मुंबई December 30, 2009
देश के विभिन्न इलाकों से बीटी बैगन के बढ़ते विरोध के बीच केंद्रीय पर्यावरण और वन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने बातचीत के लिए जनवरी में देशव्यापी दौरे की योजना बनाई है।
जनवरी के पहले हफ्ते से एक महीने के इस दौरे के दौरान वे वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों, कृषि संगठनों, उपभोक्ता समूहों और एनजीओ प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करेंगे। रमेश बीटी बैगन पर जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) की अक्टूबर में पेश रिपोर्ट पर लोगों से बात करेंगे।
गौरतलब है कि जीईएसी ने बीटी बैगन को पर्यावरण के लिए सुरक्षित बताया था। परिणाम आधारित मंजूरी व्यवस्था (ईबीएएम) के अनुसार यह समिति बीटी बैगन के सभी हाइब्रिडों और किस्मों को मंजूर करने पर विचार कर सकती है। जानकार सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि रमेश ने कहा है कि राष्ट्रीय और लोक हित में इस बातचीत को उचित निर्णय पर पहुंचाना जरूरी है।
मनुष्यों के लिए बीटी बैगन के इस्तेमाल को मंजूरी विचार-विमर्श की यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही दी जाएगी। जीईएसी का इस रिपोर्ट में कहना है कि जैव सुरक्षा के लिहाज से बीटी बैगन इवेंट ईई-1 को काफी जांचा गया है। और अब किसी अतिरिक्त जांच की जरूरत नहीं है।
जीईएसी का यह भी कहना है कि नियामकीय प्रणाली एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक विकास और साक्ष्यों के आधार पर लगातार संशोधन होना चाहिए। इसलिए मामला दर मामला अतिरिक्त अध्ययन करने और जैव सुरक्षा मूल्यांकन के दौरान मिले आंकड़ों पर विचार किए जाने की जरूरत है।
जीईएसी के अनुसार, कल्पित चिंताओं और आशंकाओं के चलते नियामकीय प्रक्रिया का मानदंड कड़ा करना कृषि जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास (विशेषकर सार्वजनिक संस्थानों और समाज के लिए) के लिए काफी हानिकारक है। जीईएसी ने इसके अलावा कहा कि महिको ने बीटी बैगन इवेंट ईई-1 में जिन 3 जीनों (सीआरवाई1एसी, एनपीटीएलएल और एएडी) का प्रवेश किया है, उसका दुनिया भर में वैज्ञानिकों ने विस्तृत अध्ययन किया है।
बीटी मक्का, बीटी आलू और बीटी कपास के मामले में यह अध्ययन हुआ है। नियामकीय एजेंसियों ने मूल्यांकन के बाद इसे मान्यता दी है। इन सभी जीनों का अनुभव बताता है कि इनका इस्तेमाल सुरक्षित है। सीआरवाई1एसी जीन का फसल पर असर अंत तक रहता है। इसमें मौजूदा सीआरवाई1एसी का स्तर प्रोटीन विभिन्न जलवायवीय हालात में पनपने वाले कीटों की प्रभावी रोकथाम में कारगर है।
हालांकि सेंटर फॉर फूड सिक्योरिटी ऐंड सस्टेनेबल एग्री बिजनेसेज के सलाहकार विजय सरदाना कहते हैं कि मनुष्यों के लिए बीटी बैगन के इस्तेमाल को मंजूरी देने में सरकार को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सरदाना के अनुसार, 'उनका संस्थान प्रौद्योगिकी के खिलाफ नहीं है पर इसका उचित आकलन और मूल्यांकन होना जरूरी है। सरकार को सभी जांच रिपोर्टों को अपनी वेबसाइट पर डालना चाहिए।'
सरकार को यह साफ करना चाहिए कि क्या बीटी बैगन का मूल्यांकन नवजातों और एलर्जी पीड़ित मरीजों के लिहाज से भी किया गया है नहीं। यह भी बताना चाहिए कि क्या कृषि मंत्रालय, पर्यावरण व वन मंत्रालय और खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने ऐसे पौधों के सुरक्षा पहलुओं को देखा है या नहीं।
नई कोशिश
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैगन पर लोगों की राय जानने के लिए जनवरी में देशव्यापी दौरे की योजना बनाईकृषि विशेषज्ञों, कृषि संगठनों, उपभोक्ता समूहों, एनजीओ प्रतिनिधियों से होगी जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी की रिपोर्ट पर बातचीत (बिसनेस भास्कर)
31 दिसंबर 2009
चीन की मांग बढ़ने से कॉटन देश-विदेश में महंगी
चीन की आयात मांग बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक सप्ताह में कॉटन की कीमत में करीब तीन फीसदी की तेजी आ चुकी है। न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में कॉटन के मार्च वायदा अनुबंध के भाव बढ़कर 75।82 सेंट प्रति पाउंड हो गए हैं। चीन के कॉटन उत्पादन में करीब 15 फीसदी कमी आने का अनुमान है। निर्यातकों की मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में भी इस दौरान कॉटन की कीमतों में 600 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आ चुकी है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चीन में कॉटन के उत्पादन में करीब 15 फीसदी कमी आने की आशंका है। इसीलिए इस समय भारत से निर्यात मांग बढ़ी है। पिछले एक सप्ताह में ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन के दाम तीन फीसदी बढ़ चुके हैं। 24 दिसंबर को न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में कॉटन के मार्च वायदा अनुबंध के भाव 73.65 सेंट प्रति पाउंड थे जोकि बढ़कर 75.82 सेंट प्रति पाउंड हो गए हैं। हालांकि पिछले साल इस समय अंतररराष्ट्रीय बाजार में कॉटन का भाव 55.50 सेंट प्रति पाउंड था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई तेजी के कारण पिछले एक सप्ताह में घरेलू बाजार में भी कॉटन के दाम 600 रुपये प्रति कैंडी बढ़ चुके हैं। अहमदाबाद की मंडियों में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव बढ़कर 27,200 से 27,500 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) हो गए हैं जबकि 25 दिसंबर को इसके भाव 26,600 से 26,900 रुपये प्रति कैंडी थे।कॉटन व्यापारी संजीव गुप्ता ने बताया कि उत्पादक मंडियों में अब कॉटन की दैनिक आवक भी कम हो गई है। उत्तर भारत के प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में कॉटन की दैनिक आवक बुधवार को 23 हजार गांठ (एक गांठ-170 किलो) की ही हुई जबकि पिछले साल इस समय दैनिक आवक करीब 50 हजार गांठ की हो रही थी। गुजरात की मंडियों में दैनिक आवक बढ़कर 60 हजार गांठ की हो रही है जबकि पिछले साल इन समय 50 हजार गांठ की आवक हो रही थी। उधर महाराष्ट्र की मंडियों में कॉटन की दैनिक आवक 40 हजार गांठ की रह गई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 50 हजार गांठ से कम है।कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के मुताबिक चालू सीजन में अभी तक उत्पादक मंडियों में एक लाख गांठ से ज्यादा कॉटन की आवक हो चुकी है। सीएआई के मुताबिक वर्ष 2009-10 में कॉटन की पैदावार 307 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) होने की संभावना है। हालांकि पैदावार में बढ़ोतरी के बावजूद चीन में पैदावार कम होने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन के भाव तेज होने से भारत से निर्यात भी बढ़कर 70 लाख गांठ होने की संभावना है। इसलिए आगामी दिनों में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय मांग का असर रहेगा। (बिज़नस भास्कर)
एलएमई में कॉपर 16 माह के उच्च स्तर पर
नए साल में कॉपर की मांग बढ़ने की उम्मीद में बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में कॉपर के दाम 16 माह के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए। एलएमई में इसके दाम 7,300 डॉलर प्रति टन तक चढ़ गए। पावर और कंस्ट्रक्शन में मुख्य रूप से इस्तेमाल होने वाली कॉपर का दाम 4 सितंबर 2008 को 7380 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गया था। इन्वेस्टमैंट बैंक फेयर फैक्स के विश्लेषक जॉन मेयर के अनुसार अगले साल 2010 में हालात सुधरने की उम्मीद दिख रही है। इसी वजह से कुछ मेटल्स में निवेशकों की मांग निकल रही है। इस साल कॉपर के दाम में भारी उतार-चढ़ाव रहा। उधर, दुनिया के सबसे बड़े कॉपर उत्पादक देश जांबिया में मौजूदा वर्ष 2009 के दौरान जांबिया का कॉपर उत्पादन 7 लाख टन को छू सकता है। इससे पहले जांबिया में इतना उत्पादन 1970 में हुआ था। जांबिया के केंद्रीय बैंक ने बुधवार को रिपोर्ट में कहा कि देशभर की खानों में उत्पादन बढ़ने और लुम्वाना कॉपर माइंस में व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने से यह बढ़ोतरी रही है। हालांकि 2009 के कॉपर निर्यात से हुई आय 19 फीसदी घटकर 298.85 करोड़ डॉलर रहने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक 2009 के पहले 10 महीनों में कॉपर उत्पादन बढ़कर 5,75,866 टन रहा,जबकि गत वर्ष इस दौरान यह 4,80,665 टन था। कैपिसिटी यूटिलाइजेशन बढ़ने के कारण उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। (बिज़नस भास्कर)
सप्लाई घटने से प्लास्टिक दाना छह फीसदी महंगा
प्लास्टिक दाने की सप्लाई कम होने के कारण इसकी कीमतों में करीब छह फीसदी का इजाफा हुआ हैं। कारोबारियों के मुताबिक आगे मांग सुधरने की संभावना से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। प्लास्टिक बाजार में पीपी-100 दाना की कीमत 77 रुपये से बढ़कर 82 रुपये, एलडी-40 दाना 78 रुपये से बढ़कर 82 , एलएलडीपी के दाम 78 रुपये से बढ़कर 83 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। बाजार में एचएम 76 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। सदर बाजार प्लास्टिक ट्रेडर एसोसिएशन के प्रधान राजेंद्र कुमार गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि दाने की सप्लाई करने वाली कंपनियों की ओर सप्लाई कम होने के कारण इसकी कीमतों में चार से सात रुपये प्रति किलो तक की बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है कि हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड के प्लांटों में मेंटीनेंस का काम चलने के कारण इसकी सप्लाई कम हो गई है। उनका कहना है कि रिलायंस द्वारा प्लास्टिक दाने के दाम बढ़ाए जाने की संभावना है। इस वजह से भी मूल्यों में तेजी आई है। इसके अलावा नए साल पर पैकेजिंग उत्पादों की मांग में सुधार होने के कारण भी कीमतों में वृद्धि हुई है। प्लास्टिक कारोबारी राजेश मित्तल का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा बीते दिनों में प्लास्टिक बैग की बिक्री पर काफी सख्ती बरतने के कारण इसकी मांग में खासी कमी आई है। इसका असर अन्य प्लास्टिक उत्पादों पर भी पड़ रहा है। क्रूड ऑयल के महंगा होने के कारण भी कीमतों में तेजी को बल मिला है। इन दिनों क्रूड ऑयल के दाम 79 डॉलर प्रति बैरल चल रहे हैं। लास्टिक कारोबारी राजेश मित्तल के अनुसार क्रूड ऑयल के महंगा होने के कारण कंपनियां इसके मूल्यों में बढ़ोतरी की हैं। वहीं दिल्ली सरकार द्वारा प्लास्टिक थैली की बिक्री, खरीद और भंडारण पर पाबंदी का असर पॉलीथिन की बिक्री पर देखा जा रहा है। मित्तल का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा बीते दिनों में प्लास्टिक बैग की बिक्री पर काफी सख्ती बरतने के कारण इसकी मांग में खासी कमी आई है। दिल्ली में करीब 4,000 इकाइयां प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाने का काम करती हैं और इस उद्योग से करीब दस हजार कारोबारी जुडे हैं। इसका सालाना कारोबार दस हजार करोड़ रुपये का है। (बिज़नस भास्कर)
ग्वाटेमाला में उत्पादन घटने से भारतीय इलायची की मांग बढ़ी
ग्वाटेमाला में उत्पादन कम होने से भारतीय इलायची में निर्यात मांग बढ़ रही है। जिससे कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले एक सप्ताह में ही नीलामी केंद्रों पर इसकी कीमतों में करीब आठ फीसदी की तेजी आ चुकी है जबकि चालू महीने में वायदा बाजार में 10।6 फीसदी भाव बढ़ चुके हैं। चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में भारत से निर्यात में 100 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। निर्यातकों की मांग बढ़ने से स्टॉकिस्ट की खरीद भी बढ़ी हुई है जिससे इलायची की तेजी को बल मिल रहा है।मुंबई स्थित मैसर्स सैमक्स एजेंसी के मैनेजिंग डायरेक्टर मूलचंद रुबारल ने बताया कि ग्वाटेमाला में इलायची का उत्पादन घटने से भारत से निर्यात मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। चालू फसल सीजन में ग्वाटेमाला में इलायची का उत्पादन घटकर 15-16 हजार टन होने की संभावना है जो कि पिछले साल के 17 हजार टन से कम है। हालांकि भारत में चालू फसल सीजन में इलायची का उत्पादन पिछले साल के 11,000 टन से बढ़कर 12,500 से 13,000 टन होने की उम्मीद है। लेकिन निर्यातकों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की मांग बढ़ी हुई है जिससे तेजी को बल मिल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची के दाम बढ़कर 23-24 डॉलर प्रति किलो हो गए हैं जबकि ग्वाटेमाला की इलायची के भाव 20-21 डॉलर प्रति किलो चल रहे हैं लेकिन ग्वाटेमाला की बिकवाली कम आ रही है।भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान देश से इलायची का निर्यात बढ़कर 620 टन हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 310 टन का ही हुआ था। केरल की कुमली मंडी स्थित मैसर्स अग्रवाल स्पाइसेज के डायरेक्टर अरुण अग्रवाल ने बताया कि क्रिसमस की छुट्टियों के कारण नीलामी केंद्रों पर इलायची की आवक घट गई है। वैसे भी अब चौथी तुड़ाई समाप्त होने वाली है। तथा पांचवी व छटी तुड़ाई में बोल्ड क्वालिटी (7.5 और 8 एमएम) की इलायची की आवक कम रहेगी। इसीलिए बोल्ड क्वालिटी की इलायची की मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।अग्रवाल ने बताया कि निर्यातकों के साथ घरेलू मांग अच्छी होने से पिछले एक सप्ताह में नीलामी केंद्रों पर 6.5 एमएम इलायची के भाव बढ़कर 880-900 रुपये, 7 एमएम के भाव 960 से 980 रुपये, 7.5 एमएम के 990 से 1000 रुपये और 8 एमएम इलायची के भाव 1020 से 1030 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इस दौरान इसकी कीमतों में 60 से 70 रुपये प्रति किलो की तेजी आई है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में इलायची की कीमतों में 10.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक दिसंबर को जनवरी वायदा अनुबंध में इसके दाम 999 रुपये प्रति किलो थे जोकि बुधवार को बढ़कर 1105 रुपये प्रति किलो हो गए। rana@businessbhaskar.net (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
सरकारी कोशिशों से घट सकते हैं खाद्यान्न के दाम
नई दिल्ली December 30, 2009
अगली तिमाही में सरकार खुले बाजार में 36 लाख टन अनाज बेच सकती है।
खाद्यान्न की कीमतों में तेजी को देखते हुए महंगाई दर पर काबू पाने के लिए सरकार से इस कदम की उम्मीद की जा रही है। इसमें करीब 28.5 लाख टन गेहूं और 7,37,344 टन चावल शामिल है।
अक्टूबर-दिसंबर के दौरान सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के जरिए खुले बाजार में 15 लाख टन गेहूं और 5 लाख टन चावल की बिक्री की घोषणा की है। इतनी ही मात्रा में अनाज की खुले बाजार में बिक्री की घोषणा जनवरी-मार्च अवधि के लिए की गई है।
बहरहाल चालू तिमाही में सरकार कुल 1,47,949 टन गेहूं और 2,62,656 टन चावल खुले बाजार में बेचने में सफल हुई है। बिक्री में कमी की प्रमुख वजह खुले बाजार में अनाज की बिक्री की घोषणा में देरी और थोक कारोबारियों की तुलना में गेहूं के दाम में कमी रही। इसके चलते करीब 13.5 लाख टन गेहूं और 2,37,344 टन चावल खुले बाजार में अगली तिमाही में बिक्री के लिए बचा हुआ है।
अगर इसे अगली तिमाही के कोटे में शामिल कर लिया जाए तो गेहूं और धान की खुले बाजार में बिक्री के लिए उपलब्धता क्रमश: 28.5 लाख टन और 7,37,344 लाख टन हो जाएगी। खाद्यान्न की घरेलू कीमतें दशक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। 12 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में खाद्यान्न महंगाई दर 18.65 प्रतिशत रही, क्योंकि मांग और आपूर्ति की खाईं बढ़ गई है।
साथ ही मॉनसून 37 साल की तुलना में सबसे खराब रहने की वजह से खरीफ की फसलें प्रभावित हुई हैं। खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने की वजह से महंगाई दर उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़कर नवंबर में 4.78 प्रतिशत पर पहुंच गई।
एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा, 'गेहूं की मांग मुख्य रूप से राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात से है। वहीं चावल की मांग हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक से है।'
10 लाख टन गेहूं की सुरक्षित कीमतों में, जो बढ़े खरीदारों (फ्लोर मिलों) के लिए है, की कीमतों में 24 दिसंबर से करीब 185 रुपये प्रति क्विंटल की कमी कर दी गई है। यह फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के फैसले के बाद लिया गया। कीमतों में इस कमी के बाद चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के लिए गेहूं की कीमतें 1240 रुपये प्रति क्विंटल के करीब हो गई हैं।
वहीं पोर्ट ब्लेयर के लिए कीमतें 1640 रुपये प्रति क्विंटल हैं। बहरहाल 20 लाख टन गेहूं की कीमतें खुदरा बिक्री के लिए कम रखी गई हैं और यह चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा के लिए 1100 रुपये प्रति क्विंटल और पोर्ट णब्लेयर के लिए 1500 रुपये प्रति क्विंटल हैं। राज्य सरकार की एजेंसियां इस गेहूं को एफसीआई से खरीद सकती हैं और इसे 2 रुपये प्रति किलो से कम मुनाफे पर उपभोक्ताओं को बेच सकती हैं।
वहीं चावल की कीमतें खुदरा बिक्री के लिए सामान्य ग्रेड की 1495 रुपये प्रति क्विंटल और ग्रेड-ए के लिए 1540 रुपये प्रति क्विंटल रखी गई हैं। यह कीमतें सभी राज्यों के लिए समान हैं। भले ही इस बिक्री से खुले बाजार की कीमतों पर प्रभाव न पडे, लेकिन इससे निश्चित रूप से उपलब्धता बढ़ेगी।
36 लाख टन अनाज बेच सकती है सरकार
जनवरी-मार्च तिमाही में सरकार खुले बाजार में 28।5 लाख टन गेहूं और 7.37 लाख टन चावल बेच सकती हैअक्टूबर-दिसंबर तिमाही में नहीं पूरा हो सका था बिक्री का लक्ष्यगेहूं की मांग राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू मेंचावल की मांग हिमाचल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में (बीएस हिन्दी)
अगली तिमाही में सरकार खुले बाजार में 36 लाख टन अनाज बेच सकती है।
खाद्यान्न की कीमतों में तेजी को देखते हुए महंगाई दर पर काबू पाने के लिए सरकार से इस कदम की उम्मीद की जा रही है। इसमें करीब 28.5 लाख टन गेहूं और 7,37,344 टन चावल शामिल है।
अक्टूबर-दिसंबर के दौरान सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के जरिए खुले बाजार में 15 लाख टन गेहूं और 5 लाख टन चावल की बिक्री की घोषणा की है। इतनी ही मात्रा में अनाज की खुले बाजार में बिक्री की घोषणा जनवरी-मार्च अवधि के लिए की गई है।
बहरहाल चालू तिमाही में सरकार कुल 1,47,949 टन गेहूं और 2,62,656 टन चावल खुले बाजार में बेचने में सफल हुई है। बिक्री में कमी की प्रमुख वजह खुले बाजार में अनाज की बिक्री की घोषणा में देरी और थोक कारोबारियों की तुलना में गेहूं के दाम में कमी रही। इसके चलते करीब 13.5 लाख टन गेहूं और 2,37,344 टन चावल खुले बाजार में अगली तिमाही में बिक्री के लिए बचा हुआ है।
अगर इसे अगली तिमाही के कोटे में शामिल कर लिया जाए तो गेहूं और धान की खुले बाजार में बिक्री के लिए उपलब्धता क्रमश: 28.5 लाख टन और 7,37,344 लाख टन हो जाएगी। खाद्यान्न की घरेलू कीमतें दशक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। 12 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में खाद्यान्न महंगाई दर 18.65 प्रतिशत रही, क्योंकि मांग और आपूर्ति की खाईं बढ़ गई है।
साथ ही मॉनसून 37 साल की तुलना में सबसे खराब रहने की वजह से खरीफ की फसलें प्रभावित हुई हैं। खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने की वजह से महंगाई दर उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़कर नवंबर में 4.78 प्रतिशत पर पहुंच गई।
एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा, 'गेहूं की मांग मुख्य रूप से राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात से है। वहीं चावल की मांग हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक से है।'
10 लाख टन गेहूं की सुरक्षित कीमतों में, जो बढ़े खरीदारों (फ्लोर मिलों) के लिए है, की कीमतों में 24 दिसंबर से करीब 185 रुपये प्रति क्विंटल की कमी कर दी गई है। यह फैसला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के फैसले के बाद लिया गया। कीमतों में इस कमी के बाद चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के लिए गेहूं की कीमतें 1240 रुपये प्रति क्विंटल के करीब हो गई हैं।
वहीं पोर्ट ब्लेयर के लिए कीमतें 1640 रुपये प्रति क्विंटल हैं। बहरहाल 20 लाख टन गेहूं की कीमतें खुदरा बिक्री के लिए कम रखी गई हैं और यह चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा के लिए 1100 रुपये प्रति क्विंटल और पोर्ट णब्लेयर के लिए 1500 रुपये प्रति क्विंटल हैं। राज्य सरकार की एजेंसियां इस गेहूं को एफसीआई से खरीद सकती हैं और इसे 2 रुपये प्रति किलो से कम मुनाफे पर उपभोक्ताओं को बेच सकती हैं।
वहीं चावल की कीमतें खुदरा बिक्री के लिए सामान्य ग्रेड की 1495 रुपये प्रति क्विंटल और ग्रेड-ए के लिए 1540 रुपये प्रति क्विंटल रखी गई हैं। यह कीमतें सभी राज्यों के लिए समान हैं। भले ही इस बिक्री से खुले बाजार की कीमतों पर प्रभाव न पडे, लेकिन इससे निश्चित रूप से उपलब्धता बढ़ेगी।
36 लाख टन अनाज बेच सकती है सरकार
जनवरी-मार्च तिमाही में सरकार खुले बाजार में 28।5 लाख टन गेहूं और 7.37 लाख टन चावल बेच सकती हैअक्टूबर-दिसंबर तिमाही में नहीं पूरा हो सका था बिक्री का लक्ष्यगेहूं की मांग राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू मेंचावल की मांग हिमाचल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में (बीएस हिन्दी)
चीनी के वायदा कारोबार पर रोक सितंबर तक बढ़ी
नई दिल्ली। चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहने के कारण सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर लगी रोक को जारी रखने का फैसला किया है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने बुधवार को कहा कि सरकार ने चीनी वायदा पर रोक की अवधि बढ़ाकर सितंबर 2010 तक कर दी है। चीनी के वायदा कारोबार पर 26 मई 2009 को प्रतिबंध लगाया गया था, जिसकी समय सीमा गुरुवार यानि 31 दिसंबर को समाप्त हो रही थी। चीनी का भाव इस समय 36 रुपये प्रति किलो से भी ऊपर चल रहा है, जो गत वर्ष के मुकाबले दोगुना है। खटुआ ने कहा कि प्रतिबंध पर अब सितंबर में विचार किया जाएगा। अक्टूबर 2010 से चीनी का नया सीजन शुरू हो जाएगा। निर्यातकों का कहना है कि उन्हें इस फैसले की संभावना पहले ही लग रही थी क्योंकि चीनी का घरेलू उत्पादन चालू सीजन में घटकर 160 लाख टन रहने की संभावना है, जबकि खपत इससे कहीं ज्यादा 230 लाख टन सालाना है। खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में कहा था कि सरकार चीनी का वायदा कारोबार नहीं खोलेगी क्योंकि मांग के मुकाबले उत्पादन काफी कम रहने की संभावना है। (बीएस हिन्दी)
