25 मार्च 2009
नैफेड को नहीं मिली कपास बेचने के लिए सीसीआई जैसी स्कीम
भले ही नैफेड व कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) केंद्र सरकार के अधीन संगठन हों लेकिन कॉटन बेचने के लिए दोनों के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। सीआईआई को डिस्काउंट स्कीम के तहत सस्ते में कपास बेचने की अनुमति मिल गई है, जिससे वह जिनिंग मिलों व टैक्सटाइल मिलों को सस्ते में कॉटन बेच रही है लेकिन नैफेड को डिस्काउंट स्कीम में कपास बेचने की अनुमति नहीं मिली है। इस कारण उसका दाम ज्यादा होने से कपास बेचना मुश्किल होता जा रहा है।पिछले माह फरवरी में टेक्सटाइल मंत्रालय ने सीसीआई को डिस्काउंट स्कीम के साथ कपास बेचने की अनुमति दी थी। जिसके अनुसार 10000-25,000 बेल्स (एक बेल्स में 170 किलो) कपास खरीदने वाले को 400 रुपये प्रति बेल्स, 25,000- 50,000 बेल्स खरीदने पर 450 रुपये, 50,000-2,00000 बेल्स खरीदने पर 500 रुपये तथा 2,00000 से ज्यादा खरीदने पर 650 रुपये प्रति बेल्स की छूट मिलेगी। कपास बेचने के लिए सीसीआई खरीददारों से टेंडर मांगती है। इसके आधार पर तय मूल्य पर यह डिस्काउंट दिया जा रहा है। इस तरह सीसीआई के वास्तविक बिक्री मूल्य (एमएसपी व अन्य खर्च जोड़कर) पर दोहरे डिस्काउंट पर कपास बेच रही है। लेकिन नैफेड को कृषि मंत्रालय की ओर अभी तक इसकी अनुमति नहीं मिली है जबकि दोनो ही केंद्रीय एजेंसियां हैं। डिस्काउंट स्कीम का फायदा लेते हुए सीसीआई अभी तक 40 लाख बेल्स की ब्रिकी कर चुकी है। दूसरी ओर नैफेड ने अभी तक केवल 1.60 लाख बेल्स कपास की बिक्री की है। वो भी सीसीआई की डिस्काउंट स्कीम के शुरू होने से पहले। स्कीम शुरू होने के बाद नैफेड के पास कपास लेने वाले नहीं आ रहे है। हालांकि नैफेड भी अपने वास्तविक बिक्री मूल्य से टेंडर पर कम दाम पर ही कपास बेच रही है क्योंकि खुले बाजार में भाव एमएसपी से काफी नीचे हैं। लेकिन वह डिस्काउंट नहीं दे रही है।नेफेड के प्रबंध निदेशक यू. के. एस. चौहान ने बिजनेस भास्कर को बताया कि जब खरीददार को सीसीआई से सस्ती कपास मिल रही है तो वे नैफेड से महंगी कपास नहीं खरीदेंगे। हमने कृषि मंत्रालय से मांग की है कि जल्द ही इसकी अनुमति दी जाए। कपास के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे जाने के कारण सीसीआई और नाफेड को एमएसपी पर किसानों से बड़ी मात्रा में कपास खरीदनी पड़ी। नैफेड ने अभी तक कुल 181 लाख क्विंटल कपास खरीदी है। जिसकी कीमत 5200 करोड़ रुपये है। इसको वेयरहाउसों में रखने के चलते लागत लगातार बढ़ती जा रही है। चौहान बताते है कि डिस्काउंट पर कपास बेचने की अनुमति मिलने में देरी से हमारी लागत लगातार बढ़ती जा रही है। जिससे नैफेड को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाएगी। उस समय भी यदि हम सीसीआई की कीमतों पर कपास बेचने की स्थिति में नही होंगे। सीसीआई की कीमत पर कपास बेचने से हमें नुकसान होगा। इसके चलते सरकार से जल्द ही डिस्काउंट स्कीम पर कपास बेचने की अनुमति देने की मांग कर रहे हैं। (Business Bhaskar)
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