नई दिल्ली January 27, 2009
सरकार अब हाइब्रिड चावल के उत्पादन को बढ़ावा देने का मन बना रही है। जिन इलाकों में धान की रोपाई व्यापक पैमाने पर होती है, वहां हाइब्रिड चावल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी जाएगी।
इससे चावल के उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। पिछले साल खरीफ सीजन में 832.5 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था, अब सरकार इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए बेताब है।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक मंगला राय के मुताबिक, वर्तमान में जिस चावल का उत्पादन किया जाता है, उसकी तुलना में हाइब्रिड चावल का उत्पादन करने वाले एक हेक्टेयर खेत में 1 से 1.5 टन ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं।वर्तमान में अगर हम चावल के उत्पादन की स्थिति पर गौर करें तो भारत में औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन केवल करीब 2.12 टन है, जो पंजाब में 4 टन प्रति हेक्टेयर है और आंध्र प्रदेश में 3 टन प्रति हेक्टेयर है। चीन में चावल क्रांति दरअसल संकरित चावल की वजह से ही आई। इसका विकास वहां पर 1970 की शुरुआत में किया गया था। चीन में 1990 तक पूरे देश के आधे धान उत्पादक क्षेत्र में हाइब्रिड चावल की खेती की जाने लगी, जिसके चलते चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक बनकर उभरा।भारत ने भी इस दिशा में कोशिशें शुरू की थीं। लेकिन 1970 में शुरू हुई हाइब्रिड चावल तकनीक के शोध कार्यो में असली उपलब्धि 1990 के आसपास ही मिल सकी। आईसीएआर के रिसर्च नेटवर्क के माध्यम से तमाम नई हाइब्रिड किस्मों का विकास किया गया।इसमें निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भी भरपूर साथ दिया। इससे देश भर के विभिन्न इलाकों में व्यावसायिक खेती शुरू हुई। भारत में हाइब्रिड बीज के प्रसार न होने के पीछे प्रमुख वजह यह है कि हाइब्रिड बीज बहुत महंगे होते हैं। महंगे होने की वजह यह है कि इसके उत्पादन में बहुत जटिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीज को किसानों को हर साल खरीदना पड़ता है।अब तक देश भर में धान की 5 प्रतिशत खेती में ही हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल होता है, जबकि 4 करोड़ हेक्टेयर जमीन में धान की फसल रोपी जाती है। इस लिहाज से देखें तो धान रोपाई के 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उत्पादन के लिए 450,000 क्विंटन हाइब्रिड बीज की जरूरत पड़ेगी।किसानों के लिए हाइब्रिड बीज सुगम बनाने के लिए एनएफएसएम सामने आया है। इसके सहयोग से बीज के उत्पादन के साथ साथ बिक्री के दौरान भी सब्सिडी दी जाएगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक निजी और सरकारी बीज उत्पादकों को 1000 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी दी जाएगी। निजी कंपनियों को भी इसमें छूट दी जाएगी, अगर वे राज्य स्तर की एजेंसियों से जुड़ी हैं और उन्हें राज्य खाद्य सुरक्षा मिशन से स्वीकृति मिली हुई है। इसके अलावा बीज के मूल्य का 50 प्रतिशत (2000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं) अतिरिक्त सब्सिडी बीज वितरकों को दी जाएगी, जिससे कम दाम पर किसानों को बीज उपलब्ध हो सके। एनएफएसएम ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि विभिन्न एजेंसियों को हाइब्रिड चावल की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए लगाया जाएगा, जिससे किसानों को इसके लाभ के बारे में पता चल सके। इसमें किसानों को शिक्षित करने के लिए प्रति डिमांस्ट्रेशन 3,000 रुपये की सब्सिडी दी जाएगी। इस तरह के डिमांस्ट्रेशन उन इलाकों में ही दिए जाएंगे, जहां पहले ही उच्च गुणवत्ता वाले धान की रोपाई होती है। इन इलाकों में उत्पादन स्थिर सा हो गया है, क्योंकि किसानों के लिए उपज बढ़ाने का कोई नया तरीका नहीं मिल रहा है। हाइब्रिड चावल की खेती से उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। (BS Hindi)
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