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19 जनवरी 2009

विदेशी बाजार में भारतीय जौ की निर्यात मांग हल्की

जौ की निर्यात और घरेलू मांग में कमी के चलते इसके भाव एक माह में 50-80 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर चुके हैं। भारतीय जौ के भाव दूसरे देशों से अधिक और इसके दाने में पर्याप्त मोटाई नहीं है। इस कारण निर्यात मांग हल्की पड़ गई। वहीं दूसरी ओर इस बार मौसम अनुकूल रहने से अच्छी फसल होने की उम्मीद है। साथ ही बाजरा की तुलना में इसके महंगा होने से पशुचारे में होनी वाली खपत में भी कमी आई है।सोहन एग्रो मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के अशोक जैन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि इस साल मौसम अनुकूल रहने से अच्छी फसल की उम्मीद में जौ की ग्राहकी कमजोर पड़ गई है। इससे पिछले एक माह के दौरान इसकी कीमतों में 50-80 रुपये क्विंटल की गिरावट आई है। कारोबारियों का मानना है कि नई फसल जोकि मार्च महीने में आयेगी, आने पर इसके दाम काफी नीचे आ जाएगें। यही कारण है कि इन दिनों कारोबारी जौ की खरीदारी से परहेज कर रहे हैं। बाजार में एक माह पहले माल्ट में उपयोग होने वाला मोटे दाने का जौ 950 रुपये (ऊपर में) बिकने के बाद गिरकर 870 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। जबकि पशुचारे में उपयोग होने वाले जौ का भाव 850 से कम होकर 800 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है।उधर गांधीधाम स्थित जौ निर्यातक कंपनी मनीवा क्रिएशन के निदेशक निखिल भट्ट ने बताया कि देश से जौ का निर्यात खाड़ी देशों को किया जाता है लेकिन इन देशों को ब्राजील का जौ यहां से कम दाम पर मिल रहा है क्योंकि ब्राजील से शिपिंग में आने वाले वाला खर्चा भारत से कम है। ब्राजील के अलावा कजास्तिान का जौ सस्ता होने की वजह से भारत से इसकी निर्यात मांग कमजोर है। वहीं दादरी के जौ कारोबारी मन्नाराम ने बताया कि जौ में मोटे माल की कमी और विदेशों की तुलना में इसके महंगा होने से माल्ट वालों की निर्यात मांग कम निकल रही है। साथ ही पशुचारे के लिए किसान जौ के बजाय बाजरा ज्यादा पसंद कर रहे हैं क्योंकि जौ का भाव बाजरे के दाम से ज्यादा है। इससे भी जौ की मांग में कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2007-08 में 12.3 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था जो वित्त वर्ष 2006-07 के 13.3 लाख टन से कम है। जबकि सरकार ने वित्त वर्ष 2008-09 में 15 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। (Business Bhaskar)

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