मुंबई March 17, 2009
खाद्य तेलों की मांग में तेजी और देश के अंदर तिलहन की फसल कमजोर होने की वजह से इस बार फरवरी माह में पिछले साल की तुलना में वनस्पति तेल के आयात में 48 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
जबकि अगस्त 2008 से अब तक घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों में करीबन 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। वनस्पति तेल का आयात फरवरी 2008 में 515,229 टन किया गया था जो इस बार मांग ज्यादा होने की वजह से 762,544 टन किया गया।
पिछले साल की अपेक्षा यह आंकड़ा 48 फीसदी अधिक है। फरवरी में आयात किये गये कुल वनस्पति तेलों में 730,094 टन खाद्य तेल और 32,450 टन गैरखाद्य तेल है। पिछले चार महीनों (नवंबर-फरवरी)में खाद्य तेल का आयात 126,61 टन और गैरखाद्य तेल का आयात 126,610 टन किया गया।
कुल मिलाकर इन चार महीनों में 2,951,551 टन वनस्पति तेल का आयात किया गया जो पिछले साल की सामन्य अवधि से 68 फीसदी ज्यादा है। नवंबर-फरवरी 2008 में कुल 1,761,670 टन वनस्पति तेल का आयात किया गया था।
आयात में बढ़ोतरी के साथ ही घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों में भी गिरावट देखने को मिल रही है। अगस्त 2008 में औसतन आरडीबी पामोलीन तेल की कीमत 47754 रुपये प्रति टन थी जो फरवरी में 33030 रुपये प्रति टन हो गई।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत मेहता, तिलहन की पैदावार कम होने के बावजूद खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट की मुख्य वजह अतंर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी को बताते हैं।
मेहता के अनुसार पिछले साल कच्चे तेल की कीमतें 145 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, जिसके चलते वनस्पति तेल का भारी मात्रा में बायोडीजल के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा था जबकि इस बार ऐसी स्थिति नहीं है।
मेहता के अनुसार हर साल लगभग 4 फीसदी तेल की खपत देश में बढ़ जाती है उसकी वजह जनसंख्या में हो रही बढ़ोतरी भी है। इस बार तेल सस्ता होने की वजह से बाजार में खाद्य तेल की मांग बढ़ती ही जा रही है क्योंकि गरीब तबका भी तेल का इस्तेमाल कर पा रहा है। (BS Hindi)
17 मार्च 2009
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