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17 जुलाई 2009

खराब मॉनसून के बाद किसानों के हितों की रक्षा बड़ी चुनौती

नई दिल्ली: देश में फसलों के खराब होने की सबसे बड़ी वजह मॉनसून की पतली हालत होती है। इस बार गर्मियों में खराब मॉनसून से चिंतित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को खाद्य सुरक्षा और आवश्यक कमोडिटी की कीमतों के बारे में मंत्रियों की विशेषाधिकार प्राप्त समिति गठित करने की पहल की, लेकिन सरकार को देश के किसानों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर योजना तैयार करने पर अब भी काम करना है। सरकार को अभी संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एमएनएआईएस) पर संयुक्त कार्य समूह को लेकर वित्त मंत्रालय (खर्च विभाग) और योजना आयोग के सुझाव का इंतजार है। देश के महज चार फीसदी किसानों को फसल बीमा योजना उपलब्ध है, इसे ध्यान में रखते हुए यह बुरी खबर है। इससे भी ज्यादा बुरा यह है कि 2003 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक देश के 57 फीसदी किसान फसल बीमा योजना के बारे में अवगत नहीं हैं। मौजूदा फसल बीमा योजना में सुधारों की जरूरत देखते हुए संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की गई थी। एनएआईएस लागू होने के बाद उसमें थ्रेसहोल्ड यील्ड, क्षतिपूर्ति के ऊंचे स्तर (80 फीसदी और 90 फीसदी), बुआई से पहले/प्लांटिंग के जोखिम को कवर करने, कटाई के बाद नुकसान और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा आदि को लेकर इस ज्वाइंट ग्रुप की स्थापना हुई थी। बदले हुए एनएआईएस को ग्रुप के सुझाव और राज्य सरकारों समेत विभिन्न हिस्सेदारों से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया। बहरहाल योजना आयोग ने प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं दी क्योंकि उसका मानना था कि एमएनएआईएस को नॉन प्लान फंडिंग के तहत लागू किया जाना चाहिए। इसके अनुसार मार्च 2009 में गैर योजनागत कार्यक्रम के तहत योजना की स्वीकृति के लिए एक प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेजा गया था। इस प्रस्ताव की रूपरेखा 29 सितंबर 2008 को कृषि मंत्री शरद पवार, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिंदबरम की बैठक में तैयार हुई थी। योजना को और विस्तार देते हुए बैठक में मौसम आधारित समग्र बीमा योजना पर भी चर्चा की गई थी। कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने ईटी को बताया, 'अगर हम उत्पादकता की बात करते हैं तो इसे मापने का तरीका बहुत पुराना और अल्प विकसित है, यहां तक मुख्य फसलों जैसे चावल और गेहूं जिनके बारे में ऐतहासिक आंकड़ा मौजूद है, वहां भी यह समस्या है। इस कारण किसानों को कर्ज की गंभीर समस्या से मुक्त कराने के लिए एमएनएआईएस को लागू करना बेहद जरूरी है।' इस बीच, सरकारी सूत्रों का कहना है कि सबसे बड़ी रुकावट एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एआईसी) की तरफ से है। एआईसी का कहना है कि बढ़े हुए क्षेत्र के लिए प्रीमियम बढ़ाया जाए। इस समय एमएनएआईएस को 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है। पिछले 15 फसली सीजन रबी 1999-2000 से रबी 2006-07 के बीच इसके तहत 971 लाख किसानों को कवर किया गया। इसमें 1,562 लाख हेक्टेयर भूमि रही और करीब 97,181 करोड़ रुपए का बीमा किया गया। करीब 9,857 करोड़ रुपए के दावों का भुगतान किया गया। (ET Hindi)

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