घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्याज और सब्जियों जैसी जल्द खराब होने
वाली जिंसों की खातिर संभावनाएं विकसित करने के लिए मंत्रालय ने विशेष जिंस
बाजार स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है, जिनमें जल्द खराब होने वाली
सब्जियों के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगी होंगी। इन जिंस बाजारों का विकास
राज्य एपीएमसी करेंगी, जिन्हें कृषि मंत्रालय विशेष प्रोत्साहन एवं सब्सिडी
मुहैया कराएगा।
प्याज एवं लहसुन बाजार विकसित करने की पृष्ठभूमि में यह बातचीत महाराष्ट्र, केंद्र सरकार और राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एïवं विकास प्रतिष्ठान के बीच हुई है। अधिकारियों का यह मानना है कि केवल कच्चे प्याज के उत्पादन और निर्यात पर निर्भरता और इसका मूल्य संवर्धन या प्रसंस्करण नहीं करने से किसानों और कारोबारियों को फायदा नहीं मिल रहा है। इस जिंस का पूरा कारोबारी मॉडल जलवायु की स्थितियों पर निर्भर है। अगर जल्द खराब होने वाली जिंसों को प्रसंस्कृत जिंसों में बदला जाए तो यह न केवल किसानों और कारोबारियों के लिए बल्कि भारत और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद होगा। इसमें निर्यात की भारी संभावनाएं पैदा होंगी और ये जिंस सभी सीजनों में उपलब्ध होंगी। इसके अलावा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुझाने का प्रस्ताव रखा गया है, ताकि किसानों को होने वाले नुकसान पर नियंत्रण लगाया जा सके। वहीं प्याज के लिए निर्यात नीति भी तय करने का प्रस्ताव है। मंत्रालय विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के समक्ष यह प्रस्ताव रख सकता है कि वह प्याज के मुक्त निर्यात को मंजूरी दे और निर्यात के लिए निर्यातक एजेंसियों की जरूरत समाप्त करे। अधिकारियों के मुताबिक निर्यात नीति को प्याज निर्यात पर समय-समय पर रोक लगाने, एमईपी तय करने और इसे समय-समय पर बदलने जैसे प्रावधानों से मुक्त रखा जाना चाहिए। एपीएमसी की मदद से जल्द खराब होने वाली जिंसों के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के प्रस्ताव की परीक्षण के तौर पर प्याज से शुरुआत हो सकती है। इसके बाद अन्य जिंसों जैसे मिर्च, शिमला मिर्च और लहसुन आदि के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाई जा सकती है।
केंद्र सरकार ने जल्द खराब होने वाली सब्जियों के प्रसंस्करण की खातिर प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के लिए सब्सिडी देने की संभावना पर विचार करने पर सहमति जताई है। जल्द खराब होने वाली जिंसों के ठीक बने रहने की अवधि बढ़ाने के लिए मंत्रालय इरैडिटेशन तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले प्याज में किया जाएगा। इरैडिटेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खाद्य सामग्री को ऊर्जा के एक स्रोत के संपर्क में लाया जाता है, जिसे खाद्य सामग्री संरक्षित रह सके। इससे खाद्य सामग्री से होने वाली बीमारी का जोखिम घटता है, तेजी से फैलने वाले कीटों के प्रसार पर रोक लगती है और खाद्य सामग्री में अंकुरण या पकाव देरी से होता है। यह प्रकाश रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकला जा सकता है या बिजली के रूप में पैदा किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इरैडिटेशन से खाद्य पदार्थ रेडियोएक्टिव नहीं बनता है और खाद्य सामग्री के इरैडिटेशन को 60 देशों में मंजूरी मिली हुई है। पूरे विश्व में हर साल करीब 5 लाख टन खाद्य सामग्री का प्रसंस्करण होता है। भारत में लासलगांव में इरैडिटेशन संयंत्र हैं, जिसका इस्तेमाल इसके लिए किया जा सकता है। दरअसल मंत्रालय ने विभिन्न जगहों पर किसानों के खेतों में बड़े पैमाने पर की जाने वाली प्रदर्शनियों के लिए सब्सिडी मुहैया कराने पर सहमति जताई है, ताकि इरेडिएट किए हुए और बिना किए हुए प्याज में नुकसान का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। अधिकारियों के मुताबिक यह परियोजना आगामी खरीफ सीजन के अंत में और रबी सीजन में शुरू हो सकती है। (BS Hindi)
