नई दिल्ली : मध्य भारत के मैदानी इलाकों और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पिछले दो दिनों में हुई छिटपुट बारिश की दुहाई देते हुए केंद्र सरकार ने इन इलाकों में मॉनसून की हालत में सुधार का दावा कर दिया है। इसके बावजूद पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार के कुछ इलाकों में पर्याप्त बारिश नहीं होने से केंद्र की पेशानी पर बल जरूर पड़ गए हैं। अब सिर्फ गर्मी में बोए जाने वाली खरीफ फसलों को लेकर ही परेशानी नहीं बढ़ रही है बल्कि रबी (जाड़े के सीजन में बोई जाने वाली फसलें) सीजन की पैदावार में भी कमी का डर सरकार को सताने लगा है। रबी सीजन में पैदावार पूरी तरह सिंचाई के भरोसे रहती है। दरअसल मॉनसून के सामान्य से कमजोर रहने के कारण देश भर के जलाशयों में पानी का स्तर घटता जा रहा है। इससे बिजली और पानी सप्लाई पर भी असर पड़ रहा है।
संसद में कृषि मंत्री शरद पवार ने माना कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित बिहार और राजस्थान के कई इलाकों में मॉनसूनी बारिश कम हुई है। राज्यसभा में पवार ने कहा, 'मुझे लगता है कि हालात जल्द सुधरेंगे। फिलहाल राज्य सरकारों को बीज और उर्वरक दिए जा रहे हैं। जहां बारिश कम होने की वजह से बीज खराब हो जाएंगे, वहां हम अतिरिक्त बीज मुहैया कराएंगे।' कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का दावा है कि सूखे में खेती वाले और छोटी अवधि के फसल के बीज पर्याप्त मात्रा में हैं। हालांकि कई इलाकों में बीज तैयार हो चुके हैं, लेकिन उन्हें पानी नहीं मिल पा रहा है। मॉनसून के दगा देने के बाद पंजाब जैसे राज्यों में बिजली की किल्लत से खेती पर दोहरी मार पड़ रही है। मॉनसून की सुस्त रफ्तार को देखते हुए अर्थशास्त्रियों ने देश के विकास दर में 2 फीसदी तक कमी आने की आशंका जताई है। देश की 58 फीसदी खेती मॉनसून के भरोसे है। जलाशयों में पानी कम होने से मॉनसून के भरोसे नहीं रहने वाले इलाकों में भी खेती पर असर पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो चावल, दाल और सरसों की कीमतों में इजाफा हो सकता है। कुल पैदावार में अकेले धान की हिस्सेदारी 43 फीसदी है। वहीं गेहूं की 34, मोटे अनाज की 16 और दाल की हिस्सेदारी 6 फीसदी है। देश की कुल आमदनी में कृषि क्षेत्र का योगदान 20-25 फीसदी है। अगर कुल कृषि उत्पादन गिरता है तो आर्थिक विकास दर 5-6 फीसदी के बीच सिमट सकती है, जिसके अभी 7-8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। (ET Hindi)
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