ग्वार गम की कीमतें गिर रही हैं, जिससे पिछले तीन महीनों में बहुत सी
प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो गई हैं। ग्वार की कीमतें 10 वर्षों में सबसे कम
हो गई हैं। इस वजह से किसान भी आगामी सीजन में ग्वार की बुआई को लेकर
उत्साहित नहीं हैं, जिससे रकबे में 20 से 30 फीसदी गिरावट आने के आसार हैं।
इस समय ग्वार का भाव 3,500 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल है। इससे पहले इस
स्तर पर ग्वार वर्ष 2004 में था।
वहीं ग्वार गम की कीमतें 8,500 से 8,700 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जो एक साल पहले 14,000 रुपये प्रति क्विंटल थीं। ग्वार गम की कीमतें अब तक के सर्वोच्च स्तर पर मार्च 2012 में थीं। उस समय इसके दाम 90,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे। चालू वित्त वर्ष में ग्वार गम का निर्यात घटकर आधा रह गया है। वित्त वर्ष 2015 में अप्रैल से जनवरी के दौरान निर्यात गिरकर 6 लाख टन रहा है। ज्यादातर गिरावट पिछले कुछ महीनों के दौरान आई हैै। आने वाले महीनों में निर्यात में और तेजी से गिरावट आने की आशंका है।
ग्वार गम के एक विश्लेषक गणेश प्रजापत के मुताबिक बाजार में नया ग्वार गम जून तक आने की संभावना है, इसलिए ग्वार की कीमतें और गिरकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकती हैं। 95 फीसदी ग्वार की कटाई सितंबर-अक्टूबर के आसपास होती है। मई के आसपास बहुत कम ग्वार की कटाई होती है। वर्ष 2005 में अमेरिका में शेल गैस उत्खनन के लिए आवश्यक सामग्री के अन्य सस्ते विकल्प के रूप में ग्वार गम की खोज की गई थी। शेल गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ग्वार गम की मांग भी बढ़ी। हालांकि कच्चे तेल की गिरती कीमतों से शेल गैस उत्पादन घटाया गया है, जिससे ग्वार गम की मांग में भारी गिरावट आई है।
घरेलू खाद्य प्रसंस्करण और कपड़ा उद्योग में ग्वार गम की मांग की बदौलत कुछ प्रसंस्करण इकाइयां चल पा रही हैं। हालांकि बहुत सी या तो बंद हो गई हैं या परिचालन बंद करने जा रही हैं।
वसुंधरा गम्स ऐंड केमिकल्स के मालिक सुमन जैन ने कहा, 'ग्वार गम बाजार बदहाल है और 90 फीसदी इकाइयां बंद पड़ी हैं। ग्वार की दैनिक आवक 20,000 टन से घटकर करीब 400 से 500 टन रह गई है। इसके नतीजतन किसान इस सीजन में ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं।'
एग्रीवॉच के सर्वे के मुताबिक इस साल ग्वार का कुल रकबा 20 फीसदी घटने के आसार हैं। वर्ष 2014 में ग्वार का कुल उत्पादन 34 लाख टन या 3.4 करोड़ बोरी रहने का अनुमान था। एग्रीवॉच के वरिष्ठ शोध विश्लेषक चंद्रमोहन जैन ने कहा, 'हमने गुजरात में एक छोटा सर्वे किया है, जिसमें यह सामने आया है कि किसान इन कीमत स्तरों पर ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें मूंग दाल जैसी फसलें ज्यादा फायदेमंद नजर आ रही हैं। इसके नतीजतन हमारा अनुमान है कि ग्वार के रकबे में कम से कम 20 फीसदी गिरावट आएगी।' (BS Hindi)
वहीं ग्वार गम की कीमतें 8,500 से 8,700 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जो एक साल पहले 14,000 रुपये प्रति क्विंटल थीं। ग्वार गम की कीमतें अब तक के सर्वोच्च स्तर पर मार्च 2012 में थीं। उस समय इसके दाम 90,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे। चालू वित्त वर्ष में ग्वार गम का निर्यात घटकर आधा रह गया है। वित्त वर्ष 2015 में अप्रैल से जनवरी के दौरान निर्यात गिरकर 6 लाख टन रहा है। ज्यादातर गिरावट पिछले कुछ महीनों के दौरान आई हैै। आने वाले महीनों में निर्यात में और तेजी से गिरावट आने की आशंका है।
ग्वार गम के एक विश्लेषक गणेश प्रजापत के मुताबिक बाजार में नया ग्वार गम जून तक आने की संभावना है, इसलिए ग्वार की कीमतें और गिरकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ सकती हैं। 95 फीसदी ग्वार की कटाई सितंबर-अक्टूबर के आसपास होती है। मई के आसपास बहुत कम ग्वार की कटाई होती है। वर्ष 2005 में अमेरिका में शेल गैस उत्खनन के लिए आवश्यक सामग्री के अन्य सस्ते विकल्प के रूप में ग्वार गम की खोज की गई थी। शेल गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ग्वार गम की मांग भी बढ़ी। हालांकि कच्चे तेल की गिरती कीमतों से शेल गैस उत्पादन घटाया गया है, जिससे ग्वार गम की मांग में भारी गिरावट आई है।
घरेलू खाद्य प्रसंस्करण और कपड़ा उद्योग में ग्वार गम की मांग की बदौलत कुछ प्रसंस्करण इकाइयां चल पा रही हैं। हालांकि बहुत सी या तो बंद हो गई हैं या परिचालन बंद करने जा रही हैं।
वसुंधरा गम्स ऐंड केमिकल्स के मालिक सुमन जैन ने कहा, 'ग्वार गम बाजार बदहाल है और 90 फीसदी इकाइयां बंद पड़ी हैं। ग्वार की दैनिक आवक 20,000 टन से घटकर करीब 400 से 500 टन रह गई है। इसके नतीजतन किसान इस सीजन में ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं।'
एग्रीवॉच के सर्वे के मुताबिक इस साल ग्वार का कुल रकबा 20 फीसदी घटने के आसार हैं। वर्ष 2014 में ग्वार का कुल उत्पादन 34 लाख टन या 3.4 करोड़ बोरी रहने का अनुमान था। एग्रीवॉच के वरिष्ठ शोध विश्लेषक चंद्रमोहन जैन ने कहा, 'हमने गुजरात में एक छोटा सर्वे किया है, जिसमें यह सामने आया है कि किसान इन कीमत स्तरों पर ग्वार बोने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें मूंग दाल जैसी फसलें ज्यादा फायदेमंद नजर आ रही हैं। इसके नतीजतन हमारा अनुमान है कि ग्वार के रकबे में कम से कम 20 फीसदी गिरावट आएगी।' (BS Hindi)
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