मुंबई : कमोडिटी बाजार पर लंबे समय से मंडरा रही अनिश्चितता अब हमेशा के लिए खत्म हो गई है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बजट में वस्तु व्यापार कर यानी कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) खत्म करने की घोषणा की है। दरअसल पहले एसटीटी की तर्ज पर एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स जैसे कमोडिटी स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले कारोबार पर सीटीटी लगाने का प्रस्ताव था। सीटीटी खत्म करने से कमोडिटी एक्सचेंजों के कारोबार में तो जल्द बढ़ोतरी देखने को नहीं मिलेगी क्योंकि सीटीटी कभी लागू ही नहीं किया गया था लेकिन इससे कमोडिटी एक्सचेंजों के माहौल में सुधार होगा।
कमोडिटी डेरिवेटिव में मार्जिन कम होने के चलते निवेशकों और पंटरों ने शेयरों से कमोडिटी एक्सचेंजों का रुख किया था। सीटीटी खत्म हो जाने से ऐसे निवेशकों और पंटरों को फायदा होगा। कमोडिटी बाजार को सबसे ज्यादा लाभ कोल्ड स्टोरेज और गोदाम (वेयरहाउस) में किए जाने वाले निवेश पर पहले साल में 100 फीसदी डेप्रीसिएशन की इजाजत देने के फैसले से होगा। पहले यह डेप्रीसिएशन लंबी अवधि में देने का नियम था। कोल्ड स्टोरेज और गोदाम कमोडिटी बाजार के लिए जरूरी ढांचागत सुविधाएं हैं। ये हाजिर और फ्यूचर्स, दोनों तरह के बाजारों के लिए महत्वपूर्ण हैं। सीटीटी हटाए जाने और डेप्रीसिएशन के लाभ से गोदामों में निवेश बढ़ेगा। एमसीएक्स के निदेशक अंजनी सिन्हा ने कहा, 'बजट में की गई घोषणा से वेयरहाउसिंग के क्षेत्र में भारी निवेश देखने को मिलेगा। सीटीटी खत्म हो जाने से कमोडिटी बाजार को लेकर अनिश्चितता खत्म हो गई है। अब घरेलू कमोडिटी बाजार दुनिया के 25 बड़े बाजारों में शामिल हो जाएंगे। दुनिया के शीर्ष 25 कमोडिटी बाजारों में ही कमोडिटी डेरिवेटिव का 99.99 फीसदी कारोबार होता है।' एनसीडीईएक्स के एमडी और सीईओ आर रमेशन का मानना है कि सीटीटी हटाए जाने से बाजार में ट्रेडरों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सीटीटी खत्म हो जाने से बाजार पर बनी अनिश्चितता खत्म हो गई है। पिछले साल इसे लागू करने का प्रस्ताव पेश किया गया था। रमेशन के मुताबिक इससे बाजार में ट्रेडरों की हिस्सेदारी बढ़ेगी, जो अब ज्यादा खुलकर ट्रेडिंग कर सकेंगे। कमोडिटी एक्सचेंजों में होने वाले सौदे के वॉल्यूम के मुताबिक ग्राहक को प्रति एक लाख के कारोबार पर 2-4 रुपए का भुगतान करना पड़ता है। यदि प्रत्येक एक लाख रुपए के कारोबार पर सीटीटी लगा होता तो प्रति एक लाख रुपए पर कारोबार की लागत बढ़कर 19-21 रुपए तक चली गई होती। इससे डे-ट्रेडरों और सटोरियों के लिए कारोबार करना मुश्किल हो जाता, क्योंकि ये बहुत ही कम मार्जिन पर कारोबार करते हैं। इससे बाजार में एक तरफ जहां तरलता में कमी आती, वहीं उतार-चढ़ाव में बढ़ोतरी होती। कमोडिटी बाजार से जुड़े लोगों ने सरकार से कहा था कि कारोबार की लागत बढ़ने से अंतत: ट्रेडर अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंजों का रुख करेंगे या डब्बा ट्रेडिंग शुरू करेंगे। हालांकि, सोमवार को बजट की घोषणाओं पर बाजार ने ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वित्त मंत्री ने उद्योग की एक और प्रमुख मांग पूरी नहीं की है। कमोडिटी ट्रेडरों ने मांग की थी कि कमोडिटी डेरिवेटिव ट्रेडरों को शेयरों के डेरिवेटिव ट्रेडरों के समान माना जाए। शेयर के डेरिवेटिव ट्रेडरों को सौदों पर होने वाले नुकसान को सेट ऑफ करने की सुविधा मिलती है। वे अपने डेरिवेटिव सौदों पर हुए नुकसान को कारोबारी लाभ से सेट ऑफ करते हैं। देश के तीन मल्टीकमोडिटी एक्सचेंजों-मुंबई के एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स और अहमदाबाद के एनएमसीई में होने वाला कारोबार वित्त वर्ष 2004 में 27,787 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2008-09 में 51.85 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। चालू वित्त वर्ष में जून के अंत तक तीनों एक्सचेंजों में 15.42 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हो चुका था। (ET Hindi)
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