कोच्चि July 17, 2009
काली मिर्च के बाजार पर इंडोनेशिया का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है।
इंडोनेशिया की काली मिर्च की कीमतों की वर्तमान नीति कुछ यही बयान कर रही है कि वह बाजार पर कब्जा करने की फिराक में है। इससे काली मिर्च के निर्यातकों को पसीना आ रहा है, खासकर वियतनाम इससे खासा चिंतित है।
जब फसल की कटाई तेज होती है, इंडोनेशिया ने एस्टा ग्रेड काली मिर्च कीमतें कम करके 2200 रुपये प्रति टन कर दिया। यह सभी महत्वपूर्ण बाजारों में न्यूनतम कीमत है। इंडोनेशियाई निर्यातकों द्वारा कीमतों में भारी कमी किए जाने से यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के खरीदारों को बाहर हटना पडा और उन्होंने तभी खरीदारी की, जब इसकी जरूरत थी।
खबरें यह भी हैं कि जुलाई-सितंबर के दौरान मसालों की कोई कमी नहीं होने वाली है, जैसे कि हाल में उम्मीद की जा रही थी। इंडोनेशिया के पास ही निर्यात करने के लिए 15,000 टन एस्टा कालीमिर्च है। उसका कुल उत्पादन 20,000-22,000 टन के बीच रहने की उम्मीद है और ब्राजील में अगले महीने से फसल आने लगेगी।
ब्राजील का उत्पादन 30,000-35,000 टन के बीच रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसके साथ ही वैश्विक स्टॉक 85,000-90,000 टन के बीच दिसंबर तक रहेगा। इसमें वियतनाम का 35,000 टन पहले का स्टॉक भी शामिल है। इतने स्टॉक को ठीक-ठाक ही माना जा सकता है।
कोच्चि के एक कारोबारी ने कहा कि अगर इस साल मौसम खराब रहने से उत्पादन कम भी होता है, तो यह पर्याप्त स्टॉक है। इन खबरों के बीच और इंडोनेशिया द्वारा रणनीति के तहत कीमतों में कमी किए जाने के बाद कोई इस समय गोदाम बनाना नहीं चाहता। इस खबर से कीमतों में उछाल वाले बाजार में थोड़ी राहत जरूर मिल रही है।
साथ ही वियतनाम ने भी एस्टा ग्रेड की काली मिर्च की कीमतें कम करके 2400 डॉलर प्रति टन कर दिया है और ब्राजील नई फसल के लिए 2350 डॉलर प्रति टन के ऑफर कर रहा है। हालांकि भारत में कीमतों में बदलाव नहीं हुआ है और कीमतें 2650 डॉलर प्रति टन के आसपास हैं।
अमेरिका जैसे देशों के परंपरागत खरीदार इस समय इंडोनेशिया से काली मिर्च की खरीद कर रहे हैं, जो इस समय सबसे सस्ती दर पर बिक्री कर रहा है। हाल में खरीद के आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका ने मई महीने के दौरान कुल 2315 टन काली मिर्च की खरीदारी इंडोनेशिया से की है, जबकि उसकी कुल खरीद 4364 टन है।
वियतनाम जितनी आपूर्ति करता था, उसका आधा भी अमेरिका को बेचने में सफल नहीं हुआ। अब ऐसा लगता है कि आगामी कुछ सप्ताह में इंडोनेशिया ही वैश्विक बाजार की दिशा तय करेगा। अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा कमजोर होने की वजह से उत्पादक देश जल्द से जल्द अपना गोदाम खाली करने की फिराक में हैं। (BS Hindi)
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