नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने की सरकारी पहल के बीच अपनी आवाज न सुने जाने पर भड़के किसान नेताओं ने हैरानी जताई है। उन्हें लगता है कि बिना उनके भला चीनी उद्योग का अस्तित्व कहां है? फिर भी उन्हें इस पूरी प्रक्रिया से क्यों अलग रखा जा रहा है? न सरकार पूछ रही है और न ही उद्योग। उन्हें आशंका है कि किसानों को सरकार कहीं चीनी मिलों के रहमोकरम पर न छोड़ दे।
राज्य गन्ना समितियां उत्तर प्रदेश के चेयरमैन अवधेश मिश्रा ने कहा कि चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्त करने के लिए शुरू हुई चर्चा में सरकार किसान संगठनों को पक्षकार नहीं मान रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि किसानों से चर्चा किए बगैर अगर सरकार कोई भी फैसला लेती है तो वे आंदोलन के रास्ते पर जाने को विवश होंगे। इस अहम मसले पर चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों से कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार लगातार चर्चा कर रहेहैं, लेकिन गन्ना किसानों के प्रतिनिधियों की अनदेखी की जा रही है।
किसान जागृति मंच के संयोजक सुधीर पंवार ने कहा कि सरकार पहले तो यह स्पष्ट करे कि गन्ने का न्यूनतम मूल्य तय करेगी अथवा वास्तविक लाभकारी लागत मूल्य। लेवी चीनी न देने से जो फायदा मिलों को होगा, उसका कितना हिस्सा किसानों को मिलेगा। गन्ने के सह उत्पादों से हुई आय को मिलें गन्ना किसानों के साथ कैसे साझा करेंगी? ये सारी स्थितियां साफ होनी चाहिए। गन्ना बुवाई का रकबा अथवा चीनी उत्पादन के वास्तविक आंकड़ों के आने से पहले ही बढ़ा चढ़ाकर पेश किए जा रहे ब्यौरे सरासर गलत हैं। यह आंकड़ा पेशकर चीनी उद्योग अपने माफिक माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि आंकड़ों से फसलें नहीं बढ़तीं, लेकिन मिलों की सेहत और जिंस बाजार में चीनी के मूल्य पर इसका असर जरूर पड़ेगा। इसका खामियाजा उपभोक्ता व किसानों को भुगतना पड़ता है। (दैनिक जागरण)
02 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें