08 जुलाई 2009
चीन में स्टॉक बढ़ने से घरेलू कॉपर की तेजी को लगा ब्रेक
चीन में कॉपर का भारी स्टॉक जमा होने से वहां खरीद कम हो गई है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में कॉपर के मूल्यों में तेजी थमने लगी है। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पिछले एक सप्ताह के दौरान कॉपर के नकद भाव 5130 डॉलर से घटकर 4858 डॉलर प्रति टन रह गए है। वहीं हाजिर बाजार में कॉपर के दाम 249 रुपये से घटकर 245 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में मंगलवार को कॉपर अगस्त वायदा ख्.फ्8 घटकर फ्ब्9.9क् रहा। जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में इसके मूल्यों में और गिरावट आने की संभावना है।मेटल कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चीन की खरीदारी घटने से घरेलू बाजार में कॉपर के मूल्यों में करीब पांच फीसदी की गिरावट आई है। मेटल विशेषज्ञ अभिषेक शर्मा ने बताया कि चीन ने कॉपर का अधिक स्टॉक होने के कारण खरीदारी कम कर दी है। यही वजह है कि कॉपर के मूल्यों में वैश्विक स्तर पर गिरावट आने लगी है। दरअसल पिछले पांच माह के दौरान चीन ने 14 लाख टन कॉपर आयात किया। यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 130 फीसदी अधिक है। चीनी रिजर्व ब्यूरो ने मई में 3.37 लाख टन कॉपर का रिकार्ड आयात किया था जो पिछले साल मई के मुकाबले 258 फीसदी अधिक है। उनके अनुसार चीन सरकार द्वारा राहत पैकेज देने के कारण इसके आयात में इजाफा हुआ है। जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में इसके मूल्यों में और गिरावट आ सकती है। शर्मा के अनुसार चीन में स्टॉक की तुलना में कॉपर की मांग कम है। लिहाजा इसकी कीमतों में गिरावट के आसार हैं। माना जा रहा है कि चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉपर की भारी बिकवाली कर सकता है। यूबीएस रिपोर्ट के अनुसार चीनी रिजर्व ब्यूरो ने बाजार में निर्यात के लिए एक लाख टन कॉपर जारी कर सकता है। साथ ही कॉपर का अधिक स्टॉक होने के कारण रिफाइंड कॉपर के आयात में जुलाई-दिसंबर के दौरान एक लाख टन तक की कटौती करने की संभावना है।इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) के अनुसार वैश्विक बाजार में वर्ष 2009-10 के दौरान कॉपर का सरप्लस अधिक रहने का अनुमान है। इसके वर्ष 2009 में 3.45 लाख टन और वर्ष 2010 में 4 लाख टन रहने की संभावना है। वहीं कॉपर वैश्विक कॉपर माइन उत्पादन वर्ष 2009 में 3.8 फीसदी बढ़कर 5.9 लाख टन होने का अनुमान है। कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (Business Bhaskar)
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