विश्व की सबसे पसंदीदा चाय दार्जिलिंग को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा
है। विदेशी खरीदार मुद्रा विनिमय में नुकसान की भरपाई से इनकार कर रहे हैं।
पिछले साल इस समय यूरो 80 से 84 रुपये था और इस समय यह करीब 68 रुपये पर
है। लेकिन चाय की यूरो कीमत उसी स्तर पर है, लेकिन रुपये के लिहाज से इससे
विक्रेताओं को नुकसान हो रहा है। दार्जिलिंग के चाय उत्पादकों के लिए यह
बड़ा नुकसान है, क्योंकि 90 फीसदी चाय का निर्यात होता है और वर्ष के सीजन
की 100 फीसदी चाय का निर्यात होता है।
गुडरिक समूह के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी ए एन सिंह ने हाल में कहा था, 'विदेशी खरीदार पिछले साल से महज 10 फीसदी ज्यादा दाम देने को तैयार हैं।' दार्जिलिंग समेत उत्तरी भारत से चाय निर्यात वर्ष 2014 में 2,77.31 करोड़ रुपये रहा। इस आमदनी में दार्जिलिंग का अहम योगदान होता है, क्योंकि इस चाय की कीमत ऊंची होती है। हालांकि दार्जिलिंग में महज 1 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। विदेशी मुद्रा नुकसान के अलावा उद्योग को अन्य दिक्कतों से भी जूझना पड़ रहा है, जिसमें एक प्रमुख चुनौती मजदूरी की ज्यादा लागत है। अप्रैल से दैनिक मजदूरी बढ़कर 122.50 रुपये हो जाएगी। चमोंग समूह के चेयरमैन अशोक लोहिया ने कहा, 'वर्ष के पहले सीजन में करीब 95 फीसदी उत्पादन अप्रैल में होता है।'
इसके अलावा दार्जिलिंग में मजदूरी तराई और डूआर्स की तुलना में 5 रुपये ज्यादा है। पश्चिम बंगाल के साथ त्रिपक्षीय समझौते में यह तय किया गया था। हालांकि बड़ी समस्या यह है कि ज्यादा मजदूरी के बावजूद चाय तुड़ाई के लिए पर्याप्त श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं। दार्जिलिंग के कई इलाकों में कम बारिश से उद्योग के शुद्ध मुनाफे पर दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'यह चाय ईस्टर से पहले यूरोपीय बाजारों को आपूर्ति की जानी है। हमें जल्द चाय का निर्यात करना होगा, लेकिन उत्पादन ज्यादा नहीं हुआ है।' अपर्याप्त बारिश उद्योग के लिए चिंता का विषय है। हाल में इंडियन टी एसोसिएशन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चाचर में बारिश पिछले साल से भी 59 फीसदी कम रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल कम बारिश का वर्ष था। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2015 में जनवरी से मार्च के मध्य तक उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 58.5 लाख किलोग्राम घटेगा। (BS Hindi)
गुडरिक समूह के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी ए एन सिंह ने हाल में कहा था, 'विदेशी खरीदार पिछले साल से महज 10 फीसदी ज्यादा दाम देने को तैयार हैं।' दार्जिलिंग समेत उत्तरी भारत से चाय निर्यात वर्ष 2014 में 2,77.31 करोड़ रुपये रहा। इस आमदनी में दार्जिलिंग का अहम योगदान होता है, क्योंकि इस चाय की कीमत ऊंची होती है। हालांकि दार्जिलिंग में महज 1 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। विदेशी मुद्रा नुकसान के अलावा उद्योग को अन्य दिक्कतों से भी जूझना पड़ रहा है, जिसमें एक प्रमुख चुनौती मजदूरी की ज्यादा लागत है। अप्रैल से दैनिक मजदूरी बढ़कर 122.50 रुपये हो जाएगी। चमोंग समूह के चेयरमैन अशोक लोहिया ने कहा, 'वर्ष के पहले सीजन में करीब 95 फीसदी उत्पादन अप्रैल में होता है।'
इसके अलावा दार्जिलिंग में मजदूरी तराई और डूआर्स की तुलना में 5 रुपये ज्यादा है। पश्चिम बंगाल के साथ त्रिपक्षीय समझौते में यह तय किया गया था। हालांकि बड़ी समस्या यह है कि ज्यादा मजदूरी के बावजूद चाय तुड़ाई के लिए पर्याप्त श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं। दार्जिलिंग के कई इलाकों में कम बारिश से उद्योग के शुद्ध मुनाफे पर दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'यह चाय ईस्टर से पहले यूरोपीय बाजारों को आपूर्ति की जानी है। हमें जल्द चाय का निर्यात करना होगा, लेकिन उत्पादन ज्यादा नहीं हुआ है।' अपर्याप्त बारिश उद्योग के लिए चिंता का विषय है। हाल में इंडियन टी एसोसिएशन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चाचर में बारिश पिछले साल से भी 59 फीसदी कम रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल कम बारिश का वर्ष था। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2015 में जनवरी से मार्च के मध्य तक उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 58.5 लाख किलोग्राम घटेगा। (BS Hindi)
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