जिंस एक्सचेंजों पर होने वाले जिंस वायदा कारोबार में चालू वित्त वर्ष में
41 फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। सबसे ज्यादा सराफा कारोबार में
करीब 52 फीसदी की कमी आई है। जिंस वायदा कारोबार में भारी गिरावट की वजह
कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) को माना जा रहा है। कारोबार में लगातार
हो रही कमी को देखते हुए चालू वित्त वर्ष में कुल कारोबार में गिरावट 50
फीसदी तक पहुंच सकती है।
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में एक अप्रैल से 15 फरवरी तक जिसों का वायदा कारोबार 41.42 फीसदी गिरकर 53.92 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि कमोडिटी एक्सचेंजों के मंच पर पिछले साल की समान अवधि में कुल 92.05 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। वायदा कारोबार की सभी जिसों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सबसे ज्यादा गिरावट सोने-चांदी के कारोबार में आई है। सराफा कारोबार 51.78 फीसदी गिरकर 19,15,403 करोड़ रुपये रह गया, जो पिछले वित्त वर्ष में 39,72,504.13 करोड़ रुपये था। सराफा की तरह कृषि जिंसों के कारोबार में चालू वित्त ïवर्ष में 15 फरवरी तक 30.67 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है, जबकि एक फरवरी से 15 फरवरी तक कृषि जिसों के वायदा कारोबार में 51.19 फीसदी कमी आई है। वित्त वर्ष में मूल धातुओं का कारोबार भी 30.76 फीसदी लुढ़ककर 11,13,287.27 करोड़ रुपये रह गया। वहीं, ऊर्जा का वायदा कारोबार 37.32 फीसदी कमी के साथ 14,07,694.87 करोड़ रुपये का रह गया।
एक्सचेंज केसंयुक्त प्रबंध निदेशक पी के सिंघल कहते हैं कि भारत ज्यादातर जिंसों का आयात करता है, ऐसे में सीटीटी से घरेलू बाजार में नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। उनके अनुसार सीटीटी लगाकर घरेलू जिंस बाजार के विकास को रोकना ठीक नहीं है, इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए या फिर इसकी दरों में कटौती की जानी चाहिए। सिंघल कहते हैं कि सीटीटी के कारण एक्सचेंजों के कारोबार में लगातार गिरावट आई है। सबसे ज्यादा प्रभाव सोना वायदा पर पड़ा है। इन उत्पादों का मकसद छोटे हितधारकों को भी बाजार में शामिल करना है। लेकिन दुर्भाग्य से जिंस पर सीटीटी लगने से जिंस वायदा बाजार में सौदा करना महंगा हो गया है। नतीजन, इन उत्पादों का ज्यादा प्रसार नहीं हो पाया है। सीटीटी के प्रभाव को कम करने के लिए जहां तक संभव हुआ है, हमने प्रतिभागियों के हित में ट्रांजेक्शन शुल्क को युक्तिसंगत बनाया है।
फिलहाल गैर-कृषि ङ्क्षजसों में एक लाख पर 10 रुपये और प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार में एक लाख पर 10 रुपये सीटीटी लगता है। कमोडिटी ब्रोकिंग एजेंसियों का कहना है कि सरकार को सीटीटी से भले ही सालाना करीब 500 करोड़ रुपये की कमाई हो रही हो, लेकिन इससे जिंस एक्सचेंजों के कारोबार में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। अगर सीटीटी हटाया जाता है तो वायदा कारोबार बढ़ेगा और सरकार के राजस्व का नुकसान की भरपाई दूसरे शुल्कों से हो जाएगी। (BS Hindi)
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में एक अप्रैल से 15 फरवरी तक जिसों का वायदा कारोबार 41.42 फीसदी गिरकर 53.92 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि कमोडिटी एक्सचेंजों के मंच पर पिछले साल की समान अवधि में कुल 92.05 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। वायदा कारोबार की सभी जिसों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सबसे ज्यादा गिरावट सोने-चांदी के कारोबार में आई है। सराफा कारोबार 51.78 फीसदी गिरकर 19,15,403 करोड़ रुपये रह गया, जो पिछले वित्त वर्ष में 39,72,504.13 करोड़ रुपये था। सराफा की तरह कृषि जिंसों के कारोबार में चालू वित्त ïवर्ष में 15 फरवरी तक 30.67 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है, जबकि एक फरवरी से 15 फरवरी तक कृषि जिसों के वायदा कारोबार में 51.19 फीसदी कमी आई है। वित्त वर्ष में मूल धातुओं का कारोबार भी 30.76 फीसदी लुढ़ककर 11,13,287.27 करोड़ रुपये रह गया। वहीं, ऊर्जा का वायदा कारोबार 37.32 फीसदी कमी के साथ 14,07,694.87 करोड़ रुपये का रह गया।
एक्सचेंज केसंयुक्त प्रबंध निदेशक पी के सिंघल कहते हैं कि भारत ज्यादातर जिंसों का आयात करता है, ऐसे में सीटीटी से घरेलू बाजार में नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। उनके अनुसार सीटीटी लगाकर घरेलू जिंस बाजार के विकास को रोकना ठीक नहीं है, इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए या फिर इसकी दरों में कटौती की जानी चाहिए। सिंघल कहते हैं कि सीटीटी के कारण एक्सचेंजों के कारोबार में लगातार गिरावट आई है। सबसे ज्यादा प्रभाव सोना वायदा पर पड़ा है। इन उत्पादों का मकसद छोटे हितधारकों को भी बाजार में शामिल करना है। लेकिन दुर्भाग्य से जिंस पर सीटीटी लगने से जिंस वायदा बाजार में सौदा करना महंगा हो गया है। नतीजन, इन उत्पादों का ज्यादा प्रसार नहीं हो पाया है। सीटीटी के प्रभाव को कम करने के लिए जहां तक संभव हुआ है, हमने प्रतिभागियों के हित में ट्रांजेक्शन शुल्क को युक्तिसंगत बनाया है।
फिलहाल गैर-कृषि ङ्क्षजसों में एक लाख पर 10 रुपये और प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार में एक लाख पर 10 रुपये सीटीटी लगता है। कमोडिटी ब्रोकिंग एजेंसियों का कहना है कि सरकार को सीटीटी से भले ही सालाना करीब 500 करोड़ रुपये की कमाई हो रही हो, लेकिन इससे जिंस एक्सचेंजों के कारोबार में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। अगर सीटीटी हटाया जाता है तो वायदा कारोबार बढ़ेगा और सरकार के राजस्व का नुकसान की भरपाई दूसरे शुल्कों से हो जाएगी। (BS Hindi)
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