निर्यात मांग में सुस्ती के कारण दूध की कीमतों में स्थिरता बने रहने से
डेयरी कंपनियों के मार्जिन पर दबाव पडऩे का अनुमान है। गर्मियों के महीनों
में रहने वाली सुस्ती के कारण किसान खरीद मूल्य में 3 से 4 फीसदी की गिरावट
की उम्मीद कर रहे हैं। गर्मियों में आम तौर पर उत्पादन में कमी देखने को
मिलती है।
देश भर की डेयरियों का दावा है कि फिलहाल किसानों को दी जाने वाली कीमतों में बढ़ोतरी की कोई खास संभावना नहीं है, क्योंकि बीते साल की तुलना में इस साल मार्जिन 30-40 फीसदी नीचे चल रहा है।
दिल्ली की स्टर्लिंग ऐग्रो के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा, 'उत्तरी पट्टी में कुछ डेयरियों के मार्जिन में 40 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। निर्यात अनुमान को देखते हुए स्टर्लिंग एग्रो का मार्जिन इस वित्त वर्ष के दौरान 30 फीसदी तक गिरा है, जिसके अगले छह महीनों के दौरान बढ़ोतरी की उम्मीद कम है। मार्जिन में बढ़ोतरी के लिए भारतीय डेयरियों के लिए यह सबसे खराब साल रहने जा रहा है।'
रेटिंग कंपनी इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुताबिक डेयरी कंपनियां बीते पांच साल से लगभग स्थिर 5 से 8 फीसदी के मार्जिन के साथ परिचालन कर रही हैं। रेटिंग कंपनी ने एक रिपोर्ट में कहा, 'मुख्य रूप से दूध का कारोबार करने वाली कंपनियों की तुलना में मूल्य वर्धित दुग्ध उत्पादों के क्षेत्र में परिचालन करने वाली कंपनियां बेहतर स्थिति में हैं।' हात्सुन एग्रो के प्रबंध निदेशक आर जी चंद्रमोगन भी स्वीकार करते हैं कि मार्जिन पर खासा दबाव है और वित्त वर्ष 15 में बमुश्किल ही मुनाफा हुआ है। कम मुनाफे के पीछे वजह कच्चे माल की लागत है, जिसका एक डेयरी के कुल खर्च में 70-80 फीसदी योगदान होता है और किसानों के लिए हाल के वर्षों में खरीद मूल्य में खासा इजाफा हुआ है, जिसका मार्जिन पर खासा असर पड़ा है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) जिसके पास अमूल ब्रांड का स्वामित्व है, के प्रबंध निदेशक आर एस सोढी ने कहा कि दुग्ध सहकारी संगठन मार्जिन के सिद्धांत पर काम नहीं करते हैं, क्योंकि ऊंची कीमतों का लाभ उत्पादकों तक पहुंचाया जाता है। हालांकि सोढी मानते हैं कि इस साल खरीद मूल्य में 3-4 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, क्योंकि उत्पादन स्थिर बना हुआ है। इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट में भी कहा गया, 'दुग्ध सहकारी संस्थाएं किसानों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से काम करती हैं। हमें उम्मीद है कि सहकारी संगठन वित्त वर्ष 16 में भी 5 फीसदी से कम (कर मार्जिन बाद मुनाफा) मार्जिन दर्ज करती रहेंगी।' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में कमजोरी के चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद काफी कम है और डेयरियों के पास कम से कम 50,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर का भंडार मौजूद है।
जीसीएमएमएफ डेयरियों के फैट की कीमत लगभग 550 रुपये प्रति किलोग्राम है और उत्तर भारत में भैंस के दूध की कीमत 34 रुपये प्रति किलोग्राम और गाय के दूध की कीमत 29 रुपये प्रति किलोग्राम है।
कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (नंदिनी ब्रांड) और राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (सारस ब्रांड) के अधिकारियों ने कहा कि अभी तक उत्पादन अच्छा रहा है।इंडिया रेटिंग्स को डेयरी क्षेत्र का आकार सालाना आधार पर 15.6 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है। वित्त वर्ष 14 में उत्पादन 13.8 करोड़ टन रहा था और वित्त वर्ष 16 में इसके 15.1 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
देश में लगभग 7 करोड़ ग्रामीण परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए हैं। ये परिवार दूध की लगभग 45 फीसदी पैदावार की खपत खुद ही करते हैं। बाकी 55 फीसदी में से 34.5 फीसदी शहरी बाजार में खुले रूप में बेचा जाता है और शेष दूध प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने के काम आता है। सिर्फ 25 फीसदी दूध और दुग्ध उत्पाद भारतीय बाजारों में बेचे जाते हैं। BS Hindi
