27 जनवरी 2009
जारी रह सकती है पीतल में गिरावट
विश्व में छाई मंदी के चलते घरलू बाजारों में बेस मेटल की कीमतों में लगातार गिरावट बनी हुई है। ऐसे में पीतल के भाव भी अगले छह महीने तक सुधरने की संभावना कम है, क्योंकि पीतल खान से निकलने वाली धातु नहीं है। पीतल के मुख्य घटक तांबा व जस्ता होने से इसके भाव तांबा व जस्ता के भावों के साथ पीतल स्क्रेप पर निर्भर करते हैं। यह ही वजह है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान घरलू बाजार में पीतल के भावों में विशेष उतार-चढ़ाव नहीं हुआ। मसलन मुम्बई में एक सप्ताह पहले पीतल चादर के भाव 169 रुपए किलो थे, जबकि 24 जनवरी को मुम्बई में पीतल चादर के भाव तीन रुपए किलो की मामूली गिरावट के साथ166 रुपए किलो रह गए। इसी तरह काफी समय से जयपुर में पीतल स्क्रेप के भाव 125 रुपये किलो के आसपास बने हुए हैं। लेकिन पिछले तीन महीने में पीतल में तीस से चालीस फीसदी की गिरावट आ चुकी है। विशेषज्ञों के मुताबिक मंदी का यह दौर जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। इस लिहाज से भी देखें तो अगले छह महीने तक पीतल के भावों में सुधार की गुजांइश कम ही दिखती है। वैसे भी पीतल में 70 फीसदी तांबा और 30 फीसदी जस्ता होने से जब तक इन दोनों धातुओं के भावों में सुधार नहीं होता, तब तक पीतल के भावों में सुधार की उम्मीद करना बेमानी होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2008 की दूसरी छमाही की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में वर्ष 2009 के दौरान बेस मेटल की कीमतों में 25 से 30 फीसदी गिरावट की संभावना है। यह ट्रेंड चालू कलैंडर वर्ष की पहली छमाही में बदलने के आसार फिलहाल दिखाई नहीं दे रहे हैं, क्योंकि दुनियाभर में रियल्टी व ऑटों समेत सभी क्षेत्रों की विकास दर धीमी है। भारत के संदर्भ में देखें तो पहले पीतल का उपयोग बर्तन और हैंडीक्राफ्ट में ही ज्यादा होता था लेकिन अब इसका उपयोग फर्नीचर, दरवाजों के है¨डल, सजावटी समान में भी बढ़ गया है। लेकिन आर्थिक मंदी के कारण रियल्टी क्षेत्र तो प्रभावित हुआ ही है, विदेशी बाजारों से हैंडीक्राफ्ट उत्पादों की मांग में भी कमी आई है। वहीं स्टील की तुलना में महंगा पड़ने से बर्तन बनाने में पीतल का उपयोग लगातार घटता जा रहा है।हालांकि केंद्र सरकार ने पीतल उत्पादों से जुड़े उद्योगों को राहत देने के लिए पीतल स्क्रेप आयात शुल्क में कमी की है। लेकिन इस कमी के बावजूद जब तक औद्योगिक मांग में सुधार नहीं होता तब तक पीतल के भावों में सुधार की संभावना कम है। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले दिनों मांग में कमी के चलते पीतल स्क्रेप के भाव भारी गिरावट के साथ 1700 से 1800 डॉलर प्रति टन रह गए थे। देश में पीतल की मांग सबसे ज्यादा गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों की होती है, क्योंकि पीतल उत्पाद बनाने वाली ज्यादात्तर इकाइयां इन्हीं प्रदेशों में है। वैसे भी पीतल उत्पाद बनाने वाली ज्यादातर इकाइयां लघु क्षेत्र में आती है, जो पीतल उत्पादों की मांग में कमी और आयातित स्क्रेप की लागत ज्यादा होने से कामकाज ठीक ढंग से नहीं कर पा रही है। यह देखते हुए पीतल के भावों में फिलहाल सुधार की संभावना कम है। (Business Bhaskar)
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