March 20, 2009
ढाई हजार करोड़ रुपये के भारतीय कॉफी उद्योग ने काफी प्रगति की है। दुनिया भर में कैफे में जाना अब स्टाइल की बात हो गई है।
कुल वैश्विक उत्पादन में भारत की भागीदारी 4 प्रतिशत की है लेकिन इसके 70 प्रतिशत का निर्यात किया जाता है। आर्थिक मंदी ने इस उद्योग को भी नहीं बख्शा। वित्त वर्ष 2009 में आर्थिक मंदी से प्रभावित होने के कारण कॉफी निर्यात में वित्त वर्ष 2008 (1,90,944 टन) की तुलना में 5 से 6 प्रतिशत की कमी आई (5 मार्च तक 1,81,479 टन)।
चालू वर्ष के जनवरी-फरवरी में कॉफी निर्यात 14.5 फीसदी घटा। कॉफी बोर्ड के अध्यक्ष जी वी कृष्ण राव के अनुसार निर्यात में गिरावट से चिंताएं बढ़ी हैं लेकिन इससे उद्योग को ज्यादा नुकसान होने की संभावना कम है। भारतीय कॉफी उद्योग पर उनका नजरिया जानने के लिए रश्मि श्रीकांत और प्रवीण बोस ने उनसे बातचीत की। पेश है इसके कुछ अंश:
रुस और यूरोप जैसे बाजार से प्रीमियम और मूल्य संवर्ध्दित कॉफी की मांग में खास तौर से कमी आई है। क्या आर्थिक मंदी इसकी प्रमुख वजह है?
एक तरह से देशा जाए तो हां। दूसरे उत्पादों की भांति कॉफी की मांग में भी कमी देखी गई है। हालांकि, वैश्विक कीमतों में अस्थिरता से भी निर्यात में कमी आई है। साल 2008 के सितंबर से नवंबर के दौरान वैश्विक कीमतों में अचानक ही 25 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई थी।
खरीदार और निर्यातक दोनों ही चिंतित थे कि कीमतें किस दिशा में जाएंगी। इसलिए आगे के किसी अनुबंध का रास्ता नहीं निकल पाया। इस साल कॉफी का उत्पादन भी काफी कम हुआ है, जिसका प्रभाव निर्यात पर पड़ा है।
कौन से कारण हैं जिनसे कॉफी के उत्पादन में कमी आई?
अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 के लिए फूल आने के बाद किए गए सर्वेक्षण के अनुसार हमारा आकलन था कि नई फसल 2,93,000 टन होगी। मॉनसून बाद नवंबर 2008 में किए सर्वेक्षण के बाद हमने इस आकलन की समीक्षा की और इसे 5.6 प्रतिशत घटा कर 2,76,000 टन कर दिया।
हालांकि, कर्नाटक के कुछ हिस्सों, खास तौर से चिकमगलौर में फसल आकलन से कम है क्योंकि वहां बारिश कुछ समय हुई है और फल खाने वाले कीड़ों ने भी फसल को नुकसान पहुंचाया है। हमारा अनुमान है कि उत्पादन में 10,000 से 12,000 टन की और गिरावट आएगी।
हाल में निर्यात में आई कमी कितनी चिंताजनक है?
निर्यात में आई कमी निस्संदेह चिंता का विषय है लेकिन बात इतनी बड़ी भी नहीं है जिससे उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो। ब्राजील में फसल कम होने का अनुमान है। इसका मतलब है कि आपूर्ति मांग से कम होगी। डॉलर कमजोर होगा यह मानते हुए, इन दोनों वजहों से कुछ महीनों में कीमतों में मजबूती आएगी।
कॉफी किसानों को कॉफी की गुणवत्ता बढ़ाने और बेहतर कीमतों के लिए किस प्रकार की सहायता उपलब्ध कराई जाती है?
सुखाने वाली जगह के निर्माण, गूदा निकालने और सफाई इकाइयों के लिए छूट उपलब्ध कराए जाने के साथ-साथ सिंचाई की सहायता छोटे किसानों तक पहुंचाई जाती है। खुदरा पैक में निर्यात को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमने एक योजना पेश की है जिसके तहत हम उत्पादकों को खुदरा पैक में निर्यात किए गए कॉफी के प्रत्येक किलोग्राम पर दो रुपये का आर्थिक प्रोत्साहन देते हैं।
खुदरा पैक में लदाई से किस प्रकार लाभ होता है?
कुछ कंपनियां, मान लीजिए यूरोप की कंपनियां, भारत से थोक में कॉफी मंगवाती हैं। फिर उसे प्रसंस्कृत कर दोबारा पैक करती है और अपने ब्रांड के तहत इसे बंचती हैं। इससे हम अपनी ब्रांडिंग के अवसर से चूक जाते हैं। निश्चय ही जहां तक कॉफी के प्रसंस्करण (रोस्ट और ग्राउंड) की बात है तो विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा की बात ही नहीं है।
हालांकि, इंस्टैंट कॉफी के मामले में यहीं की निर्मित कॉफी होती है दूसरे देशों में जिसकी पैकिंग दोबारा पैकिंग की जाती है। इसलिए, खुदरा पैक में इंस्टैंट कॉफी के निर्यात का बेहतर अवसर है। इससे भारतीय ब्रांड को वैश्विक बाजार में जगह मिलेगी।
कॉफी की घरेलू खपत में आप किस प्रकार इजाफा करने की सोच रहे हैं?
हमारे कॉफी उद्यो गका वजूद केवल मजबूत घरेलू बाजार के जरिए ही संभव है। उत्तरी हिस्से में हम कापी शास्त्र प्रोग्राम चला रहे हैं। उद्यमियों को रोस्टिंग और पैकेजिंग इकाई स्थापित करने में सहायता उपलब्ध कराने के लिए भी प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। एक बार इन इकाइयों के स्थापित होने के बाद हमें भरोसा है कि खपत में तेजी आएगी।
कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में रोस्टिंग क्षमता स्थापित करने के लिए आगे आ रही हैं। इससे न केवल उपभोक्ताओं के लिए ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे बल्कि इससे मूल्य संवर्ध्दित कॉफी के निर्यात को भी सहारा मिलेगा। (BS HIndi)
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