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17 मार्च 2009

देसी मिलें चलीं विदेश कच्ची चीनी खरीदने

नई दिल्ली 03 15, 2009
उत्तर प्रदेश की कई चीनी मिलों ने ब्राजील से बिना किसी शुल्क के कच्ची चीनी का आयात करने के लिए अनुबंध किया है।
दरअसल पिछले चार सालों के मुकाबले मौजूदा सीजन (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी के उत्पादन में 1 करोड़ 60 लाख टन की कमी आने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में इन चीनी मिलों को उम्मीद है कि ब्राजील से आयात करने पर अतिरिक्त कमाई के रास्ते बनेंगे। कच्ची चीनी का आयात चार सालों के अंतराल पर हो रहा है।
चीनी की बड़ी कंपनियों- धामपुर शुगर्स, सिंभावली शुगर्स, के. के. बिड़ला गु्रप और डालमिया (भारत) ने आयात करने के लिए अनुबंध किया है। बंदरगाहों के नजदीक स्थित महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के मिल जो विदेशों से आयात करते थे यह उसके अतिरिक्त आयात होगा। भारतीय मिलों ने कुल 900,000 टन कच्ची चीनी आयात का अनुबंध किया था।
हालांकि मिलों को आयात के लिए नए अनुबंधों से पहले इंतजार करना होगा क्योंकि रुपये में लगातार गिरावट आ रही है और फिलहाल एक डॉलर 52 रुपये तक है। अगले सीजन तक गन्ने की फसल की पेराई का काम खत्म हो जाता है तब और भी मिल आयात शुरू कर सकते हैं।
धामपुर शुगर्स ने 28,000 टन कच्ची चीनी का आयात करने का अनुबंध किया है जबकि सिंभावली ने 20,000 टन आयात करने के लिए अनुबंध किया है। के. के. बिड़ला गु्रप ने 25,000 टन आयात करने के लिए अनुबंध किया है।
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और बिड़ला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार सी. बी. पटोदिया का कहना है, 'यूपी की हमारी मिलों में कच्ची चीनी की लागत 18 रुपये प्रति किलोग्राम पड़ती है। इसके अलावा 3 रुपये का खर्च इसकी रिफाइनिंग के लिए आता है। इसी वजह से फैक्टरी से बाहर की लागत 21 रुपये प्रति किलोग्राम पड़ती है।'
पटोदिया का कहना है कि जबसे भारतीय कंपनियों ने आयात के लिए अनुबंध करना शुरू किया है तब से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे चीनी की कीमतों में 30-35 डॉलर प्रति टन का उछाल आया है। उनका कहना है, 'भारत एक बड़े उपभोक्ता वाला राष्ट्र है। जब भी यहां आयात का फैसला लिया जाता है तब अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हर समय उछाल आता है। कुछ ऐसा ही वर्ष 2006-07 में हुआ था जब गेहूं का आयात किया गया था।'
सिंभावली शुगर्स के निदेशक (वित्त) संजय तप्रिया का कहना है, 'जब घरेलू चीनी का उत्पादन कम है ऐसे में आयात ही एक रास्ता है जिसके जरिए इस कमी को पूरा किया जा सके। जब एक बार घरेलू स्तर पर वसूली में सुधार आ जाए तो कच्चे चीनी की बिक्री भी सार्थक होगी। फिलहाल यूपी में एक्स मिल कीमत 2,150 रुपये प्रति क्विंटल के लगभग चल रही है। यह प्रसंस्कृत कच्ची चीनी की लागत से थोड़ा ज्यादा है।'
देश में चीनी की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए सरकार ने चीनी मिलों को कच्ची चीनी का आयात इस साल 30 सितंबर तक एडवांस ऑथोराइजेशन स्कीम के तहत करने की इजाजत दे दी है। मिलों को घरेलू बाजार में प्रसंस्कृत कच्ची चीनी की बिक्री की इजाजत मिल गई है। इसके साथ ही 36 महीनों के अंदर चीनी मिलों को टन के हिसाब से निर्यात के नियमों को भी पूरा करना होगा।
दो सीजन से उत्पादन में लगातार कमी हो रही है। वर्ष 2006-07 और 2007-08 के दो सीजन से कई हजार करोड़ रुपये का बकाया रहा। चीनी मिलों के भुगतान नहीं करने की वजह से ही गन्ने के रकबे में भी इस साल 25 फीसदी की कमी आई है। किसान भी बेहतरीन फसलों मसलन धान और तिलहन की खेती करने को तरजीह दे रहे हैं।a (BS HIndi)

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