03 18, 2009
वेदांत समूह के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल दिलेर व्यक्ति हैं। वैश्विक आर्थिक संकट, जिससे धातुओं की कीमतें पिघल गईं, से भी एल्युमीनियम, तांबा और जस्ता के क्षेत्र में उनके अग्रणी बनने की महत्त्वाकांक्षा प्रभावित नहीं हुई है।
जब वेदांत ने निजी क्षेत्र के लौह अयस्क उत्पादक सेसा गोवा में साल 2007 में जापान की मित्सुई से नियंत्रणात्मक हिस्सेदारी हासिल की थी तो इसे उपयुक्त समय पर इस्पात के क्षेत्र में समूह द्वारा जगह बनाने के तौर पर देखा गया। इस बात को अभी ज्यादा तवज्जो नहीं दी सकती कि उड़ीसा में वेदांत की प्रस्तावित इस्पात परियोजना मुल्तवी कर दी गई है।
कहावत है कि 'भाग्य बहादुरों का ही साथ देता है।' अग्रवाल को इसका अनुभव कई बार हो चुका है। दिसंबर 2001 में एल्युमीनियम निर्माता बाल्को में प्रमुख हिस्सेदारी हासिल करने के बाद उदासीन प्रदर्शन करने वाले बाल्को की क्षमता 2,50,000 टन से बढ़ कर 3,50,000 टन हो गई।
किसने सोचा होगा कि वेदांत समूह की कंपनी स्टरलाइट द्वारा अप्रैल 2002 में बुरा प्रदर्शन करने वाले हिंदुस्तान जिंक का नियंत्रण हाथ में लेने के बाद साल 2010 तक यह इकाई 10 लाख टन जस्ता-सीसा की क्षमता वाली हो जाएगी।
वेदांत समूह अपने पोर्टफोलियो में शामिल प्रत्येक अलौह धातु के लिए घोषित न्यूनतम 10 लाख टन की क्षमता प्राप्त करने की राह पर है। सेसा गोवा के लिए भी इसकी योजना जबर्दस्त है। सेसा गोवा के पास 1,800 लाख टन लौह अयस्क का भंडार है।
इस्पात निर्माताओं का अनुभव बिल्कुल भी प्रोत्साहित करने लायक नहीं है। हालांकि, वेदांत की आश्चर्यजनक क्षमता पर किसी को भी शक नहीं है, खास तौर से स्टरलाइट के 1.1 अरब डॉलर के एसार्को सौदे के बाद। बाजार में तेजी के दौरान अप्रैल 2007 में पूरे पैसे देकर कोरस का अधिग्रहण करने के बाद टाटा स्टील अब पछता रहा होगा।
यही हाल हिंडाल्को द्वारा विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम रॉलिंग कंपनी नोवेलिस के अधिग्रहण के बाद हो रहा होगा। इस परिप्रेक्ष्य में भी देखें तो भाग्य वेदांत के साथ है। आरंभ में, एसार्को के लिए वेदांत ने 2.6 अरब डॉलर की पेशकश की थी। लेकिन यह एक साल पहले की बात थी जब तांबे की कीमत आज की तुलना में दोगुनी हुआ करती थी। देखिए कि एसार्को की परिसंपत्तियां अब वेदांत के लिए कितनी सस्ती हो गई हैं।
लेकिन वेदांत क्यों ऐसे समय में देश और विदेश में विस्तार की योजनाएं बना रहा है जब अग्रणी कंपनियां जैसे आर्सेलर मित्तल, रियो टिन्टो और चिनाल्को उत्पादन में भारी कटौती कर रहे हैं और विस्तार योजनाओं को आर्थिक गतिविधियों के सुधरने तक ताक पर रख दिया है।
एक तर्क तो यह है कि ऐसे समय में जब बैंकों के लिए सरकार राहत पैकेज ला रही है अगर फंड उपलब्ध है तो वेदांत जैसे समूह को नई क्षमताओं के लिए अगली तेजी तक का इंतजार नहीं करना चाहिए। वेदांत के अधिकारियों का दावा है कि समूह नई पयिोजनाओं में 60,000 करोड़ रुपये का निवेश करने के लिए प्रतिबध्द है। कंपनी के पास 30,000 करोड रुपये की नकदी है।
वेदांत के क्षमता विस्तार में एल्युमिना और एल्युमीनियम की हिस्सेदारी अधिक है। अभी भारत की कुल एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता 13 लाख टन है जिसमें वेदांत की हिस्सेदारी 3,85,000 टन की है। उड़ीसा के झारसुगुड़ा में वेदांत 5 लाख टन क्षमता वाले स्मेल्टर को नहीं जोड़ा गया है जिसकी शुरुआत अब होने वाली है।
उड़ीसा के बाक्साइट और कोयले के भंडार का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए वेदांत ने झारसुगुड़ा में 16 लाख टन की स्मेल्टिंग क्षमता बनाने का निर्णय किया है जिसे लांजीगढ़ के 50 लाख टन क्षमता वाले एल्युमिना रिफाइनरी और 3,750 मेगावाट के पॉवर कॉम्प्लेक्स का सहारा हासिल होगा। बाल्को की एल्युमीनियम क्षमता भी बढ़ कर 10 लाख टन हो जाएगी। (BS HIndi)
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