नई दिल्ली January 28, 2009
राज्य सरकारों ने केंद्र से कहा है कि सामान एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से अगर राजस्व में कोई हानि होती है तो उसकी भरपाई केंद्र सरकार को करनी चाहिए। जीएसटी अप्रैल 2010 से लागू होना है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकारों को कुछ सुविधाएं (जैसे मूल्यवर्धित कर) मिलनी चाहिए, जिससे वे तीन साल तक सुचारु रूप से कामकाज कर सकें। इससे राज्यों को नुकसान हो सकता है क्योंकि कच्चे माल पर उन्हें मिलने वाला कर इसमें शामिल हो जाएगा, वहीं उन्हें सेवाओं पर कर का लाभ भी मिलेगा।वर्तमान में केंद्रीय कर केवल 100 प्रकार की सेवाओं पर ही है। इस तरह से जब तक जीएसटी लागू नहीं हो जाता, तब तक घाटे या मुनाफे के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है, सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाएगी।जीएसटी लागू करने के पीछे लक्ष्य यह है कि एक ही कर हो, जिसमें उत्पाद शुल्क, केंद्रीय बिक्री कर और सेवा कर जैसे कर शामिल हों, जिससे करों की निगरानी और उसका भुगतान आसानी से हो सके।वर्तमान में कुछ कर ऐसे हैं, जो राज्य स्तर पर तैयार माल पर लगते हैं और कच्चे माल पर लगने वाले कर के साथ उनका तालमेल नहीं होता है। इसका करों पर परिवर्तनशील प्रभाव पड़ता है। जीएसटी की दरें तय करते समय कुछ खास अवधारणाओं का ध्यान रखा गया है। सूत्रों का कहना है कि परिर्तनशील प्रभाव खत्म करने में राज्यों को कितना नुकसान होता है और सेवा कर से कितनी अतिरिक्त आमदनी होती है, इसका सही सही आकलन करना बहुत कठिन होगा। हकीकत यह है कि जिस कर को सुविधापूर्वक जीएसटी में लाया जा सकता है, उसे लाया जाएगा। इसके अलावा इसके अन्य मानक इसे लागू होने के बाद तय किए जाएंगे। राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने यह अनुसंशा की है। जब अप्रैल 2005 में वैट पेश किया गया था तो केंद्र सरकार ने पहले साल राज्य को होने वाले 100 प्रतिशत नुकसान की भरपाई करने पर सहमति जताई थी। (BS Hindi)
29 जनवरी 2009
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