चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार की मुहिम आगामी पेराई सीजन (अक्टूबर, 2010 से सितंबर, 2011) में पूरी होती नहीं दिख रही है। गुरुवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सामने पेश किया गया पवार का फार्मूला लगता है प्रधानमंत्री को संतुष्ट नहीं कर पाया है। सरकार में उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने पवार को इस मुद्दे पर राज्यों की राय लेने के लिए कहा है। चीनी जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मु्द्दे पर राज्यों की सहमति मिल पाना लगभग असंभव है। खासतौर से लेवी कोटा और गन्ना क्षेत्र रिजर्वेशन आर्डर को समाप्त करने का प्रस्ताव सबसे टेढ़ा साबित होगा क्योंकि गन्ना क्षेत्र रिजर्वेशन प्रावधान समाप्त होने की स्थिति में राज्यों का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करने का अधिकार भी समाप्त हो जाएगा।
चौंकाने वाली बात यह है कि जहां शरद पवार चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की वकालत कर रहे हैं वहीं उनके नियंत्रण वाले खाद्य मंत्रालय के विभाग चीनी निदेशालय का 31 अगस्त का एक आदेश चीनी मिलों पर नियंत्रण में बढ़ोतरी करने वाला है। इसके तहत चीनी मिलों को कहा गया है कि वह चीनी उत्पादन, भंडार और बिक्री का ब्यौरा दैनिक के आधार पर एसएमएस के जरिये दें, जो शायद ही किसी दूसरे उद्योग पर लागू है। शरद पवार ने गुरुवार को प्रधानमंत्री के सामने चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने का जो फार्मूला पेश किया था उसमें लेवी चीनी की व्यवस्था को समाप्त करने का प्रावधान है।
यानी सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को वितरित करने के लिए बाजार मू्ल्य पर मिलों से सीधे चीनी खरीदनी होगी। इसके साथ ही उन्होंने चीनी मिलों के लिए खुले बाजार में चीनी बिक्री का हर माह जारी होने वाला कोटा भी समाप्त करने की वकालत की है। तीसरा और सबसे विवादास्पद प्रस्ताव चीनी मिलों के लिए रिजर्व होने वाले गन्ना क्षेत्र की व्यवस्था को समाप्त करने का है। इसके तहत गन्ना क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त कर केवल फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) के भुगतान की शर्त लागू करने की बात कही गई है। यानी किसान अपनी मर्जी से किसी भी चीनी मिल को गन्ना बेच सकेंगे। उद्योग सूत्रों के मुताबिक मौजूदा व्यवस्था के तहत गन्ना नियंत्रण आदेश के तहत राज्य सरकारें चीनी मिलों को गन्ना आरक्षित आदेश जारी करती हैं।
उत्तर प्रदेश सहित एसएपी की घोषणा करने वाले राज्यों में एसएपी के आधार पर होने वाले कांट्रैक्ट के तहत ही गन्ना रिजर्वेशन आदेश जारी होता है। यानी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अगर रिजर्वेशन की व्यवस्था समाप्त हो जाती है तो एसएपी का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा। पिछले साल जब केंद्र सरकार ने एफआरपी की व्यवस्था लागू करने के लिए अध्यादेश जारी किया था और राज्यों का एसएपी तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया था तो राज्यों ने उसका भारी विरोध किया था। साथ ही किसानों का बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया था। इसके चलते केंद्र सरकार को एफआरपी अधिनियम में बदलाव कर राज्यों का एसएपी तय करने का अधिकार बहाल करना पड़ा था। ऐसे में यह तय है कि केंद्र द्वारा मांगी गई राय में गन्ना क्षेत्र रिजर्वेशन आर्डर समाप्त करने का राज्य विरोध करेंगे।
वहीं एक अन्य सूत्र का कहना है कि चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की इस पहल पर तमिलनाडु पहले ही आपत्ति जता चुका है। राज्य ने यह बात साफ कर दी है कि चीनी उद्योग को नियंत्रण मुुक्त करने के मसले पर उनसे राय मांगी जाए। इसलिए राज्यों से राय मांगने के पीछे इसे भी एक कारण माना जा रहा है। दूसरी ओर उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की इस मुहिम के दौरान ही चीनी निदेशालय ने 31 अगस्त को एक आदेश जारी कर चीनी मिलों से कहा है उन्हें चीनी उत्पादन, स्टाक और डिस्पैच की जानकारी अब दैनिक आधार पर एसएमएस के जरिये देनी होगी। मिलों द्वारा प्रोफार्मा-2 पर साप्ताहिक आधार दी जा रही जानकारी के अतिरिक्त यह व्यवस्था की गई है।
मिलों के प्रबंध निदेशकों, सीईओ और महाप्रबंधकों को भेजे इस आदेश में कहा गया है कि वह 15 दिन में एक डेडिकेटेड मोबाइल नंबर, प्लांट का कोड या शार्ट नेम, संबंधित अधिकारी का नाम, उसका मोबाइल नंबर और मोबाइल आपरेटर का नाम निदेशालय को भेज दें। मिलों द्वारा एसएमएस पर भेजी जाने वाली इस जानकारी के लिए नेशनल इंफोमेटिक्स सेंटर (एनएआईसी) ने एक साफ्टवेयर तैयार किया है जो कंप्यूटर में यह जानकारी फीड कर देगा। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि उनका मंत्रालय उद्योग को नियंत्रण मुक्त करना चाहता है या फिर नये नियंत्रण लागू करना चाहता है। (Business Bhaskar)
04 सितंबर 2010
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