देने के साथ सरसों में तेल की मात्रा को भी बढ़ाते है। इस साल 20 अगस्त तक कुल 152.47 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई की गयी है।
जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 164।17 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई हुई थी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में इस मौसम में सरसों उगाने वाले किसानों को कीमत भी अच्छी मिल जाएगी। (बीएस हिन्दी)
बरसात के अभाव में धान की खेती से चूक गए किसान पिछले 10-15 दिनों में हुई बारिश का लाभ उठाते हुए अपने खेतों में सरसों की बुआई कर सकते हैं।
इस खेती से उन्हें सरसों के साथ-साथ गेहूं बोने का भी मौका मिल जाएगा। दिसंबर तक तैयार होने वाली सरसों की फसल से उन्हें कीमत भी अच्छी मिलेगी। क्योंकि खरीफ में इस साल तिलहन की बुआई में पिछले साल के मुकाबले 7 फीसदी की गिरावट है।
हरियाणा एवं पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में किसानों में सरसों की बुआई भी शुरू कर दी है। सरसों मुख्य रूप से रबी की फसल होती है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, एवं दिल्ली के आसपास के इलाकों में बारिश की कमी से किसानों ने धान की रोपाई ही नहीं की। या फिर पानी पटाने का आर्थिक भार नहीं सहने के कारण 40 फीसदी तक धान की खेती को नष्ट कर दिया।
पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई देश भर में 18 फीसदी से अधिक कम हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों के मुताबिक ये किसान हाल-फिलहाल हुई बारिश से बनी नमी का फायदा उठाते हुए सरसों की बुआई कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अलग किस्म के सरसों बीज तैयार किए हैं, जिनकी फसल महज 110 दिनों में पक जाती हैं। इन्हें पूसा अग्रणी, पूसा जेके-6 एवं पूसा महक के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती आसानी से खरीफ के मौसम में की जा सकती है। सिर्फ बालूयुक्त मिट्टी में इसकी खेती इस मौसम में नहीं हो सकती।
आईसीएआर के अधिकारी डॉ. जेपीएस डबास के मुताबिक सरसों की इस खेती के लिए दिसंबर मध्य तक सिर्फ दो बार पानी की जरूरत होगी। और 15 दिसंबर तक यह फसल पक जाएगी। ऐसे में किसान 15 जनवरी तक गेहूं की बुआई भी कर सकते हैं।
गेहूं की दो किस्मों की बीज पूसा डब्ल्यू आर 544 एवं पूसा गोल्ड की बुआई 15 जनवरी तक आसानी से की जा सकती है। इस प्रकार से सरसों की खेती करने वाले किसान आसानी से धान के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। किसानों के लिए राहत की बात यह है कि सरसों की बुआई में उनकी लागत प्रति एकड़ 100-150 रुपये तक आएगी और उपज प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल होगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को सिर्फ संतुलित मात्रा में खाद डालने की जरूरत होगी। सल्फर एवं पोटाश खेतों को सूख से लड़ने की क्षमता देने के साथ सरसों में तेल की मात्रा को भी बढ़ाते है। इस साल 20 अगस्त तक कुल 152.47 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई की गयी है।
जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 164।17 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई हुई थी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में इस मौसम में सरसों उगाने वाले किसानों को कीमत भी अच्छी मिल जाएगी। (बीएस हिन्दी)
स्टॉक लिमिट तय होने से महंगे होंगे चीनी के प्रॉडक्ट्स
नई दिल्ली : केंद्र सरकार के चीनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने वाली इकाइयों के लिए स्टॉक लिमिट तय करने के फैसले का असर बिस्कुट और मिठाई बनाने वाली इकाइयों पर पड़ना तय है। कारोबारी बता रहे हैं कि स्टॉक लिमिट तय करने से उन्हें लेबर, ट्रांसपोर्टेशन वगैरह पर पहले से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। कारोबारियों के मुताबिक चीनी पर स्टॉक लिमिट लगाने की वजह से लागत में 5-7 फीसदी का असर पड़ेगा। इस वजह से बिस्कुट और दूसरे उत्पादों की कीमतों में आने वाले वक्त में और इजाफा हो सकता है। दिल्ली हलवाई एंड बेकर्स, रेस्टोरेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट ईश्वर दयाल के मुताबिक, 'निश्चित तौर पर सरकार के फैसले का कारोबार पर फर्क पड़ेगा।
पहले जो निर्माता एक या दो महीने के लिए चीनी का भंडार एक बार में कर लेते थे, अब उन्हें इसे महीने में दो या तीन बार मंगाना पड़ेगा।' उन्होंने अनुमान जताया कि इस वजह से लागत में 5-7 फीसदी का उछाल आएगा। चीनी की कीमतें पिछले साल के 1,700-1,800 रुपए के स्तर से आज 3,200 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई हैं और आने वाले वक्त में इनके ऊपर जाने की ही आशंका है। दयाल ने कहा कि ऐसे में स्टॉक लिमिट लगने से उत्पादों की कीमतों को बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। केंद्र सरकार ने चीनी की जमाखोरी पर चिंता जताते हुए महीने में इसकी 10 क्विंटल से ज्यादा खपत करने वाली इकाइयों पर केवल 15 दिन का स्टॉक रखने की लिमिट लगा दी है। बिस्कुट बनाने वाली मेघराज इंडस्ट्रीज के सतीश वर्मा के मुताबिक, 'हमारे पास ज्यादा दिनों का स्टॉक करने की क्षमता नहीं होती है। साथ ही इससे हमारी लागत में इजाफा होगा, जिससे हमें उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।' अनुमान के मुताबिक दिल्ली में महीने में एक टन से ऊपर चीनी का इस्तेमाल करने वाले हलवाइयों और बिस्कुट बनाने वालों की संख्या 100 भी ज्यादा होगी। लक्ष्मी बिस्किट्स के मालिक सुरिंदर गाबा कहते हैं, 'असली असर सूखे का पड़ रहा है। इस वजह से नए सीजन में भी चीनी के कम उत्पादन की आशंका है। इसका पूरा असर कारोबार पर अभी से दिखाई पड़ने लगा है।' चीनी से जुड़े उत्पाद बनाने वाली इकाइयों पर स्टॉक लिमिट लगाने से पहले सरकार ने चीनी के थोक और फुटकर कारोबारियों पर यह लिमिट लगाई थी। सरकार ने थोक कारोबारियों पर 2,000 क्विंटल और फुटकर टेडर्स पर 200 क्विंटल की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है। (इत हिन्दी)
पहले जो निर्माता एक या दो महीने के लिए चीनी का भंडार एक बार में कर लेते थे, अब उन्हें इसे महीने में दो या तीन बार मंगाना पड़ेगा।' उन्होंने अनुमान जताया कि इस वजह से लागत में 5-7 फीसदी का उछाल आएगा। चीनी की कीमतें पिछले साल के 1,700-1,800 रुपए के स्तर से आज 3,200 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई हैं और आने वाले वक्त में इनके ऊपर जाने की ही आशंका है। दयाल ने कहा कि ऐसे में स्टॉक लिमिट लगने से उत्पादों की कीमतों को बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। केंद्र सरकार ने चीनी की जमाखोरी पर चिंता जताते हुए महीने में इसकी 10 क्विंटल से ज्यादा खपत करने वाली इकाइयों पर केवल 15 दिन का स्टॉक रखने की लिमिट लगा दी है। बिस्कुट बनाने वाली मेघराज इंडस्ट्रीज के सतीश वर्मा के मुताबिक, 'हमारे पास ज्यादा दिनों का स्टॉक करने की क्षमता नहीं होती है। साथ ही इससे हमारी लागत में इजाफा होगा, जिससे हमें उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।' अनुमान के मुताबिक दिल्ली में महीने में एक टन से ऊपर चीनी का इस्तेमाल करने वाले हलवाइयों और बिस्कुट बनाने वालों की संख्या 100 भी ज्यादा होगी। लक्ष्मी बिस्किट्स के मालिक सुरिंदर गाबा कहते हैं, 'असली असर सूखे का पड़ रहा है। इस वजह से नए सीजन में भी चीनी के कम उत्पादन की आशंका है। इसका पूरा असर कारोबार पर अभी से दिखाई पड़ने लगा है।' चीनी से जुड़े उत्पाद बनाने वाली इकाइयों पर स्टॉक लिमिट लगाने से पहले सरकार ने चीनी के थोक और फुटकर कारोबारियों पर यह लिमिट लगाई थी। सरकार ने थोक कारोबारियों पर 2,000 क्विंटल और फुटकर टेडर्स पर 200 क्विंटल की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है। (इत हिन्दी)
पाबंदी में ढील के बाद भी गेहूं उत्पादों का निर्यात सुस्त
नई दिल्ली : निर्यात पर लगी पाबंदी पर ढील दिए लगभग दो महीने हो गए, लेकिन भारत को अपने गेहूं उत्पादों का कोई विदेशी खरीदार ही नहीं मिल रहा है। अब मिलरों को डर है कि वे इस साल गेहूं उत्पादों की 6।5 लाख टन मात्रा का निर्यात नहीं कर पाएंगे जिसकी इजाजत केंद्र सरकार ने मार्च तक करने की छूट दे रखी हैं। निर्यात की इस मात्रा पर किसी तरह की सब्सिडी नहीं दी जाएगी। असल में पाबंदी पर राहत मिलने से पहले गेहूं उत्पादों के निर्यात पर दो साल तक रोक लगी हुई थी और इन दो सालों में भारतीय गेहूं उत्पादों के पारंपरिक विदेशी खरीदारों ने दूसरों का हाथ पकड़ लिया। मिलरों का कहना है कि उन देशों ने नया बाजार ढूंढ लिया है ताकि उन्हें बिना किसी बाधा के गेहूं उत्पाद मिल सकें। मिलरों की चिंता केवल इतनी ही नहीं है।
उनका कहना है कि देश में सूखे जैसे हालात हैं और कृषि उत्पादों का उत्पादन इस साल काफी कम रह सकता है, ऐसे में निर्यात को लेकर सरकारी नीति और भी ज्यादा अनिश्चितताओं से घिर गई है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट एम के दत्ताराज कहते हैं, 'पाबंदी के दौरान हमने अपने ग्राहकों को खो दिया है अब हम अपने गेहूं उत्पादों का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि हम अपने पुराने बाजार में फिर से घुसने की रणनीति अपना रहे हैं। हो सकता है कि हम निर्यात करने में सफल हो पाएं।' दो साल पहले भारत ने गेहूं उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस साल जून में सरकार ने 6।5 लाख टन उत्पादों को निर्यात करने की छूट दे दी। पाबंदी से पहले भारत मुख्य तौर पर चक्की आटा का निर्यात करता था। खरीदारों में शारजाह, दुबई और पश्चिम एशिया के कुछ दूसरे देश शामिल थे। इसके अलावा, दत्ताराज का यह भी कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन इस तरह की कमी भारत में नहीं देखी जा रही है और किसी प्रकार की सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। इसके कारण भारत मिलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीछे होते चले जा रहे हैं। (इत हिन्दी)