हल्दी-मिर्च ने बदली चाल, बिगड़ गई बजट की ताल
वर्ष 2009 में कृषि जिंसों की आसमान छूती कीमतों ने तोड़ दिए तमाम पुराने रिकॉर्ड, सरकारी ढिलाई से आम आदमी की जेब पर हुआ इसका ज़बरदस्त असर
मुंबई December 31, 2009
मॉनसून की बेरुखी से इस साल जरूरी जिंसों की पैदावार पर असर पड़ा।
मांग की तुलना में कम आपूर्ति के अर्थशास्त्र के क्लासिक सिद्धांत के हिसाब से कीमतें बढ़ना ऐसे में लाजिमी ही था। लेकिन इस साल कीमतें केवल बढ़ी ही नहीं बल्कि बढ़ोतरी के मामले में जिंसों ने नए रिकॉर्ड ही कायम कर दिए।
साल भर जिंसों की कीमतें 10 से 170 फीसदी तक ऊपर चली गईं। जिंसों के कीमतों में अभूतपूर्व परिवर्तन से पैदा हुई महंगाई ग्राहकों के लिए कमर तोड़ बन गई दूसरी ओर कारोबारियों ने इस दौर में जमकर माल कमाया। हालांकि रबी सीजन में अच्छी पैदावार होने के संकेत से दिसंबर से कीमतों में गिरावट शुरू हो गई है जो आगे भी जारी रहने की उम्मीद की जा रही है।
हल्दी ने बदला रंग
वर्ष 2009 के दौरान कृषि जिंसों में सबसे ज्यादा कीमत बढ़ोतरी हल्दी में हुई। इस साल हल्दी की कीमत में 165 फीसदी से ज्यादा का इजाफा दर्ज किया गया। अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए हल्दी 17 नवंबर को प्रति क्विंटल 14,000 रुपये तक पहुंच गई। हालांकि नई फसल अच्छी होने की खबर से इस समय हल्दी की कीमतों में गिरावट दिख रही है।
हल्दी की सबसे बड़ी थोक मंड़ी निजामाबाद में इस समय हल्दी 10,700 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर मिल रही है। इस बार हल्दी का उत्पादन भी पिछले साल के 41 लाख बैग की तुलना में 52 लाख बैग होने की उम्मीद की जा रही है। जनवरी में नई फसल बाजार में आना शुरू हो जाएगी।
जीरे ने लगाया छौंक
हल्दी की तरह दूसरे मसालों की भी कीमतें रिकॉर्ड बनाती रहीं। जीरे की कीमतों में इस साल 36 फीसदी और काली मिर्च में 33 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है।
फरवरी-मार्च में आने वाली जीरे की नई फसल में उत्पादन बढ़ने की उम्मीद की जा रही है पिछले साल 23 लाख बैग की जगह इस बार 24-25 लाख बैग का उत्पादन होने की बात कही जा रही है। वहीं काली मिर्च का उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा 10 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
चने की कीमतों में इस साल तकरीबन 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जनवरी में 2,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला चना दिसंबर आते-आते 2,600 रुपये प्रति क्विंटल से भी ऊपर पहुंच गया। चने की मजबूती को देखते हुए किसानों ने इस बार जम कर बुआई की है।
इस बार चने की बुआई 77 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर की गई है जबकि पिछले साल 72 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चना बोया गया था। चने के रकबे में बढ़ोतरी और मौसम अच्छा होने के कारण इस बार 72 से 74 लाख टन चने की पैदावार होने की उम्मीद की जा रही है।
सरकार ने दिखाई सुस्ती
सोयाबीन की पैदावार कम होने और आयात पर निर्भरता बढ़ने की वजह से इस दौरान सोयाबीन की कीमतों में भी लगभग 22 फीसदी का इजाफा हुआ।
सोयाबीन उत्पादक देशों में इस बार सोयाबीन की फसल सही होने और भारत में मांग में कमी आने की वजह से आने वाले समय में इन जिंसों की भी कीमतों में थोड़ी नरमी आने के असर दिखाई दे रहे हैं।
खाद्यान्नों में सबसे प्रमुख जिंस गेहूं की अच्छी पैदावार होने और सरकार द्वारा रिकॉर्ड खरीदारी करने के बावजूद 2009 में इसके भाव 20 फीसदी तक चढ़े। इसकी मुख्य वजह सटोरियों की सक्रियता और सरकार की ढुलमुल नीति को माना जा रहा है।
जिंस विशेषज्ञों का कहना है कि साल भर कृषि जिंसों की कीमतों से परेशान लोगों को नए साल में थोड़ी राहत जरुर मिलेगी क्योंकि रबी सीजन में अच्छी बुआई होने के कारण इस बार इन फसलों का रकबा बढ़ा है। शेयरखान कमोडिटी रिसर्च के प्रमुख मेहुल अग्रवाल का मानना है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह से नई फसलें आने लगेंगी। मार्च तक बाजार में नई फसलों की अच्छी आवक होने लगेगी।
कृषि जिंसों की कीमतों पर ऐंजल ब्रोकिंग के सीएमडी दिनेश ठक्कर का कहना है कि 2009 में कृषि जिंसों की कीमतें साल भर ऊपर की ओर जाती रहीं और यही वजह है कि पांच दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह को खाद्य पदार्थो की महंगाई दर पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 19.95 फीसदी पर पहुंच गई।
कीमतों में बढ़ोतरी की वजह उत्पादन कम होना ही रहा है। भाव में कमी किस हद तक होती है यह रबी सीजन में होने वाले उत्पादन पर निर्भर करेगा जो फरवरी और मार्च के बाद ही पता चल पाएगा।
किसके भाव में कितना ताव
जिंस भाव 1 जनवरी 29 दिसबरचना 2100 2485जीरा 10715 14590काली मिर्च 10712 4262हल्दी 3845 10206सोयाबीन 1940 2362सरसों 2975 2938अरंडी बीज 2547 2861गेहूं 1180 1407भाव रुपये प्रति क्विंटल में
मुश्किलों में गुज़रा साल
जिंसों की कीमतों में 10 से 170 फीसदी इज़ाफाहल्दी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, हुई 165 फीसदी महंगीआयात पर निर्भरता की वजह से सोयाबीन भी उछलाइसलिए खाने-पीने की महंगाई दर भी पहुंची 20 फीसदी के पास
नया बरस तो होगा सरस
इस बार रबी में पैदावार अच्छी रहने के आसारदिसंबर में ही भाव हुए ठंडेजनवरी से आएंगी नई फसलमसालों का उत्पादन ज्यादा होने की (बीएस हिन्दी) उम्मीद
मुंबई December 31, 2009
मॉनसून की बेरुखी से इस साल जरूरी जिंसों की पैदावार पर असर पड़ा।
मांग की तुलना में कम आपूर्ति के अर्थशास्त्र के क्लासिक सिद्धांत के हिसाब से कीमतें बढ़ना ऐसे में लाजिमी ही था। लेकिन इस साल कीमतें केवल बढ़ी ही नहीं बल्कि बढ़ोतरी के मामले में जिंसों ने नए रिकॉर्ड ही कायम कर दिए।
साल भर जिंसों की कीमतें 10 से 170 फीसदी तक ऊपर चली गईं। जिंसों के कीमतों में अभूतपूर्व परिवर्तन से पैदा हुई महंगाई ग्राहकों के लिए कमर तोड़ बन गई दूसरी ओर कारोबारियों ने इस दौर में जमकर माल कमाया। हालांकि रबी सीजन में अच्छी पैदावार होने के संकेत से दिसंबर से कीमतों में गिरावट शुरू हो गई है जो आगे भी जारी रहने की उम्मीद की जा रही है।
हल्दी ने बदला रंग
वर्ष 2009 के दौरान कृषि जिंसों में सबसे ज्यादा कीमत बढ़ोतरी हल्दी में हुई। इस साल हल्दी की कीमत में 165 फीसदी से ज्यादा का इजाफा दर्ज किया गया। अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए हल्दी 17 नवंबर को प्रति क्विंटल 14,000 रुपये तक पहुंच गई। हालांकि नई फसल अच्छी होने की खबर से इस समय हल्दी की कीमतों में गिरावट दिख रही है।
हल्दी की सबसे बड़ी थोक मंड़ी निजामाबाद में इस समय हल्दी 10,700 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर मिल रही है। इस बार हल्दी का उत्पादन भी पिछले साल के 41 लाख बैग की तुलना में 52 लाख बैग होने की उम्मीद की जा रही है। जनवरी में नई फसल बाजार में आना शुरू हो जाएगी।
जीरे ने लगाया छौंक
हल्दी की तरह दूसरे मसालों की भी कीमतें रिकॉर्ड बनाती रहीं। जीरे की कीमतों में इस साल 36 फीसदी और काली मिर्च में 33 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है।
फरवरी-मार्च में आने वाली जीरे की नई फसल में उत्पादन बढ़ने की उम्मीद की जा रही है पिछले साल 23 लाख बैग की जगह इस बार 24-25 लाख बैग का उत्पादन होने की बात कही जा रही है। वहीं काली मिर्च का उत्पादन पिछले साल की अपेक्षा 10 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
चने की कीमतों में इस साल तकरीबन 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जनवरी में 2,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला चना दिसंबर आते-आते 2,600 रुपये प्रति क्विंटल से भी ऊपर पहुंच गया। चने की मजबूती को देखते हुए किसानों ने इस बार जम कर बुआई की है।
इस बार चने की बुआई 77 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर की गई है जबकि पिछले साल 72 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चना बोया गया था। चने के रकबे में बढ़ोतरी और मौसम अच्छा होने के कारण इस बार 72 से 74 लाख टन चने की पैदावार होने की उम्मीद की जा रही है।
सरकार ने दिखाई सुस्ती
सोयाबीन की पैदावार कम होने और आयात पर निर्भरता बढ़ने की वजह से इस दौरान सोयाबीन की कीमतों में भी लगभग 22 फीसदी का इजाफा हुआ।
सोयाबीन उत्पादक देशों में इस बार सोयाबीन की फसल सही होने और भारत में मांग में कमी आने की वजह से आने वाले समय में इन जिंसों की भी कीमतों में थोड़ी नरमी आने के असर दिखाई दे रहे हैं।
खाद्यान्नों में सबसे प्रमुख जिंस गेहूं की अच्छी पैदावार होने और सरकार द्वारा रिकॉर्ड खरीदारी करने के बावजूद 2009 में इसके भाव 20 फीसदी तक चढ़े। इसकी मुख्य वजह सटोरियों की सक्रियता और सरकार की ढुलमुल नीति को माना जा रहा है।
जिंस विशेषज्ञों का कहना है कि साल भर कृषि जिंसों की कीमतों से परेशान लोगों को नए साल में थोड़ी राहत जरुर मिलेगी क्योंकि रबी सीजन में अच्छी बुआई होने के कारण इस बार इन फसलों का रकबा बढ़ा है। शेयरखान कमोडिटी रिसर्च के प्रमुख मेहुल अग्रवाल का मानना है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह से नई फसलें आने लगेंगी। मार्च तक बाजार में नई फसलों की अच्छी आवक होने लगेगी।
कृषि जिंसों की कीमतों पर ऐंजल ब्रोकिंग के सीएमडी दिनेश ठक्कर का कहना है कि 2009 में कृषि जिंसों की कीमतें साल भर ऊपर की ओर जाती रहीं और यही वजह है कि पांच दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह को खाद्य पदार्थो की महंगाई दर पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 19.95 फीसदी पर पहुंच गई।
कीमतों में बढ़ोतरी की वजह उत्पादन कम होना ही रहा है। भाव में कमी किस हद तक होती है यह रबी सीजन में होने वाले उत्पादन पर निर्भर करेगा जो फरवरी और मार्च के बाद ही पता चल पाएगा।
किसके भाव में कितना ताव
जिंस भाव 1 जनवरी 29 दिसबरचना 2100 2485जीरा 10715 14590काली मिर्च 10712 4262हल्दी 3845 10206सोयाबीन 1940 2362सरसों 2975 2938अरंडी बीज 2547 2861गेहूं 1180 1407भाव रुपये प्रति क्विंटल में
मुश्किलों में गुज़रा साल
जिंसों की कीमतों में 10 से 170 फीसदी इज़ाफाहल्दी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, हुई 165 फीसदी महंगीआयात पर निर्भरता की वजह से सोयाबीन भी उछलाइसलिए खाने-पीने की महंगाई दर भी पहुंची 20 फीसदी के पास
नया बरस तो होगा सरस
इस बार रबी में पैदावार अच्छी रहने के आसारदिसंबर में ही भाव हुए ठंडेजनवरी से आएंगी नई फसलमसालों का उत्पादन ज्यादा होने की (बीएस हिन्दी) उम्मीद
चीनी के वायदा पर प्रतिबंध बढ़ा
इसके अलावा जनवरी के लिए सरकार ने जारी की 16.4 लाख टन चीनी
नई दिल्ली December 30, 2009
सरकार ने चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध को 9 महीने और बढ़ाकर सितंबर 2010 तक कर दिया है। जिंस बाजार के नियामक वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने यह जानकारी दी।
खटुआ ने कहा, 'प्रतिबंध अगले साल सितंबर तक बढ़ा दिया गया है।' उल्लेखनीय है कि सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए 26 मई 2009 को इसके वायदा कारोबार को प्रतिबंधित कर दिया था।
खटुआ ने कहा कि नियामक अगले साल अक्टूबर में शुरू होने वाले चीनी सीजन के समय इस प्रतिबंध की फिर समीक्षा करेगा। विशेषज्ञों ने सरकार के इस फैसले को अपेक्षित बताया है। इस बीच सरकार ने जनवरी के लिए 16.4 लाख टन चीनी जारी कर दी है। यह मात्रा जनवरी 2009 में जारी की गई 17.01 लाख टन चीनी से 3.64 फीसदी कम है।
कम उपलब्धता की वजह से पिछले 6 महीने के दौरान जारी हुई चीनी में यह सबसे कम है। हालांकि सरकार ने कहा है कि यह मात्रा जनवरी में देश की चीनी जरूरत पूरी करने को पर्याप्त हैं।
मालूम हो कि देश में चीनी का उत्पादन 30 सितंबर को समाप्त होने वाले मौजूदा सीजन में लगभग 1।6 करोड़ टन रहने का अनुमान है। वहीं इसकी मांग 2.3 करोड़ टन रहने का अनुमान है। 70 लाख टन की कमी को आयात के जरिए पूरा किया जाना है। (बीएस हिन्दी)
नई दिल्ली December 30, 2009
सरकार ने चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध को 9 महीने और बढ़ाकर सितंबर 2010 तक कर दिया है। जिंस बाजार के नियामक वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने यह जानकारी दी।
खटुआ ने कहा, 'प्रतिबंध अगले साल सितंबर तक बढ़ा दिया गया है।' उल्लेखनीय है कि सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए 26 मई 2009 को इसके वायदा कारोबार को प्रतिबंधित कर दिया था।
खटुआ ने कहा कि नियामक अगले साल अक्टूबर में शुरू होने वाले चीनी सीजन के समय इस प्रतिबंध की फिर समीक्षा करेगा। विशेषज्ञों ने सरकार के इस फैसले को अपेक्षित बताया है। इस बीच सरकार ने जनवरी के लिए 16.4 लाख टन चीनी जारी कर दी है। यह मात्रा जनवरी 2009 में जारी की गई 17.01 लाख टन चीनी से 3.64 फीसदी कम है।
कम उपलब्धता की वजह से पिछले 6 महीने के दौरान जारी हुई चीनी में यह सबसे कम है। हालांकि सरकार ने कहा है कि यह मात्रा जनवरी में देश की चीनी जरूरत पूरी करने को पर्याप्त हैं।
मालूम हो कि देश में चीनी का उत्पादन 30 सितंबर को समाप्त होने वाले मौजूदा सीजन में लगभग 1।6 करोड़ टन रहने का अनुमान है। वहीं इसकी मांग 2.3 करोड़ टन रहने का अनुमान है। 70 लाख टन की कमी को आयात के जरिए पूरा किया जाना है। (बीएस हिन्दी)
30 दिसंबर 2009
मंडियों में कपास की आवक एक फीसदी कम रही
देश की घरेलू मंडियों में कपास की आवक एक अक्टूबर से 26 दिसंबर के दौरान 112।6 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) रही है। गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले यह करीब एक फीसदी कम है। प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों आंध्र प्रदेश और पंजाब में आवक में गिरावट दर्ज की गई है, हालांकि गुजरात में आवक बढ़ने से गिरावट की कुछ भरपाई हो गई। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश में कपास की आवक 40 फीसदी घटकर 13.1 लाख गांठ जबकि पंजाब में आवक 27.4 फीसदी गिरकर 9.80 लाख गांठ रही। दक्षिण राज्यों में कपास की कुल आवक करीब 36 फीसदी घटकर 16.3 लाख गांठ रही, जबकि उत्तरी राज्यों में आवक 11.4 फीसदी घटकर 24.2 लाख गांठ दर्ज की गई। एक अन्य महत्वपूर्ण कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में कपास की आवक इस अवधि में 3.1 फीसदी घटकर 21.3 लाख टन रही, जबकि देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात में कपास की आवक 58 फीसदी बढ़कर 40.3 लाख गांठ रही। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक भारत में 26 दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह में आवक 1.80 लाख गांठ रही जो एक सप्ताह पहले के दो लाख गांठ से कुछ कम है। कॉटन एडवायजरी बोर्ड को उम्मीद है कि चालू फसली वर्ष में देश का कपास उत्पादन 295 लाख गांठ रहेगा। नवंबर में जारी किए गए अनुमान में कहा गया था कि उत्पादन 305 लाख गांठ रह सकता है। सूखे और मानसून में देरी के कारण इस वर्ष देश में कपास की उत्पादकता घटने की आशंका है। फसली वर्ष 2008-09 में 290 लाख गांठ कपास का उत्पादन देश में हुआ था। (बिज़नस भास्कर)
सरकारी गेहूं सस्ता होते ही मंडियों में दाम गिरने लगे
केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं के दाम घटा दिए गए हैं। इससे मंडियों में गेहूं के दाम 50-75 रुपये प्रति क्विंटल घट गए हैं। मंगलवार को दिल्ली बाजार में गेहूं के दाम घटकर 1350-1360 रुपये और बंगलुरू में 1550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। एफसीआई के गेहूं का उठाव शुरू होने के बाद भाव में और भी 50-60 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।एफसीआई ने गेहूं की कीमत 1221 रुपये प्रति क्विंटल (लुधियाना से) तय की है। विभिन्न राज्यों के लिए इसमें परिवहन खर्च जोड़कर नीलामी के लिए रिजर्व मूल्य तय होगा। ऐसे में दिल्ली की फ्लोर मिलों के लिए गेहूं की निविदा भरने का रिजर्व मूल्य 1254।08 रुपये प्रति क्विंटल होगा है। इसी तरह से परिवहन लागत जोड़कर अन्य राज्यों के लिए रिजर्व मूल्य तय होंगे। सूत्रों के अनुसार एफसीआई ने कई राज्यों में निविदाएं मंगाई गई हैं। उम्मीद है कि उक्त गेहूं का उठान जनवरी के प्रथम सप्ताह में शुरू हो जाएगा जिससे गेहूं की कीमतों में और भी गिरावट आ जाएगी।रोलर फ्लोर मिल्र्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि मूल्य घटने के बाद गेहूं दिल्ली की मिलों के लिए (पहुंच भाव) 1285-1290 रुपये प्रति क्विंटल होगा जबकि अभी हाजिर बाजार में भाव 1350-1360 रुपये प्रति क्विंटल है। इसीलिए इसकी कीमतों में और भी 50-60 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने का अनुमान है।एसएस कॉमशिर्यल कंपनी के प्रोपराइटर सुरेंद्र गोयल ने बताया कि एफसीआई द्वारा ओएमएसएस के तहत गेहूं के भाव कम कर दिए जाने से बंगलुरू में गेहूं के भाव 1600 रुपये से घटकर 1550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। एफसीआई के गेहूं की निविदा भरने का रिजर्व मूल्य बंगलुरू में 1408 रुपये प्रति क्विंटल होगा जिससे गेहूं के मौजूदा भाव में और भी कमी आएगी। एफसीआई के गोदामों में पहली दिसंबर को 252 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा है जबकि नई फसल आने में अब मात्र ढ़ाई-तीन महीने का ही समय बाकी है। मार्च में मध्य प्रदेश और राजस्थान में गेहूं की फसल की आवक शुरू हो जाती है तथा मध्य प्रदेश से एफसीआई की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मार्च के मध्य में खरीद शुरू हो जाती है। पहली अप्रैल से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी गेहूं की सरकारी खरीद हो जाती है इसलिए नए सीजन से पहले एफसीआई खुले बाजार में गेहूं बेचकर गोदाम खाली करने की कोशिश करेगी। केंद्र सरकार ने गेहूं की नई फसल के एमएसपी में मात्र 20 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1100 रुपये प्रति क्विंटल तय किए हैं। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
डॉलर कमजोर होने से कॉपर पांच फीसदी तेज
यूरो के मुकाबले डॉलर कमजोर होने के कारण लंदन में कॉपर की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा कॉपर की वैश्विक मांग बढ़ने की वजह से भी लंदन के साथ घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में बढ़ोतरी को बल मिला हैं। अगले साल भी इसके मूल्यों में तेजी के आसार हैं। पिछले दो सप्ताह के दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) कॉपर तीन माह अनुबंध के दाम बढ़कर 6,905 डॉलर से बढ़कर 7,261 डॉलर प्रति टन हो गए। घरेलू बाजार में इस दौरान कॉपर के दाम 324 रुपये से बढकर 343 रुपये प्रति किलो हो गए। कॉपर कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि यूरो के मुकाबले डॉलर फिर गिरने लगा है। डॉलर के मुकाबले यूरो का एक्सचेंज रेट 1.51 डॉलर से गिरकर 1.43 डॉलर पर आ गया है। इस वजह से एलएमई में कॉपर के दाम बढ़े। इससे लंदन में निवेशकों की होल्डिंग लागत घट रही है। इसी कारण तेजी का माहौल बना हुआ है। जिससे घरेलू बाजार में भी मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है। दरअसल घरेलू बाजार में कॉपर के दाम एलएमई के अनुरूप रहते हैं। मेटल विश्लेषक अभिषेक शर्मा के अनुसार आर्थिक हालात तेजी से सुधरने की वजह से चीन में कॉपर की मांग बढ़ रही हैं। नवंबर के दौरान चीन में कॉपर का आयात 10 फीसदी बढकर 2.90 लाख टन हो गया है। इस वजह से भी इसके मूल्यों में तेजी आई है। वहीं भारत में चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर माह तक 4.57 लाख टन कॉपर का उत्पादन हुआ है, पिछली समान अवधि में यह 3.65 लाख टन था।एंजिल ब्रोकिंग के विश्लेषक अनुज गुप्ता का कहना है कि चीन, अमेरिका में इक्विटी मार्केट सुधरने से कॉपर की औद्योगिक मांग और सुधरने की संभावना है। सथ ही भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी बढ़ने से देश में अगले साल भी कॉपर की मांग बढ़ने की उम्मीद हैं।चीन अगले साल मांग बढ़ने की उम्मीद में कॉपर का स्टॉक बढा सकता हैं। इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) के मुताबिक अगले साल चीन में अगले कॉपर की खपत आठ फीसदी बढ़कर 58.3 लाख टन तक पहुंच सकती हैं।लिहाजा अगले साल भी चीन में कॉपर का आयात अधिक होने की संभावना है। ऐसे में कॉपर की कीमतों में तेजी बनी रह सकती है। इसके अलावा चिली की प्रमुख कॉपर माइन चुकई में हड़ताल की वजह से भी कॉपर के मूल्यों में तेजी को बल मिल सकता हैं। उल्लेखनीय है कि कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है।इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (बिसनेस भास्कर)
फिलीपींस ने खरीदा 5.86 लाख टन चावल
फिलीपींस ने वियतनाम से 5,86,554 टन चावल 664।90 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) के भाव पर आयात करने के सौदे किए हैं। फिलीपींस की नेशनल फूड अथॉरिटी (एनएफए) ने मंगलवार को यह जानकारी दी। वियतनाम सदर्न फूड कॉर्प. यानी विनाफूड-2 ने 25 फीसदी टूटे चावल निर्यात के लिए सौदे किए हैं। इसके लिए 15 दिसंबर को नेशनल फूड अथॉरिटी ने टेंडर आमंत्रित किए थे। वियतनामी कंपनी को यह डिलीवरी अगले वर्ष मार्च से जून के बीच होगी। विनाफूड-2 ने टेंडर की पूरी मात्रा करीब 6 लाख टन चावल सप्लाई का ऑफर दिया था, लेकिन उसे कम सप्लाई का टेंडर मिला। वर्ष 2010 के लिए सप्लाई सुनिश्चित करते हुए फिलीपींस ने नवंबर और दिसंबर के दौरान चार टेंडर जारी किए जिसमें उसने 18.2 लाख टन चावल खरीदा है। एनएफए के प्रवक्ता रेक्स ईस्टोप्रेज ने कहा कि एजेंसी हाल में और कोई टेंडर जारी नहीं करेगी, बल्कि सफलतापूर्वक मौजूदा सौदों की सप्लाई करने वालों को ही दुबारा ऑर्डर दिए जाएंगे। फिलीपींस विश्व का सबसे बड़ा चावल आयातक देश है। अगले वर्ष की जरूरतों को देखते हुए 30 लाख टन चावल आयात करने की संभावना है। फिलीपींस में तूफान से चावल की फसल को भारी नुकसान हुआ था। (बिसनेस भासकर)
टायर उद्योग में खपत बढ़ने की संभावना से रबर में तेजी
