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14 जुलाई 2009

कोल्ड चेन योजना में ढेरों बाधाएं

मुंबई July 13, 2009
वर्ष 2012 तक एक करोड़ टन की क्षमता के कोल्ड चेन, पैक हाउस और राइपनिंग चैंबर खोलने की सरकार की योजना परवान चढ़ती नहीं दिख रही है।
इसकी वजह खुदरा कारोबारियों और किसानों की पर्याप्त रुचि न होना बताया जा रहा है। विदेशों में कृषि जिंसों को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन का निर्माण किया जाता है। ऐसा करने से न केवल खुदरा कारोबारियों को बल्कि आम किसानों को भी फसल सुरक्षित रखने की सुविधा मिल जाती है।
हालांकि, भारत में निजी निवेशक किसानों को प्रशीतगृह की सुविधा देते हैं, जबकि खुदरा कारोबारियों को अभी इस दिशा में काफी कोशिश करनी है। हालांकि रिलायंस जैसी रिटेल कंपनी अपने रिटेल कारोबार के लिए कोल्ड चेन बना रही है। लेकिन अभी इस उद्योग को लंबा रास्ता तय करना है।
कोल्ड चेन में कृषि जिंसों के भंडारण से किसानों पर बोझ और बढ़ जाता है। इससे उपभोक्ताओं पर कीमत का बोझ और बढ़ सकता है। ज्यादातर भारतीय खुदरा कारोबारी इसकी व्यावहारिकता को लेकर आशंकित हैं। क्योंकि फसल की कटाई से लेकर इस्तेमाल होने तक इसकी बढ़िया देखरेख करनी होती है। इसके लिए न केवल बड़ी पूंजी की जरूरत होती है, बल्कि राजस्व अर्जित करने के मामले में भी बहुत अनिश्चितता होती है।
इतना ही नहीं इस क्षेत्र को बहुत कम सब्सिडी मिलती है। इस वजह से ऊर्जा दक्ष और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल संभव नहीं हो पाता। कोल्ड चेन का बिखराव भी कम तरक्की की एक वजह है। इन वजहों से कोल्ड चेन वानिकी सेक्टर के लिए अव्यावहारिक हो जाता है।
कोल्ड चेन कारोबार की प्रमुख कंपनी ब्लू स्टार लिमिटेड के चैनल बिजनेस ग्रुप के अध्यक्ष बी. त्यागराजन कहते हैं, ''फसल कटाई के बाद इसकी प्रबंधन प्रक्रिया के बारे में किसानों की कम जानकारी कोल्ड चेन के लिए बड़ी समस्या है।''
सरकारी अनुमानके मुताबिक, 31 दिसंबर 2006 तक देश में 5101 कोल्ड स्टोर थे। इनकी कुल भंडारण क्षमता 2.17 करोड़ टन की है। इस क्षमता के 80 फीसदी से ज्यादा का उपयोग आलू के रखरखाव के लिए किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण है कि देश में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता का अभी 48 फीसदी ही इस्तेमाल हो पाता है।
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और पंजाब में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता का दोहन राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कम है। यहां पर केवल आलू को ही कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है। एक विश्लेषक के मुताबिक कारगो कॉम्प्लेक्स में जो फूलों, फलों और अन्य कम समय में खराब होने वाले जिंसों के रखरखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज बनाए गए हैं, उनका भी क्षमता से कम उपयोग होता है।
विभिन्न जिंसों के रखरखाव के लिए अलग अलग तापमान की जरूरत होती है, इसलिए इसे विभिन्न सेल में विभाजित किए जाने की जरूरत पड़ती है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के माध्यम से कोल्ड चेन में निवेश से इस उद्योग को भारी मदद मिलेगी।
पिछले साल सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसका अनुमान था कि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 25 लाख टन अतिरिक्त क्षमता विस्तार की जरूरत है, जिससे कि कृषि जिंसों को खराब होने से बचाया जा सके। क रीब 1,00,000 करोड़ रुपये के कृषि जिंसों में 30 प्रतिशत रखरखाव की कमी से बर्बाद हो जाता है।
अगर स्टोरेज की श्रृंखला को योजनाबध्द तरीके से कार्यरूप दिया जाए तो नुकसान से बचा जा सकता है। टास्क फोर्स ने सुझाव दिया था कि 1,00,000 टन क्षमता के कोल्ड स्टोरेज सेब के लिए, 11.6 लाख टन अधपके फलों के लिए और 48 लाख टन क्षमता विस्तार सब्जियों के लिए किए जाने की जरूरत है। (BS HIndi)

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