07 जुलाई 2009
प्रणब का जन-मोहन बजट
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी सोमवार को जब चालू साल (2009-10) का बजट पेश कर रहे थे तो कहीं न कहीं उनके जेहन में 25 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के समय में पेश अपने पहले बजट का माहौल घूम रहा था। यही सोच उनकी पोशाक में भी दिख रही थी। उन्होंने इस बार भी बंद गले का सफेद कोट ही पहनने का फैसला किया जो उन्होंने 1984 में भी पहना था। प्रणब के इस बजट पर इंदिरा गांधी के दिनों की समाजवाद की छाप साफ दिखती है। इसमें उद्योग जगत के लिए कोई सेलिब्रेशन का मौका नहीं है। यही वजह है कि बजट भाषण के दौरान ही शेयर बाजार करीब छह फीसदी गिर गया। इस बजट के केंद्र में आम आदमी रखने की रणनीति अपनाई गई है।बजट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। व्यक्तिगत आयकर सीमा में 10,000 रुपये और बुजुर्गो के लिए 15,000 रुपये कर छूट सीमा बढ़ाने के साथ आय कर पर 10 फीसदी सरचार्ज को समाप्त किया गया है। लेकिन इससे नौकरीपेशा वर्ग को कोई बड़ी राहत नहीं मिलती। सालाना 40 लाख रुपये तक का कारोबार करने वाले मझोले कारोबारियों को अग्रिम कर भुगतान में छूट देकर राहत दी है। कारपोरेशन कर ज्यों का त्यों रखा गया है लेकिन फ्रिंज बेनेफिट टैक्स को समाप्त कर उद्योग जगत को कामकाजी सुविधा देने की कोशिश भर की गई है। वित्त मंत्री का दावा है कि कि प्रत्यक्ष कर प्रावधानों का राजस्व पर कोई असर नहीं है। लेकिन उत्पाद और सीमा शुल्क में किये गये बदलावों से सरकार को 2000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। सेवा कर के तहत कुछ नई सेवाओं को शामिल किया गया है। माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को अप्रैल, 2010 से लागू करने की प्रतिबद्धता वित्त मंत्री ने दोहराई है।अभी तक के सबसे बड़े 10,20,838 करोड़ रुपये के बजट को पेश करने का दावा तो प्रणब मुखर्जी ने किया लेकिन इसके साथ ही अभी तक का सबसे बड़ा 4,00,996 करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा भी उन्होंने ही रखा है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.8 फीसदी है। लेकिन यह बजटीय अनुमान है और संशोधित अनुमानों में यह बढ़ भी सकता है। पिछले वित्त वर्ष में जिस तरह से कर संग्रह बजटीय अनुमान से करीब 60,000 करोड़ रुपये कम रहा है उस तरह की स्थिति चालू साल में भी दोहराई जा सकती है। इसके वित्त मंत्री ने कहा कि वैश्विक वित्तीय संकट से घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए हमने तीन स्टिमुलस पैकेज दिये और राजस्व में यह कमी उसके चलते आई है। वित्त मंत्री ने इन पैकेजों के जरिये दी गई अधिकांश राहत को जारी रखा है जबकि कुछ को वापस भी लिया है।प्रणब मुखर्जी ने अपने पूरे बजट भाषण के दौरान बहुत की सहज भाव रखा। राजकोषीय स्थिति पर उन्होंने कौटिल्य को उद्धृत करते हुए कहा कि देश की समृद्धि के हित में सरकार को आपदाओं की संभावना का अनुमान लगाने में अध्यावसायी होना होगा। उनके घटित होने के पहले उन्हें टालने का प्रयास करना होगा। जो घटित हो गई हैं उनसे निपटना होगा और राज्य में होने वाली राजस्व हानि को रोकना होगा। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की आम आदमी केंद्रित नीतियों और योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने के लिए उनके प्रावधानों पर सदन में विपक्ष ने कोई खास टिप्पणी भी नहीं की और न ही कोई बड़ा विरोध किसी प्रावधान पर वहां उठा। बजट की शुरुआत करते हुए ही प्रणब मुखर्जी ने साफ किया कि अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं का निदान अकेला एक बजट भाषण नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे सामने तीन चुनौतियां हैं। पहली चुनौती फिर से नौ फीसदी की विकास दर हासिल करना है। दूसरी चुनौती समावेशी विकास के एजेंडा को मजबूत करना है और तीसरी चुनौती है सरकार में नई ऊर्जा का संचार करना। उन्होंने पिछले साल की 6.7 फीसदी की विकास दर के बाद चालू साल में सात फीसदी की विकास दर का ही लक्ष्य रखा है।