मुंबई: सरकार से जुड़े रणनीतिकार और अर्थशास्त्री कमोडिटी बाजार को राजनीतिज्ञों की छाया से मुक्त करना चाहते हैं। आर्थिक सर्वे में कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट को बढ़ावा देने की बात कही गई है। सर्वे में कमोडिटी एक्सचेंजों में उड़द, तूर, चावल और चीनी जैसे कृषि उत्पादों के कारोबार पर लगे प्रतिबंध को हटाने की सलाह दी गई है। कुछ समय पहले इन कृषि उत्पादों की फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर रोक लगा दी गई थी। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'सर्वे में कमोडिटी की फ्यूचर्स ट्रेडिंग को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया गया है। इसमें कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग से संबंधित दो रिपोर्टों - अभिजीत सेन समिति की रिपोर्ट और आईआईएम बैंगलोर की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।
दोनों रिपोर्टों में यह कहा गया था कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है जो यह दिखाता हो कि फ्यूचर्स कीमतें हाजिर कीमतों पर असर डालती हैं और हाजिर कीमतें फ्यूचर्स कीमतों को प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कृषि कमोडिटी की कीमतें मांग और आपूर्ति के बुनियादी सिद्धांत से तय होती हैं।' उन्होंने कहा कि सर्वे से यह भी पता चलता है कि सरकार कुछ कमोडिटी के कारोबार पर लगे प्रतिबंध हटाने के बारे में भी सोच रही है। सरकार ने दो साल के प्रतिबंध के बाद मई में गेहूं में फ्यूचर्स ट्रेडिंग की इजाजत तो दे दी, लेकिन कुछ ही समय बाद चीनी में दिसंबर 2009 तक नए कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च करने पर रोक लगा दी और ट्रेडरों को उनके खड़े सौदे काटने के निर्देश दिए। तूर और उड़द पर दो साल पहले प्रतिबंध लगाया गया था और निकट भविष्य में दोबारा इनमें ट्रेडिंग शुरू होने की कम ही संभावना दिखाई देती है। इसकी वजह यह है कि पिछले साल इन फसलों की पैदावार कम हुई थी और अभी इनकी कीमतें ऊंची चल रही हैं। 2007 में गेहूं के साथ ही चावल की फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय चावल में खास कारोबार नहीं हो रहा था। सर्वे में यह बताया गया है कि डेरिवेटिव मार्केट कमोडिटी बाजार के भविष्य का संकेत देने वाला जरिया हो सकता है। सर्वे में सभी वित्तीय बाजार के नियमन का काम सेबी को सौंपने की सिफारिश की गई है। इसका मतलब यह है कि कमोडिटी बाजार का नियमन भी सेबी के तहत आ सकता है। इससे पहले इस प्रस्ताव पर फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के चेयरमैन बी सी खटुआ ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। खटुआ ने ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में हाल में कहा था, 'नियमन से संबंधी कामकाज को एक संस्थान के तहत लाने के बजाय कमोडिटी फ्यूचर्स और हाजिर बाजार के नियमन को एक संस्थान के तहत लाया जाना चाहिए। इससे कीमत निर्धारण की व्यवस्था प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।' खटुआ ने कहा था कि इस समय कन्वर्जेंस की बात करना व्यावहारिक नहीं होगा। सर्वे में कमोडिटी के हाजिर बाजार में होने वाले सौदे को इलेक्ट्रॉनिक रूप में लाने की सिफारिश की गई है। एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटियों के सहयोग से ऐसा किया जा सकता है। अभी सभी हाजिर बाजार राज्य सरकारों के नियंत्रण में हैं। नेशनल स्पॉट एक्सचेंज के एमडी और सीईओ अंजनी सिन्हा ने कहा, 'अभी यह साफ नहीं है कि हाजिर इलेक्ट्रॉनिक बाजार का नियमन कौन करेगा, लेकिन सरकार उत्पाद के बेहतर मूल्य निर्धारण के लिए इलेक्ट्रॉनिक हाजिर बाजार को बढ़ावा देना चाहती है। ' (ET Hindi)
06 जुलाई 2009
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