उनका कहना है कि देश में सूखे जैसे हालात हैं और कृषि उत्पादों का उत्पादन इस साल काफी कम रह सकता है, ऐसे में निर्यात को लेकर सरकारी नीति और भी ज्यादा अनिश्चितताओं से घिर गई है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट एम के दत्ताराज कहते हैं, 'पाबंदी के दौरान हमने अपने ग्राहकों को खो दिया है अब हम अपने गेहूं उत्पादों का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि हम अपने पुराने बाजार में फिर से घुसने की रणनीति अपना रहे हैं। हो सकता है कि हम निर्यात करने में सफल हो पाएं।' दो साल पहले भारत ने गेहूं उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस साल जून में सरकार ने 6।5 लाख टन उत्पादों को निर्यात करने की छूट दे दी। पाबंदी से पहले भारत मुख्य तौर पर चक्की आटा का निर्यात करता था। खरीदारों में शारजाह, दुबई और पश्चिम एशिया के कुछ दूसरे देश शामिल थे। इसके अलावा, दत्ताराज का यह भी कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन इस तरह की कमी भारत में नहीं देखी जा रही है और किसी प्रकार की सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। इसके कारण भारत मिलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीछे होते चले जा रहे हैं। (इत हिन्दी)
चावल चला चीनी की चाल; उपज कम...अब बढ़ेंगे दाम
नई दिल्ली : कृषि मंत्रालय के खरीफ फसलों की बुआई के जारी किए गए हालिया आंकड़ों के मुताबिक धान के बुआई क्षेत्रफल में करीब 69 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। मंत्रालय के 20 अगस्त तक फसलों की बुआई के बारे में जारी आंकड़ों से इस बार देश में चावल उत्पादन में खासी गिरावट आती दिख रही है। इसके अलावा जानकार बता रहे हैं कि इस खरीफ सीजन में धान की यील्ड (प्रति हेक्टेयर उपज) में करीब 15 फीसदी तक की गिरावट आएगी। इन सबके कारण यह आशंका जताई जा रही है कि देश की कुल धान उपज में पिछले साल के मुकाबले करीब 25 फीसदी की कमी आ सकती है, जिससे आने वाले दिनों में चावल की कीमतों में उछाल आने की आशंका बन गई है।
कृषि मंत्रालय के हाल में जारी आंकड़ों के मुताबिक 20 अगस्त तक देश भर में धान की बुआई कुल 272।83 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई है। साल 2008-09 में इसी अवधि तक धान की बुआई 341.44 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई थी। इस लिहाज से इस बार धान का बुआई रकबा 68.61 लाख हेक्टेयर कम है। साल 2008-09 के खरीफ सीजन में धान की यील्ड 2.8 टन प्रति हेक्टेयर रही थी। इस साल हल्के रहे मानसून की वजह से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार समेत धान की उपज वाले राज्यों में इसकी बुआई में खासी कमी आई है। कार्वी कॉमट्रेड के सीनियर एनालिस्ट चौड़ा रेड्डी के मुताबिक, 'शुरुआती मानसून के खराब रहने की वजह से धान की बुआई में कमी आई। इसके अलावा धान पैदा करने वाले प्रमुख राज्यों में बारिश सामान्य से अभी भी कम ही है। इस वजह से धान की यील्ड में 10 से 15 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।' साल 2008-09 में अच्छी यील्ड की वजह से खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 8.45 करोड़ टन रहा था। केवल बुआई रकबा घटने से ही धान के उत्पादन में कमी आएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर इस बार अगर पिछले साल की यील्ड बनी भी रहे तो भी धान का उत्पादन 7.2 करोड़ टन से ऊपर होना मुश्किल ही है। अगर इसमें यील्ड की वजह से होने वाली गिरावट को जोड़ा जाए तो इस बार खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 6.2 करोड़ टन के करीब ही रहेगा। दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओम प्रकाश जैन के मुताबिक, 'कम उत्पादन का असर सीधे तौर पर कीमतों पर पड़ेगा। सरकार के पास भले ही अभी एक साल के लिए स्टॉक हो लेकिन अगले साल के लिए भी तो उसे बफर स्टॉक रखना होगा। ऐसे में कीमतों पर ऊपर जाने से रोकना मुमकिन नहीं होगा।' राजधानी ग्रुप के प्रबंध निदेशक एस के जैन के मुताबिक, 'कम बुआई हुई है तो बाजार में कम माल आएगा। मांग में तेजी बदस्तूर बनी हुई है, ऐसे में कीमतों का बढ़ना तय है।' चंद्रशेखर आजाद कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर में कृषि अर्थशास्त्र और सांख्यिकीय के विभागाध्यक्ष डॉ आर के सिंह के मुताबिक, 'उत्तर प्रदेश में धान की यील्ड गिरकर एक टन प्रति हेक्टेयर के स्तर पर आ सकती है। दरअसल इस बार धान की पौध तैयार होने की प्रक्रिया बारिश की कमी से पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। हालांकि पिछले कुछ दिनों की बारिश से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है लेकिन तब भी यहां धान के उत्पादन में 40 फीसदी की कमी आती दिख रही है।' उत्तर प्रदेश के मुकाबले पंजाब में स्थिति कुछ बेहतर है। यहां किसानों ने मानसून में देरी को देखते हुए बाद में बोई जाने वाली बासमती चावल की पैदावार पर जोर दिया है। पंजाब में पिछले साल धान की बुआई 27.30 लाख हेक्टेयर पर हुई थी, जबकि इस बार यहां धान 27.15 लाख हेक्टेयर पर बोया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ पी एस मिन्हास के मुताबिक, 'यील्ड में कुछ हद तक कमी तो रहेगी ही क्योंकि जितनी बारिश की जरूरत थी उतनी नहीं हो सकी है। इसके अलावा किसानों के बासमती की ओर झुकाव बढ़ाने से भी उत्पादन कम होगा क्योंकि आम चावल के मुकाबले बासमती की यील्ड कम होती है।' पंजाब में आम धान की यील्ड करीब 6.2 टन प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि बासमती की यील्ड करीब 4.5 टन प्रति हेक्टेयर रहती है। (इत हिन्दी)
कृषि मंत्रालय के हाल में जारी आंकड़ों के मुताबिक 20 अगस्त तक देश भर में धान की बुआई कुल 272।83 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई है। साल 2008-09 में इसी अवधि तक धान की बुआई 341.44 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई थी। इस लिहाज से इस बार धान का बुआई रकबा 68.61 लाख हेक्टेयर कम है। साल 2008-09 के खरीफ सीजन में धान की यील्ड 2.8 टन प्रति हेक्टेयर रही थी। इस साल हल्के रहे मानसून की वजह से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार समेत धान की उपज वाले राज्यों में इसकी बुआई में खासी कमी आई है। कार्वी कॉमट्रेड के सीनियर एनालिस्ट चौड़ा रेड्डी के मुताबिक, 'शुरुआती मानसून के खराब रहने की वजह से धान की बुआई में कमी आई। इसके अलावा धान पैदा करने वाले प्रमुख राज्यों में बारिश सामान्य से अभी भी कम ही है। इस वजह से धान की यील्ड में 10 से 15 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।' साल 2008-09 में अच्छी यील्ड की वजह से खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 8.45 करोड़ टन रहा था। केवल बुआई रकबा घटने से ही धान के उत्पादन में कमी आएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर इस बार अगर पिछले साल की यील्ड बनी भी रहे तो भी धान का उत्पादन 7.2 करोड़ टन से ऊपर होना मुश्किल ही है। अगर इसमें यील्ड की वजह से होने वाली गिरावट को जोड़ा जाए तो इस बार खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 6.2 करोड़ टन के करीब ही रहेगा। दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओम प्रकाश जैन के मुताबिक, 'कम उत्पादन का असर सीधे तौर पर कीमतों पर पड़ेगा। सरकार के पास भले ही अभी एक साल के लिए स्टॉक हो लेकिन अगले साल के लिए भी तो उसे बफर स्टॉक रखना होगा। ऐसे में कीमतों पर ऊपर जाने से रोकना मुमकिन नहीं होगा।' राजधानी ग्रुप के प्रबंध निदेशक एस के जैन के मुताबिक, 'कम बुआई हुई है तो बाजार में कम माल आएगा। मांग में तेजी बदस्तूर बनी हुई है, ऐसे में कीमतों का बढ़ना तय है।' चंद्रशेखर आजाद कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर में कृषि अर्थशास्त्र और सांख्यिकीय के विभागाध्यक्ष डॉ आर के सिंह के मुताबिक, 'उत्तर प्रदेश में धान की यील्ड गिरकर एक टन प्रति हेक्टेयर के स्तर पर आ सकती है। दरअसल इस बार धान की पौध तैयार होने की प्रक्रिया बारिश की कमी से पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। हालांकि पिछले कुछ दिनों की बारिश से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है लेकिन तब भी यहां धान के उत्पादन में 40 फीसदी की कमी आती दिख रही है।' उत्तर प्रदेश के मुकाबले पंजाब में स्थिति कुछ बेहतर है। यहां किसानों ने मानसून में देरी को देखते हुए बाद में बोई जाने वाली बासमती चावल की पैदावार पर जोर दिया है। पंजाब में पिछले साल धान की बुआई 27.30 लाख हेक्टेयर पर हुई थी, जबकि इस बार यहां धान 27.15 लाख हेक्टेयर पर बोया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ पी एस मिन्हास के मुताबिक, 'यील्ड में कुछ हद तक कमी तो रहेगी ही क्योंकि जितनी बारिश की जरूरत थी उतनी नहीं हो सकी है। इसके अलावा किसानों के बासमती की ओर झुकाव बढ़ाने से भी उत्पादन कम होगा क्योंकि आम चावल के मुकाबले बासमती की यील्ड कम होती है।' पंजाब में आम धान की यील्ड करीब 6.2 टन प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि बासमती की यील्ड करीब 4.5 टन प्रति हेक्टेयर रहती है। (इत हिन्दी)
26 अगस्त 2009
सोया खली के निर्यात में तेजी के आसार