उन्होंने विनिवेश, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, वित्तीय क्षेत्र को खोलने और कारपोरेट जगत को राहत देकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की रणनीति नहीं अपनाई बल्कि किसानों को सस्ता कर देने, पुरानी कर्ज माफी की योजना में राहत देने का कदम उठाया। सात फीसदी की दर पर अल्पावधि फसल ऋण के लक्ष्य को पिछले साल के आवंटन 2,87,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3.25 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। जबकि समय पर कर्ज चुकाने वाले किसानों के लिए छह फीसदी पर कर्ज देने के लिए बजट में 411 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया है। जबकि मानसून में देरी के नाम पर दो हैक्टेयर से अधिक की जोत वाले किसानों को 25 फीसदी कर्जमाफी की छूट का फायदा लेने की समयसीमा 30 जून से बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2009 कर दी है।वित्त मंत्री ने तीन रुपये किलो के दाम पर गरीबों को हर माह 25 किलो गेहूं या चावल देने के लिए खाद्य सुरक्षा विधेयक को लाने की प्रतिबद्धता जताने के साथ तमाम सामाज कल्याण योजनाओं और रोजगार सृजन की सरकारी योजनाओं को ज्यादा तरजीह दी। वित्त मंत्री ने सार्वजनिक व्यय को ही उत्तप्रेरक के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई है। सालाना एक करोड़ 20 लाख नये रोजगार अवसर पैदा करने के लक्ष्य के साथ उन्होंने यूपीए की सबसे चहेती योजना नरेगा के लिए आवंटन को 2008-09 के संशोधित अनुमानों से करीब 33 फीसदी बढ़ाकर 39,100 करोड़ रुपये कर दिया। हालांकि पिछले साल के बजट अनुमानों के मुकाबले इसे 144 फीसदी बढ़ाने का उल्लेख वित्त मंत्री ने अपने भाषण में किया है। इसके अलावा राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना, इंदिरा आवास योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, ज्वाहरलान नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन और उसके अंदर एक राजीव गांधी आवास योजना, भारत निर्माण, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्व सहायता समूह और शिक्षा से जुड़ी योजनाओं को ही उन्होंने सार्वजनिक व्यय के केंद्र में रखा है। ढांचागत क्षेत्र को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की रणनीति के तहत बजट में आईआईएफसीएल के जरिये एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं के लिए वित्त व्यवस्था करने की घोषणा की गई है। सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के लिए यह पैसा अगले 15 से 18 माह में मुहैया कराया जाएगा। जो ढांचागत क्षेत्र के लिए एक बड़ा निवेश होगा। पिछले सप्ताह आर्थिक समीक्षा में जिस तरह से बोल्ड आर्थिक सुधारों की सलाह दी गई थी उनको वित्त मंत्री ने अर्थविदों की चर्चा के लिए ही छोड़ दिया। सार्वजनिक उपक्रमों के भारी विनिवेश से लेकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा में बढ़ोतरी के प्रावधानों की उम्मीद पालने वाले लोगों की उम्मीदों पर उन्होंने पानी फेर दिया। यही नहीं सब्सिडी पर अंकुश लगाने के लिए पेट्रोलियम और उर्वरक क्षेत्र के लिए सुधार लागू करने जैसे मुद्दों को उन्होंने इस बजट में किसी कार्यदल या कमेटी के नाम पर किनारे कर दिया। यही वजह है कि कारपोरेट जगत और पूंजी बाजार बजट को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिखा। लेकिन यह बात भी साफ है कि वित्त मंत्री को अपना और अपनी सरकार का लक्ष्य साफ दिख रहा था। उन्होंने किसानों, समाज के कमजोर वर्गो और ग्रामीण आबादी के साथ शहरी गरीबों को खुश करने की कोशिश की। उनकी इस कोशिश में अगर एक खास वर्ग तवज्जो नहीं पा सका तो शायद उसकी परवाह इस सरकार को नहीं है। (Business Bhaskar)
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