मुंबई August 10, 2010
कृषि मंत्रालय ने पहली बार मौजूदा खरीफ और आगामी रबी सीजन के लिए आकस्मिक योजना तैयार की है, जो देश के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के तमाम दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून परिदृश्य के लिए अनुकूल रहेगी।यह योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत कृषि उत्पादन पर गठित एक कार्य समूह की सिफारिशों का हिस्सा है। इसमें मॉनसून की पूरी अवधि के दौरान 102 फीसदी औसत बारिश की परिकल्पना की गई है, जिसमें 4 प्रतिशत कमी-बेशी की गुंजाइश बताई गई है। खरीफ मौजूदा मॉनसून की फसल है, जबकि रबी जाड़े के मौसम की फसल है। यह योजना अमल में लाने के लिए तमाम राज्यों को भेजी जा रही है, जबकि हैदराबाद में शुष्क जमीन के लिए केंद्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से प्रत्येक जिले के लिए आकस्मिक योजना तैयार की जा रही है। इन योजनाओं का खाका इस वर्ष सितंबर-अक्टूबर तक तैयार हो जाएगा। रबी मौसम 2010-11 के लिए भी एक संक्षिप्त आकस्मिक योजना बनाई गई है क्योंकि कृषि मंत्रालय का आकलन है कि दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून एक महीना लंबा खिंच सकता है। ऐसी स्थिति में रबी के मौसम में अतिरिक्त पानी का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा, इसकी योजना पहले से तैयार होनी चाहिए।इस योजना में कहा गया है कि इस वर्ष अगस्त में चूंकि समय पर बारिश हो रही है, इसलिए उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के उत्तरी पहाड़ी हिस्सों के किसानों को मूंग, फलियों, लोबिया और बाजरे की खेती करनी चाहिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाजरा, ग्वार और लोबिया की खेती जबकि पूर्वी राजस्थान को तिल और हरे चने की खेती करने की सलाह दी गई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को संकर बाजरे, हरे चने, काले चने, तिल, कम समय लगने वाले धान की किस्मों, लोबिया और ग्वार की खेती करने को कहा गया है, जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसानों को सूर्यमुखी, मटर और अरंडी की खेती करने की सलाह दी गई है। इस योजना के मुताबिक विदर्भ के किसानों को फिलहाल मटर, अरंडी और मक्के की खेती करनी चाहिए। गुजरात के किसानों को अरंडी, फली, चारे, काले चने और मक्के की खेती की सलाह दी गई है और उड़ीसा के किसानों को रामतिल, काले चने, गाजर, फली, तिल और लोबिया की खेती करनी चाहिए। दक्षिणी राज्यों के किसानों को संकर किस्म की सूरजमुखी, बाजरे, लाल चने, मूंगफली, हरे चने और चारे की खेती की सलाह दी गई है।फसलवार योजना के तहत वर्षा सिंचित इलाकों या उन इलाकों के किसानों को छोटी अवधि वाली धान की किस्मों की खेती की सलाह दी गई है, जहां देर से बारिश होने की संभावना है। सिंचित इलाकों में फसलों की सिंचाई 1 से 4 दिनों के अंतराल पर करने की सलाह दी गई है। यदि 31 जुलाई के बाद भी बारिश जारी रही तो मक्के, चने, काले चने और हरे चने की खेती की सलाह दी गई है।दालों के मामले में देर से बारिश होने की स्थिति में किसानों को काले चने, मटर, मोठ और हरे चने की खेती करनी चाहिए। मक्के जैसी खरीफ फसलों के असफल होने की स्थिति में तिलहन, रामतिल और अरंडी की फसल उगानी चाहिए। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में मूंगफली का रकबा बढ़ाने की सलाह दी गई है। पंजाब और हरियाणा जैसे बाढ़ प्रभावित इलाकों में बासमती चावल की खेती करने की सलाह दी गई है। इस योजना में चावल और मूग का सबसे बेहतर विकल्प मक्के को बताया गया है। जिन इलाकों से बाढ़ का पानी देरी से उतरा है, वहां उड़द और लोबिया की खेती की सलाह दी गई है।रबी की बुआई में अत्यधिक पानी की मुश्किलों से बचने के लिए सरसों की ट्रोइका, तारामीरा और अगरानी किस्मों की खेती करने की सलाह दी गई है। जिन इलाकों में सितंबर के अंत तक बारिश जारी रहती है, वहां गेहूं और चने या चने और जौ की मिजी-जुली खेती करनी चाहिए। योजना में मिट्टी और पानी प्रबंधन के तरीके भी शामिल हैं। (BS Hindi)
11 अगस्त 2010
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