27 मार्च 2009
रत्न-आभूषण निर्यातकों की नजर पश्चिम एशिया पर
मुंबई : अमेरिकी आर्थिक मंदी के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए रत्न एवं आभूषण निर्यातकों ने अब अपनी निगाहें पश्चिम एशियाई देशों पर टिकाई हैं। देश से रत्न एवं आभूषण के कुल निर्यात का करीब 50 फीसदी हिस्सा अमेरिकी बाजार में जाता रहा है लेकिन वहां हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए निर्यातकों को दूसरे ठिकानों की तलाश करनी पड़ रही है। रत्न एवं आभूषण निर्यात प्रोत्साहन परिषद (जीजेईपीसी) पश्चिम एशिया में एक अभियान 'ब्रांड इंडिया' शुरू कर रही है। परिषद की कोशिश इन देशों में भारतीय रत्न-आभूषण के लिए बाजार बनाने की है। अधिकारियों के अनुसार जीजेईपीसी इस अभियान को सफल बनाने के लिए करीब 250 करोड़ रुपए का निवेश कर रही है। यह अभियान का आयोजन इस साल के अंत में होगा जब पश्चिम एशियाई देशों में मांग अपने चरम पर होती है। इस अभियान में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और कुवैत जैसे देशों को शामिल किया जाएगा। इस पूरे अभियान में बॉलीवुड कलाकारों के कार्यक्रम भी होंगे। इसके अलावा प्रिंट-टीवी विज्ञापनों और इन देशों में कारोबारी बैठकों के जरिए भी अभियान को सफल बनाने की कोशिश की जाएगी। जीजेईपीसी के अध्यक्ष वसंत मेहता ने कहा, 'हम कोशिश कर रहे हैं कि अरब ग्राहकों को भारतीय हीरों और गहनों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए। इस क्षेत्र में गहनों और नगों की भारी मांग है।' रत्न-आभूषण उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि अरब जगत में भारतीय नगों और गहनों के बारे में बेहद कम जानकारी है, हालांकि इस इलाके में मांग जबरदस्त है। उद्योग जगत के अनुमान के मुताबिक अरब और अन्य पश्चिम एशियाई देशों में भारतीय हीरे और आभूषणों का निर्यात का हिस्सा 15-20 फीसदी है जबकि कुछ साल पहले यह हिस्सेदारी केवल पांच से सात फीसदी ही थी। पिछले साल अप्रैल से इस साल फरवरी के बीच देश से हुए रत्न एवं आभूषण के निर्यात में साल-दर-साल आधार पर 4.6 फीसदी की कमी आई है और यह 17.71 अरब डॉलर रह गया है। (ET Hindi)
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