चालू वित्त वर्ष में नेचुरल रबर में टायर उद्योग की मांग सात फीसदी बढ़ने की संभावना है। पिछले साल टायर उद्योग में नेचुरल रबर की कुल खपत 5।08 लाख टन रही थी जबकि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में 3.56 लाख टन खपत हो चुकी है। टायर उद्योग की मांग तो बढ़ रही है लेकिन चालू वित्त वर्ष में अभी तक देश में नेचुरल रबर के उत्पादन में 6.5 फीसदी की कमी आई है जिसके कारण घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कीमतें बढ़कर 134-140 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई हैं।आटोमेटिव टायर मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन (एटमा) के महानिदेशक राजीव बुद्धिराजा ने बताया कि वर्ष 2009-10 में टायर उद्योग की मांग में सात फीसदी का इजाफा होने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक टायर उद्योग में नेचुरल रबर की खपत 356,400 टन की हो चुकी है जबकि पिछले वर्ष में कुल खपत 5.08 लाख टन की हुई थी। कुल उत्पादन की करीब 60 फीसदी खपत टायर उद्योग में होती है तथा टायर उद्योग की मांग लगातार बढ़ रही है। टायर उद्योग की नेचुरल रबर में मांग बढ़ने और उत्पादन कम होने के कारण नेचुरल रबर की कीमतों में पिछले एक साल में 118 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। इस समय कोट्टायम में नेचुरल रबर आरएसएस-4 के भाव बढ़कर 140 रुपये और आरएसएस-5 के भाव 134 रुपये प्रति किलो हो गए हैं जबकि पिछले साल इस समय भाव 62-64 रुपये प्रति किलो थे।उन्होंने बताया कि अप्रैल से नवंबर तक भारत में नेचुरल रबर का आयात बढ़कर भी 1.32 लाख टन तक पहुंच गया है जोकि पिछले साल के 60,026 टन से ज्यादा है। आयातित रबर पर 20 फीसदी आयात शुल्क है तथा टायरों के आयात पर 8.6 फीसदी का आयात शुल्क लगता है। चूंकि विदेश में भी नेचुरल रबर के भाव बढ़े हैं इसलिए अब विदेशी नेचुरल रबर के आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं। इस समय सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में नेचुरल रबर की कीमतें बढ़कर 132-133 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गई हैं।भारतीय रबर बोर्ड के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक नेचुरल रबर का उत्पादन 6.5 फीसदी घटकर 5.38 लाख टन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.76 लाख टन का हुआ था। इस दौरान इसकी कुल खपत 3.6 फीसदी बढ़कर 6.15 लाख टन की हुई है। इस समय देश में नेचुरल रबर का कुल स्टॉक 2.47 लाख टन का है जोकि पिछले साल 1.75 लाख टन का था। मैसर्स हरिसंस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि इस समय रबर का पीक सीजन चल रहा है। जबकि 15 जनवरी के बाद उत्पादन कम होने लगेगा। ऐसे में सुस्त सीजन में नेचुरल की कीमतों में और भी तेजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।rana@businessbhaskar.net (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
गुलाब निर्यातकों की राह में बिछे हैं कांटे
बंगलुरु : यूरोप समेत दुनियाभर के बाजारों में खराब सेंटीमेंट के चलते भारतीय गुलाब उत्पादकों के कारोबार में नए फूल खिलने की उम्मीदें धूमिल पड़ती जा रही हैं। क्रिसमस से वैलेंटाइन डे तक का 50 दिन का वक्त ही घरेलू फूल उत्पादकों के लिए कारोबार का पीक सीजन होता है। देशभर से होने वाले कुल फूल निर्यात का 40 से 45 फीसदी हिस्सा इसी दौरान ही अंजाम दिया जाता है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) के जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2007-08 में देश से ताजा फूलों का निर्यात 48।75 करोड़ रुपए का रहा। बंगलुरु के एक गुलाब निर्यातक के मुताबिक, 'क्रिसमस और नए साल पर खरीदारी बेहद धीमी चल रही है। ग्राहकों के मन में आर्थिक मंदी के चलते अब भी आशंका बनी हुई है।' ब्रिटेन के नेशनवाइड बिल्डिंग ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री मार्टिन गाबर के मुताबिक, 'पिछले कुछ महीनों में ग्राहकों का विश्वास फिर से कमजोर हुआ है। मौजूदा आर्थिक परिदृश्य की वजह से ग्राहकों में नेगेटिव सेंटीमेंट पैदा हो रहा है। लोग भविष्य की उम्मीदों के बजाय मौजूदा माहौल को देखकर आशंकाग्रस्त हैं।' हालिया कंज्यूमर कॉन्फिडेंस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि लगातार दो महीने से ग्राहक विश्वास स्थिर बना हुआ है। क्रिसमस और नए साल के लिए देश से निर्यात को लेकर अलग-अलग आशंकाएं जताई जा रही हैं। जानकारों का मानना है कि इसमें 15 से 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है, वहीं कुछ का मानना है कि देश से इस दौरान निर्यात में 40 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है। उत्पादकों का कहना है कि उन पर बढ़ती हुई लागत का लगातार दबाव बढ़ रहा है। उत्पादकों के मुताबिक, पिछले एक साल में उर्वरकों की कीमत में ही 30 फीसदी का उछाल आ चुका है, साथ ही इस लागत को ग्राहकों पर लादना समस्या का हल नहीं है। कारोबारी कह रहे हैं कि इस बार वैलेंटाइन डे के इतवार के दिन पड़ने से भी कारोबार को चोट पड़ना तय है क्योंकि रविवार के दिन ग्राहक ज्यादा खरीदारी नहीं करते हैं। (ई टी हिन्दी)
दाम न मिलने से जूट उद्योग को लगा चूना
भुवनेश्वर December 29, 2009
बी टि्वल जूट बोरियों की कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
इस फॉर्मूले को ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज (अब टैरिफ कमीशन) ने 2001 में मंजूर किया था। कपड़ा मंत्रालय ने भी बी इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) की टि्वल जूट बोरियों के उचित मूल्य की मांग का समर्थन किया है।
इस मसले पर जून 2009 में पेश टैरिफ कमीशन की रिपोर्ट अभी कपड़ा मंत्रालय के विचाराधीन है। बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलाव लाने और मौजूदा नीति को दुरुस्त करने के लिए आईजेएमए के पास अभी मौका है। वह केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय और जूट आयुक्त से जरूरी हस्तक्षेप के लिए दोबारा अपील कर सकता है।
टैरिफ कमीशन की जून 2009 में पेश रिपोर्ट में आईजेएमए की बी टि्वल बोरियों के उचित और संशोधित मूल्य की चिर प्रतीक्षित मांग का पुरजोर समर्थन किया गया है। इस कमीशन ने मई 2007 से अध्ययन किया था। उल्लेखनीय है कि बी टि्वल बोरियों की मूल्य का निर्धारण अभी जूट आयुक्त कार्यालय करता है।
इसका निर्धारण ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज की 2001 रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। इस रिपोर्ट के आधार पर जूट आयुक्त कार्यालय केवल जूट की लागत, पैक शीट, जूट बैचिंग ऑयल, खरीदे गए ऊर्जा की लागत और महंगाई भत्ते में परिवर्तन का ख्याल रखता है।
जूट आयुक्त द्वारा तय बी टि्वल बोरियों का पुराना मूल्य फॉर्म्यूला लागत में इजाफे (स्टोर सामग्री, पैकिंग सामग्री, मरम्मत खर्च आदि) का ख्याल रख पाने में विफल रहा है। जूट उद्योग पिछले 8 सालों से इस अतिरिक्त लागत को कपड़ा मंत्रालय से वापस दिला पाने में विफल रहा है।
2001 से उद्योग को उचित और वाजिब कीमत नहीं दी गई है। बी टि्वल बोरियों की कीमतों का निर्धारण टैरिफ कमीशन के 2001 के पुराने फर्ॉम्यूले के आधार पर किया गया है। यही नहीं स्टोरों और पैकिंग की लागत में जोरदार वृद्धि के बावजूद जूट उद्योग को बोरियों की कीमत बढ़ाने से रोका गया है।
पुराना नियम
कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ हैआईजेएमए कर रहा है टि्वल जूट की बोरियों के वाजिब दाम की मांगकपड़ा मंत्रालय ने भी किया जूट उद्योग का समर्थनटैरिफ कमीशन की रिपोर्ट कपड़ा मंत्रालय में लंबित (बीएस हिन्दी)
बी टि्वल जूट बोरियों की कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
इस फॉर्मूले को ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज (अब टैरिफ कमीशन) ने 2001 में मंजूर किया था। कपड़ा मंत्रालय ने भी बी इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) की टि्वल जूट बोरियों के उचित मूल्य की मांग का समर्थन किया है।
इस मसले पर जून 2009 में पेश टैरिफ कमीशन की रिपोर्ट अभी कपड़ा मंत्रालय के विचाराधीन है। बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलाव लाने और मौजूदा नीति को दुरुस्त करने के लिए आईजेएमए के पास अभी मौका है। वह केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय और जूट आयुक्त से जरूरी हस्तक्षेप के लिए दोबारा अपील कर सकता है।
टैरिफ कमीशन की जून 2009 में पेश रिपोर्ट में आईजेएमए की बी टि्वल बोरियों के उचित और संशोधित मूल्य की चिर प्रतीक्षित मांग का पुरजोर समर्थन किया गया है। इस कमीशन ने मई 2007 से अध्ययन किया था। उल्लेखनीय है कि बी टि्वल बोरियों की मूल्य का निर्धारण अभी जूट आयुक्त कार्यालय करता है।
इसका निर्धारण ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज की 2001 रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। इस रिपोर्ट के आधार पर जूट आयुक्त कार्यालय केवल जूट की लागत, पैक शीट, जूट बैचिंग ऑयल, खरीदे गए ऊर्जा की लागत और महंगाई भत्ते में परिवर्तन का ख्याल रखता है।
जूट आयुक्त द्वारा तय बी टि्वल बोरियों का पुराना मूल्य फॉर्म्यूला लागत में इजाफे (स्टोर सामग्री, पैकिंग सामग्री, मरम्मत खर्च आदि) का ख्याल रख पाने में विफल रहा है। जूट उद्योग पिछले 8 सालों से इस अतिरिक्त लागत को कपड़ा मंत्रालय से वापस दिला पाने में विफल रहा है।
2001 से उद्योग को उचित और वाजिब कीमत नहीं दी गई है। बी टि्वल बोरियों की कीमतों का निर्धारण टैरिफ कमीशन के 2001 के पुराने फर्ॉम्यूले के आधार पर किया गया है। यही नहीं स्टोरों और पैकिंग की लागत में जोरदार वृद्धि के बावजूद जूट उद्योग को बोरियों की कीमत बढ़ाने से रोका गया है।
पुराना नियम
कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ हैआईजेएमए कर रहा है टि्वल जूट की बोरियों के वाजिब दाम की मांगकपड़ा मंत्रालय ने भी किया जूट उद्योग का समर्थनटैरिफ कमीशन की रिपोर्ट कपड़ा मंत्रालय में लंबित (बीएस हिन्दी)
जिंसों के दाम ने दिसंबर में किया खरीदारों को खुश
मुंबई December 29, 2009
मौजूदा रबी सीजन में फसलों का उत्पादन बेहतर रहने और खरीफ सीजन में हुई कमी की भरपाई कर देने के अनुमान से वायदा और हाजिर बाजारों में कृषि जिंसों की कीमतों में कमी हुई है।
दिसंबर में लगभग सभी जिंसों के दामों में 5 से 12 फीसदी की कमी हुई है। जानकारों के मुताबिक, यह अभी शुरुआत है और अगले साल भी यह प्रवृत्ति जारी रहेगी। कम उपलब्धता के बावजूद कृषि जिंसों के सस्ता होने से सरकार को बहुत राहत मिली है। इससे आसमान चढ़ चुकी महंगाई को नीचे लाने में मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि थोक मूल्य आधारित खाद्य पदार्थों की महंगाई दर इस समय 19 फीसदी तक जा चुकी है। सरकार ने पहले ही अनुमान जताया था कि शीत ऋतु की कटाई के बाद दामों में कमी होगी। इस अनुमान का आधार रबी फसलों के रकबे में हुई जोरदार वृद्धि जिससे खरीफ सीजन के दौरान हुई कमी की भरपाई हो गई।
गेहूं, राई, सरसों और चना की बुआई बढ़ने से रबी फसलों का कुल रकबा 1 फीसदी बढ़ गया। गेहूं का रकबा 26 नवंबर तक 5 फीसदी बढ़कर 1.37 करोड़ हेक्टेयर हो गया। सरसों, राई और चना के रकबे में 3 और 1 फीसदी की तेजी हुई। हालांकि रबी फसलों का कुल उत्पादन अनुमान जनवरी अंत तक ही स्पष्ट हो पाएगा।
इस बीच सरकार ने खरीफ सीजन के चावल उत्पादन अनुमान को 22 लाख टन बढ़ाकर 7.16 करोड़ टन कर दिया है। विश्लेषकों का तर्क है कि खरीफ सीजन के दौरान पड़ा सूखा सामान्य सूखे से अलग था। खरीफ सीजन में धान के उत्पादन में हुई कमी की आंशिक भरपाई रबी फसलों से हो जाएगी।
पहले अनुमान था कि खरीफ सीजन के अनाज उत्पादन में 2.1 करोड़ टन की कमी होगी। अब अनुमान है कि उत्पादन में केवल 1.87 करोड़ टन की कमी हो सकती है। एनसीडीईएक्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनाविस के मुताबिक, 'कृषि उत्पादों की ऊंची कीमत दो वजहों से रही है। एक, कमतर उत्पादन और दूसरा आधार वर्ष का प्रभाव कम रहना।
सामान्यत: खरीफ फसलों की कीमतें अक्टूबर से जनवरी के बीच कम होती है। फसलों के बाजार में आ जाने से कीमतें अब कम हो रही हैं।' सबनाविस हालांकि कहते हैं कि यह बहस का मामला हो सकता है कि क्या कुछ जिंसों की कीमतें कम होने का मतलब महंगाई पर विजय पा लेना है। दरअसल इन जिंसों के दाम पिछले साल की तुलना में अब भी ऊंची बनी हुई है।
पिछले हफ्ते कृषि मंत्री शरद पवार ने खुले बाजार में गेहूं की कीमतों में 200 रुपये की कमी करने का ऐलान किया था। गेहूं का उत्पादन अनुमान पिछले साल के 7.8 करोड़ टन से थोड़ा ज्यादा यानी 8 करोड़ टन है। कोटक कमोडिटी सर्विसेज लिमिटेड के आमोल तिलक ने बताया, 'मार्च की शुरुआत तक गेहूं और सस्ता होगा क्योंकि तब तक कटाई शुरू हो जाएगी।'
एक अन्य विश्लेषक ने कहा कि दाल का समीकरण कुछ अलग है। इसका उपयोग सीमित होता है। इसलिए इसके दाम में तेजी होने से किसानों को फायदा ही होता है जबकि बजट उतना प्रभावित नहीं होता। इसके दाम थोड़ा चढ़ने से बुआई को प्रोत्साहन मिलता है। चीनी का उत्पादन पिछले साल से ज्यादा तो होगा पर यह जरूरत से कम होगा। (बीएस हिन्दी)
मौजूदा रबी सीजन में फसलों का उत्पादन बेहतर रहने और खरीफ सीजन में हुई कमी की भरपाई कर देने के अनुमान से वायदा और हाजिर बाजारों में कृषि जिंसों की कीमतों में कमी हुई है।
दिसंबर में लगभग सभी जिंसों के दामों में 5 से 12 फीसदी की कमी हुई है। जानकारों के मुताबिक, यह अभी शुरुआत है और अगले साल भी यह प्रवृत्ति जारी रहेगी। कम उपलब्धता के बावजूद कृषि जिंसों के सस्ता होने से सरकार को बहुत राहत मिली है। इससे आसमान चढ़ चुकी महंगाई को नीचे लाने में मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि थोक मूल्य आधारित खाद्य पदार्थों की महंगाई दर इस समय 19 फीसदी तक जा चुकी है। सरकार ने पहले ही अनुमान जताया था कि शीत ऋतु की कटाई के बाद दामों में कमी होगी। इस अनुमान का आधार रबी फसलों के रकबे में हुई जोरदार वृद्धि जिससे खरीफ सीजन के दौरान हुई कमी की भरपाई हो गई।
गेहूं, राई, सरसों और चना की बुआई बढ़ने से रबी फसलों का कुल रकबा 1 फीसदी बढ़ गया। गेहूं का रकबा 26 नवंबर तक 5 फीसदी बढ़कर 1.37 करोड़ हेक्टेयर हो गया। सरसों, राई और चना के रकबे में 3 और 1 फीसदी की तेजी हुई। हालांकि रबी फसलों का कुल उत्पादन अनुमान जनवरी अंत तक ही स्पष्ट हो पाएगा।
इस बीच सरकार ने खरीफ सीजन के चावल उत्पादन अनुमान को 22 लाख टन बढ़ाकर 7.16 करोड़ टन कर दिया है। विश्लेषकों का तर्क है कि खरीफ सीजन के दौरान पड़ा सूखा सामान्य सूखे से अलग था। खरीफ सीजन में धान के उत्पादन में हुई कमी की आंशिक भरपाई रबी फसलों से हो जाएगी।
पहले अनुमान था कि खरीफ सीजन के अनाज उत्पादन में 2.1 करोड़ टन की कमी होगी। अब अनुमान है कि उत्पादन में केवल 1.87 करोड़ टन की कमी हो सकती है। एनसीडीईएक्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनाविस के मुताबिक, 'कृषि उत्पादों की ऊंची कीमत दो वजहों से रही है। एक, कमतर उत्पादन और दूसरा आधार वर्ष का प्रभाव कम रहना।
सामान्यत: खरीफ फसलों की कीमतें अक्टूबर से जनवरी के बीच कम होती है। फसलों के बाजार में आ जाने से कीमतें अब कम हो रही हैं।' सबनाविस हालांकि कहते हैं कि यह बहस का मामला हो सकता है कि क्या कुछ जिंसों की कीमतें कम होने का मतलब महंगाई पर विजय पा लेना है। दरअसल इन जिंसों के दाम पिछले साल की तुलना में अब भी ऊंची बनी हुई है।
पिछले हफ्ते कृषि मंत्री शरद पवार ने खुले बाजार में गेहूं की कीमतों में 200 रुपये की कमी करने का ऐलान किया था। गेहूं का उत्पादन अनुमान पिछले साल के 7.8 करोड़ टन से थोड़ा ज्यादा यानी 8 करोड़ टन है। कोटक कमोडिटी सर्विसेज लिमिटेड के आमोल तिलक ने बताया, 'मार्च की शुरुआत तक गेहूं और सस्ता होगा क्योंकि तब तक कटाई शुरू हो जाएगी।'
एक अन्य विश्लेषक ने कहा कि दाल का समीकरण कुछ अलग है। इसका उपयोग सीमित होता है। इसलिए इसके दाम में तेजी होने से किसानों को फायदा ही होता है जबकि बजट उतना प्रभावित नहीं होता। इसके दाम थोड़ा चढ़ने से बुआई को प्रोत्साहन मिलता है। चीनी का उत्पादन पिछले साल से ज्यादा तो होगा पर यह जरूरत से कम होगा। (बीएस हिन्दी)
सोने की ऊंची कीमतों के बावजूद बनी रही आभूषणों की मांग
कोलकाता December 29, 2009
सर्राफा की ऊंची कीमतों के बावजूद सोने के आभूषण यहां की शादी का सबसे जरूरी हिस्सा बने हुए हैं।
सवाल है कि देश की गहने की जरूरत कैसे पूरी हुई जब इस साल महज 220 टन सोना ही आयात किया गया, जबकि पिछले साल देश में 420 टन सोना आयात हुआ था।
देश के प्रमुख ज्वैलरी हाउस बीसी सेन ऐंड कंपनी के निदेशक अमित सेन कहते हैं, 'जवाब आसान है। लोगों के पास पहले से उपलब्ध 250 टन सोने का इस साल आभूषण बनाने के लिए पुनर्चक्रण हुआ। सोने की कीमत और पुनर्चक्रित होने वाले सोने की मात्रा का संबंध परस्पर होता है। पिछले साल जब सोने के दाम ज्यादा नहीं थे तब महज 150 टन पुराने सोने का ही इस्तेमाल हुआ।'
नए स्टैंडर्ड सोने का प्रति 10 ग्राम 17 हजार रुपये का भाव कई भारतीय परिवारों की क्रय क्षमता के बाहर है। पर यह बात हर किसी को पता है कि यहां हर तबके के परिवारों के पास कम से कम 20 हजार टन सोना है। पिछले कई पीढ़ियों से यह सोना जमा हो रहा है। ज्वैलरों का मानना है कि शादी के सीजन के दौरान उन्हें पुराने सोने से और अधिक गहने बनाने को मिलेंगे।
सेन के मुताबिक, 'उपभोक्ताओं के लिए बहुत हल्के गहने बनाने के लिए हमने अपने ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल किया है ताकि खरीदारी होती रहे। हम अभी भी कैजुअल या फैशन वियर के लिए हल्के गहने बना सकते हैं।'
ज्वैलरों का कहना है कि यदि यहां की महिलाएं 18 के बजाय 14 कैरेट के गहने पहनना शुरू कर दें तो सोने के दाम पर थोड़ा अंकुश लग सकता है। लेकिन वे ऐसा पसंद नहीं करतीं क्योंकि इसकी चमक 22 कैरेट के उत्पादों जैसी नहीं होती।
सेन के अनुसार, 'अमेरिका और यूरोप में ऐसा चलन में है जबकि भारतीय महिलाएं ऐसा नहीं करतीं।' दुनिया में सालाना जितना सोना खपत होता है, उसका 60 फीसदी गहने बनाने में जाता है। हालांकि भारत में कुल आयातित सोने का करीब 90 फीसदी गहने बनाने में इस्तेमाल होता है। भारत में सोने का थोड़ा ही उत्पादन होता है और ज्यादातर जरूरत आयात से पूरी होती है। इस साल देश में सोने का आयात घटकर आधा हो गया है।
आभूषण निर्माताओं जिनकी आयात का मुख्य स्रोत गहने बनाने का मेहनताना होता है, में अब तक कोई कमी नहीं हुई है। ऐसा सोने के पुनर्चक्रण के चलते हो पाया है। हालांकि आभूषण निर्माताओं को भय है कि सोना इसी तरह महंगा बना रहा तो शादी-विवाह में इसकी मांग प्रभावित होगी।
भारतीयों ने ऊंची कीमतों के चलते सोने की खरीदार पहले ही कम कर दी है। धातु सलाहकार फर्म जीएफएमएस के मुताबिक चीन सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरने जा रहा है। वहां निवेश के लिए ही सोने की मांग 83 टन की रही है। 2009 में चीन कुल 432 टन सोना उपभोग कर सकता है जबकि भारत में इसकी खपत 422 टन ही रह सकती है।
भारत में सोने की खपत का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। आरबीआई ने वैसे अक्टूबर में 200 टन सोने की खरीद की थी। अधिकारियों के मुताबिक, भारत से अलग चीन में पिछले 4 साल में सोने की मांग में जोरदार तेजी हुई है। शंघाई गोल्ड ऐंड ज्वेलरी ट्रेड एसोसिएशन ने भारतीय ज्वेलरों को बताया था कि चीन ग्रामीण इलाकों में सोने की खरीद को प्रोत्साहित कर रहा है।
एक बात नहीं नहीं भूलनी चाहिए कि चीन 2007 में दक्षिण अफ्रीका को पछाड़ दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्पादक बन गया था। इस बीच यहां की सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि उपभोक्ताओं को 22 कैरेट सोने का प्रलोभन दे ज्वैलर उन्हें कहीं कम कैरेट का सोना न दे दें।
खरा सोना
पुराने सोने को गलाकर बनाए जाते रहे गहने, बिकवाली रही तेजपिछले साल की तुलना में आधा हुआ सोने का आयातमहंगाई बढ़ने के चलते बिक्री बढ़ाने के लिए अपनाए तमाम हथकंडे (बीएस हिन्दी)
सर्राफा की ऊंची कीमतों के बावजूद सोने के आभूषण यहां की शादी का सबसे जरूरी हिस्सा बने हुए हैं।
सवाल है कि देश की गहने की जरूरत कैसे पूरी हुई जब इस साल महज 220 टन सोना ही आयात किया गया, जबकि पिछले साल देश में 420 टन सोना आयात हुआ था।
देश के प्रमुख ज्वैलरी हाउस बीसी सेन ऐंड कंपनी के निदेशक अमित सेन कहते हैं, 'जवाब आसान है। लोगों के पास पहले से उपलब्ध 250 टन सोने का इस साल आभूषण बनाने के लिए पुनर्चक्रण हुआ। सोने की कीमत और पुनर्चक्रित होने वाले सोने की मात्रा का संबंध परस्पर होता है। पिछले साल जब सोने के दाम ज्यादा नहीं थे तब महज 150 टन पुराने सोने का ही इस्तेमाल हुआ।'
नए स्टैंडर्ड सोने का प्रति 10 ग्राम 17 हजार रुपये का भाव कई भारतीय परिवारों की क्रय क्षमता के बाहर है। पर यह बात हर किसी को पता है कि यहां हर तबके के परिवारों के पास कम से कम 20 हजार टन सोना है। पिछले कई पीढ़ियों से यह सोना जमा हो रहा है। ज्वैलरों का मानना है कि शादी के सीजन के दौरान उन्हें पुराने सोने से और अधिक गहने बनाने को मिलेंगे।
सेन के मुताबिक, 'उपभोक्ताओं के लिए बहुत हल्के गहने बनाने के लिए हमने अपने ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल किया है ताकि खरीदारी होती रहे। हम अभी भी कैजुअल या फैशन वियर के लिए हल्के गहने बना सकते हैं।'
ज्वैलरों का कहना है कि यदि यहां की महिलाएं 18 के बजाय 14 कैरेट के गहने पहनना शुरू कर दें तो सोने के दाम पर थोड़ा अंकुश लग सकता है। लेकिन वे ऐसा पसंद नहीं करतीं क्योंकि इसकी चमक 22 कैरेट के उत्पादों जैसी नहीं होती।
सेन के अनुसार, 'अमेरिका और यूरोप में ऐसा चलन में है जबकि भारतीय महिलाएं ऐसा नहीं करतीं।' दुनिया में सालाना जितना सोना खपत होता है, उसका 60 फीसदी गहने बनाने में जाता है। हालांकि भारत में कुल आयातित सोने का करीब 90 फीसदी गहने बनाने में इस्तेमाल होता है। भारत में सोने का थोड़ा ही उत्पादन होता है और ज्यादातर जरूरत आयात से पूरी होती है। इस साल देश में सोने का आयात घटकर आधा हो गया है।
आभूषण निर्माताओं जिनकी आयात का मुख्य स्रोत गहने बनाने का मेहनताना होता है, में अब तक कोई कमी नहीं हुई है। ऐसा सोने के पुनर्चक्रण के चलते हो पाया है। हालांकि आभूषण निर्माताओं को भय है कि सोना इसी तरह महंगा बना रहा तो शादी-विवाह में इसकी मांग प्रभावित होगी।
भारतीयों ने ऊंची कीमतों के चलते सोने की खरीदार पहले ही कम कर दी है। धातु सलाहकार फर्म जीएफएमएस के मुताबिक चीन सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरने जा रहा है। वहां निवेश के लिए ही सोने की मांग 83 टन की रही है। 2009 में चीन कुल 432 टन सोना उपभोग कर सकता है जबकि भारत में इसकी खपत 422 टन ही रह सकती है।
भारत में सोने की खपत का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। आरबीआई ने वैसे अक्टूबर में 200 टन सोने की खरीद की थी। अधिकारियों के मुताबिक, भारत से अलग चीन में पिछले 4 साल में सोने की मांग में जोरदार तेजी हुई है। शंघाई गोल्ड ऐंड ज्वेलरी ट्रेड एसोसिएशन ने भारतीय ज्वेलरों को बताया था कि चीन ग्रामीण इलाकों में सोने की खरीद को प्रोत्साहित कर रहा है।