नई फसल की आवक से सोयाबीन की उपलब्धता बढ़ने और विदेशों से बढ़ती मांग को देखते हुए सोया खली का निर्यात बढ़ने की संभावना है। सोया प्रोसेसिंग करने वाली कंपनियों के पास अभी से निर्यात मांग आने लगी है। बारिश की कमी को देखते हुए पिछले कुछ महीनों में सोयाबीन की सप्लाई में कमी हो गई थी, जिसे देखते हुए सोयाबीन की क्रशिंग कम हो रही थी। इस स्थिति को देखते हुए विदेशों से सोया खल की मांग भी कम हुई। नये सीजन में अच्छे उत्पादन को देखते हुए मांग में बढ़ोतरी हो रही है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बताया कि सोयाबीन के नये सीजन को देखते हुए भारत से सोया खल की मांग बढ़ने लगी है। आने वाले अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट के लिए अभी तक करीब फ्।म्क् लाख टन सौदे हो चुके हैं। जिसके आगे और बढ़ने की संभावना है। यह मांग भारत से सोया खल के परंपरागत खरीदार खाड़ी देशों और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की ओर से आ रही है। भारत अपना ज्यादा निर्यात ईरान, ओमान, इंडोनेशिया, थाइलैंड, सिंगापुर और वियतनाम को करता है। मिस्र की ओर से भी आयात मांग बढ़ रही है। इस साल जुलाई माह में सोया खल के निर्यात में भारी गिरावट आई है। देश से जुलाई में सोया खली का निर्यात म्8,क्भ्क् टन हुआ है, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 8क् फीसदी कम है। जुलाई फ्क्क्8 में देश से सोया खली का निर्यात फ्,8भ्,99क् टन हुआ था। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-जुलाई में देश से सोया खली का निर्यात ब्,ब्ख्,9फ्ब् टन हुआ है, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले त्तस्त्र फीसदी कम है। मांग में बढ़ोतरी का असर है कि पिछले एक महीनें में सोया खली के दामों में तेजी का रुख बन गया है। इस महीनें की शुरुआत में सोया खली के घरलू दाम फ्क्,ब्क्क् रुपये प्रति टन थे, जो इस समय फ्ख्,त्तक्क् रुपये प्रति टन तक पहुंच गये हैं। इसी अवधि में इसका निर्यात मूल्य भ्क्क् डॉलर से बढ़कर भ्ब्म् डॉलर प्रति टन हो गया है। दूसरी ओर इस साल देश में सोयाबीन के बुआई क्षेत्रफल में भी बढ़ोतरी हुई है। इस साल देश में कुल 9फ्.त्तत्त लाख हैक्टेयर में इसकी बुआई हुई है, जबकि पिछले साल 9ख्.ब्8 लाख हैक्टेयर में बुआई हुई थी। (बिज़नस भास्कर)
'कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की उम्मीद नहीं'
नई दिल्ली August 25, 2009
तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के उत्पादन को मौजूदा स्तर पर रखने की हालत में इस साल तेल कीमतों में कुछ खास तेजी आने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है।
दिसंबर 2008 के बाद से कच्चे तेल की कीमतें दोगुनी होकर 70 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुकी है। बीपी पीएलसी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस्टोफर रूहेल का कहना है कि तेल की मांग में 2010 में अगर बढ़ोतरी हुई तो भी कीमतें मौजूदा स्तर पर या इससे कुछ अधिक रह सकती हैं।
हालांकि, प्राकृतिक गैस की कीमत में गिरावट आ सकती है। इस बाबत बकौल रूहेल कहते हैं, 'आपूर्ति बेहतर होने और मांग में कमी आने से प्राकृतिक गैस की कीमत निचले स्तर पर रह सकती हैं।' वैश्विक ऊर्जा की बीपी सांख्यिकी समीक्षा के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों के लिहाज से वर्ष 2008 काफी अनिश्चितताओं भरा रहा है। बकौल रूहेल, इसी साल तेल की कीमतों में तेजी लगातार सातवें साल भी जारी रही।
वर्ष 2008 में वैश्विक तेल की खपत में 1982 के बाद सबसे ज्यादा यानी 0.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसमें अमेरिका में इसकी खपत में प्रति दिन 13 लाख बैरल की कमी आई जो 1980 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। एश्यिा में मंदी के प्रकोप के साथ ही गैर- ओईसीडी खपत में भी गिरावट देखी गई।
समीक्षा में कहा गया है कि तेजी से विकास के बाद भी गैर-ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं का विश्व के सकल घरेलू उत्पादन में योगदान मात्र 25 फीसदी है। दिलचस्प बात है कि विश्व की कुल आबादी इनकी हिस्सेदारी 82 फीसदी है। गैर-ओईसीडी देशों की प्रति व्यक्ति आय ओईसीडी देशों की 32,000 डॉलर के मुकाबले मात्र 2,300 डॉलर है।
गैर-ओईसीडी देशों में क्षमता के अभाव के कारण सकल घरल उत्पाद के एक इकाई के उत्पादन में ज्यादा ओईसीडी की अपेक्षा ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। (बीएस हिन्दी)
तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के उत्पादन को मौजूदा स्तर पर रखने की हालत में इस साल तेल कीमतों में कुछ खास तेजी आने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है।
दिसंबर 2008 के बाद से कच्चे तेल की कीमतें दोगुनी होकर 70 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुकी है। बीपी पीएलसी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस्टोफर रूहेल का कहना है कि तेल की मांग में 2010 में अगर बढ़ोतरी हुई तो भी कीमतें मौजूदा स्तर पर या इससे कुछ अधिक रह सकती हैं।
हालांकि, प्राकृतिक गैस की कीमत में गिरावट आ सकती है। इस बाबत बकौल रूहेल कहते हैं, 'आपूर्ति बेहतर होने और मांग में कमी आने से प्राकृतिक गैस की कीमत निचले स्तर पर रह सकती हैं।' वैश्विक ऊर्जा की बीपी सांख्यिकी समीक्षा के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों के लिहाज से वर्ष 2008 काफी अनिश्चितताओं भरा रहा है। बकौल रूहेल, इसी साल तेल की कीमतों में तेजी लगातार सातवें साल भी जारी रही।
वर्ष 2008 में वैश्विक तेल की खपत में 1982 के बाद सबसे ज्यादा यानी 0.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसमें अमेरिका में इसकी खपत में प्रति दिन 13 लाख बैरल की कमी आई जो 1980 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। एश्यिा में मंदी के प्रकोप के साथ ही गैर- ओईसीडी खपत में भी गिरावट देखी गई।
समीक्षा में कहा गया है कि तेजी से विकास के बाद भी गैर-ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं का विश्व के सकल घरेलू उत्पादन में योगदान मात्र 25 फीसदी है। दिलचस्प बात है कि विश्व की कुल आबादी इनकी हिस्सेदारी 82 फीसदी है। गैर-ओईसीडी देशों की प्रति व्यक्ति आय ओईसीडी देशों की 32,000 डॉलर के मुकाबले मात्र 2,300 डॉलर है।
गैर-ओईसीडी देशों में क्षमता के अभाव के कारण सकल घरल उत्पाद के एक इकाई के उत्पादन में ज्यादा ओईसीडी की अपेक्षा ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। (बीएस हिन्दी)
बारिश के साथ ही बढ़ा बुआई का क्षेत्रफल
नई दिल्ली August 25, 2009
धान के रकबे में गत 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच 7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
31 जुलाई तक पिछले साल के मुकाबले धान के रकबे में 25.5 फीसदी की कमी थी जो घटकर 18.8 फीसदी रह गई है। दलहन, मक्का, कपास के रकबे में भी बढ़ोतरी आई है।
धान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बिहार, छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच सामान्य के आसपास बारिश होने के कारण धान के रकबे में इजाफा हुआ है।
जुलाई आखिर तक देश भर में 191.30 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की गई थी जो 13 अगस्त तक बढ़कर 247.39 लाख हेक्टेयर हो गई। पिछले साल की समान अवधि के दौरान 304.49 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की गई थी।
मक्का
13 अगस्त तक मक्के की बुआई 67.55 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी है जो कि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 2.6 फीसदी अधिक है। पिछले साल इस अवधि तक 65.87 लाख हेक्टेयर जमीन पर मक्के की बुआई की गई थी।
हालांकि ज्वार के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 0.1 फीसदी की गिरावट है जबकि बाजरा का रकबा इस साल अब तक 3.9 फीसदी की बढ़ोतरी दिखा रहा है।
दलहन
दाल की कीमतों में खासकर अरहर दाल में भारी उछाल के कारण इस साल दलहन के रकबे में 13 अगस्त तक पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 7.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
अरहर के रकबे में 11.6 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। अब तक अरहर, उड़द, मूंग एवं अन्य दलहन की बुआई 88.24 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी है जबकि पिछले साल 82.25 लाख हेक्टेयर पर इनकी बुआई हुई थी।
तिलहन
तिलहन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच 5 फीसदी की गिरावट आयी है।
31 जुलाई तक तिलहन का रकबा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले सिर्फ 2 फीसदी कम था जो कि 13 अगस्त तक 7 फीसदी कम हो गया। हालांकि सोयाबीन का रकबा पिछले साल के मुकाबले 1.1 फीसदी बढ़ा है लेकिन मूंगफली के रकबे में 23 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है।
कपास एवं गन्ना
कपास का रकबा इस साल 13 फीसदी तक बढ़ा हुआ है और अब तक 93.69 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की बुआई हो चुकी है।
गन्ने के रकबे में गत 31 जुलाई के मुकाबले कोई अंतर नहीं आया है और यह पिछले साल के मुकाबले 2।9 फीसदी कम बताया जा रहा है। (बीएस हिन्दी)
धान के रकबे में गत 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच 7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
31 जुलाई तक पिछले साल के मुकाबले धान के रकबे में 25.5 फीसदी की कमी थी जो घटकर 18.8 फीसदी रह गई है। दलहन, मक्का, कपास के रकबे में भी बढ़ोतरी आई है।
