नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नियंत्रण मुक्त होने के लिए छटपटा रहा चीनी उद्योग केंद्र सरकार की हर शर्त मानने को तैयार हो गया है। अब वह पूर्ण नियंत्रण मुक्त होना चाहता है। इस मसले पर चीनी उद्योग संगठनों के साथ गुरुवार को कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार की लंबी बैठक हुई, जिसमें गन्ना क्षेत्र को अनारक्षित करने जैसे विवादित मुद्दे पर सहमति बन गई है। यानी किसान अपना गन्ना किसी भी मिल को बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। गन्ने का उचित व लाभकारी मूल्य [एफआरपी] तय करने का अधिकार सरकार के पास रहेगा।
बैठक में निजी व सहकारी चीनी मिलों के उद्योग संगठन अपने सभी मतभेदों को भुलाकर इस दिन सरकार के समक्ष आए। उन्होंने सरकार के आगे कोई शर्त नहीं रखी, बल्कि सरकार पर ही निर्णय करने का अधिकार छोड़ दिया। बैठक में आगामी गन्ना वर्ष में गन्ने की पैदावार और चीनी उत्पादन को लेकर अलग-अलग अनुमानित आंकड़े पेश किए गए। गन्ना बुवाई का रकबा जहां 19 फीसदी अधिक बताया गया वहीं चीनी का उत्पादन 270 लाख टन तक बता दिया गया। जबकि सरकार का अनुमान 230 लाख टन से अधिक नहीं है। इस्मा और सहकारी मिलों के अनुमान अलग-अलग हैं।
नियंत्रण मुक्त होने की जल्दी का यह एक नमूना है। सरकार को यह आंकड़ा दिखाकर यह बताने की कोशिश की जा रही थी कि चीनी की कोई कमी नहीं होने पाएगी। दूसरी ओर एफआरपी का हवाला देकर यह साबित किया गया कि किसानों को गन्ने का अच्छा भाव मिलेगा। चीनी के आंकड़ों के घालमेल से पैदा हुई मुश्किलों का नमूना चालू गन्ना वर्ष में देखने को मिला था। उद्योग संघों का चीनी उत्पादन का अनुमान सिर्फ 130 लाख टन था जो अब बढ़कर 190 लाख टन तक पहुंच गया। इसी के चलते चीनी 50 रुपये किलो तक बिक गई।
कृषि व खाद्य मंत्री पवार ने इस मुद्दे पर प्रारंभिक चर्चा तो शुरू कर दी है, लेकिन सरकार फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठाने को तैयार है, जिससे महंगाई को हवा मिले। इस बात को पवार ने खुद ही बुधवार को स्वीकार किया। बैठक से बाहर आए उद्योग प्रतिनिधियों ने बातचीत में बताया कि सरकार की ओर से कोई समय सीमा का संकेत नहीं दिया गया है। चीनी उद्योग नियंत्रण मुक्त करने की चर्चा शुरू होने से ही संतुष्ट है। (दैनिक जागरण)
02 अगस्त 2010
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