एक बात नहीं नहीं भूलनी चाहिए कि चीन 2007 में दक्षिण अफ्रीका को पछाड़ दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्पादक बन गया था। इस बीच यहां की सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि उपभोक्ताओं को 22 कैरेट सोने का प्रलोभन दे ज्वैलर उन्हें कहीं कम कैरेट का सोना न दे दें।
खरा सोना
पुराने सोने को गलाकर बनाए जाते रहे गहने, बिकवाली रही तेजपिछले साल की तुलना में आधा हुआ सोने का आयातमहंगाई बढ़ने के चलते बिक्री बढ़ाने के लिए अपनाए तमाम हथकंडे (बीएस हिन्दी)
चीनी में लगी ब्याज़ की चींटी
नई दिल्ली December 30, 2009
चीनी मिलों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। इस बार संकट सरकार का पैदा किया हुआ है।
दरअसल सरकार ने दिसंबर 2007 में चीनी मिलों को 4,000 करोड़ रुपये का बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था लेकिन इस पर लगने वाले ब्याज का पूरा भुगतान बैंकों को नहीं किया है।
माना जा रहा है कि इस राशि पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये (पिछले दो साल के लिए) का ब्याज बन रहा है लेकिन सरकार ने कुछ हफ्ते पहले ही बैंकों को इस मद में केवल 300 करोड़ रुपये जारी किए हैं। अब इसके नतीजे मिलों को भुगतने पड़ रहे हैं।
बैंक ब्याज की रकम की वसूली मिलों के खाते से कर रहे हैं और कुछ मामलों में तो बैंकों ने मिलों के कर्ज लेने की सीमा भी तय कर दी है। इससे चीनी मिलों के सामने मुश्किल आ गई है खासतौर से किसानों को गन्ना का भुगतान करने के मामले में।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक अधिकारी ने इस मसले पर कहा, 'इस महीने जो 300 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं वह एक साल के ब्याज के बराबर भी नहीं है। बैंक मिलों की कर्ज लेने की सीमा तय कर रहे हैं। बड़ी चीनी कंपनियों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है लेकिन इससे निश्चित रूप से छोटी मिलों के सामने दुश्वारियां पैदा हो रही हैं। मिलों को अगले साल मार्च से मूलधन वैसे भी वापस करना है।'
वर्ष 2006-07 और 07-08 के दौरान रिकॉर्ड उत्पादन की वजह से चीनी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ था और किसानों को गन्ने का भुगतान करने में आ रही मुश्किलों के मद्देनजर सरकार ने मिलों को यह बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था।
इस मामले में खाद्य मंत्रालय को हर तिमाही से पहले नोडल बैंकों को ब्याज का भुगतान करने की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले साल तक बिगड़ी हालत के बाद चीनी की कीमतों के आसमान छूने से चीनी कंपनियों की किस्मत के तारे भी बदल गए है। इन दिनों ये कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
सरकार ने ब्याज़ मुक्त कर्ज़ दिया था चीनी मिलों कोइस पर 2 साल में बना 1,000 करोड़ रुपये ब्याज़कर्ज़ देने वाले बैंकों को मिले केवल 300 करोड़ रुपयेपरेशान बैंक मिलों के खाते से वसूल रहे बकाया ब्याज़ (बीएस हिन्दी)
चीनी मिलों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। इस बार संकट सरकार का पैदा किया हुआ है।
दरअसल सरकार ने दिसंबर 2007 में चीनी मिलों को 4,000 करोड़ रुपये का बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था लेकिन इस पर लगने वाले ब्याज का पूरा भुगतान बैंकों को नहीं किया है।
माना जा रहा है कि इस राशि पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये (पिछले दो साल के लिए) का ब्याज बन रहा है लेकिन सरकार ने कुछ हफ्ते पहले ही बैंकों को इस मद में केवल 300 करोड़ रुपये जारी किए हैं। अब इसके नतीजे मिलों को भुगतने पड़ रहे हैं।
बैंक ब्याज की रकम की वसूली मिलों के खाते से कर रहे हैं और कुछ मामलों में तो बैंकों ने मिलों के कर्ज लेने की सीमा भी तय कर दी है। इससे चीनी मिलों के सामने मुश्किल आ गई है खासतौर से किसानों को गन्ना का भुगतान करने के मामले में।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक अधिकारी ने इस मसले पर कहा, 'इस महीने जो 300 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं वह एक साल के ब्याज के बराबर भी नहीं है। बैंक मिलों की कर्ज लेने की सीमा तय कर रहे हैं। बड़ी चीनी कंपनियों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है लेकिन इससे निश्चित रूप से छोटी मिलों के सामने दुश्वारियां पैदा हो रही हैं। मिलों को अगले साल मार्च से मूलधन वैसे भी वापस करना है।'
वर्ष 2006-07 और 07-08 के दौरान रिकॉर्ड उत्पादन की वजह से चीनी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ था और किसानों को गन्ने का भुगतान करने में आ रही मुश्किलों के मद्देनजर सरकार ने मिलों को यह बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था।
इस मामले में खाद्य मंत्रालय को हर तिमाही से पहले नोडल बैंकों को ब्याज का भुगतान करने की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले साल तक बिगड़ी हालत के बाद चीनी की कीमतों के आसमान छूने से चीनी कंपनियों की किस्मत के तारे भी बदल गए है। इन दिनों ये कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
सरकार ने ब्याज़ मुक्त कर्ज़ दिया था चीनी मिलों कोइस पर 2 साल में बना 1,000 करोड़ रुपये ब्याज़कर्ज़ देने वाले बैंकों को मिले केवल 300 करोड़ रुपयेपरेशान बैंक मिलों के खाते से वसूल रहे बकाया ब्याज़ (बीएस हिन्दी)
हरियाणा में धान का रिकॉर्ड उत्पादन
चंडीगढ़ December 29, 2009
सभी बाधाओं को पार करते हुए हरियाणा ने धान का रिकॉर्ड उत्पादन किया है।
हालांकि इस साल मौसम भी प्रतिकूल रहा। इसकी वजह से उत्तर भारत में धान की फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ा। हरियाणा में धान की बुआई 11.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हुई थी, जबकि पिछले साल बुआई का कुल क्षेत्रफल 12.10 लाख हेक्टेयर था।
हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक धान का उत्पादन इस सीजन में 45.55 लाख टन रहा, जो 1966 के बाद का सर्वोच्च स्तर है। इसके पहले उच्चतम स्तर का रिकॉर्ड 2005 में 45.11 लाख टन का बना था।
चावल शोध केंद्र, कौल के वैज्ञानिक डॉ. रतन सिंह का कहना है कि मौसम प्रतिकूल रहने के बाद भी हरियाणा में रिकॉर्ड उत्पादन होने के कई कारण हैं। मॉनसून में देरी और बारिश में कमी की वजह से राज्य में बुआई के क्षेत्रफल में भी कमी आई। लेकिन हरियाणा के ज्यादातर इलाकों में सिंचाई की सुविधा होने की वजह से किसानों को मदद मिली और वे बारिश में कमी का सामना करने में सफल रहे।
सरकारी अधिकारियों ने टयूबवेल चलाने के लिए बिजली की आपूर्ति जारी रखने में मदद की। साथ ही विद्युत उत्पादन सुविधा को पूरी चुस्ती से बरकरार रखा। साथ ही सूखे जैसी स्थिति में कीटों का हमला भी कम हुआ, जिसकी वजह से पैदावार में बढाेतरी दर्ज की गई। पिछले साल टिड्डों के हमले से धान की फसल खराब हो गई थी और इसका उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा था।
कुरुक्षेत्र इलाके के सरकारी अधिकारियों ने सबसे ज्यादा धान की खरीद की जहां मंडियों में 9.40 लाख टन से ज्यादा धान की आवक हुई। वहीं दूसरे स्थान पर करनाल रहा, जहां 7.51 लाख टन धान की आवक मंडियों में हुई है। हरियाणा में सोमवार तक मंडियों में धान की कुल आवक 46.78 लाख टन हो गई है। पिछले साल धान की कुल आवक 43.03 लाख टन थी।
मंडी में आए धान की खरीद या तो सरकार ने की है, या मिल संचालकों और डीलरों ने। सरकारी एजेंसियों ने कुल 26।34 लाख टन धान की खरीद की है। वहीं मिल संचालकों और डीलरों ने 20.44 लाख टन धान की खरीद की है। (बीएस हिन्दी)
सभी बाधाओं को पार करते हुए हरियाणा ने धान का रिकॉर्ड उत्पादन किया है।
हालांकि इस साल मौसम भी प्रतिकूल रहा। इसकी वजह से उत्तर भारत में धान की फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ा। हरियाणा में धान की बुआई 11.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हुई थी, जबकि पिछले साल बुआई का कुल क्षेत्रफल 12.10 लाख हेक्टेयर था।
हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक धान का उत्पादन इस सीजन में 45.55 लाख टन रहा, जो 1966 के बाद का सर्वोच्च स्तर है। इसके पहले उच्चतम स्तर का रिकॉर्ड 2005 में 45.11 लाख टन का बना था।
चावल शोध केंद्र, कौल के वैज्ञानिक डॉ. रतन सिंह का कहना है कि मौसम प्रतिकूल रहने के बाद भी हरियाणा में रिकॉर्ड उत्पादन होने के कई कारण हैं। मॉनसून में देरी और बारिश में कमी की वजह से राज्य में बुआई के क्षेत्रफल में भी कमी आई। लेकिन हरियाणा के ज्यादातर इलाकों में सिंचाई की सुविधा होने की वजह से किसानों को मदद मिली और वे बारिश में कमी का सामना करने में सफल रहे।
सरकारी अधिकारियों ने टयूबवेल चलाने के लिए बिजली की आपूर्ति जारी रखने में मदद की। साथ ही विद्युत उत्पादन सुविधा को पूरी चुस्ती से बरकरार रखा। साथ ही सूखे जैसी स्थिति में कीटों का हमला भी कम हुआ, जिसकी वजह से पैदावार में बढाेतरी दर्ज की गई। पिछले साल टिड्डों के हमले से धान की फसल खराब हो गई थी और इसका उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा था।
कुरुक्षेत्र इलाके के सरकारी अधिकारियों ने सबसे ज्यादा धान की खरीद की जहां मंडियों में 9.40 लाख टन से ज्यादा धान की आवक हुई। वहीं दूसरे स्थान पर करनाल रहा, जहां 7.51 लाख टन धान की आवक मंडियों में हुई है। हरियाणा में सोमवार तक मंडियों में धान की कुल आवक 46.78 लाख टन हो गई है। पिछले साल धान की कुल आवक 43.03 लाख टन थी।
मंडी में आए धान की खरीद या तो सरकार ने की है, या मिल संचालकों और डीलरों ने। सरकारी एजेंसियों ने कुल 26।34 लाख टन धान की खरीद की है। वहीं मिल संचालकों और डीलरों ने 20.44 लाख टन धान की खरीद की है। (बीएस हिन्दी)
29 दिसंबर 2009
निडाना गावं में दो दर्जन कृषि अधिकारियों का दौरा
आज दिनांक २९/१२/०९ को निडाना गावं में दो दर्जन कृषि अधिकारियों ने निडाना गाम का दौरा किया कृषि अधिकारियों का गाम में यह दौरा संसाधन मैपिंग व् महिला सशक्तिकरण को लेकर था यह बात आज यहाँ प्रैस के नाम एक विज्ञप्ति जरी करते हुए निडाना गाँव के भू।पु.सरपंच व् प्रगतिशील किसान रत्तन सिंह ने बताई सुबह १०:४० बजे कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय में इन कृषि अधिकारियों का गाँव के किसानों द्वारा स्वागत किया गया डा.राजेश लाठर व् डा सुभाष ने कृषि विभाग के इन मंडल व् खंड स्तरीय अधिकारियों का परिचय कटवाया तथा गाँव में आणे का उद्देश्य बताया रणबीर सिंह व् मनबीर सिंह की अगुवाई में किसानों ने इन अधिकारियों को इस गाँव में पाए जाणे वाले कीड़ों से सम्बंधित प्रदर्शनी दिखाई उन्होंने मेहमानों को बताया कि दुनियां में मिलीबग नियंत्रण पर बनी कुल अठ्ठारह वीडियो फिल्मों में से ग्यारह इस गाँव के किसानों द्वारा तैयार की गई हैं इंटर-नेट पर लोड हमारी इन फिल्मों को को दुनिया भर में बारह हजार बार से ज्यादा देखा जा चूका है तथा इन किसानों द्वारा पकडे गये कीटों के फोटुओं को दुनिया में इंटर-नैट पर दो हज़ार से ज्यादा लोग देख चुके हैं. उन्होंने मेहमानों को यह भी बताया कि खरीफ के सीजन में कपास की फसल पर इस गाँव में किसानों की सक्रिय भागेदारी से चली "अपना खेत-अपनी पाठशाला के सभी सत्रों की कारवाही को इसी नाम से ब्लागिंग की गई है इसके पश्चात् डा.सुभाष ने इन कृषि अधिकारियों के दो समूह बनाये एक समूह गाँव की अन्दरली चौपाल में महिलाओं से बातचीत करने रवाना हुआ तथा दूसरा समूह यहाँ ब्रह्मणों वाली निर्माणाधीन चौपाल में पुरुषों से बातचीत के लिया रुका दुसरे समूह में डा.राजेश लाठर ने संसाधन मैपिंग के लिए किसानों को उकसाया देखते-देखते ही किसानों ने इस गाँव का नक्शा माय खेतों व् रास्तों के धरती के सिने पर उकेर दिया गाँव के नक़्शे में चिकित्शालय, पशु हस्पताल, पानी की डिग्गी व् स्कूलों को भी नक़्शे में चिन्हित किया तथा इनकी वस्तुगत स्थिति से आगुन्तुक अधिकारियों को परिचित करवाया गावं में साझले कार्यों की चर्चा चलने पर महाबीर की नाराजगी देखते ही बनती थी शायद उसके घर के आगे खैंचा इसकी पृष्ठ भूमि में अपना कार्य कर रहा था गाँव में बोई जाणे वाली फसलों, नहरी पानी की स्थिति, पिने के पानी की स्थिति व् गाँव में ट्रैक्टरों व् मशीनरी की स्थिति पर किसानों व् अधिकारियों के मध्य सूचनाओं का अच्छा-खासा आदान-प्रदान हुआ महाबीर, बसाऊ, रत्तन, मनबीर, संदीप, नरेश, कप्तान, रमेश व् चंद्रपाल ने इस कार्यकर्म में बढचढ कर हिस्सेदारी कीगाँव की अन्दरली चौपाल में समेकित महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाईजर के नेत्रित्व में पच्चास से ज्यादा महिलाओं ने तिन घंटे तक इन बिन्दुओं पर खुल कर चर्चा की अंत में डा.सुभाष ने इस प्रोग्राम के आयोजन व् बेहतर सञ्चालन के लिए गाँव के किसानों व् निडाना के कृषि विकास अधिकारी डा.सुरेन्द्र दलाल का थ दिल से शुक्रिया अदा किया किसानों की तरफ से रत्तन सिंह इस प्रोग्राम में पधारने के लिए धन्वाद करते हुए इस गाँव में दोबारा पधारने की अपील की (मनबीर redhu...निदान Village)
क्रूड ऑयल महंगा होने से मोम के दाम 12 फीसदी बढ़े
पिछले चार माह के दौरान क्रूड आयल के दाम बढ़ने की वजह से मोम की कीमतों में करीब 12 फीसदी का इजाफा हुआ है। कारोबारियों के अनुसार आर्थिक हालात सुधरने के कारण इसकी मांग भी सुधरी है। दिल्ली के केमिकल बाजार में चार माह के दौरान इंडियन (इंडियन ऑयल का) मोम के 76 रुपये से बढ़कर 87 रुपये, चीन से आयातित मोम के दाम 74 रुपये से बढ़कर 84 रुपये और ईरान से आयातित मोम के दाम 10 रुपये बढ़कर 55-62 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं।दिल्ली के मोम कारोबारी सुभाष जैन ने बिजनेस भास्कर को बताया पिछले चार माह के दौरान क्रूड ऑयल के दाम 60 डॉलर से बढ़कर 78 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं। इस वजह से मोम की कीमतों में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है। उनके अनुसार आर्थिक हालात सुधरने की वजह पिछले साल के मुकाबले इसकी मांग में भी हल्का सुधार हुआ। गौरतलब है कि मोम की खपत सबसे अधिक दिवाली के अवसर पर होती है। मोम कारोबारी सुरेश शर्मा का कहना है कि दिवाली पर मोमबत्ती के निर्माण में मोम का उपयोग होता है। इस बार भी दिवाली पर मोम की मांग में बहुत अधिक इजाफा नहीं हुआ था। हालांकि पिछले साल के मुकाबले सुधार जरूर था। उनके मुताबिक पिछले दो वषों से दिवाली पर मोम के दाम अधिक होने के कारण इसकी बिक्री में खासी कमी आ रही है।दो साल पहले मोम के दाम 50-55 रुपये प्रति किलो के आसपास रहते थे। उनके अनुसार लोग अब दिवाली पर मोमबत्ती महंगी होने के कारण सजावट के लिए लाइटिंग पर अधिक ध्यान देने लगे हैं। उनका कहना है कि इस बार मोम के दाम वर्ष 2008 की दिवाली के मुकाबले कम थे। पिछले साल दिवाली पर 100 रुपये प्रति किलो के ऊपर चले गए थे। दरअसल पिछले साल क्रूड ऑयल के 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने के कारण इसके मूल्यों में भारी बढ़ोतरी हुई थी। कारोबारियों के अनुसार मोम के महंगा होने के कारण मोमबत्ती निर्माताओं ने इसकी खरीदारी कम की थी। निर्माताओं ने दाम बढ़ाने की बजाय मोम बत्ती के पैकेट का वजन करने का रास्ता अपनाया था। कारोबारियों के मुताबिक पिछले दो वषों के दौरान इसकी बिक्री में 30 फीसदी तक की गिरावट आई है। इसकी वजह मोम के दाम अधिक रहना है। (बिज़नस भास्कर)
किसानों की रुचि बढ़ने से आलू का ज्यादा उत्पादन होगा
पिछले सीजन में आलू के अच्छे दाम मिलने की वजह से चालू सीजन (वर्ष 2009-10) के दौरान किसानों की दिलचस्पी ज्यादा रही। इसके कारण आलू के उत्पादन में चार फीसदी वृद्धि होने का अनुमान है। इस दौरान पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और पंजाब में आलू की पैदावार बढ़ने की संभावना है जबकि बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक में पैदावार घटने का अनुमान है।राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन(एनएचआरडीएफ) के निदेशक आर.पी. गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू वर्ष के दौरान किसानों को आलू के औसतन 1,000 -1100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से दाम मिले। यह मूल्य पिछले सीजन के मुकाबले काफी अधिक है। इस वजह से नए सीजन में किसानों ने इसकी बुवाई अधिक जमीन में की। जिससे चालू सीजन में आलू की पैदावार करीब चार फीसदी बढ़ने का अनुमान है। उनके मुताबिक अभी तक आलू की फसल में कोई बीमारी न लगने के कारण भी पैदावार बढ़ने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि पिछले सीजन में लेट ब्लाइट बीमारी के कारण कुछ राज्यों में आलू का उत्पादन घटा था।एनएचआरडीएफ के अनुसार सीजन 2009-10 के दौरान कुल 18.84 लाख हैक्टेयर जमीन में 327.33 लाख टन आलू का उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले सीजन के दौरान 18.10 लाख हैक्टेयर में 314.62 लाख आलू पैदा हुआ था। इस दौरान उत्तर प्रदेश में आलू का उत्पादन 135 लाख से बढ़कर 136.40 लाख टन, पंजाब में 14 लाख से बढ़कर 15 लाख टन , पश्चिम बंगाल में यह 70 लाख से 83.25 लाख टन और मध्य प्रदेश में 8.65 लाख से बढ़कर 13.60 लाख टन होने का अनुमान है। गुप्ता कहना है कि गुजरात में बारिश की कमी के कारण इसके उत्पादन में गिरावट आई। बिहार में आलू का उत्पादन करीब 23 फीसदी घटकर 16.62 लाख टन रहा। पिछले साल भी बिहार में आलू कम पैदा हुआ था। जानकारों के मुताबिक आलू का बीज महंगा होने के कारण बिहार में किसानों आलू की बुवाई अधिक नहीं कर पाए। उनके मुताबिक बिहार सरकार की बेरुखी के चलते किसानों को सस्ता बीज नहीं मिल पाया। लिहाजा इसका उत्पादन कम है। वहीं पश्चिम बंगाल सरकार ने पंजाब से बीज खरीदकर किसानों को सब्सिडी पर सस्ता बीज मुहैया कराया था। इस वजह से राज्य में पैदावार सबसे अधिक 13.25 लाख टन बढ़ने का अनुमान है। वहीं गुजरात में आलू का उत्पादन 16.41 लाख से घटकर 15.40 लाख टन, महाराष्ट्र में 4.35 लाख से घटकर 3.70 और कर्नाटक में 7.15 लाख से घटकर 6.40 लाख टन रह सकता है। उत्पादन बढ़ने से अगले साल उपभोक्ताओं को आलू की महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद है। वहीं किसानों को भी इसके अच्छे मिलने के संकेत हैं। गुप्ता कहना है कि किसानों को 500-600 रुपये प्रति क्विंटल भाव मिलने की उम्मीद है। (बिज़नस भास्कर)
उत्पादक देशों में पैदावार कम रहने से पिस्ता महंगा
पिस्ता के दाम पिछले दो माह में करीब 15 फीसदी बढ़ चुके हैं। इसकी वजह उत्पादक देशों में इसकी पैदावार कम होना हैं। कारोबारियों के मुताबिक इसके मूल्यों में मांग कम होने के बावजूद बहुत अधिक गिरावट के आसार नहीं हैं।राष्ट्रीय राजधानी की खारी बावली स्थित ड्राईफ्रूट बाजार में पिस्ता डोडी के दाम 450-550 रुपये से बढ़कर 480-620 रुपये और पिस्ता गिरि के दाम 750-1200 रुपये से बढ़कर 850-1300 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं। खारी बाबली सर्व व्यापार महासंघ के सचिव ऋषि मंगला ने बिजनेस भास्कर को बताया पिस्ता उत्पादक देश ईरान, अमेरिका में इसकी पैदावार कम होने के कारण इसके मूल्यों में लगातार तेजी आ रही है। इसके दाम दिवाली के बाद से 100-150 रुपये प्रति किलो बढ़ चुके हैं। उनका कहना है कि पिस्ता के दाम अधिक होने के कारण इसकी मांग कम है। कारोबारियों के मुताबिक इसके मूल्यों में आगे हल्की गिरावट आ सकती है। ड्राईफ्रूट कारोबारी राजेश कुमार के अनुसार आगे मांग न होने के कारण इसके मूल्यों में 30-40 रुपये प्रति किलो की गिरावट संभव है। लेकिन उत्पादक देशों में ही इसके दाम अधिक होने के कारण इसके मूल्यों में बहुत अधिक कमी के आसार नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि इस बार दिवाली पिछले साल के मुकाबले ड्राईफ्रूट के कारोबार इजाफा हुआ था। लेकिन पिस्ता की मांग अन्य के मुकाबले कम थी। इसकी वजह इसके दाम काफी अधिक होना हैं। वहीं इस बार आर्थिक हालात सुधरने के कारण दिवाली पर ड्राईफ्रूट की मांग पिछली दिवाली के मुकाबले करीब 15 फीसदी अधिक रही। इस बार ड्राईफ्रूट सस्ते होने के कारण भी इसकी मांग बढ़ने को बल मिला था। मंगला का कहना है कि दिवाली पर उपहार में ड्राईफ्रूट का चलन बढ़ने के कारण इसकी मांग में इजाफा हुआ है। जबकि पिछले साल आर्थिक संकट और ड्राईफ्रूट महंगे होने के कारण इसकी मांग करीब 30 फीसदी कम रही थी। खारी बावली मंडी ड्राईफ्रूट का देश में सबसे बडा बाजार है। इस बाजार में ड्राईफ्रूट का करीब 1000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार किया जाता है। देश में पिस्ता अमेरिका, ईरान और अफगानिस्तान से आयात किया जाता है। (बिज़नस भास्कर)
चीन की मिलों को महंगा लौह अयस्क लेना होगा
भारत सरकार ने लौह अयस्क निर्यात पर टैक्स का बोझ बढ़ाने का फैसला किया है। इससे भारतीय लौह अयस्क करीब चार-पांच डॉलर प्रति टन महंगा हो जाएगा लेकिन चीन की स्टील कंपनियों के सामने यह वित्तीय भार उठाने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं होगा क्योंकि विश्व बाजार में लौह अयस्क की सप्लाई सीमित है। ऐसे में चीन का उद्योग भारत से लौह अयस्क आयात करता रहेगा।चायना आयरन एंड स्टील एसोसिएशन से संबंधित इंडस्ट्री ट्रेडिंग हाउसेज एंड कंसल्टेंसी फर्म सीयूस्टील, माय स्टील और यूमेटल ने अपनी वेबसाइटों पर कहा है कि भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पिछले सप्ताह कहा था कि लौह अयस्क फाइन पर 5 फीसदी निर्यात कर लगाया जाएगा जबकि लौह अयस्क लम्प पर निर्यात कर 5 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी किया जाएगा। नई दरें 25 दिसंबर से प्रभावी हो गई हैं। रिपोर्ट के टैक्स की नई दरें लागू होने से भारत के लौह अयस्क की कीमतों में 4 से 5 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो जाएगी। पिछले सप्ताह भारत से आयातित 63।5 ग्रेड लौह अयस्क फाइन की कीमत बढ़कर 120 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई। वैश्विक आर्थिक संकट के शुरू होने के बाद यह सबसे ज्यादा कीमत है।रिपोर्ट में कहा गया है कि लौह अयस्क की कमजोर आपूर्ति के कारण चीन की मिलों के पास बढ़े हुए टैक्स का बोझ सहन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। सीयूस्टील और मायस्टील दोनों का कहना है कि हाल ही में हुए सौदों में भारतीय निर्यातकों ने यह शर्त जोड़ दी थी कि यदि भारत सरकार दरों में बढ़ोतरी करती है तो यह चीन मिलों को ही वहन करना होगा। उनका कहना है कि यह स्थिति न तो चीन की मिलों के लिए ठीक है और न ही 2010 के लिए लौह अयस्क की बेंचमार्क कीमत पर जारी बातचीत के लिए शुभ है। लौह अयस्क के हाजिर भाव और 2009 की बेंचमार्क कीमतों के बीच पहले ही 40 डॉलर प्रति टन का अंतर है। चीन 2010 के लिए लौह अयस्क की बेंचमार्क कीमतों के लिए विश्व की प्रमुख खनन कंपनियों से बातचीत कर रहा है। कंपनियां कीमतों में 20 फीसदी की बढ़ोतरी करने की तैयारी कर रही हैं, जबकि पिछले वर्ष 33 फीसदी तक का डिस्काउंट (वर्ष 2008 के उच्च मूल्य पर) दिया गया था। (बिज़नस भास्कर)