धान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बिहार, छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच सामान्य के आसपास बारिश होने के कारण धान के रकबे में इजाफा हुआ है।
जुलाई आखिर तक देश भर में 191.30 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की गई थी जो 13 अगस्त तक बढ़कर 247.39 लाख हेक्टेयर हो गई। पिछले साल की समान अवधि के दौरान 304.49 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की गई थी।
मक्का
13 अगस्त तक मक्के की बुआई 67.55 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी है जो कि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 2.6 फीसदी अधिक है। पिछले साल इस अवधि तक 65.87 लाख हेक्टेयर जमीन पर मक्के की बुआई की गई थी।
हालांकि ज्वार के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 0.1 फीसदी की गिरावट है जबकि बाजरा का रकबा इस साल अब तक 3.9 फीसदी की बढ़ोतरी दिखा रहा है।
दलहन
दाल की कीमतों में खासकर अरहर दाल में भारी उछाल के कारण इस साल दलहन के रकबे में 13 अगस्त तक पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 7.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
अरहर के रकबे में 11.6 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। अब तक अरहर, उड़द, मूंग एवं अन्य दलहन की बुआई 88.24 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी है जबकि पिछले साल 82.25 लाख हेक्टेयर पर इनकी बुआई हुई थी।
तिलहन
तिलहन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 31 जुलाई से 13 अगस्त के बीच 5 फीसदी की गिरावट आयी है।
31 जुलाई तक तिलहन का रकबा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले सिर्फ 2 फीसदी कम था जो कि 13 अगस्त तक 7 फीसदी कम हो गया। हालांकि सोयाबीन का रकबा पिछले साल के मुकाबले 1.1 फीसदी बढ़ा है लेकिन मूंगफली के रकबे में 23 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है।
कपास एवं गन्ना
कपास का रकबा इस साल 13 फीसदी तक बढ़ा हुआ है और अब तक 93.69 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की बुआई हो चुकी है।
गन्ने के रकबे में गत 31 जुलाई के मुकाबले कोई अंतर नहीं आया है और यह पिछले साल के मुकाबले 2।9 फीसदी कम बताया जा रहा है। (बीएस हिन्दी)
कपास वायदा आज से
मुंबई August 25, 2009
कपास का सीजन नजदीक होने और कपास की कीमतों में भारी उतार चढ़ाव को देखते हुए देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में बुधवार 26 अगस्त से कपास 2010 में वायदा शुरू होने जा रहा है।
एमसीएक्स पर शुरू हो रहे कपास कांट्रैक्ट सालाना है और वी 797 (कल्याणा) किस्म का है। एक्सचेंज में कपास का एक ही अनुबंध में कारोबार किया जाएगा, इसकी मियाद 30 अप्रैल 2010 होगी। एमसीएक्स के चीफ बिजनेस अधिकारी सुमेश पारसराम पुरिया के अनुसार यह कांट्रैक्ट गुजरात के सुरेंद्रनगर आधारित है और इसमें सारे टैक्स अलग हैं।
सुरेंद्रनगर के अलावा गुजरात के कड़ी, विरमगाम, लक्खतर, लिमडी और बावला अतिरिक्त डिलिवरी सेंटर हैं। इसकी कीमतें रुपये प्रति मन (20 किलो) में होंगी। कांट्रैक्ट की लॉट साइज 4 मीट्रिक टन 200 मन निर्धारित की गई है।
कांट्रैक्ट की टिक साइज 10 पैसा है और यह विक्रेता ऑप्शन के कांट्रैक्ट हैं। इसमें आरंभिक मार्जिन 5 फीसदी तय की गई है। कपास 2010 कांट्रैक्ट में दैनिक भाव घटबढ़ की सीमा पहले 3 प्रतिशत होगी उसके बाद कूलिंग समय के पश्चात 1 प्रतिशत की और छूट होगी। यानी दैनिक भाव घटबढ़ की सीमा 4 फीसदी होगी। (बीएस हिन्दी)
कपास का सीजन नजदीक होने और कपास की कीमतों में भारी उतार चढ़ाव को देखते हुए देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में बुधवार 26 अगस्त से कपास 2010 में वायदा शुरू होने जा रहा है।
एमसीएक्स पर शुरू हो रहे कपास कांट्रैक्ट सालाना है और वी 797 (कल्याणा) किस्म का है। एक्सचेंज में कपास का एक ही अनुबंध में कारोबार किया जाएगा, इसकी मियाद 30 अप्रैल 2010 होगी। एमसीएक्स के चीफ बिजनेस अधिकारी सुमेश पारसराम पुरिया के अनुसार यह कांट्रैक्ट गुजरात के सुरेंद्रनगर आधारित है और इसमें सारे टैक्स अलग हैं।
सुरेंद्रनगर के अलावा गुजरात के कड़ी, विरमगाम, लक्खतर, लिमडी और बावला अतिरिक्त डिलिवरी सेंटर हैं। इसकी कीमतें रुपये प्रति मन (20 किलो) में होंगी। कांट्रैक्ट की लॉट साइज 4 मीट्रिक टन 200 मन निर्धारित की गई है।
कांट्रैक्ट की टिक साइज 10 पैसा है और यह विक्रेता ऑप्शन के कांट्रैक्ट हैं। इसमें आरंभिक मार्जिन 5 फीसदी तय की गई है। कपास 2010 कांट्रैक्ट में दैनिक भाव घटबढ़ की सीमा पहले 3 प्रतिशत होगी उसके बाद कूलिंग समय के पश्चात 1 प्रतिशत की और छूट होगी। यानी दैनिक भाव घटबढ़ की सीमा 4 फीसदी होगी। (बीएस हिन्दी)
मानसून की बेरुखी से धान की बुवाई का रकबा 68 लाख घटा
देश के अधिकांश हिस्से में सूखे जैसे हालात बनने से धान की रोपाई में भारी कमी आई है। मानसून की बेरुखी से चालू खरीफ सीजन (2009-10) में धान की रोपाई पिछले साल की तुलना में 68।61 लाख हैक्टेयर में कम हुई है। रोपाई के बाद भी पर्याप्त वर्षा न होने से चावल उत्पादन में 200 लाख टन तक की कमी आने की आशंका है। सरकार ने भी अब मान लिया है कि चावल का उत्पादन 100 लाख टन कम रह सकता है। उत्पादन में कमी का असर घरेलू बाजार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतों पर पड़ना तय है। कृषि मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी ताजा बुवाई आंकड़ों के मुताबिक अभी तक देश में 272.83 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई हो पाई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 341.44 लाख हैक्टेयर से कम है। रोपाई में सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश में 21.82 हैक्टेयर, बिहार में 15.04, झारखंड में 10.18 और आंध्रप्रदेश में 4.54 लाख हैक्टेयर में हुई है। धान के अलावा तिलहन और गन्ने की बुवाई भी क्रमश: 14.16 और 1.29 लाख हैक्टेयर घटी है। तिलहनों की कुल बुवाई पिछले साल के 168.26 लाख टन के मुकाबले घटकर 154.10 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। इसी तरह से गन्ने की बुवाई 43.79 लाख हैक्टेयर के मुकाबले घटकर 42.50 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। गन्ने की पैदावार में कमी के कारण ही इस समय चीनी की कीमतों में भारी तेजी का रुख बना हुआ है। दलहन की बुवाई में तो हल्की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बुवाई के बाद पर्याप्त वर्षा नहीं होने के कारण दालों के प्रति हैक्टेयर उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है। दलहन की बुवाई चालू सीजन में 88.69 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी है जोकि पिछले वर्ष के 82.58 लाख हैक्टेयर के मुकाबले ज्यादा है। मोटे अनाजों ज्वार, बाजरा और मक्का की बुवाई पिछले साल के 182.51 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 177.31 लाख हैक्टेयर में हुई है। कॉटन की बुवाई पिछले साल की समान अवधि के 84.53 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 94.93 लाख हैक्टेयर में हुई है। मानसून की बेरुखी से उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है।सूखा सहने वाले धान का परीक्षणकेंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) का कहना है कि उसके वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सहभागी धान इस साल के सूखे में परीक्षण के दौरान खरा उतरेगा। इस किस्म का धान सूखे को ज्यादा समय तक सहने में सक्षम होगा। सामान्य रूप से धान का पौधा पांच दिन में सूखने लगता है जबकि सहभागी धान बारह दिन तक बिना पानी के बच सकता है।सहभागी धान की किस्म का फिलहाल पूर्वी झारखंड में बड़े क्षेत्र में परीक्षण चल रहा है। केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के निदेशक डॉ. टी. के. आध्या ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सूखे को सहने की क्षमता वाली किस्मों का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। डॉ. आध्या ने बताया कि संस्थान द्वारा तैयार की गई सहभागी धान की किस्म का फिलहाल पूर्वी झारखंड में बड़े क्षेत्र में परीक्षण चल रहा है। अभी तक के परीक्षण में इसके नतीजे आशातीत रहे हैं। सहभागी धान लगातार 12 दिनों तक सूखे का प्रकोप झेलने में सक्षम है। अन्य किस्मों का धान पांच दिन भी बिना पानी के बच नहीं पाता है। सूखे के बावजूद सहभागी धान की पैदावार में कोई फर्क नहीं आता है। इस किस्म की पैदावार लगभग 3.5 से 4 टन प्रति हैक्टेयर रहती है। अगले खरीफ मौसम में किसानों को इस किस्म को उगाने के लिए जारी किया जा सकता है। (बिज़नस भास्कर)
पोर्ट पर चीनी और दालों के भंडारण में काफी सख्ती
केंद्र सरकार ने आयातकों को पोर्ट पर चीनी और दालों का भंडार 30 दिन से ज्यादा नहीं रखने के निर्देश दिए हैं। साथ ही भंडारण की दरों में काफी इजाफा कर दिया है ताकि इन वस्तुओं की जमाखोरी नहीं की जा सके। इस बारे में अधिसूचना बुधवार को जारी किए जाने की संभावना है। जहाजरानी मंत्रालय ने 21 अगस्त के एक आदेश में स्टॉक उठाने की मुक्त अवधि तीन दिन कर दी है, जो पहले 15 दिन थी। अब चार से दस दिन के लिए स्टोरेज की दरें दोगुनी कर दी गई हैं। वहीं 11-20 दिन की भंडारण की दरें तीन गुनी और 21-30 दिन की दरें चार गुनी कर दी गई हैं। एक सरकारी सूत्र के अनुसार आदेश में कहा गया है कि तीन दिनों के बाद कोई भी माल पोर्ट पर नहीं रुकना चाहिए। इसके बाद सरकार स्टॉक की नीलामी करने का कदम उठा सकती है। यह आदेश अगले साल की 31 मार्च या अगली अधिसूचना जारी होने तक लागू रहेगा। एक साल में चीनी की कीमतें 35 रुपए प्रति किग्रा तक हो गई है। तुअर दाल की कीमतें चार माह में 50 फीसदी बढ़कर 90 रुपए प्रति किग्रा हो गई है। अधिकारियों के अनुसार सरकार के इस कदम का मकसद दालों और चीनी की जमाखोरी रोकना है। इस बारे में एक अधिसूचना टैरिफ अथारिटी फॉर मेजर पोट्र्स (टैम्प) से बुधवार को जारी होने की संभावना है। उसी को इस बारे में शुल्क निर्धारित करने के अधिकार हैं। जहाजरानी मंत्रालय ने टैम्प से बढ़ी हुई दरें जारी तत्काल लागू करने के लिए कहा है। माना जा रहा है कि पोर्ट पर बड़ी मात्रा में चीनी और दलहन का भंडार पड़ा है। दलहन आयातकों के एसोसिएशन का कहना है कि 3।73 लाख टन अरहर दाल पोर्ट पर पड़ी है। (बिज़नस भास्कर)
दूसरी तिमाही में सोने की खरीद में 500% का इजाफा
नई दिल्ली : सोने की कीमतें भले ही 15,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर पर बनी हुई हैं लेकिन इस साल की दूसरी तिमाही में देश में सोने की मांग में पहली तिमाही के मुकाबले खासी तेजी देखने को मिली है। साल की पहली तिमाही के मुकाबले दूसरी तिमाही में ज्वैलरी और रीटेल इनवेस्टमेंट समेत सोने की कुल खरीद में 500 फीसदी से ज्यादा का इजाफा देखा गया है। दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान देश के शेयर बाजारों में भी तेजी का दौर रहा है, जबकि ऐतिहासिक रूप से सोने की कीमतें और शेयर बाजार के सूचकांक एक-दूसरे से उलटी दिशा में चलते हैं। इस बारे में जब ईटी बाजार के विश्लेषकों से बातचीत की तो उन्होंने डॉलर में जारी कमजोरी और अमेरिकी शेयर बाजारों में फिर से पैदा हो रही तेजी को इसकी अहम वजह बताया।
एसएमसी ग्लोबल के वाइस प्रेसिडेंट राजेश जैन के मुताबिक, 'सोना इस वक्त इक्विटी बाजार से ज्यादा डॉलर की वैल्यू के लिहाज से चल रहा है। डॉलर में पिछले कुछ वक्त से गिरावट बनी हुई है और इस वजह से लोग करेंसी में निवेश के जोखिम से बचने के लिए सोने में पैसा लगा रहे हैं।' जैन कहते हैं, 'खास बात यह है कि पिछले साल अगस्त से ही घरेलू शेयर बाजार और सोने में समान ट्रेंड बना हुआ है। भारतीय बाजार इस वक्त अमेरिकी शेयर बाजारों की तर्ज पर चल रहे हैं।' 31 मार्च को सेंसेक्स 9,708 अंक पर बंद हुआ था। उसके बाद से अब सेंसेक्स 15,000 के आंकड़े के इर्द-गिर्द बना हुआ है। इस तरह से सेंसेक्स में पिछले तीन-चार माह में करीब 55 फीसदी की तेजी आ चुकी है। इसी दौरान सोने में निवेश के लिए की जाने वाली खरीदारी में भी तेजी दिखी। पहली तिमाही में देश में सोने की निवेश मांग करीब 17।7 टन रही थी, जो कि दूसरी तिमाही में बढ़कर 109 टन हो गई है। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटी हेड अमर सिंह का कहना है कि निवेशकों में सोने की कीमतों के ऊपर जाने पर इसके प्रति आकर्षण पैदा होता है। अमर सिंह के मुताबिक, 'भारत में भी पिछले कुछ वक्त में सोने के सिक्कों और बार में निवेश का ट्रेंड बढ़ा है। डॉलर की कमजोरी घरेलू बाजार में भी सोने की मांग को तय कर रही है। इसके अलावा दूसरी तिमाही में अक्षय तृतीया की वजह से भी मांग बढ़ी है।' सिंह के मुताबिक, 'भारत में चुनाव बाद सरकार के गठन और अमेरिका में बाजारों में निवेशकों के लौटते भरोसे ने शेयर बाजारों और सोने दोनों में निवेश को रफ्तार दी है।' बोनांजा ब्रोकिंग के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट विभुरतन धारा के मुताबिक, 'इस वक्त सोने की मांग और कीमतें ग्लोबल बाजार के हिसाब से चल रही है। कीमतों के ऊंचे बने होने के बावजूद लोग अपनी सरप्लस पूंजी गोल्ड खरीदने में लगा रहे हैं। लेकिन ज्वैलरी के मुकाबले लोग अब बार और सिक्कों को निवेश के लिए तरजीह दे रहे हैं। ज्वैलरी वही खरीद रहे हैं जिन्हें इसकी शादी वगैरह की वजह से जरूरत है।' (इत हिन्दी)
एसएमसी ग्लोबल के वाइस प्रेसिडेंट राजेश जैन के मुताबिक, 'सोना इस वक्त इक्विटी बाजार से ज्यादा डॉलर की वैल्यू के लिहाज से चल रहा है। डॉलर में पिछले कुछ वक्त से गिरावट बनी हुई है और इस वजह से लोग करेंसी में निवेश के जोखिम से बचने के लिए सोने में पैसा लगा रहे हैं।' जैन कहते हैं, 'खास बात यह है कि पिछले साल अगस्त से ही घरेलू शेयर बाजार और सोने में समान ट्रेंड बना हुआ है। भारतीय बाजार इस वक्त अमेरिकी शेयर बाजारों की तर्ज पर चल रहे हैं।' 31 मार्च को सेंसेक्स 9,708 अंक पर बंद हुआ था। उसके बाद से अब सेंसेक्स 15,000 के आंकड़े के इर्द-गिर्द बना हुआ है। इस तरह से सेंसेक्स में पिछले तीन-चार माह में करीब 55 फीसदी की तेजी आ चुकी है। इसी दौरान सोने में निवेश के लिए की जाने वाली खरीदारी में भी तेजी दिखी। पहली तिमाही में देश में सोने की निवेश मांग करीब 17।7 टन रही थी, जो कि दूसरी तिमाही में बढ़कर 109 टन हो गई है। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटी हेड अमर सिंह का कहना है कि निवेशकों में सोने की कीमतों के ऊपर जाने पर इसके प्रति आकर्षण पैदा होता है। अमर सिंह के मुताबिक, 'भारत में भी पिछले कुछ वक्त में सोने के सिक्कों और बार में निवेश का ट्रेंड बढ़ा है। डॉलर की कमजोरी घरेलू बाजार में भी सोने की मांग को तय कर रही है। इसके अलावा दूसरी तिमाही में अक्षय तृतीया की वजह से भी मांग बढ़ी है।' सिंह के मुताबिक, 'भारत में चुनाव बाद सरकार के गठन और अमेरिका में बाजारों में निवेशकों के लौटते भरोसे ने शेयर बाजारों और सोने दोनों में निवेश को रफ्तार दी है।' बोनांजा ब्रोकिंग के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट विभुरतन धारा के मुताबिक, 'इस वक्त सोने की मांग और कीमतें ग्लोबल बाजार के हिसाब से चल रही है। कीमतों के ऊंचे बने होने के बावजूद लोग अपनी सरप्लस पूंजी गोल्ड खरीदने में लगा रहे हैं। लेकिन ज्वैलरी के मुकाबले लोग अब बार और सिक्कों को निवेश के लिए तरजीह दे रहे हैं। ज्वैलरी वही खरीद रहे हैं जिन्हें इसकी शादी वगैरह की वजह से जरूरत है।' (इत हिन्दी)
दिल्ली में अमूल बढ़ा सकता है दूध के दाम
अहमदाबाद : देश का सबसे बड़ा फूड ब्रांड अमूल एक हफ्ते के भीतर दूध की कीमतें बढ़ाने की तैयारी में है। इससे दिल्ली के बाजारों में अमूल का दूध एक रुपया महंगा हो जाएगा। डेयरी सेक्टर से जुड़े सूत्रों ने खुलासा किया कि अमूल के डेयरी उत्पादों की मार्केटिंग करने वाला गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) फुल क्रीम और टोन्ड मिल्क के दाम बढ़ाने पर विचार कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि अगर जीसीएमएमएफ ने दूध के दाम बढ़ाए जाने की घोषणा की, तो दूसरी डेयरी कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर सकती हैं। डेयरी उद्योग के एक जानकार ने बताया, 'आमतौर पर प्रत्येक राज्य में डेयरी कंपनियां कीमतों के मामले में बाजार की दिग्गज कंपनी का अनुसरण करती हैं। इस लिहाज से जीसीएमएमएफ का यह कदम काफी अप्रत्याशित है, क्योंकि दिल्ली के बाजार में मदर डेयरी अगुवा कंपनी है।'
उन्होंने बताया कि देश में मानसून में हुई देर और डेयरी की खरीद लागत बढ़ने के कारण दूध के दाम बढ़ने जरूरी हो गए हैं। पिछले कुछ महीनों में जानवरों का दाना-पानी महंगा होने से दूध उत्पादन की लागत में 15-20 फीसदी की उछाल आई है। पिछले हफ्ते डेयरी सेक्टर के दिग्गज खिलाड़ी नेशनल डेयरी डेवलपमेंट की सहायक इकाई मदर डेयरी ने चुनिंदा श्रेणियों में दूध की कीमतों में इजाफा किया है। मदर डेयरी दिल्ली के बाजार में रोजाना 25 लाख लीटर दूध बेचती है। मदर डेयरी ने पिछले हफ्ते डबल टोंड दूध की कीमतों में 1 रुपए का इजाफा किया था और अब इसकी कीमत 19 रुपए प्रति लीटर हो गई है। वहीं टोंड एंड बल्क वेंडेड मिल्क की कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति लीटर के स्तर पर पहुंच गई है जबकि स्किम्ड मिल्क के दाम 16 रुपए से बढ़कर 17 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं। मदर डेयरी अपनी वेंडिंग मशीन के जरिए रोजाना 11 लाख लीटर दूध बेचती है। (इत हिन्दी)
उन्होंने बताया कि देश में मानसून में हुई देर और डेयरी की खरीद लागत बढ़ने के कारण दूध के दाम बढ़ने जरूरी हो गए हैं। पिछले कुछ महीनों में जानवरों का दाना-पानी महंगा होने से दूध उत्पादन की लागत में 15-20 फीसदी की उछाल आई है। पिछले हफ्ते डेयरी सेक्टर के दिग्गज खिलाड़ी नेशनल डेयरी डेवलपमेंट की सहायक इकाई मदर डेयरी ने चुनिंदा श्रेणियों में दूध की कीमतों में इजाफा किया है। मदर डेयरी दिल्ली के बाजार में रोजाना 25 लाख लीटर दूध बेचती है। मदर डेयरी ने पिछले हफ्ते डबल टोंड दूध की कीमतों में 1 रुपए का इजाफा किया था और अब इसकी कीमत 19 रुपए प्रति लीटर हो गई है। वहीं टोंड एंड बल्क वेंडेड मिल्क की कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति लीटर के स्तर पर पहुंच गई है जबकि स्किम्ड मिल्क के दाम 16 रुपए से बढ़कर 17 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं। मदर डेयरी अपनी वेंडिंग मशीन के जरिए रोजाना 11 लाख लीटर दूध बेचती है। (इत हिन्दी)
दिवाली के मौके पर बैंकों से सोना खरीदना पड़ेगा महंगा
मुंबई : दिवाली और धनतेरस पर अगर आप सोने का सिक्का बैंक के बजाय ज्वैलरी शॉप से खरीदें तो वह आपको 5-7 फीसदी सस्ता पड़ेगा। त्योहारों के मौके पर बैंक सोने के सिक्के की जबरदस्त मार्केटिंग करते हैं। आम लोगों के अलावा बैंकों की नजर कंपनियों पर भी होती है, जो गिफ्ट आइटम के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं। हालांकि बहुत कम लोगों को ही पता है कि बैंक के मुकाबले ज्वैलर्स के यहां सोने का सिक्का 5-7 फीसदी सस्ता पड़ता है। इसकी वजह यह है कि बैंक विदेश से सोने के सिक्कों का आयात करते हैं। इस पर उन्हें कस्टम ड्यूटी, वैट, सिक्के की निर्माण लागत चुकानी पड़ती है। यही नहीं बैंक सोने के सिक्के पर ज्वैलर के मुकाबले मार्जिन भी ज्यादा वसूलते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देश के मुताबिक बैंक बेचे गए सिक्कों को वापस नहीं खरीद सकते। इससे भी उन्हें मुश्किल होती है।
