नई दिल्ली January 21, 2009
पंजाब में आलू बीज के किसानों को इस बार दिवालिया होने तक की नौबत आ सकती है।
पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश में भी आलू का बाजार बिल्कुल ही पिट जाने के कारण आलू बीज की बिक्री की संभावना काफी कम नजर आ रही है। जबकि आलू बीज को तैयार करने में खाने वाले आलू के मुकाबले लगभग दोगुनी लागत आती है। पंजाब के ये आलू बीज के किसान घर चलाने के लिए कर्ज लेने की तैयारी कर रहे हैं। पंजाब के जालंधर इलाके में 40 फीसदी आलू ही बिक्री के लिए मंडी में आते हैं। बाकी 70 फीसदी आलू को खेतों में बीज के लिए छोड़ दिया जाता है। इस दौरान उन्हें पकाने का काम चलता है। लेकिन इस बार पंजाब की मंडियों में आलू की कीमत 1.80-2 रुपये प्रति किलो के स्तर पर आ गयी है। लिहाजा आलू के किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है। किसानों के मुताबिक 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मंडी में बिकने पर उनकी लागत निकल पाएगी। ऐसे में आलू के बीज के खेतों में ही पड़े रहने की संभावना बन रही है। जालंधर व आसपास के इलाकों में 80-90 हजार हेक्टेयर जमीन पर आलू की खेती की जाती है। और यहां 60 फीसदी आलू को बीज के रूप में तैयार करने के लिए खेतों में छोड़ दिया जाता है। जालंधर आलू बीज का देश में सबसे बड़ा केंद्र है। यहां से पूरे देश भर में आलू बीज की आपूर्ति होती है।जालंधर आलू उत्पादक संघ के प्रधान रघुबीर सिंह कहते हैं, 'एक हेक्टेयर खेत से 200 क्विंटल आलू बीज निकलता है। अगर इसकी बिक्री 550-600 रुपये प्रति क्विंटल होती है तभी उनकी लागत निकलेगी और कुछ फायदा होगा। लेकिन इस बार इस भाव से इसे बेचना मुमकिन नहीं दिख रहा है।' आलू किसान तो पिछले साल खरीदे गए आलू बीज के पैसे तक चुकता नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें बैंकों से लिए गए कर्ज का भुगतान करने में भी मुश्किलें हो रही हैं। आलू बीज के किसानों के साथ एक दिक्कत यह भी है कि वे 120 दिनों तक आलू को खेतों में रखते हैं। साधारण आलू 70 दिनों में तैयार होता है। इससे खेत खाली हो जाता है और वे दूसरी फसल की बुवाई कर लेते हैं। बीज के रूप में तैयार होने वाले आलू का आकार भी छोटा होता है। लिहाजा वे उसकी बिक्री मंडी में भी नहीं कर सकते हैं। (BS Hindi)
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