वियतनाम व इंडोनेशिया को भेजी दागी मक्का की खेप नामंजूर
क्वालिटी को लेकर वियतनाम और इंडोनेशिया ने करीब 11,000-12,000 टन मक्का की खेप रद्द कर दी है। यह मक्का इंडोनेशिया और मलेशिया भेज दी गई थी। इसके सौदे 204 से 220 डॉलर प्रति टन की दर पर हुए थे। भारतीय निर्यातक सौदे सेटल करने की कोशिश कर रहे हैं। इन सौदे के रद्द किए जाने से उत्पादक राज्यों की मंडियों में मक्का की कीमतों में 50-60 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है।मैसर्स लक्ष्मी ओवरसीज के डायरेक्टर दिलीप काबरा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि क्वालिटी हल्की होने के कारण वियतनाम और इंडोनेशिया के आयातकों ने 11,000-12,000 टन मक्का की एलसी मानने और भुगतान करने से इंकार कर दिया है। इस मक्का के निर्यात सौदे 204-220 डॉलर प्रति टन की दर पर हुए थे। उन्होंने बताया कि कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में फसल पकने के समय बारिश होने से मक्का के दाने दागी हो गए थे। इसी वजह से आयातकों ने खेप छुड़ाने से इंकार कर दिया। इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्राजील, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान की मक्का सस्ती होने के कारण पहले ही भारतीय निर्यातकों को सौदे करने में दिक्कत आ रही थी। इस समस्या से निर्यात और प्रभावित होने का अंदेशा है। कर्नाटक की मंडियों में मक्का के भाव घटकर 845 रुपये (वैगन बिल्टी), महाराष्ट्र की मंडियों में 910 रुपये और आंध्र प्रदेश की मंडियों में 920 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। निजामाबाद स्थित मैसर्स मनसाराम योगेश कुमार के प्रोपराइटर पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि भारतीय निर्यातकों की निर्यात खेप क्वालिटी पर खरी न उतरने के कारण उत्पादक मंडियों में मक्का के भाव घटे हैं। हालांकि इस समय पोल्ट्री फीड निर्माताओं और स्टार्च मिलों की मांग अच्छी बनी हुई है, साथ ही चालू सीजन में देश में मक्का का उत्पादन भी घटने का अनुमान है इसलिए मौजूदा कीमतों में ज्यादा गिरावट की संभावना नहीं है। मोटे अनाजों की ऊंची कीमतों से भी मक्का के भावों में भारी गिरावट की उम्मीद नहीं है। इस समय आंध्र प्रदेश की मंडियों में 30-35 हजार बोरी, कर्नाटक की मंडियों में 80-90 हजार और महाराष्ट्र की मंडियों में 70-75 हजार बोरी मक्का की दैनिक आवक हो रही है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक खरीफ में देश में मक्का का उत्पादन घटकर 126 लाख टन ही होने का अनुमान है जोकि वर्ष 2008-09 के 139 लाख टन के मुकाबले करीब 9.3 फीसदी कम है। हालांकि चालू रबी में मक्का की बुवाई पिछले साल के 7.97 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 8.11 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। अभी तक उत्पादक राज्यों में मौसम भी फसल के अनुकूल है इसलिए रबी में मक्का का उत्पादन वर्ष 2008-09 के 53.9 लाख टन से बढ़ने की संभावना है।मैसर्स गोपाल ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर राजेश अग्रवाल ने बताया कि कर्नाटक, आंध्र और महाराष्ट्र से मक्का की आवक ज्यादा होने से भाव 20-25 रुपये प्रति क्विंटल गिर गए हैं। दिल्ली में कर्नाटक की मक्का के भाव रैक प्वांइट पर 1040 रुपये और आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र की मक्का के भाव 1070 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इन राज्यों उत्तर भारत में करीब 120-125 रैक मक्का की आवक हो चुकी है। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
गन्ने की कीमतें बढ़ाने की होड़
गन्ने को लेकर पंजाब की सहकारी और प्राइवेट चीनी मिलांे में प्राइस वार छिड़ गया है। इसके चलते सहकारी मिलों को भी राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) से अधिक कीमत देनी पड़ रही है। अधिक गन्ना जुटाने की होड़ में प्राइवेट मिलों ने किसानों को 2फ्0 से 2ब्0 रुपये प्रति क्विंटल का भाव और एडवांस देकर खींचना शुरूकर दिया है। वहीं, सहकारी मिलों ने भी गन्ने का भाव एसएपी से 20 रुपये क्विंटल बढ़ाकर 200 रुपये कर दिया है। इसके बावजूद शुगरफेड पंजाब को आशंका है कि राज्य की सहकारी मिलों को इस बार भारी नुकसान होगा।
शुगरफेड पंजाब के चेयरमैन प्रीतम सिंह कौंटा के मुताबिक पंजाब में गन्ने के घटते रकबे के चलते इसका उत्पादन भी कम हो गया। पंजाब की मोरिंडा, नवांशहर व बुड्ढेवाल सहकारी मिलों की हालत काफी खराब है। इन मिलों के इस बार बड़े घाटे में जाने की आशंका है। निजी मिलें ऊंचे भावों पर किसानों से गन्ना खरीद रही हैं। इससे किसानों का तो फायदा हो रहा है, लेकिन सहकारी मिलों के लिए यह संकट की स्थिति है। पंजाब की सहकारी मिलों में गन्ने के भाव 180 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर 200 क्विंटल कर दिए गए हैं, पर निजी मिलें इससे भी अधिक भाव देकर गन्ना बटोर रही हैं।नाहर इंडस्ट्रियल एंटरप्राइजेज की अमलोह (मंडीगोबिंदगढ़) स्थित चीनी मिल के मैनेजर सुधीर के मुताबिक मिल की तरफ से किसानों को 220 रुपये क्विंटल का भाव दिया जा रहा है। इसके अलावा आने वाली बुवाई के लिए किसान को 50 हजार रुपये एडवांस भी दिए जा रहे हैं।
जो किसान अपने बीज से ही गन्ने की बुवाई करेंगे उन्हें 12,000 रुपये का कर्ज बिना ब्याज के दिया जाएगा। इसके अलावा गन्ने की फसल के लिए उपयोग में आने वाली दवाओं पर 25 फीसदी सब्सिडी के अलावा ट्रैंच मशीनों पर भी सब्सिडी दी जाएगी। धूरी शुगर मिल के जीएम गुरबचन सिंह के मुताबिक उनकी मिल किसानों को 220 रुपये क्विंटल के लिहाज से भुगतान कर रही है। उधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी चीनी मिलों ने गन्ने का दाम बढ़ाकर 220-225 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। राज्य के सहारनपुर में स्थित उत्तम शुगर मिल्स लिमिटेड ने 22 दिसंबर को ही भाव बढ़ा दिए थे जिससे अन्य मिलों पर भी मूल्यवृद्धि का दबाव बढ़ गया था। (बिज़नस भास्कर)
शुगरफेड पंजाब के चेयरमैन प्रीतम सिंह कौंटा के मुताबिक पंजाब में गन्ने के घटते रकबे के चलते इसका उत्पादन भी कम हो गया। पंजाब की मोरिंडा, नवांशहर व बुड्ढेवाल सहकारी मिलों की हालत काफी खराब है। इन मिलों के इस बार बड़े घाटे में जाने की आशंका है। निजी मिलें ऊंचे भावों पर किसानों से गन्ना खरीद रही हैं। इससे किसानों का तो फायदा हो रहा है, लेकिन सहकारी मिलों के लिए यह संकट की स्थिति है। पंजाब की सहकारी मिलों में गन्ने के भाव 180 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर 200 क्विंटल कर दिए गए हैं, पर निजी मिलें इससे भी अधिक भाव देकर गन्ना बटोर रही हैं।नाहर इंडस्ट्रियल एंटरप्राइजेज की अमलोह (मंडीगोबिंदगढ़) स्थित चीनी मिल के मैनेजर सुधीर के मुताबिक मिल की तरफ से किसानों को 220 रुपये क्विंटल का भाव दिया जा रहा है। इसके अलावा आने वाली बुवाई के लिए किसान को 50 हजार रुपये एडवांस भी दिए जा रहे हैं।
जो किसान अपने बीज से ही गन्ने की बुवाई करेंगे उन्हें 12,000 रुपये का कर्ज बिना ब्याज के दिया जाएगा। इसके अलावा गन्ने की फसल के लिए उपयोग में आने वाली दवाओं पर 25 फीसदी सब्सिडी के अलावा ट्रैंच मशीनों पर भी सब्सिडी दी जाएगी। धूरी शुगर मिल के जीएम गुरबचन सिंह के मुताबिक उनकी मिल किसानों को 220 रुपये क्विंटल के लिहाज से भुगतान कर रही है। उधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी चीनी मिलों ने गन्ने का दाम बढ़ाकर 220-225 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। राज्य के सहारनपुर में स्थित उत्तम शुगर मिल्स लिमिटेड ने 22 दिसंबर को ही भाव बढ़ा दिए थे जिससे अन्य मिलों पर भी मूल्यवृद्धि का दबाव बढ़ गया था। (बिज़नस भास्कर)
तड़का लगाइए, सस्ती हो रही हैं दालें
दालों की आसमान छूती कीमतों में कमी होने लगी है। इसका एक कारण यह है कि इस बार रबी सीजन में दलहन की अच्छी बुआई हुई है। साथ ही कारोबारियों का कहना है कि सब्जियां अब इतनी सस्ती हो गई हैं कि लोग दालों की जगह सब्जी का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। नई दाल आने से अगले एक-दो महीने में दालों की कीमतों में 10 फीसदी तक और गिरावट आ सकती है। दिल्ली ग्रेन मर्चेंट असोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गुप्ता ने बताया कि एक सप्ताह के अंदर ही दालों की होलसेल कीमतों में करीब 8 फीसदी तक की कमी आई है। इस बार रबी सीजन में दालों की अच्छी बुआई हुई है। नई दाल की आवक लगातार होते रहने से कीमतों में अभी और गिरावट आएगी। अगले एक-दो महीने में दालों की कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट और हो सकती है। सब्जियों की कीमत कम होने से भी दालों की डिमांड में कमी बताई जा रही है। नया बाजार में दालों के व्यापारी ओमप्रकाश जैन बताते हैं कि अरहर और मूंग की दाल सहित कई अन्य दालों का चीन, बर्मा और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से इम्पोर्ट किया जाता है। इम्पोर्ट अब भी पहले जितना ही हो रहा है, लेकिन मांग कम हो गई है। इससे कीमतें कम होने लगी हैं। गाजियाबाद की गोविंदपुरम अनाज मंडी में भी दालों की कीमत में गिरावट आई है। कारोबारियों का कहना है कि पहले महंगाई के कारण मंडी में दालों के खरीदार नहीं आ रहे थे। अब सब्जी की आवक बढ़ने से खरीदार और भी घट गए हैं। सब्जी इतनी सस्ती हो गई है कि लोग दाल की जगह सब्जी का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। इस कारण खाद्यान्न कारोबार 30 प्रतिशत घट गया है। मंडी में कानपुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा से अरहर की नई दाल भी आ गई है। खाद्यान्न कारोबारी संत कुमार ने बताया कि दालों के दाम में गिरावट आने के बाद भी मंडी में खरीदार बहुत कम नजर आ रहे हैं। गोदामों में माल भरा पड़ा है, लेकिन खरीदार नहीं होने की वजह से स्थिति खराब हो गई है। (ई टी हिन्दी)
एनस्पॉट करेगा राजस्थान में कारोबार
मुंबई December 29, 2009
देश के सबसे बड़े कृषि एक्सचेंज एनसीडीईएक्स के सहयोगी एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनस्पॉट) ने राजस्थान में ऑनलाइन स्पॉट कारोबार शुरू करने की पूरी तैयारी कर ली है।
एनस्पॉट को राज्य में सरसों, चना और ग्वारसीड का हाजिर कारोबार शुरू करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति पहले ही मिल चुकी है। एनस्पॉट चना और सरसों अनुंबधों के जरिए राज्य में पहले से ही सक्रिय है।
अब ऑनलाइन स्पॉट कारोबार की अनुमति मिलने से एनस्पॉट को कृषि गतिविधियां फैलाने का पूरा मौका होगा। एक्सचेंज ने इसके अलावा गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार, राजस्थान और केरल में स्पॉट एक्सचेंज स्थापित करने की अनुमति ले ली है। एक्सचेंज का मध्य प्रदेश में एपीएमसी भुगतान उपकर का अनुबंध भी है।
एनस्पॉट का पहले से ही श्री शुभम लॉजिस्टिक्स के साथ साझेदारी है। इस कंपनी के पास राजस्थान में कई गोदाम हैं। ताजा अनुमति से नए एक्सचेंज को राजस्थान के किसानों को भंडारण सुविधा उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
एनस्पॉट के प्रमुख राजेश सिन्हा ने कहा, 'राजस्थान के किसानों, कारोबारियों और ब्रोकरों के साथ राज्य सरकार के निगमों की पहुंच एनसीडीईएक्स और एनस्पॉट द्वारा प्रदत्त आधुनिक सुविधाओं तक हो जाएगी। सुविधाएं बढ़ने से इन उत्पादकों को उम्मीद है कि उन्हें बेहतर मुनाफा मिल सकेगा।'
मंडियों को आधुनिक बनाने की अपनी परियोजना के लिए एनस्पॉट कई राज्य सरकारों के साथ मिल काम कर रहा है। गौरतलब है कि एनस्पॉट देश की सबसे बड़े कृषि जिंस एक्सचेंज एनसीडीईएक्स की हाजिर कारोबार करने वाला एक्सचेंज है। कृषि जिंसों के कुल वायदा कारोबार में एनसीडीईएक्स का हिस्सा 85 फीसदी है।
तैयारी पूरी
एनसीडीईएक्स के एनस्पॉट ने राजस्थान में ऑनलाइन स्पॉट कारोबार करने की तैयारी पूरी कीएनस्पॉट को राज्य में सरसों, चना और ग्वारसीड के हाजिर कारोबार की राज्य से पहले ही अनुमति मिल चुकी है (बीएस हिन्दी)
देश के सबसे बड़े कृषि एक्सचेंज एनसीडीईएक्स के सहयोगी एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनस्पॉट) ने राजस्थान में ऑनलाइन स्पॉट कारोबार शुरू करने की पूरी तैयारी कर ली है।
एनस्पॉट को राज्य में सरसों, चना और ग्वारसीड का हाजिर कारोबार शुरू करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति पहले ही मिल चुकी है। एनस्पॉट चना और सरसों अनुंबधों के जरिए राज्य में पहले से ही सक्रिय है।
अब ऑनलाइन स्पॉट कारोबार की अनुमति मिलने से एनस्पॉट को कृषि गतिविधियां फैलाने का पूरा मौका होगा। एक्सचेंज ने इसके अलावा गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार, राजस्थान और केरल में स्पॉट एक्सचेंज स्थापित करने की अनुमति ले ली है। एक्सचेंज का मध्य प्रदेश में एपीएमसी भुगतान उपकर का अनुबंध भी है।
एनस्पॉट का पहले से ही श्री शुभम लॉजिस्टिक्स के साथ साझेदारी है। इस कंपनी के पास राजस्थान में कई गोदाम हैं। ताजा अनुमति से नए एक्सचेंज को राजस्थान के किसानों को भंडारण सुविधा उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
एनस्पॉट के प्रमुख राजेश सिन्हा ने कहा, 'राजस्थान के किसानों, कारोबारियों और ब्रोकरों के साथ राज्य सरकार के निगमों की पहुंच एनसीडीईएक्स और एनस्पॉट द्वारा प्रदत्त आधुनिक सुविधाओं तक हो जाएगी। सुविधाएं बढ़ने से इन उत्पादकों को उम्मीद है कि उन्हें बेहतर मुनाफा मिल सकेगा।'
मंडियों को आधुनिक बनाने की अपनी परियोजना के लिए एनस्पॉट कई राज्य सरकारों के साथ मिल काम कर रहा है। गौरतलब है कि एनस्पॉट देश की सबसे बड़े कृषि जिंस एक्सचेंज एनसीडीईएक्स की हाजिर कारोबार करने वाला एक्सचेंज है। कृषि जिंसों के कुल वायदा कारोबार में एनसीडीईएक्स का हिस्सा 85 फीसदी है।
तैयारी पूरी
एनसीडीईएक्स के एनस्पॉट ने राजस्थान में ऑनलाइन स्पॉट कारोबार करने की तैयारी पूरी कीएनस्पॉट को राज्य में सरसों, चना और ग्वारसीड के हाजिर कारोबार की राज्य से पहले ही अनुमति मिल चुकी है (बीएस हिन्दी)
वैश्विक कमी से 2 माह में 50 फीसदी महंगी हुई इलायची
मुंबई December 29, 2009
इलायची की खेती करने वाले इस समय जमकर मुनाफा काट रहे हैं।
मसालों का राजा कहे जाने वाले इलायची की कीमतों में पिछले 2 महीनों के दौरान 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह वैश्विक उत्पादन में गिरावट को माना जा रहा है।
मुंबई के हाजिर बाजार में सोमवार को इलायची के सबसे बड़े आकार वाली इलायची (8 मिलीमीटर बोल्ड) की कीमतें 1025-1040 रुपये प्रति किलो रही। वहीं मध्यम आकार वाले (7 मिलीमीटर) और सामान्य (6 मिलीमीटर) आकार के इलायची की कीमतें 950 और 900 रुपये प्रति किलो रहीं। इलायची की गुणवत्ता आकार और बोल्डनेस के आधार पर तय की जाती है।
शहर के एक प्रमुख कारोबारी के मुताबिक इलायची की सभी किस्मों की कीमतों में पिछले 2 महीने के दौरान 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में इसकी जनवरी 2010 डिलिवरी की कीमतें सोमवार को बढ़कर 1104.10 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं।
29 अक्टूबर को इसके भाव 746.70 रुपये प्रति किलो थे, जिसकी तुलना में सोमवार को कीमतों में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है। गुरुवार को एमसीएक्स में जनवरी, फरवरी और मार्च के वायदा सौदे ऊपरी सर्किट को छू गए थे।
कृषि जिंस शोध फर्म निर्मल बंग के प्रमुख कुणाल शाह ने कहा, 'विश्व के सबसे बड़े इलायची उत्पादक देश ग्वाटेमाला से इलायची की आपूर्ति घटी है। निर्यात के मोर्चे पर ग्वाटेमाला, भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी देश है। कीमतों में और बढ़ोतरी के अनुमान से कारोबारी, इलायची का स्टॉक जमा कर रहे हैं।'
पिछले 3 साल से ग्वाटेमाला में इलायची उत्पादन में लगातार कमी आ रही है। 2009 में जहां कुल उत्पादन 15,000 टन रहा, वहीं 2008 और 2007 में उत्पादन क्रमश: 18000-20,000 टन और 24,000 टन था। इस साल प्रतिकूल मॉनसून के चलते फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, जिसके चलते कारोबारी ज्यादा कीमतों के अनुमान से बड़े पैमाने पर खरीदारी कर स्टॉक जमा कर रहे हैं।
इसी क्रम में ग्वाटेमाला से वैश्विक बाजारों में इलायची की आपूर्ति में खासी कमी आई है। यह घटकर 5000-6000 टन रह गया है। इसका फायदा भारतीय निर्यातकों को हुआ है और उन्हें निर्यात के लिए खाली जगह मिली है। ग्वाटेमाला से आपूर्ति सामान्यतया अक्टूबर में शुरू होती है। लेकिन वैश्विक आपूर्ति की 60 प्रतिशत आपूर्ति दिसंबर के अंत तक हुई। वहां पर घरेलू खपत मामूली है।
इसके विपरीत भारत में बेमौसम बारिश का फायदा भारत के इलाचली उत्पादकों को मिला। सीजन की शुरुआत में कारोबारी उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगा रहे थे। लेकिन फसल तैयार होने के समय बारिश हो गई। अब कारोबारियों का अनुमान है3 कि उत्पादन इस साल 10-15 प्रतिशत बढ़कर 14,000 टन से ज्यादा हो जाएगा। पिछले साल इलायची का उत्पादन 11,000-12,000 टन हुआ था।
मुंबई स्थित एक कारोबारी और निर्यातक ने कहा, 'ग्वाटेमाला से आपूर्ति कम होने की वजह से पिछले 6-7 महीनों से भारत इलायची का बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। ग्वाटेमाला में उत्पादन में कमी की वजह से बड़े आयातकों को भारत का रुख करना पड़ रहा है। वे इसके प्रीमियम किस्म के दाम 1-4 डॉलर प्रति किलो दे रहे हैं।'
भारत में इलायची की घरेलू खपत करीब 10,000 टन है। इसके चलते 4,000 टन इलायची निर्यात के लिए बच जाती है। अनुमान है कि पूरे साल के दौरान इलायची की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी। कारोबारियों का कहना है कि निकट भविष्य में कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं हैं।
दिसंबर में समाप्त होने वाले इलायची वर्ष की पहली तिमाही के दौरान भारत से इलायची का निर्यात दोगुने से ज्यादा बढ़कर करीब 2000 टन हो गया है। पिछले साल की समान अवधि में 800 टन इलायची का निर्यात हुआ था।
निर्यात मांग में बढ़ोतरी
दुनिया के सबसे बड़े इलायची उत्पादक ग्वाटेमाला में उत्पादन की कमी से कीमतें बढ़ींमुंबई में इलायची 1025-1040 रुपये प्रति किलोनिर्यात के क्षेत्र में बढ़ा भारत का दबदबावायदा बाजार में भी कीमतें आसमान पर (बीएस हिन्दी)
इलायची की खेती करने वाले इस समय जमकर मुनाफा काट रहे हैं।
मसालों का राजा कहे जाने वाले इलायची की कीमतों में पिछले 2 महीनों के दौरान 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह वैश्विक उत्पादन में गिरावट को माना जा रहा है।
मुंबई के हाजिर बाजार में सोमवार को इलायची के सबसे बड़े आकार वाली इलायची (8 मिलीमीटर बोल्ड) की कीमतें 1025-1040 रुपये प्रति किलो रही। वहीं मध्यम आकार वाले (7 मिलीमीटर) और सामान्य (6 मिलीमीटर) आकार के इलायची की कीमतें 950 और 900 रुपये प्रति किलो रहीं। इलायची की गुणवत्ता आकार और बोल्डनेस के आधार पर तय की जाती है।
शहर के एक प्रमुख कारोबारी के मुताबिक इलायची की सभी किस्मों की कीमतों में पिछले 2 महीने के दौरान 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में इसकी जनवरी 2010 डिलिवरी की कीमतें सोमवार को बढ़कर 1104.10 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं।
29 अक्टूबर को इसके भाव 746.70 रुपये प्रति किलो थे, जिसकी तुलना में सोमवार को कीमतों में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है। गुरुवार को एमसीएक्स में जनवरी, फरवरी और मार्च के वायदा सौदे ऊपरी सर्किट को छू गए थे।
कृषि जिंस शोध फर्म निर्मल बंग के प्रमुख कुणाल शाह ने कहा, 'विश्व के सबसे बड़े इलायची उत्पादक देश ग्वाटेमाला से इलायची की आपूर्ति घटी है। निर्यात के मोर्चे पर ग्वाटेमाला, भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी देश है। कीमतों में और बढ़ोतरी के अनुमान से कारोबारी, इलायची का स्टॉक जमा कर रहे हैं।'
पिछले 3 साल से ग्वाटेमाला में इलायची उत्पादन में लगातार कमी आ रही है। 2009 में जहां कुल उत्पादन 15,000 टन रहा, वहीं 2008 और 2007 में उत्पादन क्रमश: 18000-20,000 टन और 24,000 टन था। इस साल प्रतिकूल मॉनसून के चलते फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, जिसके चलते कारोबारी ज्यादा कीमतों के अनुमान से बड़े पैमाने पर खरीदारी कर स्टॉक जमा कर रहे हैं।
इसी क्रम में ग्वाटेमाला से वैश्विक बाजारों में इलायची की आपूर्ति में खासी कमी आई है। यह घटकर 5000-6000 टन रह गया है। इसका फायदा भारतीय निर्यातकों को हुआ है और उन्हें निर्यात के लिए खाली जगह मिली है। ग्वाटेमाला से आपूर्ति सामान्यतया अक्टूबर में शुरू होती है। लेकिन वैश्विक आपूर्ति की 60 प्रतिशत आपूर्ति दिसंबर के अंत तक हुई। वहां पर घरेलू खपत मामूली है।
इसके विपरीत भारत में बेमौसम बारिश का फायदा भारत के इलाचली उत्पादकों को मिला। सीजन की शुरुआत में कारोबारी उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगा रहे थे। लेकिन फसल तैयार होने के समय बारिश हो गई। अब कारोबारियों का अनुमान है3 कि उत्पादन इस साल 10-15 प्रतिशत बढ़कर 14,000 टन से ज्यादा हो जाएगा। पिछले साल इलायची का उत्पादन 11,000-12,000 टन हुआ था।
मुंबई स्थित एक कारोबारी और निर्यातक ने कहा, 'ग्वाटेमाला से आपूर्ति कम होने की वजह से पिछले 6-7 महीनों से भारत इलायची का बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। ग्वाटेमाला में उत्पादन में कमी की वजह से बड़े आयातकों को भारत का रुख करना पड़ रहा है। वे इसके प्रीमियम किस्म के दाम 1-4 डॉलर प्रति किलो दे रहे हैं।'
भारत में इलायची की घरेलू खपत करीब 10,000 टन है। इसके चलते 4,000 टन इलायची निर्यात के लिए बच जाती है। अनुमान है कि पूरे साल के दौरान इलायची की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी। कारोबारियों का कहना है कि निकट भविष्य में कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं हैं।
दिसंबर में समाप्त होने वाले इलायची वर्ष की पहली तिमाही के दौरान भारत से इलायची का निर्यात दोगुने से ज्यादा बढ़कर करीब 2000 टन हो गया है। पिछले साल की समान अवधि में 800 टन इलायची का निर्यात हुआ था।
निर्यात मांग में बढ़ोतरी
