मिलों में लगातार आवक बढऩे और मांग में कमी के चलते थोक बाजार में चीनी की
कीमतों में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। उत्पादन में बढ़ोतरी की
खबरों के साथ थोक बाजार में चीनी के दाम पांच साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच
गए। हाजिर बाजार में चीनी के दाम गिरकर 2,500 रुपये प्रति क्ंिवटल के करीब
और वायदा बाजार में 2,400 रुपये प्रति क्ंिवटल के नीचे चले गए। घरेलू
बाजार के साथ वैश्विक बाजार में कमजोर मांग की वजह से चीनी में फिलहाल
मिठास आती दिखाई नहीं दे रही है।
मिलों में लगातार बढ़ते स्टॉक और कमजोर मांग से हाजिर बाजार में चीनी के दाम गिरकर 2,511 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गए। चीनी की ये कीमतें पिछले पांच सालों में सबसे कम है। वायदा बाजार में चीनी के हाल और बुरे दिख रहे हैं। पिछले एक साल में वायदा चीनी के दाम 25 फीसदी गिर चुके हैं। एमसीएक्स में चीनी एम ग्रेड मई अनुबंध में कीमतें गिरकर 2,368 रुपये प्रति क्ंिवटल के निचले स्तर पर पहुंच गईं जबकि कल बंद हो रहे मार्च अनुबंध में कीमतें 3.8 फीसदी गिरकर 2,400 रुपये में बंद हुई। वायदा बाजार में चीनी की कम होती मिठास पर ऐंजल ब्रोकिंग के अनुज गुप्ता कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम हैं जो भारतीय निर्यातकों के लिए सही नहीं है। इस कारण निर्यात नहीं हो पा रहा है। घरेलू बाजार में भी मांग कम है। फिलहाल वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में बहुत जल्द सुधार होते नहीं दिख रहा है, लेकिन मौजूदा स्तर से नीचे जाना भी मुश्किल है।
चीनी की कीमतों में लगातार और भारी गिरावट की सबसे बड़ी वजह उत्पादन अधिक होना है। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 2014-15 में गन्ना उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी बढ़कर 84,261 हजार टन होने का अनुमान है। उत्पादन अधिक होने की वजह राज्य में गन्ने के रकबे में 12 फीसदी की बढ़ोतरी मानी जा रही है। महाराष्ट्र की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राज्य में चालू वित्त वर्ष के दौरान गन्ने का रकबा 1,054 हजार हेक्टेयर बताया जा रहा है जबकि 2013-14 में यह 937 हजार हेक्टेयर था। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के मुताबिक 15 मार्च तक देश में 221.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। यह एक साल पहले की समान अवधि में 193.8 लाख टन उत्पादन से 28 लाख टन अधिक है। देश में चीनी सत्र अक्टूबर से सितंबर तक रहता है। सरकार ने चीनी उत्पादन का अनुमान 250 लाख टन से बढ़ाकर 265 लाख टन कर दिया है। सरकार ने 14 लाख टन अधिक उत्पादन का अनुमान रखा था इसलिए 14 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम कम होने के कारण निर्यात में भी फायदा नहीं है। इस्मा के अविनाश वर्मा के अनुसार वैश्विक बाजार में चीनी सस्ती होने की वजह प्रमुख उत्पादक देश ब्राजील की मुद्रा का डॉलर के मुकाबले कमजोर होना है। ब्राजील की मुद्रा का अवमूल्यन होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी सस्ती हुई है। (BS Hindi)
मिलों में लगातार बढ़ते स्टॉक और कमजोर मांग से हाजिर बाजार में चीनी के दाम गिरकर 2,511 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गए। चीनी की ये कीमतें पिछले पांच सालों में सबसे कम है। वायदा बाजार में चीनी के हाल और बुरे दिख रहे हैं। पिछले एक साल में वायदा चीनी के दाम 25 फीसदी गिर चुके हैं। एमसीएक्स में चीनी एम ग्रेड मई अनुबंध में कीमतें गिरकर 2,368 रुपये प्रति क्ंिवटल के निचले स्तर पर पहुंच गईं जबकि कल बंद हो रहे मार्च अनुबंध में कीमतें 3.8 फीसदी गिरकर 2,400 रुपये में बंद हुई। वायदा बाजार में चीनी की कम होती मिठास पर ऐंजल ब्रोकिंग के अनुज गुप्ता कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम हैं जो भारतीय निर्यातकों के लिए सही नहीं है। इस कारण निर्यात नहीं हो पा रहा है। घरेलू बाजार में भी मांग कम है। फिलहाल वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में बहुत जल्द सुधार होते नहीं दिख रहा है, लेकिन मौजूदा स्तर से नीचे जाना भी मुश्किल है।
चीनी की कीमतों में लगातार और भारी गिरावट की सबसे बड़ी वजह उत्पादन अधिक होना है। देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 2014-15 में गन्ना उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी बढ़कर 84,261 हजार टन होने का अनुमान है। उत्पादन अधिक होने की वजह राज्य में गन्ने के रकबे में 12 फीसदी की बढ़ोतरी मानी जा रही है। महाराष्ट्र की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राज्य में चालू वित्त वर्ष के दौरान गन्ने का रकबा 1,054 हजार हेक्टेयर बताया जा रहा है जबकि 2013-14 में यह 937 हजार हेक्टेयर था। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के मुताबिक 15 मार्च तक देश में 221.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। यह एक साल पहले की समान अवधि में 193.8 लाख टन उत्पादन से 28 लाख टन अधिक है। देश में चीनी सत्र अक्टूबर से सितंबर तक रहता है। सरकार ने चीनी उत्पादन का अनुमान 250 लाख टन से बढ़ाकर 265 लाख टन कर दिया है। सरकार ने 14 लाख टन अधिक उत्पादन का अनुमान रखा था इसलिए 14 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम कम होने के कारण निर्यात में भी फायदा नहीं है। इस्मा के अविनाश वर्मा के अनुसार वैश्विक बाजार में चीनी सस्ती होने की वजह प्रमुख उत्पादक देश ब्राजील की मुद्रा का डॉलर के मुकाबले कमजोर होना है। ब्राजील की मुद्रा का अवमूल्यन होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी सस्ती हुई है। (BS Hindi)
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