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07 जुलाई 2009

सूखे इलाकों के लिए मिश्रित खेती की नई विधि

वैसे तो इंटर क्रॉपिंग यानि मिश्रित खेती काफी समय से प्रचलित है। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने इंटरक्रॉपिंग की नई विधि विकसित की है जिसे मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात के ऐसी इलाकों में लगाया जा सकता है जहां पानी की कमी है। इस इंटरक्रॉपिंग की खासियत यह भी है कि इसमें छोटे पेड़ों वाले फलों जैसे बेर व आंवला के साथ चारा उगाया जा सकता है। इससे गांवों में चारे की कमी दूर की जा सकती है। मिश्रित खेती एकल कृषि की तुलना में जोखिम भी कम होता है। फलों के बाग के साथ चारा या दलहनी फसलें एक ही खेत में उगाया जा सकता है। चारा या दलहनी चारे की फसलों की खेती फलों के बाग के साथ अधिकतर उन इलाकों में की जाती है जहां पानी की कमी होती है और पर्याप्त सिंचाई व्यवस्था नहीं होती है। भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई), झांसी के वैज्ञानिकों ने छोटे और लघु किसानों को एकल कृषि से होने वाले जोखिम से बचाने के उद्देश्य से मिश्रित खेती पद्धति की नई विधि तैयार की है, जिसे अपनाकर किसान काफी लाभ कमा सकते हैं। इस नई विधि से चारे की सुलभता सुनिश्चित करके पशुपालन भी किया जा सकता है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार का कहना है कि ऐसी भूमि जो कृषि के लिए अनुपयुक्त है, ऐसी भूमि में उद्यान-चारा पद्धति आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभकारी सिद्ध हुई है। बाग और चारा पद्धतिबेर के बाग के साथ चारे की खेती के लिए बेर के पेड़ों के साथ अंजन घास और स्टाइलो दलहनी चारे की खेती की जाती है। आईजीएफआरआई इस विधि का परीक्षण किया तो पहले वर्ष में प्रति हैक्टेयर 5.5-7.6 टन फलों की पैदावार हुई। इसके अलावा पशुओं के लिए पर्याप्त चारा भी प्राप्त हुआ। इसी पद्धति से दो वर्ष तक बेर के साथ चारे के लिए बाजरा की खेती की गई। इससे दो वषों में प्रति हैक्टेयर 11 टन बेर के फल, 21.2 टन हरा चारा और 6-7 टन लकड़ी प्राप्त हुई। बेर के साथ गिनी घास, दीनानाथ घास और दलहनी चारा (स्टाइलो) की खेती की जा सकती है। आईजीएफआरआई के वैज्ञानिक डॉ. बी. के. त्रिवेदी का कहना है कि संस्थान द्वारा इस मिश्रित खेती से पांच वर्षो में प्रति हैक्येर 6.4 टन फल और 3.8 टन चारा और 7.3 टन जलाऊ लकड़ी प्राप्त की गई है। आंवला आधारित मिश्रित खेतीइसके लिए वैज्ञानिक आंवला की एन.ए.-7 किस्म को लगाने की सलाह देते हैं। यह किस्म लगाने के पांच वर्ष बाद पेड़ से आंवला लगने लगता है। पांच साल बाद फल देना शुरू करती है जो पहले हर साल 2.5 टन प्रति हैक्टेयर पैदावार होती है। बाद में 13.2 टन प्रति हैक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है। आईजीएफआरआई के आंकड़ों के मुताबिक 10 वषों में औसतन फल उपज 9.5 टन प्रति हैक्टेयर और 3.4 टन चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त हुआ है।मिश्रित खेती की विधिआईजीएफआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार यह पद्धति बारिश पर आधारित क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है इसलिए बारिश से पहले खेत तैयार कर लेने चाहिए क्योंकि मानसून में इस वर्ष देरी हुई है इसलिए कई क्षेत्रों में खेत तैयार करने का अभी भी समय है। फलों के पौधे लगाने के लिए छह से आठ मीटर की दूरी पर एक मीटर लंबी-चौड़ी जमीन तैयार करनी चाहिए। इसके लिए गbे खोदकर बारिश से पहले मिट्टी और सड़े गोबर की खाद 60:40 के अनुपात में गbे में भर देनी चाहिए। इसके साथ ही हर गbे में करीब 50 ग्राम नाइट्रोजन, 20 ग्राम फास्फोरस, पोटाश 20 ग्राम और थोड़ी मात्रा में दीमक नाशी दवा भी मिलाकर गbे में डाल देनी चाहिए। अपने क्षेत्र के मुताबिक अच्छी किस्म के कलमी पौधे सरकारी/पंजीकृत या फिर किसी भी विश्वसनीय पौधशाला से ही खरीदें। इन पौधों का गbों में रोपण करने के दौरान ध्यान रखे की जड़ को क्षति न पहुंच पाए। चारा घास की रोपाईघास रोपाई के लिए दो से ढाई महीने पुराने पौध उपयुक्त होते हैं। इन्हें स्थानीय नर्सरी या कृषि विज्ञान केंद्र या आईजीएफआरआई से प्राप्त किया जा सकता है। बारिश के दिनों में इन पौधों की रोपाई करने के लिए पौधे की पंक्तियों की दूरी एक मीटर और पौध से पौध की दूरी 50 सेंटीमीटर तक रखें। आजकल की जारी बारिश में यह पौध आसानी से पनप जाती है।दलहनी चारा बुवाई की विधिकेरवियन स्टाइलो बीज को पहले गर्म पानी में उपचारित करने के बाद 2-3 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से कुछ बारिश होने के बाद, पहले लगाई गई चारा घास की पंक्तियों के बीच में 1-2 सेंटीमीटर की गहराई पर बोनी चाहिए। सिंचाई और देखरेखरोपित फल के पौधों की पहले दो वर्ष तक आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करते रहना चाहिए। दो वर्ष बाद यह पेड़ अपने में ही काफी सक्षम हो जाते हैं। पहले दो साल रोग और कीट आदि के प्रकोप का विशेष ध्यान रखें। आवश्यकता होने पर दवा का छिड़काव करें। खरपतवार और पानी की बचत करने के लिए क्यारियों में गुड़ाई करते रहना जरूरी है। झांसी के आसपास के कई क्षेत्रों में किसान इस विधि को तेजी से अपना रहे हैं। (Buisness Bhaskar)

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