दुनिया के सबसे बड़े इलायची उत्पादक ग्वाटेमाला में उत्पादन की कमी से कीमतें बढ़ींमुंबई में इलायची 1025-1040 रुपये प्रति किलोनिर्यात के क्षेत्र में बढ़ा भारत का दबदबावायदा बाजार में भी कीमतें आसमान पर (बीएस हिन्दी)
कताई बढ़ने से बढ़ी कपास की मांग
चंडीगढ़ December 29, 2009
आर्थिक मंदी से बुरी तरह प्रभावित हुईं पंजाब की कताई मिलें अब अपनी क्षमता का अधिकाधिक उपयोग करने में जुट गई हैं।
इससे राज्य में कपास भी अब तक के सर्वोच्च स्तर 3,300-3,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकने लगा है, जबकि इसकी एमएसपी 2,800 रुपये प्रति क्विंटल ही है। विदेशी खरीदारों से ऑर्डर मिलने को लेकर आशान्वित विनसम इंडस्ट्रीज के निदेशक आशीष बगरोड़िया ने कहा कि वे 90 फीसदी से ज्यादा सूत अंतरराष्ट्रीय बाजारों को निर्यात करते हैं।
बाकी के सूत गारमेंट निर्माताओं को बेच दिया जाता है। पिछले साल सुस्ती के चलते इसकी मांग काफी घट गई थी। उन्हें क्षमता का और उपयोग होने की उम्मीद है क्योंकि खरीदार इस बारे में इच्छुक दिख रहे हैं।
लागत के बारे में उन्होंने कहा पिछले साल भर में कपास की लागत में 40 फीसदी की उछाल आई। उनके मुताबिक लागत काफी बढ़ने से मुसीबतें काफी बढ़ गई थीं क्योंकि बढ़ी लागत को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना मुश्किल था।
पंजाब के प्रमुख सूत निर्यातक चीमा स्पिनटेक्स के हरदयाल सिंह चीमा ने बताया, 'इस साल बेहतर परिदृश्य से हम 30 से 35 फीसदी वृद्धि को खरीदारों तक पहुंचाने में सफल रहे हैं। यह उत्साहजनक माहौल है।' उन्होंने बताया कि पंजाब का समूचा कपड़ा उद्योग घाटे में था। मांग में जबरदस्त कमी, कपास की ऊंची कीमत और सूत की कीमत इसकी वजह रही।
चीमा ने बताया कि भारतीय कारोबारी इस बार फायदे में रहेंगे क्योंकि पूरी दुनिया में इस बार कपास की जबरदस्त किल्लत है। उनके मुताबिक, 'गारमेंट के प्रमुख निर्माता चीन और बांग्लादेश सूती धागे के प्रमुख आयातक हैं। खराब मौसम के चलते पूरी दुनिया में इस साल कपास का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
ऐसे में भारतीय कंपनियों द्वारा तैयार सूत की पूरी दुनिया में मांग रहेगी।' पंजाब सरकार अब दूसरे राज्यों से आने वाले कपास पर लग रहे 4 फीसदी प्रवेश शुल्क को भी खत्म करने जा रही है। (बीएस हिन्दी)
आर्थिक मंदी से बुरी तरह प्रभावित हुईं पंजाब की कताई मिलें अब अपनी क्षमता का अधिकाधिक उपयोग करने में जुट गई हैं।
इससे राज्य में कपास भी अब तक के सर्वोच्च स्तर 3,300-3,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकने लगा है, जबकि इसकी एमएसपी 2,800 रुपये प्रति क्विंटल ही है। विदेशी खरीदारों से ऑर्डर मिलने को लेकर आशान्वित विनसम इंडस्ट्रीज के निदेशक आशीष बगरोड़िया ने कहा कि वे 90 फीसदी से ज्यादा सूत अंतरराष्ट्रीय बाजारों को निर्यात करते हैं।
बाकी के सूत गारमेंट निर्माताओं को बेच दिया जाता है। पिछले साल सुस्ती के चलते इसकी मांग काफी घट गई थी। उन्हें क्षमता का और उपयोग होने की उम्मीद है क्योंकि खरीदार इस बारे में इच्छुक दिख रहे हैं।
लागत के बारे में उन्होंने कहा पिछले साल भर में कपास की लागत में 40 फीसदी की उछाल आई। उनके मुताबिक लागत काफी बढ़ने से मुसीबतें काफी बढ़ गई थीं क्योंकि बढ़ी लागत को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना मुश्किल था।
पंजाब के प्रमुख सूत निर्यातक चीमा स्पिनटेक्स के हरदयाल सिंह चीमा ने बताया, 'इस साल बेहतर परिदृश्य से हम 30 से 35 फीसदी वृद्धि को खरीदारों तक पहुंचाने में सफल रहे हैं। यह उत्साहजनक माहौल है।' उन्होंने बताया कि पंजाब का समूचा कपड़ा उद्योग घाटे में था। मांग में जबरदस्त कमी, कपास की ऊंची कीमत और सूत की कीमत इसकी वजह रही।
चीमा ने बताया कि भारतीय कारोबारी इस बार फायदे में रहेंगे क्योंकि पूरी दुनिया में इस बार कपास की जबरदस्त किल्लत है। उनके मुताबिक, 'गारमेंट के प्रमुख निर्माता चीन और बांग्लादेश सूती धागे के प्रमुख आयातक हैं। खराब मौसम के चलते पूरी दुनिया में इस साल कपास का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
ऐसे में भारतीय कंपनियों द्वारा तैयार सूत की पूरी दुनिया में मांग रहेगी।' पंजाब सरकार अब दूसरे राज्यों से आने वाले कपास पर लग रहे 4 फीसदी प्रवेश शुल्क को भी खत्म करने जा रही है। (बीएस हिन्दी)
28 दिसंबर 2009
एथेनॉल महंगा होने के बावजूद उत्पादक घाटे में
उत्पादकों के अनुसार 27 रुपये पर भी उन्हें हो रहा प्रति लीटर 4 रुपये का नुकसान
मुंबई December 28, 2009
एथेनॉल उत्पादकों ने इसके दाम को बढ़ाकर 27 रुपये प्रति लीटर करने के सरकार के निर्णय का स्वागत किया है।
उत्पादकों के मुताबिक अभी के सूरतेहाल में तो एथेनॉल का उत्पादन आकर्षक नहीं है पर इस फैसले से भविष्य में उन्हें फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि चीनी कंपनियां एथेनॉल का उत्पादन सह-उत्पाद के रूप में करती हैं। वे इसे अभी 21.5 रुपये प्रति लीटर पर बेच रही हैं।
केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले हफ्ते बताया था कि तेल विपणन कंपनियों और चीनी मिलों के बीच एथेनॉल की कीमत को 27 रुपये प्रति लीटर करने पर सहमति बन गई है।
ऑल इंडिया डिस्टिलर्स एसोसिएशन के महानिदेशक वी. एन. रैना ने बताया, 'हम एथेनॉल के लिए 28 रुपये की मांग कर रहे थे जबकि सरकार 26 रुपये की बात कर रही थी। आखिरकार सरकार 27 रुपये प्रति लीटर के भाव पर सहमत हो गई। उद्योग के लिए यह अच्छी बात है।'
महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों के परिसंघ (एमएसएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे के मुताबिक, 27 रुपये पर एथेनॉल बेचने के बावजूद उत्पादकों को प्रति लीटर 4 रुपये का नुकसान होगा। यह परिसंघ राज्य के करीब 170 मिलों का नेतृत्व करता है।
शीरा अभी 4,500 से 5,000 रुपये प्रति टन और शोधित स्पिरिट 26 से 28 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है। इससे एथेनॉल उत्पादन घाटे का कारोबार बन गया है। अन्य खर्चों को शामिल कर लें तो एथेनॉल तैयार करने पर प्रति लीटर 31 रुपये की लागत आ रही है।
हालांकि इस उद्योग को उम्मीद है कि उसे भविष्य में मुनाफा होगा। इसलिए चीनी परिसंघ ने सरकार से तेल विपणन कंपनियों और एथेनॉल उत्पादकों के बीच 3 साल का करार करवाने का अनुरोध किया है। नाइकनवारे के मुताबिक, दूसरे और तीसरे वर्ष में जब गन्ने की उपलब्धता बढ़ेगी और शीरा और शोधित स्पिरिट का भाव कम होगा तब उत्पादन लागत में काफी कमी होगी।
जाहिर है तब एथेनॉल का उत्पादन फायदे का सौदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे दूसरे और तीसरे वर्ष में उत्पादकों को मुनाफा होगा। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय को एथेनॉल की नीलामी प्रक्रिया खत्म कर देनी चाहिए और इसे सीधा उत्पादकों से खरीदा जाए।
फिलहाल तेल विपणन कंपनियां एथेनॉल खरीदने के लिए बोली लगाती हैं। इस साल 68 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरूरत थी जबकि तेल कंपनियों को महज 40 फीसदी मात्रा के लिए ही निविदा मिल सकी। महाराष्ट्र में एथेनॉल उत्पादन की क्षमता 58 करोड़ लीटर की है जबकि उसने इस बार महज 50 फीसदी क्षमता का ही दोहन किया।
नाइकनवारे ने कहा कि इस मूल्यवृद्धि से उत्पादक क्षमता का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल को प्रोत्साहित होंगे। उन्होंने पेट्रोलियम मंत्रालय से यह मांग भी है कि जो तेल कंपनी पेट्रोल में न्यूनतम 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण के अनिवार्य नियम को पूरा नहीं करती उसे दंडित किया जाए।
मालूम हो कि सरकार ने 2006 में पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने को अनिवार्य कर दिया था। अक्टूबर 2007 में इस सीमा को बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया गया। पिछले साल अक्टूबर में इसे अनिवार्य कर दिया गया।
जैवईंधन नीति-2017 में तो इस सीमा को बढ़ाकर 20 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है। पर अनिश्चित आपूर्ति से 5 फीसदी की सीमा भी पा पाने में मुश्किल आ रही है। (बीएस हिन्दी)
मुंबई December 28, 2009
एथेनॉल उत्पादकों ने इसके दाम को बढ़ाकर 27 रुपये प्रति लीटर करने के सरकार के निर्णय का स्वागत किया है।
उत्पादकों के मुताबिक अभी के सूरतेहाल में तो एथेनॉल का उत्पादन आकर्षक नहीं है पर इस फैसले से भविष्य में उन्हें फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि चीनी कंपनियां एथेनॉल का उत्पादन सह-उत्पाद के रूप में करती हैं। वे इसे अभी 21.5 रुपये प्रति लीटर पर बेच रही हैं।
केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले हफ्ते बताया था कि तेल विपणन कंपनियों और चीनी मिलों के बीच एथेनॉल की कीमत को 27 रुपये प्रति लीटर करने पर सहमति बन गई है।
ऑल इंडिया डिस्टिलर्स एसोसिएशन के महानिदेशक वी. एन. रैना ने बताया, 'हम एथेनॉल के लिए 28 रुपये की मांग कर रहे थे जबकि सरकार 26 रुपये की बात कर रही थी। आखिरकार सरकार 27 रुपये प्रति लीटर के भाव पर सहमत हो गई। उद्योग के लिए यह अच्छी बात है।'
महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों के परिसंघ (एमएसएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे के मुताबिक, 27 रुपये पर एथेनॉल बेचने के बावजूद उत्पादकों को प्रति लीटर 4 रुपये का नुकसान होगा। यह परिसंघ राज्य के करीब 170 मिलों का नेतृत्व करता है।
शीरा अभी 4,500 से 5,000 रुपये प्रति टन और शोधित स्पिरिट 26 से 28 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है। इससे एथेनॉल उत्पादन घाटे का कारोबार बन गया है। अन्य खर्चों को शामिल कर लें तो एथेनॉल तैयार करने पर प्रति लीटर 31 रुपये की लागत आ रही है।
हालांकि इस उद्योग को उम्मीद है कि उसे भविष्य में मुनाफा होगा। इसलिए चीनी परिसंघ ने सरकार से तेल विपणन कंपनियों और एथेनॉल उत्पादकों के बीच 3 साल का करार करवाने का अनुरोध किया है। नाइकनवारे के मुताबिक, दूसरे और तीसरे वर्ष में जब गन्ने की उपलब्धता बढ़ेगी और शीरा और शोधित स्पिरिट का भाव कम होगा तब उत्पादन लागत में काफी कमी होगी।
जाहिर है तब एथेनॉल का उत्पादन फायदे का सौदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे दूसरे और तीसरे वर्ष में उत्पादकों को मुनाफा होगा। उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय को एथेनॉल की नीलामी प्रक्रिया खत्म कर देनी चाहिए और इसे सीधा उत्पादकों से खरीदा जाए।
फिलहाल तेल विपणन कंपनियां एथेनॉल खरीदने के लिए बोली लगाती हैं। इस साल 68 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरूरत थी जबकि तेल कंपनियों को महज 40 फीसदी मात्रा के लिए ही निविदा मिल सकी। महाराष्ट्र में एथेनॉल उत्पादन की क्षमता 58 करोड़ लीटर की है जबकि उसने इस बार महज 50 फीसदी क्षमता का ही दोहन किया।
नाइकनवारे ने कहा कि इस मूल्यवृद्धि से उत्पादक क्षमता का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल को प्रोत्साहित होंगे। उन्होंने पेट्रोलियम मंत्रालय से यह मांग भी है कि जो तेल कंपनी पेट्रोल में न्यूनतम 5 फीसदी एथेनॉल मिश्रण के अनिवार्य नियम को पूरा नहीं करती उसे दंडित किया जाए।
मालूम हो कि सरकार ने 2006 में पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने को अनिवार्य कर दिया था। अक्टूबर 2007 में इस सीमा को बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया गया। पिछले साल अक्टूबर में इसे अनिवार्य कर दिया गया।
जैवईंधन नीति-2017 में तो इस सीमा को बढ़ाकर 20 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है। पर अनिश्चित आपूर्ति से 5 फीसदी की सीमा भी पा पाने में मुश्किल आ रही है। (बीएस हिन्दी)
महंगी चीनी से मिलों की चांदी
चीनी मिलों की आय में चालू वर्ष में आ चुकी है 80 फीसदी की उछाल
मुंबई December 28, 2009
देश की चीनी मिलों की चीनी उत्पादन से होने वाली आय में इस साल 80 फीसदी का इजाफा हुआ है।
उत्पादन में खासी कमी से चीनी के दाम इस साल काफी बढ़े हैं। हाल यह है कि मिलों को अभी प्रति किलो चीनी पर 6 से 10 रुपये मिल रहे हैं। चीनी उत्पादकों के मुताबिक, इतना मुनाफा उन्हें पहले कभी नहीं मिला और भविष्य में भी इतना शायद ही मिले।
चीनी की तेजी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों से भी समर्थन मिल रहा है। बीते गुरुवार को सफेद चीनी के वायदा भाव ने फरवरी 1981 के बाद का उच्चतम स्तर छू लिया। इस तेजी की वजह डॉलर की कमजोरी और जिंस बाजार की तेजी रही। इस साल चीनी की वायदा कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं।
प्रमुख चीनी कंपनियों के अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में चीनी का उत्पादन इस साल (अक्टूबर से सितंबर का सीजन) 1.60 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले साल के उत्पादन 1.47 करोड़ टन से यह थोड़ा ज्यादा है। फिर भी इस साल की कुल मांग से उत्पादन की यह मात्रा 75 लाख टन कम रहेगी, ऐसा अनुमान है।
भारत पहले ही 50 लाख टन कच्ची चीनी आयात कर चुका है। यह आयात ज्यादातर ब्राजील और ताइवान से हुआ है। बढ़ती मांग को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि और चीनी आयात करनी पड़ेगी। एक अधिकारी ने बताया कि इस चलते वैश्विक बाजार में चीनी का रुख तेज है।
महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों के परिसंघ (एमएसएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे पहले ही सतर्क कर चुके हैं कि चीनी की कीमतें साल भर बाद यानी जनवरी 2011 से ही कम होना शुरू होंगी। उन्होंने कहा, 'देश में अगले सीजन में गन्ने का उत्पादन बढ़ने को लेकर हम आश्वस्त हैं। इससे अनुमान है कि 2010-11 सीजन में देश में 2.15 करोड़ टन चीनी उत्पादित होगी।'
पहले अग्रिम अनुमान के रूप में महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी (157.5 रुपये प्रति क्विंटल) से ज्यादा भुगतान किया है। महाराष्ट्र की मिलें मौजूदा सीजन के अंत तक 250 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करेंगी। पिछले साल की तुलना में यह 100 रुपये ज्यादा होगी।
हालांकि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें प्रति क्विंटल 210-215 रुपये का भुगतान कर रही हैं। पिछले साल यह महज 140 रुपये प्रति क्विंटल था। तमिलनाडु में 165-170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चीनी मिल भुगतान कर रहे हैं।
इस बीच अधिकारियों ने मांग की है कि सरकार चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करे। ताकि इसका कारोबार भी अन्य कृषि जिंसों के समान हो सकें और कीमतें नियंत्रित न हो। चीनी नियंत्रण आदेश (शुगर कंट्रोल ऑर्डर) में ताजा संशोधन के जरिए सरकार ने लेवी चीनी का कोटा दोगुना कर 10 से 20 फीसदी कर दिया है।
हालांकि इससे औसत वसूली 13 फीसदी कम हो जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि जनवितरण प्रणाली के जरिए लेवी चीनी वितरित करने में सरकार को कई महीने लगते हैं। इस दौरान बाजार में चीनी की कृत्रिम कमी हो जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं। चीनी सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने से इस तरह की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
इस बीच चीनी परिसंघ उत्तर प्रदेश सरकार से जेएनपीटी और कांडला पोर्ट पर पड़ी 20 लाख टन कच्ची चीनी को महाराष्ट्र में रिफाइन करने की अनुमति देने की मांग रखने की योजना बना रहा है। इस चीनी को ब्राजील और ताइवान से उत्तर प्रदेश के लिए मंगाया गया है। (बीएस हिन्दी)
मुंबई December 28, 2009
देश की चीनी मिलों की चीनी उत्पादन से होने वाली आय में इस साल 80 फीसदी का इजाफा हुआ है।
उत्पादन में खासी कमी से चीनी के दाम इस साल काफी बढ़े हैं। हाल यह है कि मिलों को अभी प्रति किलो चीनी पर 6 से 10 रुपये मिल रहे हैं। चीनी उत्पादकों के मुताबिक, इतना मुनाफा उन्हें पहले कभी नहीं मिला और भविष्य में भी इतना शायद ही मिले।
चीनी की तेजी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों से भी समर्थन मिल रहा है। बीते गुरुवार को सफेद चीनी के वायदा भाव ने फरवरी 1981 के बाद का उच्चतम स्तर छू लिया। इस तेजी की वजह डॉलर की कमजोरी और जिंस बाजार की तेजी रही। इस साल चीनी की वायदा कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं।
प्रमुख चीनी कंपनियों के अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में चीनी का उत्पादन इस साल (अक्टूबर से सितंबर का सीजन) 1.60 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले साल के उत्पादन 1.47 करोड़ टन से यह थोड़ा ज्यादा है। फिर भी इस साल की कुल मांग से उत्पादन की यह मात्रा 75 लाख टन कम रहेगी, ऐसा अनुमान है।
भारत पहले ही 50 लाख टन कच्ची चीनी आयात कर चुका है। यह आयात ज्यादातर ब्राजील और ताइवान से हुआ है। बढ़ती मांग को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि और चीनी आयात करनी पड़ेगी। एक अधिकारी ने बताया कि इस चलते वैश्विक बाजार में चीनी का रुख तेज है।
महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों के परिसंघ (एमएसएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे पहले ही सतर्क कर चुके हैं कि चीनी की कीमतें साल भर बाद यानी जनवरी 2011 से ही कम होना शुरू होंगी। उन्होंने कहा, 'देश में अगले सीजन में गन्ने का उत्पादन बढ़ने को लेकर हम आश्वस्त हैं। इससे अनुमान है कि 2010-11 सीजन में देश में 2.15 करोड़ टन चीनी उत्पादित होगी।'
पहले अग्रिम अनुमान के रूप में महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी (157.5 रुपये प्रति क्विंटल) से ज्यादा भुगतान किया है। महाराष्ट्र की मिलें मौजूदा सीजन के अंत तक 250 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करेंगी। पिछले साल की तुलना में यह 100 रुपये ज्यादा होगी।
हालांकि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें प्रति क्विंटल 210-215 रुपये का भुगतान कर रही हैं। पिछले साल यह महज 140 रुपये प्रति क्विंटल था। तमिलनाडु में 165-170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चीनी मिल भुगतान कर रहे हैं।
इस बीच अधिकारियों ने मांग की है कि सरकार चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करे। ताकि इसका कारोबार भी अन्य कृषि जिंसों के समान हो सकें और कीमतें नियंत्रित न हो। चीनी नियंत्रण आदेश (शुगर कंट्रोल ऑर्डर) में ताजा संशोधन के जरिए सरकार ने लेवी चीनी का कोटा दोगुना कर 10 से 20 फीसदी कर दिया है।
हालांकि इससे औसत वसूली 13 फीसदी कम हो जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि जनवितरण प्रणाली के जरिए लेवी चीनी वितरित करने में सरकार को कई महीने लगते हैं। इस दौरान बाजार में चीनी की कृत्रिम कमी हो जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं। चीनी सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने से इस तरह की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
इस बीच चीनी परिसंघ उत्तर प्रदेश सरकार से जेएनपीटी और कांडला पोर्ट पर पड़ी 20 लाख टन कच्ची चीनी को महाराष्ट्र में रिफाइन करने की अनुमति देने की मांग रखने की योजना बना रहा है। इस चीनी को ब्राजील और ताइवान से उत्तर प्रदेश के लिए मंगाया गया है। (बीएस हिन्दी)
महंगाई की तपन से झुलसा आम आदमी
महंगाई के कारण दाल—-रोटी भी मध्यम वर्ग की पहुंच से दूर होती जा रही है। शक्कर के कारण चाय की चुस्कियों पर भी महंगाई का रंग चढ़ गया है। इसके अलावा व्रत-—उपवास में काम आने वाले साबूदाने सहित कई सामग्री के दाम भी डेढ़ गुना तक बढ़ गए है। वैश्विक मंहगाई के दौर में पाली में भी बढ़ती महंगाई का असर साफ नजर आ रहा है। किराणा वस्तुओं से लेकर गेहू, चावल, शक्कर के दाम भी पिछले वर्षों की अपेक्षा काफी बढ़ गए है। पिछले कुछ माह पहले आसमान पर चढ़े दाम अभी तक नीचे नही आए है और गरीब से लेकर अमीर तक के खाने में काम आने वाले गेहूं का दाम भी इस वर्ष 400—-500 रुपए क्विटल तक बढ़ गया है। तो वही शक्कर के भाव भी 20—-22 रु। किलो से इस वर्ष 38 रु. किलो तक पहुंच गए।बढ़े अनाज और दालों के भाव : गरीब से लेकर अमीर तक की थाली में नजर आने वाली गेहूं एवं सर्दी के मौसम में राजस्थान में मक्की एवं बाजरी की रोटी चाव से खाई जाती है लेकिन गेहूं के भाव पिछले वर्ष 1200 से 1400 रुपए क्विंटल थे वे इस अब बढ़कर 1600-—1800 रुपए क्विंटल तक पहुंच गए है। वही बाजारी 900 रुपए 1200 रुपए क्विंटल तक तो मक्की में पिछले वर्ष जहां 1 हजार रुपए क्विंटल थी जो इस वर्ष बढ़कर 1500 रुपए क्विंटल तक पहुंच गई है। महंगाई केवल अनाजों तक ही सिमट कर नही रही गई है दालों के भाव भी काफी बढ़ गए है। मंूग की दाल 45 रुपए किलो से बढ़कर इस वर्ष 65 रुपए हो गई है वही मसूर की दाल भी 55-57 रूपए किलो से 70 रुपए किलो एवं उड़द की दाल 55-60 रुपए किलो से बढ़कर 70-72 तक पहुंच गई है।बढ़े फलों के भी दाम पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष फलों के दाम भी काफी बढ़े है। सेव 50-55 से अब 70-80 रु. किलो तक पहुंच गई तो संतरे के भाव भी 15—-20 से बढ़कर 25-30 रु. किलो तक पहुंच गए। वही पपीते के भाव भी 15 से इस वर्ष 20 रुपए किलो तक पहुंच गए।यूपी सरकार की ओर से गन्ने का मूल्य बढ़ा देने से गुड़ व शक्कर महंगी हुई है, वही बारिश में कमी के चलते दालों की फसल कम होने से दालों के भाव बढ़े है।-ढगलाराम चौधरी, व्यापारीक्या करें भाई साहब महंगाई तो हर वर्ष बढ़ती ही जा रही है पर खाने—पीने की वस्तुएं का तो उपयोग करना ही पड़ेगा चाहे भाव बढ़े सा न बढ़े। बस तकलीफ यही है कि महंगाई के साथ—साथ वेतन नही बढऩे से बचत पहले से काफी कम हो रही है। (दैनिक भास्कर)
सफेद क्रांति को लगी नजर