मिसाल के तौर पर मंगलवार को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के 10 ग्राम सिक्के की कीमत 16,286 रुपए थी। वहीं मुंबई के जावेरी बाजार के ज्वैलरी शॉप तिलोकचंद जावेरी में इसी सिक्के की कीमत 15,400 रुपए थी। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुकाबले यह 5।5 फीसदी सस्ता है। मंगलवार को एसबीआई में 10 ग्राम सोने के सिक्के की कीमत 16,500 रुपए थी। एक बड़े सरकारी बैंक के बुलियन डेस्क के अधिकारी ने बताया, '10 ग्राम सोने के सिक्के पर 206 रुपए की कस्टम ड्यूटी लगती है। इसकी निर्माण लागत 5-10 डॉलर हो सकती है और एक फीसदी वैट देना पड़ता है। सिक्के पर बैंक 6-25 फीसदी का प्रॉफिट मार्जिन भी वसूलते हैं।' वहीं सोने का जो सिक्का आपने पिछले साल इसकी कीमत कम होने पर ज्वैलर से खरीदा था, उसे अब इसके महंगा होने पर वापस बेच सकते हैं। आपसे पुराना सिक्का खरीदने वाला ज्वैलर उसे मौजूदा भाव पर दूसरे ग्राहक को बेच सकता है। साथ ही वह सिक्के पर सिर्फ 100-200 रुपए का ही मार्जिन रखता है। ज्वैलरों का कहना है कि आम ग्राहक भी इस बारे में जागरूक हो रहे हैं। कई लोग बैंक के बजाय सोने का सिक्का ज्वैलरों से खरीद रहे हैं। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, केनरा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और एक्सिस बैंक दुनिया के सबसे बड़े स्वतंत्र रिफाइनर पीएएमपी से सोने के सिक्के का आयात करते हैं। यह स्विट्जरलैंड की कंपनी है। (इत हिन्दी)
मिसाल के तौर पर मंगलवार को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के 10 ग्राम सिक्के की कीमत 16,286 रुपए थी। वहीं मुंबई के जावेरी बाजार के ज्वैलरी शॉप तिलोकचंद जावेरी में इसी सिक्के की कीमत 15,400 रुपए थी। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुकाबले यह 5।5 फीसदी सस्ता है। मंगलवार को एसबीआई में 10 ग्राम सोने के सिक्के की कीमत 16,500 रुपए थी। एक बड़े सरकारी बैंक के बुलियन डेस्क के अधिकारी ने बताया, '10 ग्राम सोने के सिक्के पर 206 रुपए की कस्टम ड्यूटी लगती है। इसकी निर्माण लागत 5-10 डॉलर हो सकती है और एक फीसदी वैट देना पड़ता है। सिक्के पर बैंक 6-25 फीसदी का प्रॉफिट मार्जिन भी वसूलते हैं।' वहीं सोने का जो सिक्का आपने पिछले साल इसकी कीमत कम होने पर ज्वैलर से खरीदा था, उसे अब इसके महंगा होने पर वापस बेच सकते हैं। आपसे पुराना सिक्का खरीदने वाला ज्वैलर उसे मौजूदा भाव पर दूसरे ग्राहक को बेच सकता है। साथ ही वह सिक्के पर सिर्फ 100-200 रुपए का ही मार्जिन रखता है। ज्वैलरों का कहना है कि आम ग्राहक भी इस बारे में जागरूक हो रहे हैं। कई लोग बैंक के बजाय सोने का सिक्का ज्वैलरों से खरीद रहे हैं। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, केनरा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और एक्सिस बैंक दुनिया के सबसे बड़े स्वतंत्र रिफाइनर पीएएमपी से सोने के सिक्के का आयात करते हैं। यह स्विट्जरलैंड की कंपनी है। (इत हिन्दी)
स्टॉक लिमिट तय होने से महंगे होंगे चीनी के प्रॉडक्ट्स
नई दिल्ली : केंद्र सरकार के चीनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने वाली इकाइयों के लिए स्टॉक लिमिट तय करने के फैसले का असर बिस्कुट और मिठाई बनाने वाली इकाइयों पर पड़ना तय है। कारोबारी बता रहे हैं कि स्टॉक लिमिट तय करने से उन्हें लेबर, ट्रांसपोर्टेशन वगैरह पर पहले से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। कारोबारियों के मुताबिक चीनी पर स्टॉक लिमिट लगाने की वजह से लागत में 5-7 फीसदी का असर पड़ेगा। इस वजह से बिस्कुट और दूसरे उत्पादों की कीमतों में आने वाले वक्त में और इजाफा हो सकता है। दिल्ली हलवाई एंड बेकर्स, रेस्टोरेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट ईश्वर दयाल के मुताबिक, 'निश्चित तौर पर सरकार के फैसले का कारोबार पर फर्क पड़ेगा।
पहले जो निर्माता एक या दो महीने के लिए चीनी का भंडार एक बार में कर लेते थे, अब उन्हें इसे महीने में दो या तीन बार मंगाना पड़ेगा।' उन्होंने अनुमान जताया कि इस वजह से लागत में 5-7 फीसदी का उछाल आएगा। चीनी की कीमतें पिछले साल के 1,700-1,800 रुपए के स्तर से आज 3,200 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई हैं और आने वाले वक्त में इनके ऊपर जाने की ही आशंका है। दयाल ने कहा कि ऐसे में स्टॉक लिमिट लगने से उत्पादों की कीमतों को बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। केंद्र सरकार ने चीनी की जमाखोरी पर चिंता जताते हुए महीने में इसकी 10 क्विंटल से ज्यादा खपत करने वाली इकाइयों पर केवल 15 दिन का स्टॉक रखने की लिमिट लगा दी है। बिस्कुट बनाने वाली मेघराज इंडस्ट्रीज के सतीश वर्मा के मुताबिक, 'हमारे पास ज्यादा दिनों का स्टॉक करने की क्षमता नहीं होती है। साथ ही इससे हमारी लागत में इजाफा होगा, जिससे हमें उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।' अनुमान के मुताबिक दिल्ली में महीने में एक टन से ऊपर चीनी का इस्तेमाल करने वाले हलवाइयों और बिस्कुट बनाने वालों की संख्या 100 भी ज्यादा होगी। लक्ष्मी बिस्किट्स के मालिक सुरिंदर गाबा कहते हैं, 'असली असर सूखे का पड़ रहा है। इस वजह से नए सीजन में भी चीनी के कम उत्पादन की आशंका है। इसका पूरा असर कारोबार पर अभी से दिखाई पड़ने लगा है।' चीनी से जुड़े उत्पाद बनाने वाली इकाइयों पर स्टॉक लिमिट लगाने से पहले सरकार ने चीनी के थोक और फुटकर कारोबारियों पर यह लिमिट लगाई थी। सरकार ने थोक कारोबारियों पर 2,000 क्विंटल और फुटकर टेडर्स पर 200 क्विंटल की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है। (ET हिन्दी)
पहले जो निर्माता एक या दो महीने के लिए चीनी का भंडार एक बार में कर लेते थे, अब उन्हें इसे महीने में दो या तीन बार मंगाना पड़ेगा।' उन्होंने अनुमान जताया कि इस वजह से लागत में 5-7 फीसदी का उछाल आएगा। चीनी की कीमतें पिछले साल के 1,700-1,800 रुपए के स्तर से आज 3,200 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई हैं और आने वाले वक्त में इनके ऊपर जाने की ही आशंका है। दयाल ने कहा कि ऐसे में स्टॉक लिमिट लगने से उत्पादों की कीमतों को बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। केंद्र सरकार ने चीनी की जमाखोरी पर चिंता जताते हुए महीने में इसकी 10 क्विंटल से ज्यादा खपत करने वाली इकाइयों पर केवल 15 दिन का स्टॉक रखने की लिमिट लगा दी है। बिस्कुट बनाने वाली मेघराज इंडस्ट्रीज के सतीश वर्मा के मुताबिक, 'हमारे पास ज्यादा दिनों का स्टॉक करने की क्षमता नहीं होती है। साथ ही इससे हमारी लागत में इजाफा होगा, जिससे हमें उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।' अनुमान के मुताबिक दिल्ली में महीने में एक टन से ऊपर चीनी का इस्तेमाल करने वाले हलवाइयों और बिस्कुट बनाने वालों की संख्या 100 भी ज्यादा होगी। लक्ष्मी बिस्किट्स के मालिक सुरिंदर गाबा कहते हैं, 'असली असर सूखे का पड़ रहा है। इस वजह से नए सीजन में भी चीनी के कम उत्पादन की आशंका है। इसका पूरा असर कारोबार पर अभी से दिखाई पड़ने लगा है।' चीनी से जुड़े उत्पाद बनाने वाली इकाइयों पर स्टॉक लिमिट लगाने से पहले सरकार ने चीनी के थोक और फुटकर कारोबारियों पर यह लिमिट लगाई थी। सरकार ने थोक कारोबारियों पर 2,000 क्विंटल और फुटकर टेडर्स पर 200 क्विंटल की स्टॉक लिमिट लगाई हुई है। (ET हिन्दी)
रबर उत्पादन बढ़ने से लक्ष्य हासिल होने की संभावना
भारत का रबर उत्पादन सितंबर के बाद बढ़ सकता है। इस उत्पादन वृद्धि से चालू वर्ष के लिए तय उत्पादन लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। हालांकि सूखे की स्थिति के कारण सीजन के पहले चार महीनों में उत्पादन घटा है। रबर बोर्ड ने मंगलवार को बताया कि 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष के दौरान रबर उत्पादन 0.3 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी के साथ 8,67,000 टन रह सकता है। बोर्ड के चेयरमैन साजेन पीटर ने कहा कि हालांकि अप्रैल से जुलाई तक रबर उत्पादन में 13 फीसदी की गिरावट रही और इस दौरान 2,09,825 टन उत्पादन रहा। उत्पादन का प्रमुख सीजन अभी आना बाकी है, ऐसे में बोर्ड उत्पादन लक्ष्य की समीक्षा दिसंबर के बाद ही करेगा। इससे पहले भी कुछ वर्षे से ऐसा होता रहा है कि साल के शुरू में उत्पादन लक्ष्य से कम रहता है, लेकिन आखिरी के महीनों में उत्पादन बढ़कर लक्ष्य के करीब पहुंच जाता है। नेचुरल रबर के उत्पादन में यह बढ़ोतरी घरेलू बाजार में रबर की कीमतों को थोड़ा नियंत्रित कर पाएगी।पिछले छह महीनों में रबर की कीमतों में 42 फीसदी का उछाल आया है। एमआरएफ, जेके टायर इंडस्ट्रीज और अपोलो टायर जैसी प्रमुख टायर निर्माता कंपनियों में रबर की तेज मांग रही है। देश में रबर की कीमतों में तेजी फरवरी के बाद ज्यादा आई है जबसे सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार से खपत बढ़ने के संकेतों के चलते सोमवार को टोक्यो में रबर के वायदा भाव 31 जुलाई के बाद सबसे तेज रहे। रबर का जनवरी वायदा भाव 2.3 फीसदी बढ़कर 200 येन प्रति किलो रहे। मानसून की समाप्ति के बाद ठंड के मौसम में उत्पादन सुधरने की संभावना से भारत में भी रबर उत्पादन का अनुमान गत वर्ष के उत्पादन 8,64,500 टन से ज्यादा रह सकता है। इस वर्ष देश में रबर की खपत 1.7 फीसदी बढ़कर 8,81,000 टन रहने की संभावना है। देश का 90 फीसदी से ज्यादा रबर केरल में पैदा होता है। (Busienss Bhaskar)
महंगी चीनी:सरकार-मिलों की मिलीभगत?
