नई दिल्ली March 25, 2009
कई उत्पादों के आयात में अप्रैल से दिसंबर 2008 के बीच हुई जबरदस्त बढ़ोतरी के कारण भारत आने वाले महीनों में सुरक्षात्मक कदम उठा सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के पास उपलब्ध आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि कुछ उत्पादों, जिनका आयात पहले कम मात्रा में किया जा रहा था, के आयात में अचानक जबरदस्त तेजी आई। दूसरे उत्पादों के आयात में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'साल 2008 के अप्रैल से दिसंबर की अवधि में आयात में हुई बढ़ोतरी से उद्योग प्रभावित हुए हो सकते हैं। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि एंटी डंपिंग या संरक्षण शुल्क शुरू करने के लिए किए जाने वाले आवेदनों के इजाफा होगा।'
जब उद्योग सबूत के साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की शिकायत सरकार से करता है तो एंटी डंपिंग और संरक्षण संबंधी कार्रवाई शुरू की जाती है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा संग्रहीत आंकड़े संरक्षणात्मक कार्रवाई करने में उद्योग समूह के लिए उत्प्रेरक का काम करेंगे।
उदाहरण के लिए, कुछ खास किस्म के कोल्ड रोल्ड कॉयल के निर्यात में साल 2008 के अप्रैल से दिसंबर की अवधि के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 14,277.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह पिछले साल के 3.38 करोड़ रुपये से बढ़ कर 487.17 करोड़ रुपये का हो गया। कई अन्य किस्मों के आयात में भी इस अवधि के दौरान दोगुनी या तिगुनी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
वाणिज्यिक वाहनों के रेडियल टायर का आयात लगभग दोगुना 267.34 करोड़ रुपये का रहा जबकि पिछले साल 137.72 करोड रुपये का आयात किया गया था। इसी प्रकार, ऑटो कंपोनेंट की कुछ श्रेणियों का आयात भी दोगुना से अधिक होकर 173.39 करोड़ रुपये का रहा जबकि साल 2007 की समान अवधि में यह लगभग 80 करोड़ रुपये का था। कोऐक्सियल केबल का आयात भी पिछले साल के 169 करोड़ रुपये से बढ़ कर 336 करोड़ रुपये का हो गया।
सरकारी अधिकारी कहते हैं कि अगर एक खास अवधि में आयात में 25 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है तो उसे तेजी समझी जाती है। अप्रैल से दिसंबर की अवधि में आयात में 50 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई और यह पिछले साल के 6,93,445 करोड़ रुपये से बढ़ कर 10,03,947 करोड़ रुपये का हो गया।
आयात में हुई इस बढ़ोतरी का श्रेय कुछ हद तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में सालाना आधार पर आई 20 प्रतिशत की कमजोरी को जाता है। भारत उत्पादों के आयात में इस प्रकार की बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए या तो एंटी डंपिंग शुल्क लगा सकता है या फिर संरक्षण शुल्क का सहारा ले सकता है।
एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की प्रक्रिया की शुरुआत तब की जाती है जब उद्योग सबूत के साथ सरकार से शिकायत करता है कि आयात किए जाने वाले उत्पाद उत्पादक देश के घरेलू बाजार के विक्रय मूल्य की तुलना में सस्ते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जांच किए जाने वाले उत्पाद कुछ देशों के उत्पादकों द्वारा डंप किए जाते रहे हैं।
अधिकारी ने बताया, 'उत्पादों की डंपिंग से स्पष्ट होता है कि उत्पादक देश की खपत में कमी आई है। इसलिए, उत्पादक अन्य देशों में उसकी डंपिंग करना चाहते हैं और एक निश्चित लागत प्राप्त करना चाहते हैं।' विभिन्न देशों के डंपिंग शुल्क अलग-अलग होते हैं।
संरक्षणात्मक कदम तब उठाए जाते हैं जब उद्योग शिकायत करता है कि आयात में हुई बढ़ोतरी से उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस मामले में, उत्पादों की डंपिंग समाप्त हो सकती है। यह प्रक्रिया सभी देशों द्वारा अपनाई जाती है।
लेकिन, इन दोनों मामलों में उद्योग को यह साबित करना होता है कि आयात से उनकी बिक्री और उत्पादन घटने के साथ-साथ बाजार हिस्सेदारी भी घटी है। संरक्षण की प्रक्रिया एंटी डंपिंग की तुलना में ज्यादा सरल हैं। कुछ खास उद्योग जैसे हॉट रोल्ड कॉयल उत्पादक पहले ही सरकार से शिकायत कर चुके हैं। (BS HIndi)
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