नई दिल्ली January 29, 2009
औद्योगिक मंदी के कारण जालंधर व आसपास के इलाकों में चावल की बिक्री में 25 फीसदी की गिरावट आ गयी है। सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन यह हकीकत है।
इस इलाके में चावल की बिक्री मुख्य रूप से बिहार व उत्तर प्रदेश से आए श्रमिकों के कारण होती है। मंदी के कारण औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले श्रमिक वहां से पलायन कर चुके हैं। साथ ही खेतों में भी कोई खास काम नहीं होने के कारण इन दिनों प्रवासी श्रमिकों का आगमन कम ही हो रहा है।जालंधर अनाज मंडी के पदाधिकारी नरेश मित्तल कहते हैं, 'पंजाब में चावल खाता ही कौन है। अगर इस इलाके में बाहर से आए श्रमिक न हो तो चावल की बिक्री 50 फीसदी तक कम हो जाएगी।' बिक्री में गिरावट आने से चावल की कीमत भी कम हो गयी है। पिछले साल जिस परमल (साधारण) चावल की कीमत 16 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वह घटकर 14 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गयी है। वैसे ही उम्दा परमल चावल के भाव 23-24 रुपये से गिरकर 19-20 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गए हैं। चावल कारोबारियों के मुताबिक मंदी के कारण यहां की स्थानीय औद्योगिक इकाइयों से जुड़े प्रवासी श्रमिकों को काम मिलना बंद हो गया है। दूसरी बात यह है कि गेहूं की बुआई भी खत्म हो चुकी है इसलिए बड़े पैमाने पर खेतों में भी काम नहीं हो रहा है। लिहाजा खेतों में काम करने वाले श्रमिक भी पंजाब की ओर अपना रुख नहीं कर रहे हैं। पकाने में आसान व पसंदीदा भोजन होने के कारण अधिकतर प्रवासी श्रमिक दोनों वक्त चावल ही खाते हैं।कारोबारियों ने बताया कि यहां की सरकार बहुत ही कम मात्रा में चावल की खरीदारी करती है। मांग नहीं होने के कारण फुटकर विक्रेता भी कम ही मात्रा में चावल की खरीदारी कर रहे हैं। (BS Hindi)
31 जनवरी 2009
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