चीनी की मिठास महंगी होने के पीछे मिलों का हाथ तो है ही, सरकार भी कम जिम्मेवार नहीं हैं। चीनी मिलों ने तो कीमत बढ़ने के आसार देखकर खुले बाजार में सप्लाई पर इस सीजन की शुरुआत से ही ब्रेक लगाना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर सरकार भी मिलों पर कार्रवाई करने की बजाय उन्हें अपने मकसद में कामयाब होने के लिए मौका देती रही।
CNBC आवाज की छानबीन में पता चला कि चीनी के उत्पादन में कमी की संभावना को देखते हुए चीनी मिलों ने पहले ही चीनी स्टॉक करना शुरू कर दिया था। मिलों ने सरकार की ओर से जारी होनेवाले मासिक कोटे की पूरी सप्लाई करना भी जरूरी नहीं समझा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2008 से अप्रैल 2009 तक चीनी मिलों ने सरकारी कोटे की करीब 3 लाख 71 हजार टन चीनी बाजार में नहीं बेची। जिसे सरकार ने बाद में लेवी में बदल दिया। इस दौरान चीनी की कीमतें खुले बाजार में उन्नीस रुपए से बढ़कर चौबीस-पच्चीस रुपए किलो तक पहुंच गई।
इतना ही नहीं सरकार ने चीनी मिलों पर दरियादिली दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जब भी जरूरी हुआ, सरकार चीनी मिलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें अपने मंसूबे में कामयाब होने का मौका देती रहीं।
हालात बिगड़ते देख सरकार ने सरकार ने करीब 257 मिलों को नोटिस तो जारी कर दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। चीनी मिलों के खिलाफ एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के तहत कार्रवाई करने से भी सरकार बचती। हद तो तब हो गई जब सरकार ने मार्च महीने की बची हुई चीनी अप्रैल में बेचने की छूट दे दी।
सरकार की ढिलाई देखते हुए मिलों ने मई कोटे की भी चीनी पूरी तरह बाजार में नहीं उतारी। सरकार ने एक बार फिर मई की चीनी 15 जून तक बेचने की छूट दे दी जिसका सीधा फायदा चीनी मिलों को मिला। क्योंकि, जो चीनी वो छह महीने पहले सोलह-सत्रह रुपए किलो बेचा करते थे उसी चीनी को अब उन्हें उनतीस रुपए किलो तक बेचने का मौका मिल रहा है।
चीनी की बढ़ती कीमतों के पीछे कम उत्पादन भी एक वजह है लेकिन इतना साफ है सरकार शुरू से सख्त रवैया अपनाती तो आज शायद चीनी इतनी महंगी नहीं होती। (Awaj)
CNBC आवाज की छानबीन में पता चला कि चीनी के उत्पादन में कमी की संभावना को देखते हुए चीनी मिलों ने पहले ही चीनी स्टॉक करना शुरू कर दिया था। मिलों ने सरकार की ओर से जारी होनेवाले मासिक कोटे की पूरी सप्लाई करना भी जरूरी नहीं समझा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2008 से अप्रैल 2009 तक चीनी मिलों ने सरकारी कोटे की करीब 3 लाख 71 हजार टन चीनी बाजार में नहीं बेची। जिसे सरकार ने बाद में लेवी में बदल दिया। इस दौरान चीनी की कीमतें खुले बाजार में उन्नीस रुपए से बढ़कर चौबीस-पच्चीस रुपए किलो तक पहुंच गई।
इतना ही नहीं सरकार ने चीनी मिलों पर दरियादिली दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जब भी जरूरी हुआ, सरकार चीनी मिलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें अपने मंसूबे में कामयाब होने का मौका देती रहीं।
हालात बिगड़ते देख सरकार ने सरकार ने करीब 257 मिलों को नोटिस तो जारी कर दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। चीनी मिलों के खिलाफ एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के तहत कार्रवाई करने से भी सरकार बचती। हद तो तब हो गई जब सरकार ने मार्च महीने की बची हुई चीनी अप्रैल में बेचने की छूट दे दी।
सरकार की ढिलाई देखते हुए मिलों ने मई कोटे की भी चीनी पूरी तरह बाजार में नहीं उतारी। सरकार ने एक बार फिर मई की चीनी 15 जून तक बेचने की छूट दे दी जिसका सीधा फायदा चीनी मिलों को मिला। क्योंकि, जो चीनी वो छह महीने पहले सोलह-सत्रह रुपए किलो बेचा करते थे उसी चीनी को अब उन्हें उनतीस रुपए किलो तक बेचने का मौका मिल रहा है।
चीनी की बढ़ती कीमतों के पीछे कम उत्पादन भी एक वजह है लेकिन इतना साफ है सरकार शुरू से सख्त रवैया अपनाती तो आज शायद चीनी इतनी महंगी नहीं होती। (Awaj)
देश सूखे से निपटने में सक्षमः मुखर्जी
नई दिल्ली। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को कहा कि देश के बड़े हिस्से में खराब मानसून के कारण पड़े सूखे के प्रभाव को सीमित करना सरकार की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि देश के पास खाद्यान का पर्याप्त भंडार है और ऐसे हालात में भी भारतीय अर्थव्यवस्था छह प्रतिशत से ऊपर की विकास दर हासिल करेगी। शीर्ष उद्योगपतियों की एक बैठक में मुखर्जी ने कहा,"इस समय देर से आए मानसून ने देश के अधिकांश क्षेत्रों में कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। कमजोर मानसून के प्रभाव को सीमित करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।"वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष (जुलाई 2008-जून 2009) खाद्यान्न के रिकार्ड 23.387 करोड़ टन उत्पादन की सहायता से इस वर्ष सूखे के मुकाबले के लिए देश के पास पर्याप्त अनाज भंडार है। सामान्य तौर पर गेहूं के 40 लाख टन और चावल के 52 लाख टन सुरक्षित भंडार के साथ ही देश ने 30 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन चावल का अतिरिक्त भंडारण किया है।मुखर्जी ने देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बारे में कहा कि वैश्विक मंदी के बावजूद पिछले वित्तीय वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और कठिन स्थिति के बावजूद इस वर्ष छह प्रतिशत से ऊपर की विकास दर कायम रखी जाएगी।अपने आशावाद के कारणों को बताते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र के रफ्तार पकड़ने के संकेत दिखाई देने लगे हैं। पूंजीगत वस्तुओं की मांग में वृद्धि हो रही है। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में पहली तिमाही में बेहतर वृद्धि देखी गई है।उन्होंने कहा कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक कर्ज प्रवाह को बिना अवरोध के जारी रखने के लिए निरंतर एक-दूसरे के संपर्क में हैं।मुखर्जी ने कहा कि सरकार वित्तीय स्थिति को सही दिशा में लाने पर जोर दे रही है और वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यकतानुसार प्रोत्साहन पैकेज दे सकती है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए वित्तीय सु़धारों की योजना तैयार होगी। 13वें वित्त आयोग की शीघ्र आने वाली रिपोर्ट में यह शामिल होगी।
25 अगस्त 2009
चीन को आस्ट्रेलिया से लौह अयस्क आयात मंे बढ़ोतरी
वार्षिक मूल्य समझौते के मुद्दे पर ऑस्ट्रेलियाई माइनिंग कंपनी रियो टिंटो के दो कर्मचारी चीन गिरफ्तार होने के बावजूद चीन को लौह अयस्क की सप्लाई करने वाले देशों में आस्ट्रेलिया सबसे ऊपर है। आस्ट्रेलिया से चीन को लौह अयस्क निर्यात में जुलाई के दौरान भारी बढ़ोतरी हुई है। मूल्य समझौते पर विवाद होने के बाद आस्ट्रेलिया से सप्लाई घटने की संभावना व्यक्त की गई थी।चीन के सीमा शुल्क संबंधी जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ने सोमवार को जारी आंकड़ों में कहा है कि चीन ने जुलाई के दौरान 275 लाख टन लौह अयस्क का आयात किया है। यह पिछले वर्ष के जुलाई के मुकाबले 52 फीसदी अधिक है। जबकि मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि रियो टिंटो के चार कर्मचारियों की चीन में गिरफ्तारी और लौह अयस्क की वार्षिक कीमतों पर मतभेद के बाद चीन का ऑस्ट्रेलिया से आयात घटा है। चीन ने जुलाई में 581 लाख टन लौह अयस्क का आयात किया जबकि इस वर्ष जुलाई तक कुल 3,553 लाख टन लौह अयस्क का आयात किया गया। जनवरी से जुलाई तक चीन ने ऑस्ट्रेलिया से 1,491 लाख टन लौह अयस्क का आयात किया है जो सालाना आधार पर 45 फीसदी अधिक है। चीन ने कुल लौह अयस्क आयात का 42 फीसदी आयात ऑस्ट्रेलिया से किया है। जुलाई में चीन को लौह अयस्क निर्यात करने में ब्राजील का दूसरा स्थान रहा है। चीन ने 123 लाख टन लौह अयस्क का आयात ब्राजील से किया है जो गत वर्ष जुलाई के मुकाबले 42 फीसदी अधिक है। जनवरी से जुलाई के दौरान ब्राजील ने 731 लाख टन लौह अयस्क का आयात किया जो गत वर्ष की समान अवधि से 23 फीसदी अधिक है। भारत चीन को लौह अयस्क आयात मामले में तीसरे नंबर पर है। जुलाई में भारत ने चीन को 71 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात किया है जो गत वर्ष के मुकाबले 14 फीसदी अधिक है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन, रूस, कनाडा, कजाकिस्तान और पेरू जैसे देशों से लौह अयस्क का आयात चीन ने किया है। हालांकि चीन के रिफाइंड कॉपर के आयात में जुलाई में गिरावट रही है। इसका प्रमुख कारण कॉपर के भावों में लगातार बढ़ोतरी है। विश्लेषकों का मानना है कि गर्मी के महीनों में कॉपर के आयात में कमी स्वाभाविक होती है। (Business Bhaskar)
चीनी की उपभोक्ता कंपनियों पर भी स्टॉक लिमिट लागू
