बेंगलुरु : अरैबिका (कॉफी बींस की एक किस्म) की अंतरराष्ट्रीय कीमतें उछाल मार रही हैं, लेकिन भारतीय कॉफी निर्यातकों और उत्पादकों को इसका कोई फायदा मिलता नहीं दिख रहा है क्योंकि भारत में अरैबिका का पर्याप्त भंडार ही नहीं है। यदि इंटरनेशनल कॉफी ऑर्गनाइजेशन (आईसीओ) द्वारा तैयार डेली वेटेड एवरेज (डीब्ल्यूए) कीमत पर नजर डालें तो अरैबिका की कीमत पिछले सोमवार को प्रति पाउंड 161.17 सेंट तक पहुंच गई थी। इसके बाद यह 52 हफ्ते के उच्चतम स्तर 161.24 सेंट तक पहुंच गई। कॉफी की कीमतों में इस उछाल का स्थानीय कारोबारियों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। एक प्रमुख काफी उत्पादक ने बताया, 'कोई भी अरैबिका की कीमतों में इस उछाल की वजह नहीं बता सकता, क्योंकि इसका उपलब्ध भंडार से कोई तालमेल नहीं है। उदाहरण के लिए भारत में अरैबिका बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है और अब केवल 10,000 से 15,000 टन रोबस्टा का ही भंडार बचा है। हम नई फसल आने का इंतजार कर रहे हैं।'
एक प्रमुख काफी क्योरेर भी इस बात से सहमत हैं। उन्होंने बताया कि आपूर्ति सख्त होने की वजह से कई भारतीय रोस्टर रोबस्टा को मुख्य कच्चा माल बनाने को मजबूर हुए हैं। निर्यातकों का कहना है कि कॉफी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग एवं आपूर्ति का परिदृश्य काफी सख्त है। गौरतलब है कि अरैबिका एवं रोबस्टा दुनिया में कॉफी की सबसे लोकप्रिय किस्में हैं। इनके अलावा कुछ देशों में केप बराको और लिबेरिका जैसी किस्में भी उगाई जाती हैं। भारत में मुख्यत: रोबस्टा का उत्पादन किया जाता है और कुल कॉफी उत्पादन में इसका हिस्सा करीब 68 फीसदी होता है। आईसीओ की मासिक कम्पोजिट कीमत कोलंबियाई मिल्ड अरैबिक्स, अन्य अरैबिक मिल्ड, ब्राजीलियन नेचुरल और रोबस्टा की दैनिक कीमत पर आधारित होती है। आईसीओ की मासिक कम्पोजिट कीमत इसके पहले फरवरी 2008 में 138।82 सेंट के शीर्ष स्तर पर पहुंची थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट की वजह से पिछले साल दिसंबर तक यह गिरकर 103.07 सेंट तक पहुंच गई। आईसीओ के अनुसार साल 2008-09 में काफी का उत्पादन 12.88 करोड़ टन बैग हुआ था, साल 2008 में कॉफी की कुल खपत करीब 13 करोड़ टन हुई थी। भारत कॉफी के बड़े उत्पादकों में से है लेकिन यहां घरेलू खपत कम होता है और निर्यात पर मुख्य जोर रहता है। (ई टी हिन्दी)
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