प्याज एवं लहसुन बाजार विकसित करने की पृष्ठभूमि में यह बातचीत महाराष्ट्र, केंद्र सरकार और राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एïवं विकास प्रतिष्ठान के बीच हुई है। अधिकारियों का यह मानना है कि केवल कच्चे प्याज के उत्पादन और निर्यात पर निर्भरता और इसका मूल्य संवर्धन या प्रसंस्करण नहीं करने से किसानों और कारोबारियों को फायदा नहीं मिल रहा है। इस जिंस का पूरा कारोबारी मॉडल जलवायु की स्थितियों पर निर्भर है। अगर जल्द खराब होने वाली जिंसों को प्रसंस्कृत जिंसों में बदला जाए तो यह न केवल किसानों और कारोबारियों के लिए बल्कि भारत और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद होगा। इसमें निर्यात की भारी संभावनाएं पैदा होंगी और ये जिंस सभी सीजनों में उपलब्ध होंगी। इसके अलावा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुझाने का प्रस्ताव रखा गया है, ताकि किसानों को होने वाले नुकसान पर नियंत्रण लगाया जा सके। वहीं प्याज के लिए निर्यात नीति भी तय करने का प्रस्ताव है। मंत्रालय विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के समक्ष यह प्रस्ताव रख सकता है कि वह प्याज के मुक्त निर्यात को मंजूरी दे और निर्यात के लिए निर्यातक एजेंसियों की जरूरत समाप्त करे। अधिकारियों के मुताबिक निर्यात नीति को प्याज निर्यात पर समय-समय पर रोक लगाने, एमईपी तय करने और इसे समय-समय पर बदलने जैसे प्रावधानों से मुक्त रखा जाना चाहिए। एपीएमसी की मदद से जल्द खराब होने वाली जिंसों के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के प्रस्ताव की परीक्षण के तौर पर प्याज से शुरुआत हो सकती है। इसके बाद अन्य जिंसों जैसे मिर्च, शिमला मिर्च और लहसुन आदि के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाई जा सकती है।
केंद्र सरकार ने जल्द खराब होने वाली सब्जियों के प्रसंस्करण की खातिर प्रसंस्करण इकाइयां लगाने के लिए सब्सिडी देने की संभावना पर विचार करने पर सहमति जताई है। जल्द खराब होने वाली जिंसों के ठीक बने रहने की अवधि बढ़ाने के लिए मंत्रालय इरैडिटेशन तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले प्याज में किया जाएगा। इरैडिटेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खाद्य सामग्री को ऊर्जा के एक स्रोत के संपर्क में लाया जाता है, जिसे खाद्य सामग्री संरक्षित रह सके। इससे खाद्य सामग्री से होने वाली बीमारी का जोखिम घटता है, तेजी से फैलने वाले कीटों के प्रसार पर रोक लगती है और खाद्य सामग्री में अंकुरण या पकाव देरी से होता है। यह प्रकाश रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकला जा सकता है या बिजली के रूप में पैदा किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इरैडिटेशन से खाद्य पदार्थ रेडियोएक्टिव नहीं बनता है और खाद्य सामग्री के इरैडिटेशन को 60 देशों में मंजूरी मिली हुई है। पूरे विश्व में हर साल करीब 5 लाख टन खाद्य सामग्री का प्रसंस्करण होता है। भारत में लासलगांव में इरैडिटेशन संयंत्र हैं, जिसका इस्तेमाल इसके लिए किया जा सकता है। दरअसल मंत्रालय ने विभिन्न जगहों पर किसानों के खेतों में बड़े पैमाने पर की जाने वाली प्रदर्शनियों के लिए सब्सिडी मुहैया कराने पर सहमति जताई है, ताकि इरेडिएट किए हुए और बिना किए हुए प्याज में नुकसान का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। अधिकारियों के मुताबिक यह परियोजना आगामी खरीफ सीजन के अंत में और रबी सीजन में शुरू हो सकती है। (BS Hindi)
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