महंगाई की मार झेल रहे लोगों पर अब महंगे दूध के रूप में गाज गिरी है। पहले से ही रसोई के बिगड़े बजट में और इजाफा हो गया है। हरे चारे के बढ़े दाम व डिमांड के मुकाबले कम हो रहे दूध के उत्पादन ने नौनिहालों का 'निवाला' दूर कर दिया है। दूध का रेट बढ़ने से इससे बनने वाले उत्पादों पर भी इसका असर पड़ सकता है। गुस्साई गृहणियां व खार खाए लोग कोसने के अलावा और कुछ कर नहीं पा रहे हैं तो सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। दविन्दर सिंह, जालंधर; 'सफेद क्रांति' पर इस समय महंगाई भारी पड़ रही है। किसान बढ़ती महंगाई के कारण कृषि के सहायक धंधों से मुंह फेरने लगे हैं। जिन किसानों ने डेयरी व्यवसाय को अपनाया भी है, वे भी बढ़ती महंगाई के कारण पशुओं को दिए जाने वाले पौष्टिक चारे में कटौती कर रहे हैं। नतीजन राज्य में दूध डिमांड के मुकाबले कम हो रहा है। इसी कमी से जूझ रही कंपनी वेरका दूध के बने प्रोडक्ट के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी कर काम चला रही है। पैकेट बंद दूध बेचने वाली कंपनी वेरका के पास इस समय 12 फीसदी दूध की कमी है, जबकि शहरों में दूध विक्रेताओं के पास दूध की 25 फीसदी से भी ऊपर कमी दर्ज की जा रही है। डेयरी विभाग से जुड़े लोगों के मुताबिक एक तो सर्दी के कारण दूध का उत्पादन कम हो रहा है, दूसरा भूसे व खल के रेट में लगातार हो रही वृद्धि के कारण पशुओं को पौष्टिक आहार कम मिल रहे हैं, जिसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ रहा है। दोआबा क्षेत्र में लगातार पैकेट बंद दूध के उत्पादन में पैर पसारने वाले वेरका मिल्क प्लांट के अधिकारियों के मुताबिक केवल उन्हीं के पास उत्पादन के मुकाबले 12 फीसदी दूध की कमी है, जबकि पहले के मुकाबले दूध की डिमांड में दस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मिल्कफेड के मुताबिक उनकी ओर से प्रतिदिन सोसायटियों के माध्यम से 11।5 लाख लीटर दूध की खरीद की जा रही है। इससे 7.5 लाख लीटर पैकेट बंद किया जाता है। मिल्कफेड के प्रबंधक एसके डूडेजा खुद मान चुके हैं कि पैकेट बंद दूध की डिमांड में 15 से 20 फीसदी बढ़ोतरी होने से उन्हें अन्य उत्पाद के लिए पर्याप्त दूध नहीं मिल रहा है। महंगी हुई चाय की चुस्की; दूध के रेट में वृद्धि ने चाय की चुस्की भी महंगी कर दी है। बाजारों में अब चाय की प्याली चार रुपये में बिक रही है। दूध से पहले चायपत्ती निर्माता कंपनियों ने करीब छह बार रेट बढ़ाकर चाय का स्वाद कड़वा किया हुआ है, अब दूध ने इसका जायका और बिगाड़ दिया है। पशुओं की खुराक में हो रही लगातार वृद्धि; डेयरी व्यवसाय से जुड़े कुंदन सिंह का कहना है कि इस समय बढ़ती महंगाई पशुओं के खाने पर भारी पड़ रही है। उनके मुताबिक इस समय सरसों की खल 15 सौ रुपये के करीब अपनी मंजिल तय कर चुकी है, जो पहले एक हजार रुपये के करीब थी। ऐसे ही बाजार में भूसा पांच सौ रुपये क्विंटल तक पहुंच चुका है और हरा चारा भी नहीं मिल रहा है। इस कारण डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोग पशुओं को पूरा पौष्टिक आहार नहीं दे पा रहे हैं, जिस कारण दूध का उत्पादन लगातार कम हो रहा है। दूध का भाव; खुले बाजार में दूध बेचने वाले दोधी डेयरी से पूरी फैट निकाल व बिना निकाले इसे अलग-अलग रेट पर बेचते हैं। इस समय खुली मार्केट में दूध 23 रुपये से लेकर 28 रुपये किलोग्राम तक बिक रहा है। वहीं वेरका का आधा लीटर का पैकेट बंद लाल रंग अब 13 से 14 रुपये, हरा पैकेट 12 रुपये की बजाए 12.50 पैसे तथा पीला पैकेट 10 रुपये से 10.30 रुपये प्रति पैकेट हो गया है। पैकेट बंद दूध बेचने वाली बाबा कंपनी ने भी अपने दूध के पैकेट में वेरका के बराबर वृद्धि कर दी है। जुबां पर आया दद; दूध का दाम बढ़ने के बाद लोगों की बेचैनी देखी जा सकती है। पहले से ही महंगाई से त्रस्त लोगों की अब नींद उड़ गई है। गृहणी सीमा, परमजीत कौर व रुपिंदर कौर का कहना है कि रसोई का बजट सुधरने का नाम नहीं ले रहा। दिनों-दिन बढ़ती महंगाई के कारण पैसे की बचत तो दूर महीने के अंत में कर्ज लेना पड़ रहा है। बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा कर रहीं इन गृहणियां का दर्द इन बातों से साफ झलक रहा था। (दैनिक जागरण)
आवक घटने से मक्का में तेजी का रुख
देशभर में पिछले सप्ताह मक्का की आवक घटने से इसकी कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यूएस ग्रेन्स काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक मंडियों में आवक घटने से पिछले सप्ताह मक्का की औसत कीमतें 9,660 रुपये प्रति टन रही। यूएस ग्रेन्स काउंसिल के भारत में प्रतिनिधि अमित सचदेव ने कहा कि पिछले सप्ताह जो कीमतें रही हैं वह गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 20।6 फीसदी अधिक हैं। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में पिछले सप्ताह मक्का के भाव 5.48 फीसदी बढ़कर 10,480 रुपये प्रति टन, तमिलनाडु में 3.3 फीसदी बढ़कर 8,930 रुपये प्रति टन और उत्तर प्रदेश में 0.16 फीसदी बढ़कर 10,250 रुपये प्रति टन रहे। वहीं, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भाव स्थित रहे। कर्नाटक में भाव 8,400 रुपये और महाराष्ट्र में 8,700 रुपये प्रति टन रहे, जबकि आंध्र प्रदेश में मक्का 0.36 फीसदी की गिरावट के साथ 8,500 रुपये प्रति टन रही और गुजरात में 1.3 फीसदी की गिरावट के साथ 10,000 रुपये प्रति टन भाव पिछले सप्ताह रहे। खरीफ सीजन करीब-करीब खत्म होने को है और उत्तर प्रदेश में आवक काफी घट गई है। जबकि महाराष्ट्र और कर्नाटक में मांग अब भी अच्छी बनी हुई है। वहीं, वायदा में एनसीडीईएक्स में मक्का के भाव 2 से 2.6 फीसदी पिछले सप्ताह के दौरान गिरे। हाजिर बाजार में भी मक्का के भावों में गिरावट रही और भाव 1.2 से 2.5 फीसदी तक गिरे। निजामाबाद मंडी में भाव 1.36 फीसदी गिरकर 9343 रुपये प्रति टन रहे, जबकि करीमनगर में 1.26 फीसदी गिरकर भाव 9,105 रुपये प्रति टन रहे। जबकि दावानगर मंडी में भाव 2.46 फीसदी की गिरकर भाव 9,137 रुपये प्रति टन रहे। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान मक्का में कई कारणों से तेजी का रुख रहा। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में ऊंची निर्यात खरीद, छुट्टियों के कारण सप्ताह में कम सत्र होने और कटाई में देरी जैसे कारणों से भावों में तेजी रही। मोटे अनाज की श्रेणी की अन्य कमोडिटी ज्वार के भाव 3.7 फीसदी की तेजी के साथ 13,690 रुपये प्रति टन रहे जो पिछले वर्ष के मुकाबले करीब 40 फीसदी ज्यादा हैं। मोटे अनाजों में तेजी के इस रुख ने इसे कैटल और पाल्ट्री फीड में उपयोग के लिए काफी महंगा बना दिया। ऐसे में मक्का की कीमतों पर काफी दबाव बना क्योंकि उन अनाजों के अभाव में मक्का ही केवल प्रयुक्त की जा सकती है। जौ के भाव पिछले सप्ताह 9.8 फीसदी की तेजी के साथ 9300 रुपये प्रति टन रहे। जौ पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 10.4 फीसदी तेज रहा। वायदा बाजार में भी जौ में तेजी रही, जबकि जयपुर हाजिर बाजार में भाव 9,417 रुपये प्रति टन रहे। बाजरा के भाव भी 9890 रुपये प्रति टन पर स्थिर पिछले सप्ताह रहे, जो साप्ताहित आधार पर 21.6 फीसदी ऊपर रहे। बाजार गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 2.4 फीसदी तेज इस दौरान रहा। (बिसनेस भास्कर)
एशियाई रबर वायदा में 1.5फीसदी की तेजी
एशिया में रबर के वायदा भाव 1.5 फीसदी तेजी के साथ 15 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। क्रूड ऑयल में तेजी और सट्टेबाजी की खरीद से डॉलर में आई मजबूती के कारण रबर की बढ़ोतरी को समर्थन मिला है। टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में आरएसएस-3 रबर बेंचमार्क जून वायदा भाव 1.4 येन बढ़त के साथ 276.3 येन प्रति किलोग्राम रहे। दिन के कारोबार में एक समय इसने 278.9 येन प्रति किलो के स्तर को भी छुआ जो सितंबर 2008 के बाद सबसे ज्यादा है। वहीं, शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज में बेंचमार्क मार्च सौदा 110 युआन की बढ़त के साथ 23,450 युआन प्रति टन रहा। दिन में एक समय यह 14 महीनों के ऊपरी स्तर 23,605 युआन प्रति टन पर भी पहुंचा। थाईलैंड के एग्रीकल्चरल फ्यूचर्स एक्सचेंज में रबर 0.05 थाई बाट की तेजी के साथ 96.20 थाई बाट प्रति किलो रहा, कारोबार के दौरान इसने 97 थाई बाट प्रति किलो के स्तर को भी छुआ। टोक्यो स्थित ओकाची कॉरपोरेशन के एक ब्रोकर ने कहा कि संस्थागत निवेशकों ने शुक्रवार को ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन सट्टेबाजों की खरीद से रबर की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंची। उन्होंने कहा कि कीमतें फिलहाल मौजूदा स्तर के आसपास ही रहेंगी। कई प्रमुख रबर उत्पादक क्षेत्रों में कारोबारियों ने शुक्रवार को कारोबार नहीं किया क्योंकि इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और भारत जैसे प्रमुख देशों में क्रिसमस की छुट्टी के कारण कारोबार बंद रहा। न्यूयॉर्क मर्क्ेटाइल एक्सचेंज में गुरुवार को क्रूड ऑयल के भाव तीन सप्ताह की ऊंचाई 78.05 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए। वहीं, येन डॉलर के मुकाबले कमजोर रहा जिससे रबर की कीमतों को समर्थन मिला। इंडोनेशिया की यात्रा के बाद थाईलैंड के उप प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि रबर में जारी मौजूदा तेजी को देखते हुए थाई सरकार रबर निर्यात शुल्क में 5 से 7 थाई बाट प्रति किलोग्राम तक की बढ़ोतरी करने पर विचार कर रही है। (बिज़नस भास्कर)
अगले साल और बढ़ सकते हैं निकिल के दाम
वैश्विक आर्थिक हालात सुधरने से अगले साल निकिल की कीमतों में और सुधार होने की संभावना है। निकिल की वैश्विक स्तर पर खपत बढ़ने का अनुमान है। इंटरनेशनल निकिल स्टडी ग्रुप (आईएनएसजी) के अनुसार वैश्विक हार्थिक हालात सुधरने से चीन, कोरिया, ताईवान में स्टेनलैस स्टील के उत्पादन में सुधार होने लगा है। इस वजह से इन देशों में निकिल की खपत में वृद्धि होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि निकिल का सबसे अधिक करीब 65 फीसदी उपयोग स्टेनलैस स्टील में होता है। साथ ही अगले वर्ष इसकी मांग और उत्पादन में बढ़ोतरी होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 के दौरान रिफाइंड निकिल का वैश्विक उत्पादन 14।4 लाख टन होने के आसार हैं। चालू वर्ष में यह आंकडा़ 12.8 लाख टन पर रह सकता है। चालू वर्ष में पिछले साल के मुकाबले सात फीसदी की गिरावट आई है। वहीं प्राइमरी निकिल का वैश्विक उपयोग अगले साल बढ़कर 13.5 लाख होने की संभावना है। इस साल इसके 12.1 लाख टन रहने का अनुमान है। यह पिछले साल के मुकाबले छह फीसदी कम है।इस साल आर्थिक हालात सुधरने से निकिल के दाम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़े हैं। लंदन मेटल एक्सचेंज में चालू वर्ष में अब तक निकिल के दाम करीब 12,710 डॉलर से बढ़कर 18,640 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। वहीं घरेलू बाजार में इस दौरान इसके दाम बढ़कर 523 रुपये से बढ़कर 871 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं।जानकारों के अनुसार निकिल की सबसे अधिक मांग चीन में रहने के आसार हैं। इस साल भी चीन में निकिल की जबरदस्त मांग रही है। नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ चायना के मुताबिक चालू वर्ष में चीन में निकिल की खपत बढ़कर 4.47 लाख टन होने का अनुमान है। इसका स्टॉक इस दौरान बढ़कर 1.5 लाख टन पहुंचने का अनुमान है। इसकी वजह चीन द्वारा जनवरी-सितंबर के दौरान भारी मात्रा में निकिल का आयात करना है। वहीं चालू वर्ष की जनवरी-अक्टूबर के दौरान चीन में 20,448 टन निकिल का निर्यात किया गया। पिछली समान अवधि में यह आंकडा महज 5,542 टन था। इसके अलावा चीन में अक्टूबर माह के दौरान सितंबर के मुकाबले निकिल का करीब 87 फीसदी अधिक निर्यात हुआ। अक्टूबर में 5,879 टन निकिल निर्यात हुई जबकि सितंबर में 3,155 टन निकिल निर्यात हुई थी।उल्लेखनीय है कि बीते साल दुनिया भर में आए आर्थिक संकट की वजह से सभी बेसमेटल के साथ निकिल की मांग में भारी कमी आई थी। इस वजह से इसके मूल्यों में भी भारी कमी आई थी।निकिल की सबसे अधिक खपत स्टेनलैस स्टील में 65 फीसदी, इलैक्ट्रोप्लेटिंग में आठ फीसदी, केमिकल में पांच फीसदी और अन्य उत्पादन में 22 फीसदी होती है। (बिज़नस भास्कर)
मांग बढ़ने से पोल्ट्री फीड के दाम बढ़े
मांग बढ़ने की वजह से पोल्ट्री फीड के दाम पिछले एक माह के दौरान करीब पांच फीसदी बढ़ चुके हैं। कारोबारियों के अनुसार पोल्ट्री उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण पोल्ट्री फीड की मांग में इजाफा हुआ हैं। इसके अलावा मक्का में तेजी की वजह से भी फीड की कीमतों में तेजी को बल मिला है। राजा फेट एंड फीड प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर मोहित राजा ने बिजनेस भास्कर को बताया पिछले एक माह के दौरान पोल्ट्री फीड के दाम 19-20 रुपये से बढ़कर 20-21 रुपये प्रति किलो चुके हैं। उनके अनुसार सर्दियों पोल्ट्री उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण फीड की मांग में वृद्धि हुई है। दरअसल सर्दियों के दौरान पोल्ट्री उत्पाद जैसे अंडे, चिकन की खपत बढ़ जाती है। इस वजह से फीड की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। मांग के अलावा मक्का में तेजी की वजह से भी फीड के मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है। पिछले दो माह के दौरान मक्के के दाम 970-980 रुपये से बढ़कर 1080-1100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इसके मूल्यों में बढ़ोतरी की वजह उत्पादन कम रहना है। कृषि मंत्रालय के पहले अनुमान के मुताबिक चालू खरीफ सीजन में मक्के की पैदावार 13 लाख टन घटकर 126 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि सरकार ने 155 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा था। दीपक पोल्ट्री फार्म हरियाणा के मालिक संदीप सिंह के अनुसार सर्दी बढ़़ने से पोल्ट्री उत्पादों की खपत में इजाफा हुआ है। यही कारण है कि फीड की मांग भी अधिक निकल रही है। मोहित राजा का कहना है कि आने वाले दिनों में फीड की कीमतों में गिरावट के आसार नहीं हैं, बल्कि तेजी बरकरार रहने की संभावना है। दरअसल आगे पोल्ट्री उत्पादों की मांग शादियों और सर्दी के चलते और बढ़ने की संभावना है। पिछले साल के मुकाबले फीड के दाम 22 फीसदी से भी अधिक हैं। पिछले साल फीड के दाम 16-17 रुपये प्रति किलो चल रहे थे। दरअसल पिछले साल इन दिनों सोयाबीन के भाव 1600-1700 रुपये और मक्का के दाम 820-840 रुपये प्रति क्विंटल थे। कारोबारियों के अनुसार पहले बारिश की कमी, उसके बाद बाढ़ व बारिश से मक्का के उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। फीड बनाने में सबसे अधिक करीब 50-60 फीसदी मक्का, 20-30 फीसदी सोयाबीन का उपयोग किया जाता है। बाकी ऑयल, दवा और अन्य अनाज खासतौर पर बाजरा आदि का उपयोग किया जाता है। (बिज़नस भास्कर)
उत्तर प्रदेश की पाबंदी से चीनी मिलों को फायदा
अनजाने में ही सही, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों को सिर्फ खरीद-बेच से ही फायदा कमाने का मौका दे दिया है। उत्तर प्रदेश में आयातित रॉ शुगर की आवक पर रोक लगाने के बाद वहां की मिलें आयात सौदों की चीनी विदेश में ही बेच रही हैं। विदेश में चीनी के दाम और बढ़ने से चीनी मिलों को सिर्फ खरीद-बेच से मुनाफा कमाने का अवसर मिल गया है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले से देश में रॉ शुगर आयात के जरिये चीनी की सुलभता बढ़ाने की केंद्र सरकार की योजना बेकार साबित हो गई है। विदेशी बाजार में चालू महीने में रॉ शुगर की कीमतें 18 फीसदी बढ़कर 27.08 सेंट प्रति बुशल के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं। उधर उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने आयातित रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) की राज्य में आवक पर रोक लगा रखी है।
विदेशी बाजार में भाव तेज होने से पिछले एक सप्ताह में घरेलू बाजार में भी चीनी के दाम 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ चुके हैं। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने आयातित रॉ शुगर को राज्य में लाने पर रोक लगा रखी है। इसलिए राज्य की मिलों को चीनी आयात के सौदों को विदेश में ही बेचना पड़ रहा है। अब चूंकि राज्य में गन्ने की कीमत का मामला भी सुलझ चुका है इसलिए राज्य सरकार को तुरंत आयातित रॉ शुगर की आवक पर रोक हटा लेनी चाहिए क्योंकि राज्य में गन्ने की कमी के कारण चालू पेराई सीजन में मिलों का पेराई सीजन भी पिछले साल से पहले पूरा हो जाएगा।
विदेशी बाजार में चालू महीने में रॉ शुगर की कीमतों में 18 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक दिसंबर को विदेशी बाजार में रॉ शुगर के दाम 22.95 सेंट प्रति पाउंड थे जो कि बढ़कर 27.08 सेंट प्रति पाउंड के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की रिकार्ड तेजी का प्रमुख कारण इंटरनेशनल शुगर ऑर्गनाईजेशन की रिपोर्ट है जिसके मुताबिक ब्राजील और भारत में प्रतिकूल मौसम से चीनी के उत्पादन में गिरावट आएगी। विश्व में चीनी का उत्पादन मांग के मुकाबले 72 लाख टन कम रहने की आशंका है।
सिंभावली शुगर मिल्स लिमिटेड के उपाध्यक्ष ए।के. श्रीवास्तव ने बताया कि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय तेजी के कारण बढ़ी हैं। विश्व में चूंकि चीनी का उत्पादन कम रहने की आशंका है इसीलिए विदेशी बाजार में भाव बढ़े हैं। एक्स-फैक्ट्री चीनी के दाम बढ़कर शनिवार को 3450-3600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए जबकि दिल्ली थोक बाजार में भाव 3600-3750 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। रेणुका शुगर के डायरेक्टर जी.के. सूद के बताया कि भारत को घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और 20 लाख टन चीनी वर्ष 2009-10 में आयात करनी होगी। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
विदेशी बाजार में भाव तेज होने से पिछले एक सप्ताह में घरेलू बाजार में भी चीनी के दाम 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ चुके हैं। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने आयातित रॉ शुगर को राज्य में लाने पर रोक लगा रखी है। इसलिए राज्य की मिलों को चीनी आयात के सौदों को विदेश में ही बेचना पड़ रहा है। अब चूंकि राज्य में गन्ने की कीमत का मामला भी सुलझ चुका है इसलिए राज्य सरकार को तुरंत आयातित रॉ शुगर की आवक पर रोक हटा लेनी चाहिए क्योंकि राज्य में गन्ने की कमी के कारण चालू पेराई सीजन में मिलों का पेराई सीजन भी पिछले साल से पहले पूरा हो जाएगा।
विदेशी बाजार में चालू महीने में रॉ शुगर की कीमतों में 18 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक दिसंबर को विदेशी बाजार में रॉ शुगर के दाम 22.95 सेंट प्रति पाउंड थे जो कि बढ़कर 27.08 सेंट प्रति पाउंड के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की रिकार्ड तेजी का प्रमुख कारण इंटरनेशनल शुगर ऑर्गनाईजेशन की रिपोर्ट है जिसके मुताबिक ब्राजील और भारत में प्रतिकूल मौसम से चीनी के उत्पादन में गिरावट आएगी। विश्व में चीनी का उत्पादन मांग के मुकाबले 72 लाख टन कम रहने की आशंका है।
सिंभावली शुगर मिल्स लिमिटेड के उपाध्यक्ष ए।के. श्रीवास्तव ने बताया कि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय तेजी के कारण बढ़ी हैं। विश्व में चूंकि चीनी का उत्पादन कम रहने की आशंका है इसीलिए विदेशी बाजार में भाव बढ़े हैं। एक्स-फैक्ट्री चीनी के दाम बढ़कर शनिवार को 3450-3600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए जबकि दिल्ली थोक बाजार में भाव 3600-3750 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। रेणुका शुगर के डायरेक्टर जी.के. सूद के बताया कि भारत को घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और 20 लाख टन चीनी वर्ष 2009-10 में आयात करनी होगी। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
26 दिसंबर 2009
मक्के का उत्पादन घटने से महंगा होगा स्टार्च
अहमदाबाद December 26, 2009
कम उत्पादन और स्टार्च की बढ़ी खपत के चलते स्टार्च की कीमत बढ़ने की उम्मीद है। स्टार्च उत्पादकों के मुताबिक निकट भविष्य में इसका भाव 10 से 15 फीसदी तक बढ़ेगा।
कम बारिश से आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फसल के प्रभावित होने से मौजूदा सीजन के दौरान मक्के का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 10 लाख टन कम रहने का अनुमान है। मक्के का सीजन हर साल जुलाई से जून तक चलता है। स्टार्च उत्पादक कुल मक्का उत्पादन का 11 से 12 फीसदी इस्तेमाल अपने लिए करते हैं।
संतोष स्टार्च प्रॉडक्ट्स, अहमदाबाद के प्रबंध निदेशक गौतम चौधरी ने बताया, 'मक्के का उत्पादन घटने का स्टार्च उद्योग पर असर जरूर होगा। आने वाले महीनों में स्टार्च उत्पादकों को मक्के की कमी झेलनी होगी।' उन्होंने बताया कि सूखे स्टार्च का भाव अभी करीब 20 हजार रुपये प्रति टन है। इसमें 10 से 15 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद है।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता संघ के अध्यक्ष अमोल सेठ भी मानते हैं कि मांग बढ़ने से स्टार्च की कीमतें बढ़ेंगी। वे कहते हैं मक्के की मूल्य वृद्धि कीमतों में बढ़ोतरी की दूसरी वजह है। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के विशाल मजीठिया कहते हैं, 'मक्के का भाव फिलहाल 950 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल है। पिछले साल इसी समय यह 750 से 750 रुपये के करीब था।'
स्टार्च का इस्तेमाल खाद्य वस्तुओं, कपड़ा और गोंद तैयार करने में होता है। हाल में स्टार्च से तैयार होने वाले द्रव ग्लूकोस का मिठाई बनाने में इस्तेमाल चीनी की जगह खूब बढ़ा है। चौधरी कहते हैं, 'महंगी चीनी ने कइयों को इसका विकल्प आजमाने को मजबूर किया।'
2009-10 सीजन (जुलाई से जून) में मक्के का उत्पादन पिछले साल के 1.6 करोड़ टन से करीब 10 लाख टन कम रहने का अनुमान है। सेठ के मुताबिक, 'इस साल खरीफ सीजन में मक्के का पूरे देश में रकबा कमोबेश पिछले साल जितना रहा। पर आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कम बारिश से इसकी फसल बुरी तरह प्रभावित हुई।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी इस चलते मक्के की फसल प्रभावित हुई।' मक्के की फसल खरीफ और रबी दोनों ही सत्रों में पैदा की जाती है। खरीफ फसल की आवक पहले से शुरू हो गई है। अनुमान है कि इस साल खरीफ मक्के का उत्पादन पिछले साल के 1.4 करोड़ टन से 15 लाख टन (1.25 करोड़ टन) कम रहेगा।
बकौल सेठ, 'रबी सीजन में मक्के की बुआई अक्टूबर में शुरू हुई पर यह अभी भी जारी है। कारोबारियों का अनुमान है कि रबी मक्के के उत्पादन में 25 लाख टन की वृद्धि होगी। इस तरह 2009-10 में मक्के का कुल उत्पादन बढ़कर 1.5 करोड़ टन हो जाएगा।'
आवक के पीक पर होने के बावजूद मक्के की कीमतें फिलहाल 9।5 रुपये प्रति किलोग्राम है। इसके 10.5 रुपये प्रति किलो तक जाने का अनुमान है। अनुमान हैकि भारत इस साल भी 50 लाख टन मक्का निर्यात करेगा। (बीस हिन्दी)
कम उत्पादन और स्टार्च की बढ़ी खपत के चलते स्टार्च की कीमत बढ़ने की उम्मीद है। स्टार्च उत्पादकों के मुताबिक निकट भविष्य में इसका भाव 10 से 15 फीसदी तक बढ़ेगा।
कम बारिश से आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फसल के प्रभावित होने से मौजूदा सीजन के दौरान मक्के का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 10 लाख टन कम रहने का अनुमान है। मक्के का सीजन हर साल जुलाई से जून तक चलता है। स्टार्च उत्पादक कुल मक्का उत्पादन का 11 से 12 फीसदी इस्तेमाल अपने लिए करते हैं।
