मुंबई January 22, 2009
रासायनिक उद्योग की घटती मांग की वजह से भारत में परिष्कृत स्पिरिट (आरएस) की खपत में 20 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है। आरएस का उत्पादन शीरे से किया जाता है। शीरा चीनी का सह-उत्पाद है।
शीरे का उपयोग मुख्यत: रासायनिक क्षेत्र, ईंधन तेल और पेय एल्कोहल के तौर पर किया जाता है। इस साल एथेनॉल का इस्तेमाल घट कर 18,500 लाख टन होने का अनुमान किया जा रहा है जबकि पिछले वर्ष यह 22,000 लाख टन था। औद्योगिक सूत्रों का विश्वास है कि आरएस की खपत में कमी गन्ने की कम पेराई के आकलनों के अनुरूप है। गन्ने की जगह गेहूं, चावल और अन्य खद्य तिलहनों की खेती के कारण रकबे में (गन्ने के) 10-15 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में इनॉर्गेनिक खेती की वजह से परिपक्व फसलों में सूक्रोज की मात्रा घटने से गन्ने से प्राप्त होने वाली चीनी का परिमाण (रिकवरी) भी कम हुआ है। नवीनतम औद्योगिक आकलन के अनुसार इस वर्ष पेराई के लिए 1,900 लाख टन गन्ना उपलब्ध होगा जबकि पिछले साल यह 2,600 लाख टन था।रासायनिक क्षेत्र, जो कुल आरएस उत्पादन के लगभग 41 प्रतिशत का इस्तेमाल करता था, की मांग वैश्विक मंदी के कारण 50 फीसदी घट कर 4,500 लाख लीटर रह गई है क्योंकि अंतिम उत्पाद के निर्यात में भारी गिरावट आई है। विभिन्न रासायनिक अम्लीय उत्पादों और अन्य रसायन जैसे मोनो इथीलीन ग्लाइकॉल (एमईजी) के विनिर्माण में आरएस का व्यापक स्तर पर इन्टरमीडिएट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। एमईजी का प्रयोग फाइबर बनाने में किया जाता है। स्पष्ट तौर पर परिष्कृत स्पिरिट का औद्योगिक इस्तेमाल, जिसका प्रयोग भारत में निर्मित विदेशी शराब (व्हिस्की, रम आदि) बनाने में किया जाता है, भी मामूली तौर पर घट कर इस साल 9,000 लाख लीटर रह गया है जबकि पिछले साल यह 9,500 लाख लीटर था।लेकिन, परिष्कृत स्पिरिट का तीसरा सबसे बड़ा अंतिम उत्पाद एथेनॉल की 5 प्रतिशत की अनिवार्य मिलावट के कारण ईंधन तेल के क्षेत्र में आरएस की खपत बढ़ी है और यह पिछले साल के 4,000 लाख लीटर से बढ़ कर 4,500 लाख लीटर हो गई है।देश के एक बड़े एथेनॉल आपूर्तिकर्ता कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'कच्चे तेल की कीमतें घटने से रासायनिक उद्योग की मांग में कमी आई है क्योंकि आरएस के मुकाबले कच्चे तेल से एमईजी बनाना सस्ता हो गया है। विभिन्न उम्लीय उत्पादों के निर्यात मांग में भारी गिरावट आई है। इस साल रासायनिक क्षेत्र से आरएस की मांग सुधरने की संभावना कम ही है।'एथेनॉल एसोसिएशन के दीपक देसाई ने बताया कि एमईजी बनाने में आरएस के बदले कच्चे तेल का इस्तेमाल किया जाता है। पिछले साल जुलाई महीने में कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई थी। तबसे अभी तक इसकी कीमतें घट कर एक-चौथाई रह गई हैं। इसलिए रसायन निर्माता अब आरएस की खरीदारी नहीं कर रहे हैं। परिष्कृत स्पिरिट का प्रसंस्करण कर विशिष्ट डीनेचर्ड स्पिरिट (एसडीएस) बनाया जाता है जिसमें एल्कोहल की मात्रा 94.68 प्रतिशत होती है। इसे 16 से 17 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाता है। एसडीएस को 5 प्रतिशत से अधिक जलमुक्त कर इसे ईधन के स्तर के एल्कोहल में बदला जाता है जिसे एथेनॉल कहते हैं। इस तरह तैयार किए गए एथेनॉल को सीधे-सीघे पेट्रोल में मिलाया जाता है।इस बदलाव में लागत एक रुपये प्रति लीटर का आता है। दो साल पहले तक आरएस से एथेनॉल बनाना लाभ का सौदा था तग स्पिरिट 13 से 14 रुपये लीटर बिका करता था। यद्यपि, यह प्रक्रिया कारोबारियों के लिए अव्यवहार्य हो चली है, लेकिन चीनी का सह-उत्पाद होने की वजह से गन्ना पेराई मिलों के लिए यह मायने रखता है।दो साल पहले तेल विपणन कंपनियों ने भी 21.50 रुपये प्रति लीटर की निश्चित कीमत को बढ़ाने से मना कर दिया था। अब आरएस 25 रुपये प्रति लीटर पर उपलब्ध हो रहा है।धामपुर शुगर मिल्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक गौरव गोयल ने कहा, 'सरकार और उद्योग एथेनॉल की कीमतों का निर्धारण करने में दीर्घावधि का नजरिया रखते हैं भले ही आरएस की कीमत जो भी हो। तेल विपणन कंपनियों को एथेनॉल की आपूर्ति करना अनिवार्य है और इसमें कोई कमी नहीं आई है।'प्रत्येक टन शीरे से चीनी मिलों ने 225 लीटर एथेनॉल का उत्पादन करते हैं। हालांकि, यह पेराई के दौरान प्रयोग की गई तकनीक पर निर्भर करता है। लेकिन, शीरे का एक बड़ा हिस्सा एल्कोहल बनाने वालों को भेजा जाता है। (BS Hindi)
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