मुंबई August 06, 2010
लंबे समय से आम आदमी की हालत पतली करने वाली दाल के दाम अब कम होने लगे हैं। समय पर आए मॉनसून की वजह से इस बार दलहन फसलों का रकबा करीब 16 फीसदी बढ़ा है और कीमतें ज्यादा होने के चलते बाजार में मांग भी कमजोर बनी हुई है।रकबा बढऩे और बेहतर फसल की खबर से इस बार उत्पादन भी अनुमान से ज्यादा होने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके चलते सटोरिये बाजार से दूरी बनाने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं, जिसका असर दाल की कीमतों पर पड़ रहा है। भारतीय खाने में सबसे पसंदीदा अरहर (तुअर) दाल सबसे ज्यादा लोगों की जेब पर भारी पड़ी थी। इस साल की शुरुआत में (जनवरी) तुअर दाल थोक बाजार में 5,800 रुपये प्रति क्विंटल के रिकॉर्ड पर थी, जबकि खुदरा बाजार में तुअर 100 रुपये प्रति किलोग्राम पर भी मिलनी मुश्किल थी। लाख सरकारी मशक्त के बाद भी जून तक तुअर दाल थोक बाजार में 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तक ही पहुंच सकी, जबकि खुदरा बाजार में 80 रुपये किलोग्राम के पार खड़ी होकर मुंह चिढ़ाती दिखाई दे रही थी। लेकिन इंद्र देव की कृपा से समय पर मॉनसून आने के कारण अरहर फसल की बुआई हुई है और बहुत से इलाकों में अब भी बुआई चल रही है। किसानों के चेहरे की चमक से सटोरियों का चेहरा पीला पडऩे लगा और तुअर की कीमतें आसमान से जमीन पर आने लगी हैं।फिलहाल थोक बाजार में तुअर के भाव प्रति क्विंटल 3,400 रुपये से भी नीचे आ गए हैं, जबकि खुदरा बाजार में 65-70 रुपये प्रति किलोग्राम पर अरहर दाल बिक रही है। दलहन फसलों का रकबा बढऩे से अरहर की तरह दूसरी दालों के भाव भी नीचे की ओर खिसक रहे हैं। थोक बाजार में दो सप्ताह पहले चना 2,350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा था, अब यह गिरकर 2,240 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया है।मसूर 4,200 रुपये से गिरकर 3,350 रुपये, उड़द 5,350 रुपये से घटकर 4,700 रुपये प्रति क्विंटल और मटर 1,600 रुपये से खिसक कर 1,400 रुपये प्रति किवटल पर बिक रही है। थोक बाजार में गिरावट का असर खुदरा बाजार में बिक रही दालों पर भी हो रहा है। यही वजह है कि लगभग सभी दालों के भावों में दो सप्ताह के अंदर करीब 10 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।कृषि मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बार किसानों ने दलहन फसलों को काफी प्राथमिकता दी हुई है। जुलाई तक केबुआई आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस बार दलहन का रकबा 15।80 फीसदी बढ़ा गया है।पिछले साल 75.44 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुआई की गई थी, जबकि इस बार 87.36 लाख हेक्टेयर पर दलहन की फसल खड़ी बताई जा रही है। अरहर की बुआई पिछले साल की समान अवधि के 27.25 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 33.60 लाख हेक्टेयर, उड़द 15.65 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 16.66 लाख हेक्टेयर और मूंग 19.71 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 22.23 लाख हेक्टेयर पर बुआई हुई है। देश के कई हिस्सों में मध्य जुलाई तक सामान्य से कम बारिश हुई थी जो दलहन फसलों के लिए अच्छी मानी जाती है। दलहन की फसल बुआई के लिए ज्यादा बारिश की नहीं बल्कि हल्की बरसात की जरूरत होती है। देश के लगभग सभी हिस्सों में बरसात होने और दलहन का रकबा बढऩे के कारण दलहन की कीमतों पर लागम लगने की भी उम्मीद की जा रही है।शेयरखान ब्रोकिंग के कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल कीमतों में अभी और गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं उनके अनुसार पिछले दो वर्षों में दलहन की फसल ने किसानों को मोटा मुनाफा पहुंचाया है, जिसकी वजह से किसान दलहन फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। देश में दालों की सालाना खपत 170-180 लाख टन है, जबकि वर्ष 2009-10 में करीब 145 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। पिछले साल लगभग 34 लाख टन दालों का आयात किया गया था। (बीएस हिंदी)
07 अगस्त 2010
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