खुले बाजार में चीनी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ी उपभोक्ता कंपनियों पर भी स्टॉक लिमिट लगा दी है। केंद्र सरकार द्वारा 22 अगस्त को जारी किए गए आदेश के मुताबिक जो कंपनियां हर माह 10 क्विंटल से ज्यादा चीनी की खपत करती हैं, वे 15 दिन से ज्यादा का स्टॉक नहीं रख सकेंगी। बड़ी कंपनियों पर अगले छह महीने के लिए स्टॉक लिमिट लगाई गई है तथा आदेश जारी होने के 21 दिन बाद लिमिट लागू हो जाएगी। हालांकि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों से मान्यता प्राप्त चैरिटेबल ट्रस्ट, हॉस्पीटल और होस्टल को लिमिट के दायरे से बाहर ही रखा गया है। बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि इससे चीनी की कीमतों पर आंशिक फर्क पड़ सकता है क्योंकि स्टॉक लिमिट लगा देने से कंपनियों की खरीद पहले की तुलना में घट जाएगी। चीनी के थोक और फुटकर व्यापारी पर क्रमश: 2000 क्विंटल और 200 क्विंटल की लिमिट पहले लगी हुई है। लेकिन कुल उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा खपत करने वाली बड़ी कंपनियों और हलवाइयों पर अभी तक कोई लिमिट नहीं लगाई गई थी। जिसकी वजह से सरकारी कोशिशों के बाद भी फुटकर बाजार में चीनी की कीमतों में अपेक्षित गिरावट नहीं आ पा रही थी। सूर्या फूड एंड एग्रो लिमिटेड के डायरेक्टर शेखर अग्रवाल ने बताया कि ऊंचे दाम होने की वजह से कंपनियां चीनी का केवल सात-आठ दिन का स्टॉक रख पा रही है इसलिए सरकार के इस कदम से कीमतों पर फर्क पड़ने की संभावना नहीं है।सरकारी बंदिशों के बावजूद फुटकर और थोक बाजार में चीनी के दाम तेज बने हुए है। सोमवार को दिल्ली थोक बाजार में चीनी के दाम बढ़कर 3000 रुपये और एक्स-फैक्ट्री भाव बढ़कर 2900 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। फुटकर बाजार में इस समय चीनी के भाव 32 रुपये प्रति किलो से ऊपर चल रहे हैं। चालू पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन 150 लाख टन से भी कम होने की संभावना है। जबकि पिछले साल 264 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उत्पादन में कमी के कारण ही इस समय शुल्क मुक्त चीनी का आयात किया जा रहा है। उद्योग सूत्रों के अनुसार अभी तक प्राइवेट कंपनियों द्वारा करीब 40 लाख टन रॉ-शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) के आयात सौदे किये जा चुके हैं। लेकिन भारत और अन्य देशों की मांग के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दामों में भारी तेजी बनी हुई है। आयातित चीनी के दाम भारतीय बंदरगाह पर पहुंच 610 डॉलर और रॉ-शुगर के दाम 525 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। मौजूदा भावों में चीनी का आयात भी मिलों को घाटे का सौदा साबित हो रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
विदेश में तेजी के बावजूद घरेलू बाजार में खाद्य तेल नरम
विदेश में तेजी के बाद भी घरेलू बाजार में खाद्य तेलों में नरमी देखी जा रही है। चालू महीने में शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबोओटी) में दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में करीब 9.5 फीसदी और बुर्सा मलेशिया डेरिवेटिव एक्सचेंज (बीएमडी) में नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में लगभग 12 फीसदी की तेजी दर्ज की गई। घरेलू बाजारों में इस दौरान खाद्य तेलों में तीन से चार फीसदी की गिरावट आई है। चालू तेल वर्ष में खाद्य तेलों के आयात में 55 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, इसीलिए देश के अधिकांश हिस्से में सूखे जैसे हालात बनने के बाद भी खाद्य तेलों में तेजी नहीं बन पा रही है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता ने बताया कि मानसून की कमी से आंध्रप्रदेश में मूंगफली की बुवाई में कमी आई है। गुजरात में भी पिछले दिनों तो अच्छी बारिश हुई थी, लेकिन इस समय फसल को पानी की जरूरत है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पिछले एक सप्ताह में हुई बारिश से सोयाबीन की फसल को काफी फायदा हुआ है। अभी तक के मौसम को देखते हुए चालू खरीफ सीजन में तिलहनों के उत्पादन में चार-पांच लाख टन की कमी आ सकती है। कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी बुवाई आंकड़ों के मुताबिक तिलहनों की बुवाई 164.15 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 152.47 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। चालू तेल वर्ष (नवंबर-08 से जुलाई-09) के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 64.19 लाख टन का हो चुका है। जबकि पिछले साल इस दौरान 41.38 लाख टन का ही आयात हुआ था। आयात में भारी बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने के कारण ही घरेलू बाजारों में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। सीबीओटी में दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 29 जुलाई को भाव 33.78 डॉलर प्रति बुशल थे जोकि 21 अगस्त को बढ़कर 36.94 डॉलर प्रति बुशल हो गये। (bsuiness Bhaskar....R S Rana)
जब्त चीनी पर फैसला नहीं होने से व्यापारियों में रोष
मध्य प्रदेश में चीनी पर स्टॉक लिमिट लागू होने के बाद राज्य सरकार ने 14 अगस्त से चीनी गोदामों पर छापे की कार्रवाई शुरू कर दी थी। करीब दो दर्जन से अधिक जिलों में सौ से अधिक स्थानों पर मार गए छापों में अब तक लगभग 45 हजार क्विंटल चीनी जब्त की गई है। जब्त की गई चीनी की कीमत करीब ख्फ् करोड़ रुपये है। व्यापारियों का तर्क है कि चीनी जल्द खराब होने वाली वस्तु है। इसलिए सरकार को इस संबंध में जल्द फैसला लेना चाहिए। हालांकि, पिछले तकरीबन 10 दिनों से सरकार द्वारा फैसला नहीं लेने से व्यापारियों में रोष है। मध्य प्रदेश शक्कर एसोसिएशन के अध्यक्ष और इंदौर के थोक चीनी व्यापारी रमेश खंडेलवाल ने कहा कि सरकार ने पहले जो अधिसूचना जारी की, उसकी जानकारी व्यापारियों तक अधिसूचना जारी होने के 15 दिन बाद मिली। वहीं दूसरी ओर छापों के दौरान जब्त की गई चीनी के एवज में शुरुआत में बैंक गारंटी मांगी गई है। खंडेलवाल के अनुसार अगर व्यापारी जब्त शक्कर के एवज में बैंक गारंटी दे दे तो वह धंधा कैसे करगा। उन्होंने कहा कि इंदौर में एडीएम ने जिले में जब्त की गई चीनी के संबंध में सुनवाई सोमवार को पूरी की है और एक-दो दिन में इस संबंध में निर्णय हो जाएगा। अखिल भारतीय व्यापार महासंघ के महामंत्री अनुपम अग्रवाल ने कहा कि शक्कर जल्द खराब होने वाली सामग्री है, इसलिए मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर मांग की गई है कि इस संबंध में जल्द निर्णय लिया जाए। (Business Bhaskar)
बढ़ा चाय कारोबार में मुनाफा
चेन्नई August 24, 2009
घरेलू बाजार में मांग में बढ़ोतरी और निर्यात से अच्छी कमाई की वजह से चाय उत्पादकों के कर के बाद के लाभ में 2008-09 के 9 महीनों के दौरान 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
निर्यात के लिहाज से देखें तो भारत प्रमुख निर्यातकों में शामिल था, जिसने अपनी बाजार हिस्सेदारी केन्या और श्रीलंका के हाथों गंवा दी थी। चाय उद्योग पर आईसीआरए मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विस की रिपोर्ट के मुताबिक, जिसने 43 चाय कंपनियों से नमूने लिए थे, इन कंपनियों के संयुक्त मुनाफे में वित्त वर्ष-09 के पहले 9 महीनों के दौरान 10.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
यह पिछले साल के 484.8 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 533.8 करोड़ रुपये हो गया है। कुल बिक्री में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है जो 2,884.6 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,505.5 करोड़ रुपये हो गई है।
2005 और 2008 के बीच कच्चे माल की कीमतें ज्यादा होने के बावजूद संचालन मुनाफा और मार्जिन में भी बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह यह है कि औसत बिक्री ज्यादा रही है। वित्त वर्ष 2007-09 के दौरान मार्जिन में क्रमश: सुधार आया क्योंकि कर्मचारियों और संचालन लागत में मामूली बढ़ोतरी हुई।
इसके साथ ही चाय की कीमतों में भी रुपये के कमजोर होने से बढ़ोतरी हुई और अधिक निर्यात के चलते अधिक कीमतें मिलीं। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन कंपनियों का नमूना लिया गया था, उससे मिले परिणाम के मुताबिक संचालन लाभ में 21.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के चाय उत्पादन में 3 साल में औसत 1.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। ( BS Hindi)
घरेलू बाजार में मांग में बढ़ोतरी और निर्यात से अच्छी कमाई की वजह से चाय उत्पादकों के कर के बाद के लाभ में 2008-09 के 9 महीनों के दौरान 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
निर्यात के लिहाज से देखें तो भारत प्रमुख निर्यातकों में शामिल था, जिसने अपनी बाजार हिस्सेदारी केन्या और श्रीलंका के हाथों गंवा दी थी। चाय उद्योग पर आईसीआरए मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विस की रिपोर्ट के मुताबिक, जिसने 43 चाय कंपनियों से नमूने लिए थे, इन कंपनियों के संयुक्त मुनाफे में वित्त वर्ष-09 के पहले 9 महीनों के दौरान 10.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
यह पिछले साल के 484.8 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 533.8 करोड़ रुपये हो गया है। कुल बिक्री में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है जो 2,884.6 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,505.5 करोड़ रुपये हो गई है।
2005 और 2008 के बीच कच्चे माल की कीमतें ज्यादा होने के बावजूद संचालन मुनाफा और मार्जिन में भी बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह यह है कि औसत बिक्री ज्यादा रही है। वित्त वर्ष 2007-09 के दौरान मार्जिन में क्रमश: सुधार आया क्योंकि कर्मचारियों और संचालन लागत में मामूली बढ़ोतरी हुई।
इसके साथ ही चाय की कीमतों में भी रुपये के कमजोर होने से बढ़ोतरी हुई और अधिक निर्यात के चलते अधिक कीमतें मिलीं। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन कंपनियों का नमूना लिया गया था, उससे मिले परिणाम के मुताबिक संचालन लाभ में 21.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के चाय उत्पादन में 3 साल में औसत 1.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। ( BS Hindi)
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