मुंबई November 01, 2009
खाद्य तेलों के गिरते घरेलू उत्पादन और स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए आयात बढ़ने से सरकार इसके आयात पर शुल्क लगाने पर विचार कर रही है।
इसका मकसद सस्ते खाद्य तेल के बढ़ते आयात को रोकना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक कृषि सचिव टी नंद कुमार ने आयात के आंकड़े मंगाए हैं, जिससे आयात पर शुल्क लगाने के लिए आधार बन सके।
सरकार इस सिलसिले में महंगाई को देखते हुए फूंक-फूंककर कदम रख रही है। एक अप्रैल 2008 से कच्चे और रिफाइंड तेल के आयात पर शुल्क क्रमश: शून्य और 7.5 प्रतिशत रखा गया था, जिससे महंगाई पर नियंत्रण किया जा सके। उन दिनों महंगाई दर बढ़कर 13 प्रतिशत के करीब पहुंच गई थी।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष बीवी मेहता ने कहा कि अगर आयात पर शुल्क लगाया जाता है तो इससे खाद्य तेल की कीमतों में करीब शुल्क के आधे के बराबर बढ़ोतरी होगी। एसोसिएशन पिछले साल से ही शुल्क लगाए जाने की मांग कर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि कम से कम 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने की जरूरत है, तभी आयात को रोका जा सकता है। घरेलू रिफाइनरीज से ज्यादा छोटे पैकर्स सस्ते पाम आयल का आयात कर रहे हैं। पिछले महीने रिकॉर्ड 9 लाख टन तेल का आयात हुआ, जबकि औसत मासिक आयात 6.4 लाख टन है।
पिछले साल तक खाद्य तेल का घरेलू उत्पादन 65-70 लाख टन के बीच स्थिर था। इसकी प्रमुख वजह यह है कि बढ़ती खपत को देखते हुए उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए कोई नीति नहीं है। (बीएस हिन्दी)
03 नवंबर 2009
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