देश भर की डेयरियों का दावा है कि फिलहाल किसानों को दी जाने वाली कीमतों में बढ़ोतरी की कोई खास संभावना नहीं है, क्योंकि बीते साल की तुलना में इस साल मार्जिन 30-40 फीसदी नीचे चल रहा है।
दिल्ली की स्टर्लिंग ऐग्रो के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा, 'उत्तरी पट्टी में कुछ डेयरियों के मार्जिन में 40 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। निर्यात अनुमान को देखते हुए स्टर्लिंग एग्रो का मार्जिन इस वित्त वर्ष के दौरान 30 फीसदी तक गिरा है, जिसके अगले छह महीनों के दौरान बढ़ोतरी की उम्मीद कम है। मार्जिन में बढ़ोतरी के लिए भारतीय डेयरियों के लिए यह सबसे खराब साल रहने जा रहा है।'
रेटिंग कंपनी इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुताबिक डेयरी कंपनियां बीते पांच साल से लगभग स्थिर 5 से 8 फीसदी के मार्जिन के साथ परिचालन कर रही हैं। रेटिंग कंपनी ने एक रिपोर्ट में कहा, 'मुख्य रूप से दूध का कारोबार करने वाली कंपनियों की तुलना में मूल्य वर्धित दुग्ध उत्पादों के क्षेत्र में परिचालन करने वाली कंपनियां बेहतर स्थिति में हैं।' हात्सुन एग्रो के प्रबंध निदेशक आर जी चंद्रमोगन भी स्वीकार करते हैं कि मार्जिन पर खासा दबाव है और वित्त वर्ष 15 में बमुश्किल ही मुनाफा हुआ है। कम मुनाफे के पीछे वजह कच्चे माल की लागत है, जिसका एक डेयरी के कुल खर्च में 70-80 फीसदी योगदान होता है और किसानों के लिए हाल के वर्षों में खरीद मूल्य में खासा इजाफा हुआ है, जिसका मार्जिन पर खासा असर पड़ा है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) जिसके पास अमूल ब्रांड का स्वामित्व है, के प्रबंध निदेशक आर एस सोढी ने कहा कि दुग्ध सहकारी संगठन मार्जिन के सिद्धांत पर काम नहीं करते हैं, क्योंकि ऊंची कीमतों का लाभ उत्पादकों तक पहुंचाया जाता है। हालांकि सोढी मानते हैं कि इस साल खरीद मूल्य में 3-4 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, क्योंकि उत्पादन स्थिर बना हुआ है। इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट में भी कहा गया, 'दुग्ध सहकारी संस्थाएं किसानों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से काम करती हैं। हमें उम्मीद है कि सहकारी संगठन वित्त वर्ष 16 में भी 5 फीसदी से कम (कर मार्जिन बाद मुनाफा) मार्जिन दर्ज करती रहेंगी।' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में कमजोरी के चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद काफी कम है और डेयरियों के पास कम से कम 50,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर का भंडार मौजूद है।
जीसीएमएमएफ डेयरियों के फैट की कीमत लगभग 550 रुपये प्रति किलोग्राम है और उत्तर भारत में भैंस के दूध की कीमत 34 रुपये प्रति किलोग्राम और गाय के दूध की कीमत 29 रुपये प्रति किलोग्राम है।
कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (नंदिनी ब्रांड) और राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (सारस ब्रांड) के अधिकारियों ने कहा कि अभी तक उत्पादन अच्छा रहा है।इंडिया रेटिंग्स को डेयरी क्षेत्र का आकार सालाना आधार पर 15.6 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है। वित्त वर्ष 14 में उत्पादन 13.8 करोड़ टन रहा था और वित्त वर्ष 16 में इसके 15.1 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
देश में लगभग 7 करोड़ ग्रामीण परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए हैं। ये परिवार दूध की लगभग 45 फीसदी पैदावार की खपत खुद ही करते हैं। बाकी 55 फीसदी में से 34.5 फीसदी शहरी बाजार में खुले रूप में बेचा जाता है और शेष दूध प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने के काम आता है। सिर्फ 25 फीसदी दूध और दुग्ध उत्पाद भारतीय बाजारों में बेचे जाते हैं। BS Hindi
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