01 जनवरी 2009
मुंबई: बेशकीमती धातुओं में सोना हमेशा से निवेश का बेहतर जरिया रहा है। बाजार के उतार-चढ़ाव को देखते हुए भी दूसरे निवेश माध्यमों में पैसा लगाने की अपेक्
एक देश एक दाम, ये कोई चुनावी नारा नहीं, न ही किसी फिल्म का नाम है। मैं बात कर रहा हूं गेहूं, चावल, दालें, खाद्य तेल, मसाले व आम आदमी के रोजमर्रा उपभोग की चीजों की कीमतों की। जरा सोचिए हम दिल्ली में 12 रुपये किलो गेहूं खरीदते हैं और मुंबई व बेंगलुरू में भी हमें 12 रुपये किलो ही गेहूं मिले। ये सच हो सकता है बर्शते केंद्र सरकार व राज्य सरकारें ईमानदारी से कोशिश करें। उत्पादक राज्यों में किसी भी जिंस के उपभोक्ता को कम दाम देने पड़ते हैं। लेकिन दूसर राज्यों में दाम बढ़ जाते हैं। हालांकि इसके कई अहम कारण हैं। मसलन अलग-अलग राज्यों में जिंसों की खरीद पर टैक्सों में भारी भिन्नता है। देश में जिंसों के भंडारण के लिए पर्याप्त वेयरहाउस नहीं है। ट्रांसपोर्ट सिस्टम हर राज्य में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन जब देश के हर राज्य में फ्रूटी या कोका कोला एक दाम पर बिक सकती है तो जिंस क्यों नहीं? सरकार को भी अनाजों के लिए वेयरहाउस बनाने चाहिए। इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की हो सकती है। एफसीआई का नेटवर्क देश के लगभग सभी राज्यों में जिला स्तर पर होना चाहिए। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर सभी राज्यों में आवश्यक वस्तुओं पर एक समान टैक्स प्रणाली लागू करनी चाहिए।अगर हम बात करें गेहूं की तो पंजाब में गेहूं की खरीद पर व्यापारियों को करीब 12.5 फीसदी का खर्च देना पड़ता है जबकि उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद पर 7.6 फीसदी का खर्चा आता है। वहीं गुजरात में व्यापारियों को गेहूं की खरीद पर मात्र 0.50 फीसदी के खर्च है। अगर सभी राज्यों में एक समान टैक्स प्रणाली लागू होगी तो किसी भी जिंस की खरीद पर भावों में खास फर्क नहीं आएगा। राज्य सरकारों को पता होता है कि उनके राज्य में किसी भी जिंस की सालाना खपत कितनी है। किसी भी जिंस के भंडारण में राज्य सरकारों को केंद्र सरकार से पूरा सहयोग मिलना चाहिए। बड़ी चिंताजनक बात है कि आजादी के इतने साल बाद भी देश में गेहूं व चावल के भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं हो पाई है। आज भी कई राज्यों में भारतीय खाद्य निगम द्वारा खरीदा हुआ अनाज तिरपालों के नीचे रखा हुआ है।अमूल का दूध कलैक्शन व वितरण का सिस्टम इतना अच्छा है कि हर राज्य में बराबर सप्लाई होती है। जब अमूल जैसी संस्था ऐसा कर सकती है तो केंद्र व राज्य सरकारें क्यों नहीं? सरकार को रेल और सड़क द्वारा जिंसों की आवाजाही समय पर सुनिश्चित करनी चाहिए। एफसीआई और राज्य सरकार की खरीद एजेंसियों का अनाज वेयरहाउसों तक पहुंचने के लिए रेल व सड़क की पर्याप्त सुविधा हो। (Business Bhaskar.....R S Rana)
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