संतोष स्टार्च प्रॉडक्ट्स, अहमदाबाद के प्रबंध निदेशक गौतम चौधरी ने बताया, 'मक्के का उत्पादन घटने का स्टार्च उद्योग पर असर जरूर होगा। आने वाले महीनों में स्टार्च उत्पादकों को मक्के की कमी झेलनी होगी।' उन्होंने बताया कि सूखे स्टार्च का भाव अभी करीब 20 हजार रुपये प्रति टन है। इसमें 10 से 15 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद है।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता संघ के अध्यक्ष अमोल सेठ भी मानते हैं कि मांग बढ़ने से स्टार्च की कीमतें बढ़ेंगी। वे कहते हैं मक्के की मूल्य वृद्धि कीमतों में बढ़ोतरी की दूसरी वजह है। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के विशाल मजीठिया कहते हैं, 'मक्के का भाव फिलहाल 950 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल है। पिछले साल इसी समय यह 750 से 750 रुपये के करीब था।'
स्टार्च का इस्तेमाल खाद्य वस्तुओं, कपड़ा और गोंद तैयार करने में होता है। हाल में स्टार्च से तैयार होने वाले द्रव ग्लूकोस का मिठाई बनाने में इस्तेमाल चीनी की जगह खूब बढ़ा है। चौधरी कहते हैं, 'महंगी चीनी ने कइयों को इसका विकल्प आजमाने को मजबूर किया।'
2009-10 सीजन (जुलाई से जून) में मक्के का उत्पादन पिछले साल के 1.6 करोड़ टन से करीब 10 लाख टन कम रहने का अनुमान है। सेठ के मुताबिक, 'इस साल खरीफ सीजन में मक्के का पूरे देश में रकबा कमोबेश पिछले साल जितना रहा। पर आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कम बारिश से इसकी फसल बुरी तरह प्रभावित हुई।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी इस चलते मक्के की फसल प्रभावित हुई।' मक्के की फसल खरीफ और रबी दोनों ही सत्रों में पैदा की जाती है। खरीफ फसल की आवक पहले से शुरू हो गई है। अनुमान है कि इस साल खरीफ मक्के का उत्पादन पिछले साल के 1.4 करोड़ टन से 15 लाख टन (1.25 करोड़ टन) कम रहेगा।
बकौल सेठ, 'रबी सीजन में मक्के की बुआई अक्टूबर में शुरू हुई पर यह अभी भी जारी है। कारोबारियों का अनुमान है कि रबी मक्के के उत्पादन में 25 लाख टन की वृद्धि होगी। इस तरह 2009-10 में मक्के का कुल उत्पादन बढ़कर 1.5 करोड़ टन हो जाएगा।'
आवक के पीक पर होने के बावजूद मक्के की कीमतें फिलहाल 9।5 रुपये प्रति किलोग्राम है। इसके 10.5 रुपये प्रति किलो तक जाने का अनुमान है। अनुमान हैकि भारत इस साल भी 50 लाख टन मक्का निर्यात करेगा। (बीस हिन्दी)
कम उत्पादन के बावजूद बढ़ी चावल खरीद
नई दिल्ली December 26, 2009
खरीफ सीजन में चावल की उपज 15 फीसदी कम रहने के बावजूद मौजूदा विपणन सत्र में इसकी खरीद पिछले साल से थोड़ी ज्यादा रही है।
उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कम ही चावल खरीदे गए हैं पर पंजाब और हरियाणा में इसकी खरीद बढ़ी है। अक्टूबर से सितंबर तक चलने वाले सीजन में अब तक 1.485 करोड़ टन चावल खरीदे गए हैं। पिछले साल इस अवधि तक 1.439 करोड़ टन चावल की ही खरीद हुई थी।
बीते सीजन में कुल 3.36 करोड़ टन चावल खरीदे गए थे। खरीफ सीजन अच्छा न रहने से सरकार का मौजूदा सीजन में महज 2.6 करोड़ टन चावल खरीदने का ही लक्ष्य है। केंद्र सरकार के अनाज पूल में 1 दिसंबर तक कुल 2.516 करोड़ टन चावल का भंडार था। यह बफर स्टॉक की तय सीमा 52 लाख टन से काफी ज्यादा है।
जनवितरण की विभिन्न योजनाओं के तहत चावल की सालाना खपत 2.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'इस सीजन में हम यदि 2.5 करोड़ टन चावल भी खरीद पाए तो अगले सीजन की शुरुआत में हमारा सरप्लस भंडार करीब 1.5 करोड़ टन होगा।'
मौजूदा सीजन में पंजाब में चावल की खरीद ज्यादा रही है। पिछले सीजन में 81 लाख टन चावल की खरीद हुई थी। इस बार अब तक 92.5 लाख टन की खरीद हो चुकी है। हरियाणा में 18 लाख टन (पिछले साल 13.6 लाख टन) और छत्तीसगढ़ में 11.1 लाख टन (9.18 लाख टन) चावल खरीदे जा चुके हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में खरीद में कमी हुई है।
उत्तर प्रदेश में अब तक 11 लाख टन (पिछले साल 14.5 लाख टन), आंध्र प्रदेश में 7.28 लाख टन (12.4 लाख टन) और उड़ीसा में 3.52 लाख टन (3.97 लाख टन) चावल खरीदे गए हैं। कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमानों के मुताबिक, देश में इस साल खरीफ चावल का उत्पादन पिछले साल (8.46 करोड़ टन) से 15 फीसदी कम रहने का अनुमान है।
अपर्याप्त बारिश से खरीफ सीजन में धान का रकबा 16 फीसदी घटकर 3।154 करोड़ हेक्टेयर रह गया। सरकार ने खरीफ धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 11.76 फीसदी बढ़ाकर 950 रुपये (सामान्य किस्म) कर दिया है। सबसे बढ़िया किस्म की कीमत बढ़ाकर 980 रुपये कर दी गई है। सरकार ने 50 रुपये का बोनस भी घोषित किया है। (बीएस हिन्दी)
खरीफ सीजन में चावल की उपज 15 फीसदी कम रहने के बावजूद मौजूदा विपणन सत्र में इसकी खरीद पिछले साल से थोड़ी ज्यादा रही है।
उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कम ही चावल खरीदे गए हैं पर पंजाब और हरियाणा में इसकी खरीद बढ़ी है। अक्टूबर से सितंबर तक चलने वाले सीजन में अब तक 1.485 करोड़ टन चावल खरीदे गए हैं। पिछले साल इस अवधि तक 1.439 करोड़ टन चावल की ही खरीद हुई थी।
बीते सीजन में कुल 3.36 करोड़ टन चावल खरीदे गए थे। खरीफ सीजन अच्छा न रहने से सरकार का मौजूदा सीजन में महज 2.6 करोड़ टन चावल खरीदने का ही लक्ष्य है। केंद्र सरकार के अनाज पूल में 1 दिसंबर तक कुल 2.516 करोड़ टन चावल का भंडार था। यह बफर स्टॉक की तय सीमा 52 लाख टन से काफी ज्यादा है।
जनवितरण की विभिन्न योजनाओं के तहत चावल की सालाना खपत 2.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'इस सीजन में हम यदि 2.5 करोड़ टन चावल भी खरीद पाए तो अगले सीजन की शुरुआत में हमारा सरप्लस भंडार करीब 1.5 करोड़ टन होगा।'
मौजूदा सीजन में पंजाब में चावल की खरीद ज्यादा रही है। पिछले सीजन में 81 लाख टन चावल की खरीद हुई थी। इस बार अब तक 92.5 लाख टन की खरीद हो चुकी है। हरियाणा में 18 लाख टन (पिछले साल 13.6 लाख टन) और छत्तीसगढ़ में 11.1 लाख टन (9.18 लाख टन) चावल खरीदे जा चुके हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में खरीद में कमी हुई है।
उत्तर प्रदेश में अब तक 11 लाख टन (पिछले साल 14.5 लाख टन), आंध्र प्रदेश में 7.28 लाख टन (12.4 लाख टन) और उड़ीसा में 3.52 लाख टन (3.97 लाख टन) चावल खरीदे गए हैं। कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमानों के मुताबिक, देश में इस साल खरीफ चावल का उत्पादन पिछले साल (8.46 करोड़ टन) से 15 फीसदी कम रहने का अनुमान है।
अपर्याप्त बारिश से खरीफ सीजन में धान का रकबा 16 फीसदी घटकर 3।154 करोड़ हेक्टेयर रह गया। सरकार ने खरीफ धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 11.76 फीसदी बढ़ाकर 950 रुपये (सामान्य किस्म) कर दिया है। सबसे बढ़िया किस्म की कीमत बढ़ाकर 980 रुपये कर दी गई है। सरकार ने 50 रुपये का बोनस भी घोषित किया है। (बीएस हिन्दी)
'डब्ल्यूपीआई में घटे चीनी का हिस्सा'
चीनी उद्योग ने की सरकार से मांग; कहा-भारांक 3.62 से घटाकर हो आधा
मुंबई December 26, 2009
ज्यादा मुनाफा कमा रहे चीनी उद्योग ने अब सरकार से थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में चीनी के मौजूदा भारांक को 3.62 से कम करने की गुजारिश की है।
उद्योग ने इसे सीमेंट और डीजल के बराबर करने की मांग सरकार से की है। इन दोनों का भारांक चीनी का करीब आधा है। भारतीय चीनी मिल संघ, नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज और फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव फैक्ट्रीज जैसे कई चीनी संघों ने इस मसले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाया है।
यह मुद्दा उस समय उठा है, जब चीनी की महंगी कीमतों पर पहले से ही काफी हो-हंगामा मचा है। सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ साल से चीनी को डब्ल्यूपीआई में काफी ज्यादा भारांक मिला हुआ है। ज्यादा भारांक और ज्यादा कीमतों के चलते खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ने में चानी को मुख्य भागीदार माना जाता है।
चीनी उद्योग का हमेशा से तर्क रहा है कि चीनी लोगों के मुख्य भोजन का हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से भी हटा दिया जाना चाहिए। इससे चीनी आवश्यक वस्तु अधिनियम से भी मुक्त हो जाएगा। इस मुद्दे पर पर सरकार की प्रतिक्रिया मिलनी अभी बाकी है।
महाराष्ट्र की एक सहकारी चीनी मिल के चेयरमैन और पूर्व मंत्री नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, 'साल भर में देश में चीनी की प्रति व्यक्ति खपत 20 किलो है। इस तरह 4 लोगों का परिवार एक साल में औसतन 80 किलो चीनी का उपभोग करता है। यानी उनका मासिक उपभोग 6-7 किलो से ज्यादा नहीं होता। ऐसे में 10 रुपये प्रति किलो ज्यादा कीमत लोगों के बजट को बहुत ज्यादा नहीं बिगाड़ता।'
दूसरी ओर एक निजी चीनी मिल के मालिक का कहना है कि देश में चीनी की खपत करने वाले मुख्य हिस्सेदार ड्रिंक्स, मिठाई और चॉकलेट उद्योग हैं। आम लोगों का उपभोग हिस्सा तो केवल 25 फीसदी ही है। ऐसे में चीनी की ऊंची कीमतों को पर मचा हो-हल्ला जायज नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार को जल्द ही चीनी के भार को डीजल और सीमेंट के स्तर पर लाने का निर्णय करना चाहिए।
महाराष्ट्र सहकारी चीनी मिल संघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे ने कहा, 'चीनी उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस बारे में तुरंत निर्णय लेने की जरूरत है। हम यह साफ करना चाहते हैं कि चीनी के लिए मिलों को मिलने वाली कुल कीमत का 70 फीसदी गन्ना किसानों को जाता है। ज्यादातर गन्ना किसान सीमांत जोत वाले हैं। ऐसे में अगर उन्हें गन्ने के लिए अच्छी कीमत मिलती है, तो ऊंचे वर्ग को ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए।' (बीएस हिन्दी)
मुंबई December 26, 2009
ज्यादा मुनाफा कमा रहे चीनी उद्योग ने अब सरकार से थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में चीनी के मौजूदा भारांक को 3.62 से कम करने की गुजारिश की है।
उद्योग ने इसे सीमेंट और डीजल के बराबर करने की मांग सरकार से की है। इन दोनों का भारांक चीनी का करीब आधा है। भारतीय चीनी मिल संघ, नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज और फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव फैक्ट्रीज जैसे कई चीनी संघों ने इस मसले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाया है।
यह मुद्दा उस समय उठा है, जब चीनी की महंगी कीमतों पर पहले से ही काफी हो-हंगामा मचा है। सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ साल से चीनी को डब्ल्यूपीआई में काफी ज्यादा भारांक मिला हुआ है। ज्यादा भारांक और ज्यादा कीमतों के चलते खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ने में चानी को मुख्य भागीदार माना जाता है।
चीनी उद्योग का हमेशा से तर्क रहा है कि चीनी लोगों के मुख्य भोजन का हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से भी हटा दिया जाना चाहिए। इससे चीनी आवश्यक वस्तु अधिनियम से भी मुक्त हो जाएगा। इस मुद्दे पर पर सरकार की प्रतिक्रिया मिलनी अभी बाकी है।
महाराष्ट्र की एक सहकारी चीनी मिल के चेयरमैन और पूर्व मंत्री नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, 'साल भर में देश में चीनी की प्रति व्यक्ति खपत 20 किलो है। इस तरह 4 लोगों का परिवार एक साल में औसतन 80 किलो चीनी का उपभोग करता है। यानी उनका मासिक उपभोग 6-7 किलो से ज्यादा नहीं होता। ऐसे में 10 रुपये प्रति किलो ज्यादा कीमत लोगों के बजट को बहुत ज्यादा नहीं बिगाड़ता।'
दूसरी ओर एक निजी चीनी मिल के मालिक का कहना है कि देश में चीनी की खपत करने वाले मुख्य हिस्सेदार ड्रिंक्स, मिठाई और चॉकलेट उद्योग हैं। आम लोगों का उपभोग हिस्सा तो केवल 25 फीसदी ही है। ऐसे में चीनी की ऊंची कीमतों को पर मचा हो-हल्ला जायज नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार को जल्द ही चीनी के भार को डीजल और सीमेंट के स्तर पर लाने का निर्णय करना चाहिए।
महाराष्ट्र सहकारी चीनी मिल संघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे ने कहा, 'चीनी उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस बारे में तुरंत निर्णय लेने की जरूरत है। हम यह साफ करना चाहते हैं कि चीनी के लिए मिलों को मिलने वाली कुल कीमत का 70 फीसदी गन्ना किसानों को जाता है। ज्यादातर गन्ना किसान सीमांत जोत वाले हैं। ऐसे में अगर उन्हें गन्ने के लिए अच्छी कीमत मिलती है, तो ऊंचे वर्ग को ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए।' (बीएस हिन्दी)
यूपी, पंजाब की सप्लाई बढ़ने से आलू मंे नरमी
नई फसल के आलू की सप्लाई बढ़ते ही मध्य प्रदेश की मंडियों में दाम गिरने लगे हैं। प्रीमियम किस्म के स्थानीय आलू के साथ ही सामान्य किस्मों का दूसरे राज्यों के आलू की आवक बढ़ने से इसके दाम में गिरावट का रुख बन गया है। नए आलू की बाजार में आवक बढ़ने के साथ ही पिछले दो हफ्तों में आलू के दाम में चालीस फीसदी तक की कमी आ गई है। मध्य प्रदेश की इंदौर मंडी में प्रीमियम किस्म के स्थानीय आलू के थोक भाव कम होकर ख्क्क्क्-ख्ख्फ्म् रुपये प्रति क्ंिवटल के स्तर पर आ गए हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश और पंजाब से आने वाले आलू के दाम गिरकर त्तम्क् रुपये प्रति क्विंटल तक हो गए हैं। इस महीने की शुरूआती हफ्ते में स्थानीय आलू के थोक भाव ख्भ्क्क्-ख्त्तक्क् रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थे। पिछले पंद्रह दिनों में बाजार में नए आलू की आवक शुरू होने से दाम त्तक्क् रुपये प्रति क्विंटल तक कम हो गये हैं। फिलहाल मंडियों में भ्क् गाड़ी नए आलू की आवक हो रही है। आवक के बढ़़ने के साथ ही दामों में नरमी का रुख देखने को मिलेगा। इंदौर के आलू व्यापारी संध के अध्यक्ष मुरली हरियाणी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि स्थानीय आलू की आवक बढ़ने के साथ ही पिछले दो सप्ताह में पंजाब और उत्तर प्रदेश का आलू भी काफी मात्रा में आने लगा है। इसी के चलते आलू के दामों में नरमी का रुख बना। हालांकि पिछले साल से दाम अभी भी ऊंचे हैं। पिछले साल इन दिनों आलू के दाम दो-तीन रुपये प्रति किलो फुटकर में बिक रहा था। यहां के स्थानीय आलू की आवक शुरू होते ही चिप्स बनाने वाली कंपनियां ्रखरीद के लिए सक्रिय हो गई हैं। मालवा के आलू में शर्करा की मात्रा कम होने के कारण चिप्स कंपनियों की ओर से इसकी खरीद की जाती है। यहां का ज्यादातर आलू चिप्स बनाने के लिए कंपनियां खरीद लेती हैं। स्थानीय उपभोग के लिए केवल दस फीसदी ही इस आलू का उपयोग होता है। फ्रेश-ओ-वेज के निदेशक रुद्र प्रताप सिंह कहते है कि मध्य प्रदेश के बाजार में स्थानीय खपत के लिए ज्यादातर आलू पंजाब और उत्तर प्रदेश से मंगाया जाता है। बाजार में इसकी सप्लाई बढ़ने से ही आलू की कीमतों में कमी देखने को मिली है। मध्य प्रदेश में इस साल आलू का बुवाई क्षेत्रफल 8क्क्क्क् हैक्टेयर पहुंच गया है। पिछले साल यह स्त्रस्त्रख्8ब् हैक्टेयर था। पिछले साल मध्य प्रदेश में आलू का उत्पादन 8।8ब् लाख टन रहा था जो वर्ष फ्क्क्त्त-क्8 के त्त.ख्ब् लाख टन था। (बिज़नस भास्कर)
एशियाई रबर वायदा में 1.5फीसदी की तेजी
एशिया में रबर के वायदा भाव 1।5 फीसदी तेजी के साथ 15 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। क्रूड ऑयल में तेजी और सट्टेबाजी की खरीद से डॉलर में आई मजबूती के कारण रबर की बढ़ोतरी को समर्थन मिला है। टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में आरएसएस-3 रबर बेंचमार्क जून वायदा भाव 1.4 येन बढ़त के साथ 276.3 येन प्रति किलोग्राम रहे। दिन के कारोबार में एक समय इसने 278.9 येन प्रति किलो के स्तर को भी छुआ जो सितंबर 2008 के बाद सबसे ज्यादा है। वहीं, शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज में बेंचमार्क मार्च सौदा 110 युआन की बढ़त के साथ 23,450 युआन प्रति टन रहा। दिन में एक समय यह 14 महीनों के ऊपरी स्तर 23,605 युआन प्रति टन पर भी पहुंचा। थाईलैंड के एग्रीकल्चरल फ्यूचर्स एक्सचेंज में रबर 0.05 थाई बाट की तेजी के साथ 96.20 थाई बाट प्रति किलो रहा, कारोबार के दौरान इसने 97 थाई बाट प्रति किलो के स्तर को भी छुआ। टोक्यो स्थित ओकाची कॉरपोरेशन के एक ब्रोकर ने कहा कि संस्थागत निवेशकों ने शुक्रवार को ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन सट्टेबाजों की खरीद से रबर की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंची। उन्होंने कहा कि कीमतें फिलहाल मौजूदा स्तर के आसपास ही रहेंगी। कई प्रमुख रबर उत्पादक क्षेत्रों में कारोबारियों ने शुक्रवार को कारोबार नहीं किया क्योंकि इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और भारत जैसे प्रमुख देशों में क्रिसमस की छुट्टी के कारण कारोबार बंद रहा। न्यूयॉर्क मर्क्ेटाइल एक्सचेंज में गुरुवार को क्रूड ऑयल के भाव तीन सप्ताह की ऊंचाई 78.05 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए। वहीं, येन डॉलर के मुकाबले कमजोर रहा जिससे रबर की कीमतों को समर्थन मिला। इंडोनेशिया की यात्रा के बाद थाईलैंड के उप प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि रबर में जारी मौजूदा तेजी को देखते हुए थाई सरकार रबर निर्यात शुल्क में 5 से 7 थाई बाट प्रति किलोग्राम तक की बढ़ोतरी करने पर विचार कर रही है। (बिज़नस भास्कर)
फरवरी में नई फसल आने पर और घट सकते हैं हल्दी के दाम
चालू फसल सीजन में देश में हल्दी का उत्पादन 25 फीसदी बढ़ने की संभावना है। इसीलिए निर्यातकों के साथ घरेलू मांग भी कम हो गई है। जिससे पिछले सवा महीने में इसकी कीमतों में करीब 23 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव घटकर 10,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। 15 जनवरी के बाद आवक शुरू हो जाएगी तथा फरवरी में आवक का दबाव बनने पर मौजूदा कीमतों में और भी करीब 20-25 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।निजामाबाद स्थित मैसर्स मनसाराम योगेश कुमार के प्रोपराइटर पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में देश में हल्दी का उत्पादन 25 फीसदी बढ़ने की संभावना है। पिछले साल देश में हल्दी का कुल उत्पादन 43 लाख बोरी (प्रति बोरी 70 किलो) का हुआ था जबकि चालू सीजन में उत्पादन बढ़कर 54-55 लाख बोरी होने की संभावना है।इस समय उत्पादक मंडियों में करीब ढ़ाई लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है जबकि पिछले साल इस समय छह-सात लाख बोरी का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। हल्दी की सालाना खपत घरेलू और निर्यात मिलाकर 45-47 लाख बोरी की होती है। 15 जनवरी के बाद नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी तथा फरवरी में आवक का दबाव बन जाएगा। इसलिए हल्दी की मौजूदा कीमतों में और भी 20-25 फीसदी की गिरावट आने के आसार हैं। इरोड़ स्थित मैसर्स ज्योति ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर सुभाष गुप्ता ने बताया कि नई फसल को देखते हुए निर्यातक फिलहाल इंतजार कर रहे हैं। जबकि घरेलू मांग भी पहले की तुलना में घटी है। इस समय इरोड़ मंडी में करीब 80 हजार बोरी और डुग्गीराला में लगभग 75 हजार बोरियों का स्टॉक बचा है।नई फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी को देखते हुए स्टॉकिस्टों ने पहले की तुलना में बिकवाली बढ़ा दी है जिसके कारण हाजिर बाजार में पिछले सवा महीने में इसकी कीमतों में करीब 23 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। शुक्रवार को निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव घटकर 10,200 रुपये और इरोड़ में 10,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। नवंबर महीने के मध्य में निजामाबाद में हल्दी के भाव ऊंचे में 13,200 रुपये और इरोड़ में 13,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। पिछले साल की समान अवधि में इन मंडियों में हल्दी के भाव 3900-4000 रुपये प्रति क्विंटल थे। निवेशकों की मुनाफावसूली से नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में हल्दी के अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में पिछले पंद्रह दिनों में लगभग तीन फीसदी की गिरावट आई है। 9 दिसंबर को वायदा में इसके भाव 7,355 रुपये प्रति क्विंटल थे जोकि 24 दिसंबर को घटकर 7,120 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर महीने के दौरान भारत से हल्दी के निर्यात एक फीसदी का इजाफा होकर कुल निर्यात 33,750 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 33,575 टन का हुआ था। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
25 दिसंबर 2009
निवेश के लिए सोने का बेहतर विकल्प है हीरा
सोने की आसमान छूती कीमतों के कारण भारत में लोगों का रुझान निवेश के लिहाज से हीरों की ओर बढ़ रहा है और इसके चलते इसकी मांग में तेजी आई है। जियोलॉजीकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका (जीआईए) के एक अधिकारी ने गुरुवार को यहां यह बात कही। जीआईए की डायरेक्टर (भारत और मध्य पूर्व) निरुपा पांडेय भट्ट ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि निवेश के लिहाज से हीरा सोने के मुकाबले काफी अच्छा रिटर्न देता है। उन्होंने कहा कि रिटेलर्स से मिली रिपोर्टे के मुताबिक भारत में हीरा उद्योग का बाजार 1.5 अरब डॉलर है और भविष्य में इसमें शानदार बढ़ोतरी की संभावना है। सोने की कीमतें 17,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार कर गई हैं, ऐसे में ग्राहकों को इस बात की उम्मीद है कि हीरे में निवेश रिटर्न के लिहाज से काफी फायदेमंद होगा। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक मंदी का असर भारत में हीरों की बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा है। जीआईए का मुख्यालय अमेरिका में है और यह हीरों के कारोबार से संबंद्ध है। दुनिाभर में संस्थान की छह प्रयोगशालाएं हैं जिनमें से सबसे बड़ी मुंबई में है। एक लाख वर्ग फीट में बनी यह प्रयोगशाला जून 2008 में स्थापित की गई थी। भट्ट ने कहा कि संस्थान पिछले पांच सालों में भारत में 5,000 लोगों को प्रशिक्षण दे चुका है। जीआईए हीरा एवं जवाहरात उद्योग में प्रशिक्षण देता है और चेन्नई में कई पाठ्यक्रम संस्थान फरवरी से शुरू करेगा। (बिज़नस भास्कर)
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