आर एस राणा
नई दिल्ली। पिछले तीन महीने के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के सफल क्रियान्वयन और अब अगले पांच महीने के लिए इसके विस्तार के एलान के बाद अब दाल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में शामिल कर लेना चाहिए। ये सुझाव है नाफेड के अधिकारी एस के सिंह का है जोकि जेएलवी एग्रो की ओर से आयोजित एक वेबनार में बोल रहे थे।
एस के सिंह के मुताबिक साल 2015 से देश को मिली सबक के बाद सरकार की कोशिशों और नीतियों की बदौलत अब दलहन की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। एक ओर जहां उत्पादन में भारी बढ़त हो रही है, वहीं दूसरी ओर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दलहन खरीद से बाजार को स्थिर करने में भी मदद मिली है। ऐसे में किसानों को अच्छा दाम मिलने से लाभ हुआ। वहीं दूसरी ओर ग्राहकों को वाजिब दाम पर दाल भी मिल रही है।
हालांकि साथ में उन्होने ये भी कहा कि भारत में दाल प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है। लेकिन मौजूदा भाव पर भी देश का एक बड़ा तबका इसे खरीदकर नहीं खा सकता है। ऐसे में दाल को भी पीडीएस में शामिल कर लेना चाहिए, ताकि तय मात्रा में समाज के कम आय वर्ग के लोगों को भी पौष्टिक आहार मिल सके। उनका मानना है कि देश में दाल का बाजार पूरी तरह से नियंत्रण में है। उत्पादन से लेकर इसकी खरीद और रखरखाव की भी व्यवस्था बेहतर हुई है। ऐसे में इसे गेहूं और चावल की तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल किया जा सकता है।
उन्होने कहा कि इस साल कोरोना काल में नैफेड ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करीब 30 लाख टन दाल और सरसों की खरीद की है, साथ ही किसानों को उनके खाते में सीधा भुगतान भी सुनिश्चित किया है। इस काम के लिए देश भर में करीब 4,000 खरीद केंद्र खोले गए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि नैफेड ने कई किसानों के दरवाजे पर जाकर भी खरीद को अंजाम दिया है।
केंद्र सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के 80 करोड़ गरीबों को प्रति महीने 5 किलो अनाज और हर महीने प्रति परिवार को एक किलो चना मुफ्त में दे रही है। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल से शुरू हुई इस योजना को केंद्र सरकार ने नवंबर तक के लिए बढ़ा दिया है।............ आर एस राणा
नई दिल्ली। पिछले तीन महीने के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के सफल क्रियान्वयन और अब अगले पांच महीने के लिए इसके विस्तार के एलान के बाद अब दाल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में शामिल कर लेना चाहिए। ये सुझाव है नाफेड के अधिकारी एस के सिंह का है जोकि जेएलवी एग्रो की ओर से आयोजित एक वेबनार में बोल रहे थे।
एस के सिंह के मुताबिक साल 2015 से देश को मिली सबक के बाद सरकार की कोशिशों और नीतियों की बदौलत अब दलहन की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। एक ओर जहां उत्पादन में भारी बढ़त हो रही है, वहीं दूसरी ओर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दलहन खरीद से बाजार को स्थिर करने में भी मदद मिली है। ऐसे में किसानों को अच्छा दाम मिलने से लाभ हुआ। वहीं दूसरी ओर ग्राहकों को वाजिब दाम पर दाल भी मिल रही है।
हालांकि साथ में उन्होने ये भी कहा कि भारत में दाल प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है। लेकिन मौजूदा भाव पर भी देश का एक बड़ा तबका इसे खरीदकर नहीं खा सकता है। ऐसे में दाल को भी पीडीएस में शामिल कर लेना चाहिए, ताकि तय मात्रा में समाज के कम आय वर्ग के लोगों को भी पौष्टिक आहार मिल सके। उनका मानना है कि देश में दाल का बाजार पूरी तरह से नियंत्रण में है। उत्पादन से लेकर इसकी खरीद और रखरखाव की भी व्यवस्था बेहतर हुई है। ऐसे में इसे गेहूं और चावल की तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल किया जा सकता है।
उन्होने कहा कि इस साल कोरोना काल में नैफेड ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करीब 30 लाख टन दाल और सरसों की खरीद की है, साथ ही किसानों को उनके खाते में सीधा भुगतान भी सुनिश्चित किया है। इस काम के लिए देश भर में करीब 4,000 खरीद केंद्र खोले गए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि नैफेड ने कई किसानों के दरवाजे पर जाकर भी खरीद को अंजाम दिया है।
केंद्र सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के 80 करोड़ गरीबों को प्रति महीने 5 किलो अनाज और हर महीने प्रति परिवार को एक किलो चना मुफ्त में दे रही है। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल से शुरू हुई इस योजना को केंद्र सरकार ने नवंबर तक के लिए बढ़ा दिया है।............ आर एस राणा
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