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20 जनवरी 2009

दिखने लगे हैं चीनी उद्योग और किसानों के बुरे दिन

January 19, 2009
सितंबर 2008 में समाप्त हुए सीजन में चीनी के घरेलू उत्पादन में आश्चर्यजनक कमी देखने को मिल सकती है। साल 2007-08 के 263.28 लाख टन से घट कर यह 180 लाख टन रह सकता है।
ऑर्डर में कुछ बाधाएं आएंगी जिनकी आशा नहीं की जा रही थी। गन्ना बिल के भुगतान में बहुत अधिक विलंब होने से परेशान उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों के किसानों ने गेहूं और चावल की खेती का रुख कर लिया है।आरंभ में हमलोगों को समझाया गया था कि गन्ने की फसल कम होने से (जिसकी प्रमुख वजह किसानों का अन्य फसलों की ओर रुख करना है) चीनी का उत्पादन 210 से 220 लाख टन होगा। दिसंबर में भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) की हुई बैठक में 195 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमन लगाया गया था।भारतीय चीनी मिल संघ के निदेशक एस एल जैन कहते हैं कि गन्ना पेराई करने वाली फैक्ट्रियां चीनी की रिकवरी (गन्ने से प्राप्त होने वाली चीनी) में लगातार गिरावट का अनुभव कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि मिलों के परिचालन के व्यस्ततम समय में ऐसा देखने को मिल रहा है। पिछले पांच सीजन में गन्ना पेराई की अवधि 113 दिनों से 152 दिनों की रही है जो फसल के आकार पर निर्भर करती है।गन्ने की फसल कम होने और चीनी की रिकवरी एक प्रतिशत तक घट जाने की वजह से, खास तौर से उत्तर प्रदेश और उत्तरी राज्यों में, लगता है कि परिस्थितियां साल 1998-99 जैसी होने वाली हैं जब चीनी का उत्पादन मात्र 155.4 लाख टन हुआ था। लेकिन क्या ये बात आश्चर्यजनक नहीं है कि सीजन के इस समय में रिकवरी दरों में गिरावट आ रही है? जैन के अनुसार रिकवरी 'प्रिपोनिल के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण प्रभावित हो रहा है। यह एक कीटनाशक रसायन है जिसका इस्तेमाल अभी कटाई की जाने वाली फसलों में किसानों द्वारा किया गया था। इस रसायन के इस्तेमाल से पौधे के विकास पर प्रभाव पड़ता है साथ ही तनों में चीनी का स्तर भी अपेक्षाकृत कम हो जाता है।'प्रिपोनिल का नियमित इस्तेमाल चीनी अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाने वाला साबित हुआ है। किसान अभी तक इससे अनभिज्ञ हैं। प्रिपोनिल से पौधों का सामान्य विकास बाधित होने के साथ-साथ उनकी परिपक्वता भी विलंबित होती है। औद्योगिक अधिकारी ओम प्रकाश धानुका ने बताया कि इस रसायन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की किसानों की प्रवृत्ति इसलिए हुई ताकि इस सीजन में कम रकबे के बावजूद उत्पादन बढ़ा कर क्षतिपूर्ति की जा सके। किसानों ने गन्ने में सुक्रोज के घटने की परवाह नहीं की।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक मिल से गन्ने का नमूना लेकर जब विश्लेषण किया गया तो पता चला कि प्रिपोनिल का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया गया है। आम गन्ने से अधिक भारी गन्ने की आपूर्ति के बावजूद चीनी रिकवरी कम होना पेराई मिलों के लिए बोझ जैसा बन गया है।'इस समस्या का समाधान तलाशना आसान नहीं है क्योंकि यहां आय का नजरिया भी जुड़ा हुआ है। लेकिन भार के साथ-साथ गुणवत्ता के आधार पर फैक्टी के दरवाजे पर किसानों द्वारा लाए गए गन्ने की कीमतों के निर्धारण की दिशा में प्रयास किया जा सकता है।' स्पष्टतया, इसे आजमाने का सबसे बढ़िया अवसर कटाई का सीजन होगा।ऐसे समय में चीनी मिलों की सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कुछ समूह कच्ची चीनी के आयात की अनुमति की दिशा में लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस में से अधिकांश मिलों ने पिछले सीजन में पावर जेनरेशन और एथेनॉल की बिक्री से परिचालन लाभ में जबरदस्त घटा उठाया था। इन घाटों की भरपाई कुछ हद तक ही हो सकती है। इस दिशा में कोई भी कदम उठाए जाने का प्रभाव स्थानीय चीनी की कीमतों में कमी के रूप में होगा और उत्पादकों के हित प्रभावित होंगे साथ ही वैश्विक बाजार में इस जिंस की कीमतें बढ़ जाएंगी।जैन के अनुसार, चीनी मिलों के निगाह में आयात की अनुमति के लिए प्रमुख तौर पर संस्थागत खरीदार अभियान चला रहे हैं जिनकी हिस्सेदारी देश की कुल 225 लाख टन की खपत में 76 फीसदी है।धानुका कहते हैं, 'वास्तव में एक घरेलू बजट पर चीनी कीमतों के प्रभाव की गलत धारणा के कारण थोक मूल्य सूचकांक में इसे आवश्यकता से अधिक तरजीह दी गई है। सारी गड़बड़ी यही से शुरू होती है।' यही कारण है कि सरकार समय-समय पर चीनी रिलीज कर बाजार में दखल देती है।वर्तमान सीजन की शुरुआत के समय देश में 80 लाख टन से अधिक चीनी का भंडार था। हां, आयात की जरूरत होगी लेकिन केवल सीजन की समाप्ति के वक्त। सबसे बड़ी जरूरत यह है कि गन्ने के बिल का तुरंत भुगतान करने की मिलों की क्षमता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अभी तक, मिल गन्ने की एक्स-फैक्ट्री कीमत की तुलना में चीनी बना पूरी कीमत नहीं वसूल पाए हैं। क्या हमलोगों ने पिछले साल यह नहीं देखा था कि गन्ने का बिल के भुगतान न होने से फसल किस कदर प्रभावित हुई थी। (BS Hindi)

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