मुंबई January 23, 2009
चीन की बंद पड़ी छोटी इस्पात मिलों का परिचालन धीरे-धीरे शुरू होने से भारतीय लौह अयस्क निर्यातकों को उम्मीद है कि इस साल लदाई में पिछले साल की अपेक्षा कम से कम 5.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।
पिछले साल चीन की मांग अधिक होने के कारण भारत से कुल 1,042.7 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात किया गया था (साल 2006-07 में 937.9 लाख टन)। लेकिन चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों के दौरान कुल निर्यात 5.5 प्रतिशत घट कर 644.7 लाख टन रह गया जबकि पिदले वर्ष की समान अवधि में यह 681.5 लाख टन था।छोटी इस्पात मिलों के फिर से चालू होने की खबर भारतीय खान कारोबारियों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे निर्यात के घटने का अनुमान कर रहे थे। कच्चे माल की कीमतें कम होने से उनके वित्तीय स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। भारतीय खनिज उद्योग महासंघ (फिमी) के महासचिव आर के शर्मा ने कहा, 'चीनी कारोबारी फिलहाल नए साल का जश्न (26 जनवरी) मनाने में व्यस्त हैं इसलिए फिलहाल लौह अयस्क की मांग कम है। लेकिन हमें भरोसा है कि अगर लदाई ज्यादा बढ़ती नहीं है तो कम से कम पिछले साल के स्तर पर तो आ ही जाएगी।'चीनी आयातकों सबसे बड़ा लाभ कीमतों का मिलता है। वर्तमान में भारतीय लौह अयस्क की कीमतें 90 से 95 डॉलर प्रति टन के वैश्विक बेंचमार्क मूल्य से 30 डॉलर डॉलर कम 60 से 65 डॉलर प्रति टन हैं। शर्मा ने बताया कि बड़ी इस्पात मिलें जिनका करार दीर्घावधि का है वे वर्तमान बाजार धारणाओं के हिसाब से घाटे में हैं।गोवा की लौह अयस्क निर्यातक और खनन कंपनी एच एल नाथुरमल ऐंड कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी हरेश मेलवानी ने कहा, 'पिछले सप्ताह हमने चीन के लिए इस सीजन की पहली लदाई की। हमारे पास दूसरे ऑर्डर भी हैं जिसे आने वाले दिनों में पूरा किया जाना है।हम देख रहे हैं कि चीनी इस्पात मिलों ने भारतीय बाजार से लौह अयस्क की खरीदारी का ऑर्डर देना शुरू कर दिया है। वे दीर्घावधि के करारों की बजाए हाजिर आधार (स्पॉट बेसिस) पर खरीदारी करना चाह रहे हैं।'पिछले साल सितंबर में ओलंपिक खेलों की वजह से सुरक्षा के उपायों तहत शांघाई और उसके आस पास के तकरीबन 42 छोटी इस्पात मिलों को अपना उत्पादन बंद करना पड़ा था। लेकिन, वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण इस्पात की मांग कमजोर पड़ने से इन मिलों ने परिचालन फिर से शुरू करने में विलंब किया।दूसरी तरफ, पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया और जापान के उत्पादन में भारी गिरावट के विपरीत चीन के कच्चे इस्पात के उत्पादन में दिसंबर के दौरान 7.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। पिछले छह सालों में हुई यह पहली बढ़ोतरी है। इसका मतलब है कि सरकार बुनियादी ढांचों पर आगे और बढ़ाना चाहती है।नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिसटिक्स के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर में चीन के कच्चे इस्पात का उत्पादन बढ़ कर 377.9 लाख टन होगया जबकि नवंबर में 351.9 लाख टन का उत्पादन हुआ था। लेकिन, पिछले साल की तुलना उत्पादन 10.5 फीसदी कम रहा। पूरे कैलेंडर वर्ष में चीन में कच्चे इस्पात का उत्पादन मामूली एक प्रतिशत बढ़ कर 5,010 लाख टन रहा। चीन विश्व का सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक और उपभोक्ता है।एक विश्लेषक के अनुसार, चीन की स्टील मिलें अपनी क्षमता का लगभग 70 से 80 प्रतिशत का इस्तेमाल कर रही हैं जो नवंबर की तुलना में लगभग 60 फीसदी अधिक है। अगर क्षमता के इस्तेमाल में बढ़ोतरी होती है तो लौह अयस्क की मांग बढ़ेगी और भारत उनके लिए सस्ता विकल्प है।लौह अयस्क निर्यात (लाख टन में)
वित्त वर्ष परिमाण2004-05 78.142005-06 89.272006-07 93.792007-08 104.272008-09 64.47(31 दिसंबर तक)
(BS Hindi)
24 जनवरी 2009
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