January 20, 2009
आलू की बंपर पैदावार ने किसानों की आंखों में आंसू ला दिये हैं।
उत्तर प्रदेश के आलू बेल्ट के नाम से मशहूर एटा, फिरोजाबाद, इटावा, आगरा और फर्रुखाबाद में आलू की बदहाली का आलम तो यह है कि इसकी कीमत 20 सालों के सबसे निचले स्तर पर आ गई है।इन जिलों की थोक मंडियों में आलू की फसल 80 रुपए प्रति क्विंटल पर आ पहुंची है। बीते साल इन्हीं जिलों में आलू एक रुपये प्रति किलो के भाव बिका था। जानकारों का कहना है कि आलू की फसल के दाम ऊपर बढ़ने की कोई आशा भी नही है। बल्कि थोक दुकानदारों की मानें तो कीमतें अभी और नीचे जा सकते हैं। आलू बेल्ट में कीमतें नीचे जाने का एक बड़ा कारण बंपर पैदावार है तो दूसरा मांग में कमी। इस साल आलू की अपेक्षाकृत कम पैदावार वाले इलाके लखनऊ और आस पास के जिलों में कीमतें आशा से कहीं कम चल रही हैं।उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते साल आलू की पैदावार रिकार्ड तोड़ 130 लाख टन हुई थी और इस साल भी पैदावार का आंकड़ा इसी के आस-पास रहने की आशा है। अधिकारियों का कहना है कि आलू की फसल के पूरे आंकड़े अभी आ नहीं सके हैं पर आशा है कि इस साल भी 110 से 125 लाख टन की पैदावार हो जाएगी। गौरतलब है कि बीते साल आलू की कीमतें थोक बाजारों गिरकर 2 रुपये किलो तक आ गयी थीं। किसानों की बदहाली का आलम यह है कि बीते साल कोल्ड स्टोरों मे जमा आलू भी निकाला नही गया और इसे फेंकना पड़ा। इस साल राजधानी लखनऊ के आस-पास के गांवों के किसानों को अपना आलू खेत से सीधे बेचने पर केवल 110 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत मिल पा रही है। खुदरा मंडियों में आलू के खरीदार न होने के चलते वहां आलू 2 रुपये प्रति किलो के भाव से मिल रहा है।प्रदेश का आलू बेल्ट कहे जाने वाले जिलों जैसे आगरा, फर्रुखाबाद, एटा और इटावा में तो किसानों का सीजन की शुरुआत से ही बुरा हाल है। इन जिलों में खरीद की शुरुआत होने के साथ ही किसानों को एक रुपये किलो का ही रेट मिल पा रहा था। दूसरी ओर आलू किसानों को बदहाली से बचाने के लिए राज्य सरकार ने भी अपने स्तर से प्रयास शुरु कर दिए हैं। सरकार ने 1000 टन तक का आलू खरीदने वालों को अस्थायी मंडी का लाइसेंस देने की घोषणा की है। यह लाइसेंस थोक खरीदारों के साथ-साथ कोल्ड स्टोर मालिकों को भी दिए जाएंगे। आलू की खपत को बढ़ाने के लिए सरकार ने मिड-डे मील में इसे करने की भी योजना बनाई है। (BS Hindi)
21 जनवरी 2009
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